पिछले आलेख पर अब तक जो टिप्पणियां मिलीं हैं, उन से एक बात पर सहमति दिखाई दी, कि अभी हिन्दी ब्लागिरी का शैशवकाल ही है। अनेक को तो पता भी नहीं कि हिन्दी ने भी एक ब्लागीर बालक को जन्म दे दिया है। लेकिन यह संकेत भी इन टिप्पणियों से मिला कि इस बालक ने अपने शैशवकाल में ही जितनी ख्याति अर्जित की है उस से उस के लच्छन पालने में ही दिखाई पड़ने लगे हैं। हमारे ब्लागीरों ने जो नारे उछाले हैं, जिन शब्दों में साहस बढ़ाने और ढाँढस बंधाने के प्रयत्न किए हैं वे कमजोर नहीं हैं। उन्हें प्रेरणा वाक्यों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है, जैसे......
- ब्लॉग्गिंग आएगा और जब ये आएगा तो लोग इसी में पिले रहेंगे जैसे हम ब्लॉगर पिले हुए हैं..... :)
- जल्द ही वह दिन आएगा जब आप ब्लागिंग पर अपने इंटरव्यू में बताएँगे ..धीरे धीरे इसका नशा सब पर होगा ..:)
- अजी उन्हे छोड़िए. हम है ना ब्लॉगिंग के बारे में सवाल पूछने के लिए..
- वो सुबह कभी तो आएगी...जब ब्लोगिगं धूम मचाएगी।
- जल्द ही एक बडी संख्या इसे जानने लगेगी।
- सुबह होगी जल्द ही।
ये सभी अच्छे संकेत हैं। अंतरजाल तेजी से बढ़ने वाला है और ब्लागिरी भी। जरूरत है लोगों की जरूरत को समझने की। अगर ब्लागिरी आम लोदों की जरूरत को पूरा करने लगती है तो धीरे-धीरे यह जीवन का आवश्यक अंग बन जाएगी और अच्छे व सिद्धहस्त ब्लागर लोगों को बताने लायक कमाई भी कर सकेंगे। जिस तेजी से हिन्दी ब्लागीरों की संख्या बढ़ रही है। (औसतन 10 चिट्ठे प्रतिदिन) उस से लगता है। कि पाठकों की संख्या भी बढ़ेगी।
जमाना वह नहीं रहा कि हम में काबिलियत है, जिस को जरूरत होगी हमारे पास आएगा। जमाना इस से बहुत आगे जा चुका है। अब लोगों को जरूरत पैदा की जाती है और अपना माल बेचा जाता है। ब्लागीरों को भी जरूरत पैदा कर पाठक पैदा करने पड़ेंगे। एक ब्लागर चाहे तो कम से कम दस नए पाठक ब्लागिरी के लिए नए ला सकता है और उसे लाना चाहिए। उसे इस के लिए सतत प्रयास करना चाहिए। ब्लागीरों को अपने स्तर को भी सभी प्रकार से उन्नत करते रहना चाहिए, तकनीकी रूप से भी और अपने माल के बारे में भी।
सभी ब्लागीरों को ब्लागिरी से एक लाभ जो हो रहा है वह यह कि वे आपस में जबर्दस्त अन्तरक्रिया कर रहे हैं जिस से उन की क्षमताएँ तेजी से विकसित हो रही हैं। वे लेखन की हों या अपने अपने क्षेत्र की जानकारियों की हों।
आज मेरे स्टूडियों से निकलने के बाद मैं ने कुछ मित्रों को संदेश दिया कि मेरा साक्षात्कार केबल पर प्रसारित होने वाला है। उन में से कुछ ने उसे देखा भी। जिस ने भी देखा उसे खूब सराहा भी। कुछ लोगों ने उसे अनायास देखा। आज अदालत मे अनेक वरिष्ठ वकीलों ने मुझे बधाई भी दी और यह भी कहा कि मेरी क्षमताएँ बहुत विकसित हैं और इस की उन्हें जानकारी नहीं थी। इस साक्षात्कार को सांयकालीन पुनर्प्रसारण में बहुत लोगों ने देखा। पूरे प्रसारण के दौरान और उस के बाद मुझे अनेक मित्रों और परिचितों के फोन आते रहे। आज के एक दिन ने मुझे बहुत बदल दिया। मैंने महसूस किया कि लोगों ने आज मुझे एक भिन्न दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। कल जब मैं अदालत पहुँचूंगा तो मुझे और भिन्न दृष्टिकोण से देखा जाएगा।
