@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शादी की थकान का दिन

मंगलवार, 11 नवंबर 2008

शादी की थकान का दिन

आखिर एक छोटा सा सफर कर के, एक विवाह में शामिल हो, वापस घर पहुँच गए। एक तो पेशा ऐसा कि उस में बाहर जाना नुकसानदेह होता है। अवकाश का दिन भी अपने ऑफिस के काम का होता है। पूरे सप्ताह और पूरे माह कितना ही काम इकट्ठा होता रहता है जो अवकाश के पल्ले बांध दिया जाता है। अब अगर दो अवकाश एक साथ बाहर चले जाएँ तो उस का दबाव तो बन ही जाता है। नतीजा यह कि सोमवार सुबह नौ बजे जब घर पहुँचे तो हालत खराब थी। रात को मुश्किल से दो घंटे भी सोना नसीब नहीं हुआ था ऊपर से ठंड और खा गए, सर चकरा रहा था। घर पहुँचते ही अदालत की डायरी संभाली तो कुछ मुकदमे ऐसे थे जिन में हाजिर रहना आवश्यक था। इस लिए स्नान किया और कुछ नाश्ता कर के अदालत को चल दिए। श्रीमती जी (शोभा) की हालत शायद मुझ से भी बुरी थी। एक तो जब से कार्तिक लगा है वह मुहँ अन्धेरे ही स्नान कर रही है। अब तक मैं उसे टोकता रहता था और वह इस से दूर रहती थी। इस बार मैं ने उसे कुछ नहीं कहा तो वह यह सब कर रही है।  दूसरे वह रात को बिलकुल ही नहीं सोई थी तो उस ने आते ही बिस्तर पकड़ लिया था। अदालत के लिए निकलने के पहले उसे जगा कर कहना पड़ा कि वह गेट और दरवाजे लगा ले।

इस बीच जीजाजी का फोन आ गया था कि उन की माता जी की बरसी है तो हमें दोपहर का भोजन वहीं करना है। यूँ कुछ तला खाने की इच्छा नहीं थी, फिर भी सोचा कि अदालत से जल्दी आ कर तीन बजे करीब भोजन कर लिया जाएगा। फिर खा कर नींद निकाल ली जाएगी। लेकिन सोचा कभी हुआ है? अदालत में ढाई बजे लगा कि अभी एक घंटा और लग ही जाएगा। तो जीजाजी को फोन कर के मना किया कि मैं अभी न आ सकूँगा। वहाँ से छुट्टी मिली कि मैं कभी भी आ सकता हूँ। दिन भर अदालत में नींद से अलसाया काम करता रहा। बेचारी नींद उसे जगह नहीं मिल रही थी तो तीन बजते-बजते वह भी गायब हो गई। एक मुकदमे में एक गवाह से शाम चार बजे जिरह शुरु हई तो अदालत समझ रही थी कि पन्द्रह मिनट का काम है। पर गवाह बिलकुल फर्जी निकला और उस से अपना पक्ष जितना साबित कर सकते थे करवा लिया। पोने पाँच बजे अदालत पूछने लगी कि यदि और समय लगना हो तो अगली पेशी तक के लिए जिरह डेफर कर दी जाए। पर हम पूरी करने पर तुल गए और पाँच बजे छूटे।

घर पहुँचे तो पता लगा अभी तक श्रीमती शोभा जी बिस्तर में हैं। हमें अहसास हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी बीमारी ने घऱ किया हो। पर पता लगा कि दिन में उन्हें भी कुछ आगतों का स्वागत करना पड़ा। उन का भी जीजाजी के यहाँ जाने का मन नहीं था। खैर मुझे तो जाना ही था। मैं कह कर गया कि मैं वहाँ से कुछ भी खा कर नहीं आऊंगा, वह खाने की तैयारी रखे। मुझे वापस लौटने में घंटे भर से अधिक लगा। वहाँ से कुछ खाद्य सामग्री साथ आयी। फिर शोभा ने चपाती और मैथी-दाल की रसेदार सब्जी बनाई। दो दिन में विवाह की दावतों के सब पकवान फीके पड़ गए। फिर हमारा दफ्तर चालू हो गया। रात को बारह बजे ही सो पाए।

यह था,  शुद्ध ब्लागरी वाला आलेख। आप को विवाह और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के चुनाव क्षेत्र की एक वैवाहिक मेहमान की रिपोर्ट पेश करेंगे अगली कड़ी में। आज यहीं से रुखसत होते हैं। सब को राम! राम!

