@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: तुलना प्रत्याशियों का, कचरे से

सोमवार, 24 नवंबर 2008

तुलना प्रत्याशियों का, कचरे से

कोटा नगर में दो विधानसभा क्षेत्र उत्तर और दक्षिण हैं, इस के अतिरिक्त एक लाड़पुरा विधानसभा क्षेत्र भी है जिस में कोटा नगर की आबादी का एक हिस्सा तथा शेष ग्रामीण इलाका आता है। इस तरह कोटा नसभी अखबारों के कोटा संस्करणों में कोटा नगर की तीन विधान सभा क्षेत्रों के प्रत्याशियों के नित्य के कार्यकलाप नित्य पढने को मिल जाते हैं। आज के लगभग सभी समाचार पत्रों में खबर है कि प्रत्याशी जहाँ जहाँ भी प्रचार के लिए गए उन्हें विभिन्न वस्तुओं से तोला गया।

इन वस्तुओं में लड्डू और फल तो थे ही फलों की विभिन्न किस्में भी थी। कहीं केलों से तुलाई हो रही थी तो कहीं अमरूदों से। कहीं कहीं सब्जियों से भी उन्हें तोला जा रहा था। कहीं मिठाइयों से भी तोला गया था। तुलाई होने के पश्चात यह सब सामग्री प्रत्याशी के साथ आए लोगों और क्षेत्र के नागरिकों में वितरित की जा रही है। बाकी शेष सामग्री तो ठीक है उसे तुरंत ही खा-पी कर निपटा दिया जाता है। लेकिन सब्जियों का क्या होता है? पता लगा यह महिलाओं को रिझाने का तरीका है। जनसंपर्क के दौरान घरों पर जो भी महिलाएँ मिलती हैं उन में यह सब्जी वितरित कर दी जाती है।

कोटा की कचौड़ियाँ मशहूर हैं, कोई कोटा आए और कोटा की कचौड़ियाँ न खाए तो समझा जाता है उस का कोटा आना बेकार हो गया। ये दूसरे शहरों और विदेश तक में निर्यात होती हैं। तो कोटा में प्रत्याशी विभिन्न खाद्य सामग्री से तुल रहे हों तो कचौड़ियाँ कैसे पीछे रह सकती थीं। यहाँ इन्हें कचौरी कहा जाता है। वैसे भी प्रत्याशी जी के साथ चलने वाली फौज को नाश्ते के नाम पर कचौरियाँ और चाय ही तो मिलती है। तो एक प्रत्याशी जी कचौरियों से भी तुल गए।

अदालत में जब इन का चर्चा हो रहा था। तब किसी ने कहा प्रत्याशी को तौलने के लिए तो कम से कम 60 से 90 किलो तक कचौरियाँ चाहिए होंगी इतनी कचौरियाँ एक मुश्त मिलना ही कठिन है। एक सज्जन ने राज बताया कि प्रत्याशी को ऐसे थोड़े ही तौला जाता है। टौकरों में कचौरियाँ भरी जाती हैं तो उन के नीचे वजनी पत्थर भी होते हैं ताकि कम से ही काम चल जाए। पत्थर फोटो में थोड़े ही आते हैं।

एक सज्जन कचौरियों और कचरे के नाम साम्य से प्रभावित थे। उन्हों ने सुझाव दे डाला कि कोटा में पिछले पन्द्रह सालों से भाजपा का नगर निगम पर कब्जा चला आ रहा है लेकिन कचरा है कि कभी साफ होने का नाम ही नहीं लेता है। अनेक मोहल्लों में तो यह शाश्वत समस्या हो चुकी है। उन का कहना था कि भाजपा के प्रत्याशियों को तो कचरे से तौला जाना चाहिए।

इस पर दूसरे ने सुझाव दिया कि यह इतना आसान नहीं है। तीसरा बोला यह कोई ऐसे ही थोड़े ही हो जाएगा। उस के लिए तो एक गुप्त योजना बनाई जाएगी। खूबसूरत बोरों और कार्टनों में बन्द कर के कचरा रखा जाएगा प्रत्याशी जी को उन बोरों और कार्टनों से तोला जाएगा। असल मजा तो तब आएगा, जब उन कार्टनों और बोरों को सामग्री वितरण के लिए खोला जाएगा।

बहुत देर तक यह चर्चा चलती रही। लोग आनंद लेते रहे। मैं सोच रहा था कि क्या आज के प्रत्याशी कचरे से तोलो जाने लायक ही रह गए हैं?  जितना वजन, उतना कचरा!