लेकिन क्या यह आज से दस माह पूर्व हो सकता था? बिलकुल नहीं क्यों कि तब में एक वकील मात्र था। इस ब्लागिरी ने मुझे एक नया आयाम प्रदान किया, एक नया रूप दिया। यदि मैं ने इन दस माहों में 162 आलेख न लिखे होते उन पर आई सैकड़ों टिप्पणियों और दूसरे ब्लागीरों की सैंकड़ों पोस्टों को पढ़ कर सैंकड़ों टिप्पणियाँ नहीं की होतीं तो यह सब नहीं हो सकता था। ब्लागिरी ने मेरी क्षमताओं को विकसित किया। वह लगातार सभी ब्लागीरों की क्षमताओं को विकसित कर रही है।
ब्लागीरों को समाचार पत्रों में स्थान मिलने लगा है। अनेक ब्लागीरों की रचनाएँ समाचार पत्र पुनर्प्रकाशित कर रहे हैं। जल्दी ही वह समय भी आने वाला है कि जब ब्लागिरी और ब्लागीरों की चर्चा टीवी और अन्य प्रचार माध्यमों के लिए एक स्थाई स्तंभ होंगे। ब्लाग आज भी ज्ञान और जानकारी के स्रोत हैं इन का दायरा भी बढ़ेगा और वे प्रचार के माध्यम भी बनेंगे। अभी कुछ अभिनेता ब्लागिरी में आए हैं। लालू जैसे नेता इस में आए हैं। समय आने वाला है जब सभी प्रोफेशन के लोगों के लिए ब्लागिरी एक जरूरी चीज बनेगी। उन की ब्लागिरी से ही उन की क्षमताओं का मूल्यांकन किया जाने लगेगा।
अंत में मैं लावण्या दीदी की टिप्पणी यहाँ पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ जिस में वे कहती हैं.......
आपसे मेरा सविनय अनुरोध है कि आप ब्लोगिंग पर और सिंदुर पर और अन्य विषयों पर दूसरों की चिन्ता किये बिना लिखिये -"वीकिपीडीया की तरह या डिक्शनरी की तरह ये जानकारियाँ आज नहीं आनेवाले समय तक नेट पर कायम रहेंगी और काम आयेंगी- जब आम का नन्हा बिरवा उगा ही था तब किसे पता था कि यही घना पेड बनेगा जिस के रसीले आम बरसोँ तक खाये जायेँगे -ये मेरा मत है ..कोई विषय ऐसा भी होता है जो भविष्य मेँ आकार लेता है, और वर्तमान उसे हैरत से देखता है ..कम से कम, यह मेरा विश्वास है....
- लावण्या
18 July, 2008 10:39 PM
और अब मुझे स्मरण हो रही हैं राजस्थानी के कवि हरीश 'भादानी' के एक गीत की मुख्य पंक्तियाँ जो सभी ब्लागीरों को कह रही हैं.....
भोर का तारा उगा है,
जाग जाने की घड़ी है।
नीन्द की साँकळ उतारो,
किरन देहरी पर खड़ी है।
15 टिप्पणियां:
भोर का तारा उगा है,
जाग जाने की घड़ी है।
नीन्द की साँकळ उतारो,
किरन देहरी पर खड़ी है।
-बस, इसी विश्वास से जुटे हैं. शुभकामनाऐँ.
wishvaas bana rahe
हाँ भोर का तारा खुद ओझल हो जाता है
पर आनेवाले सूर्य का वही छडीदार होता है
पहले जो भी काम करता है
वो बुनियादी ,
योगदान देता है
जिस पे इमारत खडी होगी .
मेरी टीप्पणी से
इतनी सुँदर कविता याद आयी
और हमेँ पढवाई ,
उसका शुक्रिया ~~
आपको पुन: बधाई
..आप को लोग और जानने लगेँगेँ अब तो ..
ब्लागीर शब्द अच्छा लगा।
भोर का तारा उगा है,
जाग जाने की घड़ी है।
नीन्द की साँकळ उतारो,
किरन देहरी पर खड़ी है।
वाह! वाह!! सिम्पली वाह!!!
