जी हाँ, 'बाल बच्चे वाला' तो सुन ही रखा होगा। मगर यह बाल, बच्चे वाला है। बात है मेरे गृह राज्य बाड़मेर की यहां का एक 15 साल का किशोर खीया राम जाट सरकारी स्कूल में आठवीं क्लास का छात्र है। बिरादरी के रिवाजों के मुताबिक उस का विवाह ग्यारह साल की उम्र में ही देवी नाम की लड़की से हो चुका है, और उस की यह अर्धांगिनी उस से उम्र में दो बरस बड़ी है।
आम तौर पर बाल विवाह करने वाली लड़कियों का गौना बालिग होने पर किया जाता है। लेकिन खर्चे की बचत के लिए शादी के वक्त ही उस का गौना भी पत्नी के पीहर वालों ने कर दिया। इस से देवी को ससुराल आ कर रहने की छूट मिल गई। नतीजा यह हुआ कि देवी के सत्रहवें साल में और उस के पिया 'खिया" के पन्द्रहवें वर्ष में ही एक सन्तान पैदा हो गई।
सनावड़ा गांव के रहने वाले खीया की शादी में खीया के क्लास के बाकी बच्चे भी शामिल हुए थे। लेकिन जब छह महीने पहले खीया बाप बना तो उसने इसका जिक्र कहीं नहीं किया। उसे लोगों की टांग खिंचाई का डर था। इस रिवाज के कारण कि लड़की का पहली जचगी पीहर में हो खीया को इस खबर को छुपाने में कुछ हद तक कामयाबी भी मिली। उसकी पत्नी देवी ने अपने मायके यानी नजदीकी गांव खारी में जाकर बच्चे को जन्म दिया। मगर यह खबर छुप नहीं सकी जल्द ही खीया के स्कूल के लड़कों को इस बारे में पता चल गया कि उन का सहपाठी खीया बाप बन चुका है
इससे पहले बाढ़मेर जिले के ही निवासी भीमाराम जाट 88 साल की उम्र में पिता बनने का श्रेय प्राप्त कर सुर्खियां बटोर चुका है। जिस का पूरा श्रेय उस ने ऊंटनी के दूध को दिया था, लेकिन खीया के मामले में श्रेय उस की माँ के दूध को दिया जाए या फिर राजस्थान में अब तक पनप रही बाल विवाह की प्रथा को इस का निर्णय आप खुद करें।
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा ने इसी साल अपने सभी अधिकारियों और मंत्रियों को निर्देश दिया है कि उनके इलाके में किसी भी तरह की बाल विवाह की घटना न हो, जबकि बीजेपी के 50 और कांग्रेस के 26 विधायकों की शादी 16 साल से पहले ही हो गई थी।
7 टिप्पणियां:
उफ़ हद है... हम आज तक शादी तो दूर, एक गर्लफ्रेंड तक ना बना पाये ! हमसे आठ-नौ साल छोटा छोरा ... छोडिये क्या कहा जाय !
बाल विवाह न होने की पोल तो अक्षय तृतीया के दिन उजागर हो जाती है। और प्रशासन धृतराष्ट्र की सभा सा पंगु बना रह जाता है।
बिमारू प्रदेशों में पिछड़ेपन के प्रायः सभी लक्षण मिल ही जाते हैं। राजस्थान भी उनमें से एक है। २१वीं सदी में भी हम सामाजिक परंपरा के नाम पर अनेक विडम्बनाएं ढो रहे हैं। एक और राजा राममोहन रॉय की आवश्यकता आन पड़ी है। दूर-दराज के गाँवों में असंख्य खीयाराम और देवी मिल जाएंगे।
बाल विवाह पुराने समय के अनुसार ठीक था, उस समय कई कारण थे, लेकिन आज के समय मे यह गलत हे, कानुन बनाने से कुछ नही होगा, क्यो कि भारत मे कानुन बनते ही तोडने के लिये हे, इस के लिये लोगो को जागरुक करना जरुरी हे,इस से होने वाले नुकसानो के बारे बताना चाहिये.दुसरी ओर ८८ साल का आदमी बाप बना यह भी गलत हे, कब पाले गा अपने बच्चे को, क्या शिक्षा देगा, जब तक हमारे लोग जागरुक नही होते तब तक यही सब होगा,
प्रायः लोग कानून की नहीं सुनते जब तक कानून उनके कान ना पकड़ ले। सबसे सरल तरीका उन लोगों से बातचीत करने का है जिनकी लोग सुनते हैं, जैसे कोई महात्मा या स्वामी जी, या गाँव के सरपंच आदि। यदि ये आदरणीय लोग मुहिम चलाएँ तो कुछ भी संभव है। एक और तरीका है जहर से जहर को मारने वाला। कोई इस तरह की अफवाह फैला दे कि कल से जिस भी बच्चे की शादी १८ साल से पहले होगी वह ५ साल के अन्दर भगवान को प्यारा हो जाएगा या ऐसा ही कुछ। :(
घुघूती बासूती
Kuch na kuch sarthak kadam to uthane hi honge is pratha ko rokne ke liye.
बड़ी गम्भीरता से आपका लेख पढ रहे थे... धीरे धीरे टिप्पणियाँ पढ़नी शुरु कीं तो घुघुती जी की टिप्पणी पढ़कर ऐसी हँसी आई कि रुकी नहीं वैसे कहा उन्होने बिल्कुल ठीक है... धर्म के नाम पर समाज हित करने का तरीका बहुत बढिया है.. सुना है कुछ डॉक्टर ओझा बनकर गाँव गाँव जाकर लोगों का इलाज करते हैं और धीरे धीरे पुरानी रूढियों को तोडते हैं.
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