@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की छोटी बहर की दो गज़लें

रविवार, 9 नवंबर 2008

पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की छोटी बहर की दो गज़लें

मैं कल से ही बाहर हूँ।  कल आप ने शिवराम की दो कविताएँ पढ़ीं। आज की इस पूर्व सूचीबद्ध कड़ी में पढिए मेरे अजीज दोस्त शायर पुरुषोत्तम 'यकीन' की छोटी बहर की दो गज़लें ...
 हम चले

  • पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’


हम चले
कम चले

आए तुम
ग़म चले

तुम रहो
दम चले

तुम में हम
रम चले

हर तरफ़
बम चले

अब हवा
नम चले

लो ‘यक़ीन’
हम चले
*****



चुप मत रह                                                                 
  •  पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’

चुप मत रह
कुछ तो कह।


ज़ुल्मो-सितम
यूँ मत सह।

कर न कभी
व्यर्थ कलह।

नद-सा तू
निर्मल बह।

कह दे ग़ज़ल
मेरी तरह।

ज़ुल्म का गढ़
जाता ढह।

मिल बैठो
एक जगह।

नज़्द मेरे
आए वह।

प्यार ‘यक़ीन’
करता रह।
 

*****                                                                         

14 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

बहोत खूब मज़ा आगया छोटी बहर की ग़ज़लों में काफी गहराई मिली
आपको ढेरो बधाई .. यकीन साब को सलाम ...

Udan Tashtari ने कहा…

वाह!!अति सुन्दर!!

आनन्द आ गया यकीन साः को पढ़, आभार.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत बढिया जी ! कम समझ है शायरी की हमको पर आज समझ आया बहर का मतलब ! धन्यवाद !

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

अद्‍भुत शब्द संयोजन। अर्थपूर्ण ग़जल...वाह!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुंदर .
धन्यवाद

Alpana Verma ने कहा…

behad khubsurat!
itni achchee aur saral ghazalen padhne ko milin.
[aisee ghazalen likhne ke liye shbd-kosh bahut badaaa hona chaheeye.]

'yakeen ji' ko badhayee.

PD ने कहा…

बढ़िया.. :)

जितेन्द़ भगत ने कहा…

वाह, छोटी बहर की इन गजलें पढ़कर मजा आ गया। यकीन जी को बधाई।

Smart Indian ने कहा…

सुन्दर!

गौतम राजऋषि ने कहा…

छोटी बहर में कहना कितना मुश्किल होता है जानता हूं...और ये तो इतनी छोटी बहर कि उफ़्फ़्फ़्फ़

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

'देखत में छोटे लगें घाव करें गंभीर'
बहुत सुंदर।

विष्णु बैरागी ने कहा…

वक्‍ता/कलमकार अपनी बात के उथलेपन को छिपाने के लिए उसे विस्‍तारित कर देता है । 'यकीनजी' ने इस बात को बखूबी साबित कर दिया । वे चमत्‍कारी कलमकार हैं । उन्‍हें हमारे नमन अर्पित कीजिएगा । इतने श्रेष्‍ठ सरस्‍वती-पुत्र से भेंट कराने के लिए आपको साधुवाद ।

Satish Saxena ने कहा…

नया कलेवर पसंद आया ! शुभकामनायें !

बवाल ने कहा…

वाह वाह सरजी,
दोनों गज़लें बेहतरीन !
हो गया हमको "यक़ीन" !!