9 टिप्‍पणियां:

गौतम राजऋषि ने कहा…

अब तो यही नौबत रह गयी है...कचरे से तौलना

और कोटा की चाय और कचौरियों की अच्छी याद दिलाई आपने.पाँच-छः वर्षों पहले अपने विभिन्न एक्सरसाइजों के दौरान गुजरते हुये लंबे फ़ौजी-काफ़िले को रुकवाकर कई दफ़ा कोटा के चाय की चुस्कियाँ ली है...

ghughutibasuti ने कहा…

पुत्री की सगाई व विवाह कोटा में ही सम्पन्न हुआ था । तब किसी ने बताया कि वहाँ की कचौड़ियाँ अवश्य खानी चाहिएँ । परन्तु क्या क्या खाते हर व्यंजन लाजवाब था । शायद वहाँ से अधिक स्वादिष्ट खाना कहीं नहीं खाया । केवल विशेष भोज की बात नहीं, जिस होटल में रहे वहाँ का रोज का खाना भी अत्यधिक स्वादिष्ट था ।
यदि कचरे से तोलने के बाद कचरे को कहीं सुरक्षित ठिकाने लगा दिया जाए तो विचार बुरा नहीं है । यदि इससे शहर की सफाई हो जाए तो बहुत से लोग तुलने को तैयार हो जाएँ ।
घुघूती बासूती

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी इन नेताओ को जिन भी चीजो से तोला जा रहा है, क्या जनता इतनी पागल है कि दो केलो के लिये या थोडी सब्जी के लिये या चार कचोरियो के लिये फ़िर से इन बदमाशो को चुन लेगी??
जो नेता अपना वादा पुरा ना करे उसे किसी भी चिझ से तोला जाये जनता का हक बनता है वह चीजे मत ले, ओर उस नेता का वायकाट करे,वेसे तो इन्हे पुराने जुतो से तोला जाना चाहिये, फ़िर उन का हार बना कर इन नेताओ ओर इन के चम्मचो के गले मै डालना चाहिये.
धन्यवाद इस जानकारी के लिये

ab inconvenienti ने कहा…

आज तक जैसे लोग चुनकर आए और जिस तरह आए, उससे तो यही मानना पड़ता है की जनता पागल नहीं तो कम से कम बेवकूफ ज़रूर है. वरना क्यों कोई सडांध और बीमारी के बीच रहना चाहेगा? वह भी तब जब सारे काम ईमानदारी से करवाने का ब्रह्मास्त्र जनता के ही हाथ में हो?

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बेहद सोचपरक, सामयीक और सटीक आलेख ! बहुत धन्यवाद !

Abhishek Ojha ने कहा…

पहली बार लगा की कचरे कम ना पड़ जाएँ :-)

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

सही है, नीचे कचरा और ऊपर सजाने को कचौरियां। तौलने वाला भी खुश और तुलने वाला भी! :)

Unknown ने कहा…

आज के प्रत्याशी कचरे से तोले जाने लायक ही रह गए हैं. जितने वजन का पत्याशी, उतना कचरा. बाद में यह कचरा प्रत्याशी के घर भेज दिया जाना चाहिए.

विष्णु बैरागी ने कहा…

प्रत्‍याशी को कचरे से तोलने की परिकल्‍पना अच्‍छी लगी । मतदाता की खिन्‍नता सम्‍पूर्ण व्‍यंजना से सम्‍प्रेषित होगी ।