वाह!! आज तो आपने भाव विभोर कर दिया.. बहुत ही सुंदर पोस्ट.. यदि सभी इस प्रकार से सोचने लगे तो हिन्दी ब्लॉगिंग का भविशय चरम पर होगा.. मुझे तो फिल्म रंग दे बसंती का डायलोग याद आ गया "इक अमिया बोएंगे ते लख पाएँगे"
आज सुबह से चौथा लेख ब्लोगिंग पर पढ़ रहा हूँ एक बात ओर ये सच है की हम लोग अलग अलग पेशे में है ओर रोज सुबह एक मुखोटा लगा कर अपने अपने काम पर निकलते है ,पर बहुत कुछ ऐसा है जिसे शायद अंतर्मन बाँटना चाहता है ,कुछ कहना चाहता है वही सब ब्लॉग पे आकर निकलता है......कई लोग ऐसे भी है जो आपके कुछ सोये हुए विचारो को जगा देते है ,उद्देलित करते है,कुछ सोचने पर मजबूर करते है......जीवन की इस आपा धापी में चलिए कुछ टुकड़े इस कम्पूटर से ही जगे जगे से मिल जाते है
नींद की सांकल उतारो
किरण देहरी पर खडी है
भई वाह !
हमारा उत्साह अब बढ़ता ही जा रहा है। जै ब्लागीर, जै चिठेरे, और जै टिपियावक समाज, सबकी जय हो।
ब्लॉगिंग के बारे में और अधिक सोचने को मिला। अभी तो लिखते चले जा रहे हैं देखिए कल क्या लाता है।
घुघूती बासूती
बहुत सही बातें कहीं है आपने... अनेको फायदे हैं ब्लॉग्गिंग के और जन-जन तक पहुचे यही कामना है, लेकिन ग्लोबलाईजेसन की तरह यह भी अभी तक समाज के कुछ ख़ास वर्ग का ही हिस्सा है, भगवान् करे हर वर्ग तक पहुचे... देर तो लगेगी लेकिन ऐसा होगा यही कामना है.
ध्यान से पढ़ लूँ,
अपनी बुद्धि भर मनन कर लूँ,
फिर टिप्पणी करूँ ।
जहाँ तहाँ जाकर जाकर टिपियाने के वास्ते ही सही..
टप्प से टिपियाने का आत्मबल नहीं हैं, मुझमें जी !
एक आलेख इस पर भी मिल जाये, तो आँखें थोड़ी और खुलें ।
आप बहुत ही सार्थक लेखन दे रहे हैं, द्विवेदी जी ।
हाँज़्ज़ि,
लावण्या दीदी से सहमत, बल्कि इनके मत का मुरीद हूँ ..लेकिन ?
एक लेकिन छींक कर , बीच में मन खराब कर दे रहा है । निश्चय ही सब उज़ला है, किंतु ?
यह किंतु पूछ रहा है कि आख़िर कंटेन्ट बेस कितने जन दे रहे हैं ? शायद मैं तो कतई ही नहीं !
कोई तो वज़ह होगी कि गूगल की गिद्ध दृष्टि ने देख लिया कि इस अंधा बाँटे रेवड़ी में हिंदी एडसेंस के रसगुल्ले इन ब्लाग साइ्टों पर सड़ जायेंगे और अपनी रेहड़ी लेकर दूसरी गली में मुड़ गया ।
अय क्कि मैं झुट्ठ बोलियाँ ?
नींद की सांकल उतारो
किरण देहरी पर खडी है
सच बात है.मामाजी आपके लेख हमेशा कोई नयी बात सोचने के लिये देते हैं.एक विनती और,कवि हरीश भादानी जी की आपके पास जो भी रचनायें हैं,उन्हें यहां सब के साथ शेयर करें.मुझे यकीन है सबको अच्छा लगेगा.
सादर अभिवादन ,
आपकी बात को अपने शब्दों से कहने की कोशिश कर रहा हूँ
हमारी कोशिशें हैं इस, अंधेरे को मिटाने की
हमारी कोशिशें हैं इस, धरा को जगमगाने की
हमारी आँख ने काफी, बड़ा सा ख्वाब देखा है
हमारी कोशिशें हैं इक, नया सूरज उगाने की ..
डॉ . उदय 'मणि' कौशिक
http://mainsamayhun.blobspot.com
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