18 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

भारत मै रहने का यह तो लाभ है कि आदमी अपनो से मिलता जुलता रहता है, बहुत सुंदर लगा, लेकिन आप की व्यस्ता बहु ज्यादा लगी.
धन्यवाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

सौ. शोभा भाभी जी से कहिये मैथी दाल की रेसिपी हमें भी दें...अब आराम कर लीजियेगा ...

Udan Tashtari ने कहा…

कितना भी कैसा भी खा लो यहाँ वहाँ. अंत में घर आकर घर का खाना खाने की बात ही कुछ और है.

बढ़िया पोस्ट-अब आगे शादी की रिपोर्ट और चुनाव की रिपोर्ट का इन्तजार.

बेनामी ने कहा…

विवाह की दावतों के सब पकवान फीके पड़ गए

घर की बात ही कुछ और होती है

सच में, शुद्ध ब्लागरी वाला आलेख।

Smart Indian ने कहा…

पढ़कर लगा जैसे घर में बैठकर आपसे बातचीत हो रही हो. राम! राम!

बेनामी ने कहा…

अच्छा है जो आप शादी ब्याह के पकवान पसंद नहीं करते, काफ़ी भारी, अस्वास्थ्यकर और डालडे से तर होता है.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाह साहब ! मजा आ गया और मुंह में पानी भी ! दाल मैथी सबसे पवित्र और पावन डिश ! हमको जबरदस्ती खिलाई जाती है हमेशा दवा की तरह ! :) वाकई आपकी लेखन शैली बहुत सुंदर और रोचक है ! धन्यवाद !

PD ने कहा…

ये तो बहुत यम्मी पोस्ट है.. हर जगह बस खाने की ही बात.. कहीं खाया तो कही नही खाया.. सर मैं होता तो हर जगह लिखता की बस खाया खाया और खाया.. :D
मेरे टैप पोस्ट लगा यह..(यानि की जैसा मैं अक्सर लिखता हूँ..) :)

Nitin Bagla ने कहा…

मतलब झालरापाटन घूम आये आप शादी में...
अगली कडी का इंतजार रहेगा।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@ PD
भाई, मेरी खाने, खाने और खाने वाली पोस्ट तो अभी आने वाली है।

prabhat gopal ने कहा…

sir kafi busy rahe

रंजू भाटिया ने कहा…

मेथी दाल की रेसिपी इया इन्तजार मुझे भी है ..

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

हम होते तो खिचड़ी खाते!

विष्णु बैरागी ने कहा…

खुद को स्‍वस्‍थ बनाए रखिएगा - खुद के लिए, हम सबके लिए । आप जिस नियमितता से लिखते हैं उसके कारण आपको अस्‍वस्‍थ होने और अनुपस्थित रहने का हक नहीं रह गया है ।
पोस्‍ट प्रतीक्षित थी और अच्‍छी तो है ही - घर की बनी मैथी की सब्ब्‍जी की तरह स्‍वादिष्‍ट, पाचक और रोचक ।

Abhishek Ojha ने कहा…

अच्छा है, अब आगे का संस्मरण भी सुनाइये. घर के खाने की बात ही कुछ और है !

pritima vats ने कहा…

आलेख बहुत अच्छा लगा। मूड फ्रेश कर दिया आपके भोजन वर्णन ने। जा रही हूं आलू मेथी बनाने,क्योंकि दाल मेथी बनानी आती नहीं।

bhuvnesh sharma ने कहा…

क्‍या गजब करते हो सर...हमें तो शर्मिंदा कर दिया

इत्‍ती ऊर्जा ?
वाकई वकील तो बहुत होते हैं पर आपके जैसे नहीं

जितेन्द़ भगत ने कहा…

बातचीत के अंदाज में पढ़ने का अपना ही मजा होता है, जैसे खाने की टेबल पर साथ बैठे आपकी बातें सुन रहे हों।