कोई रजाई में घुसे घुसे चिल्लाया
खेमाबन्दी मुर्दाबाद।
कोई क्या खेमे बनाए
खेमे तो बने हुए हैं,
पहले से
मेरे, तुम्हारे, उस के या इसके
पैदा होने के पहले से।
एक खेमे में मैं हूँ
और मेरे जैसे लोग
जो फिल्म देख कर निकले हैं
उसी खेमे में हैं , या कि दूसरे में?
बात करते हैं...
कि फिल्म कैसी है?
कोई कहता है- बिलकुल बोर
कोई कहता है- टाइम पास
और कोई कहता है
-नहीं, बड़ा संदेश छिपा है इस में।
अब छोड़ो भी यार देख ली ना
समझ में न आई हो तो टिकट लो
और दुबारा घुस लो,
पसंद आई हो तो टिकट लो
और दुबारा घुस लो।
मुझे भूख लगी है,
कोई खाने की जगह देखो
और वहां घुस लो।
कई जगह देखते हैं।
एक, एक को पसंद नहीं
दूसरी दूसरे को
आखिर वहाँ पहुँचते हैं
जिस के बाद कोई खाने की जगह नही.
सभी कहते हैं, सब से रद्दी
ये कोई जगह है?
न बैठने को ठीक, न खाने को
वापस चलें?
वापस पिछला, एक किलोमीटर पहले छूटा है?
मुझे भूख लगी है
वापस नहीं जा सकता
भूख सभी को लगी है।
अब कौन वापस लौटेगा।
चलो यहीं बैठते हैं।
सभी घुस जाते हैं
खाना खाते हैं
बाहर निकलते हुए कोई कहता है
-कुछ बुरा भी नहीं था खाना
बुरा नहीं था? तू यहीं महीना लगवा ले।
और तुम?
मैं भूखा रह लूंगा पर यहाँ नहीं आउंगा।
तो मैं कैसे यहाँ आउंगा।
चल कल नया ढूंढेंगे।
चल, चल कर सोते हैं
सब चल देते हैं
एक बोलता है
तू ने सही कहा, खाना वैसे बुरा नहीं था
साथ खाया, बुरा कैसे होता?
तो फिर तय रहा
बुरा हो या अच्छा
खाएंगे, साथ साथ
खेमाबन्दी नहीं चलेगी
कोई रजाई में घुसे घुसे चिल्लाया
खेमाबन्दी मुर्दाबाद।
गुड नाइट दोस्तों
अब सोता हूँ।
-दिनेशराय द्विवेदी,
17.02.2008, रात्रि 11:16 IST
9 टिप्पणियां:
गहरे अर्थो वाली बात कह दी आपने सरल शब्दो मे। अपनी डायरी मे एक प्रति रख लूंगा।
यह तो दिनेशराय द्विवेदी एक नये अनूठे रंग में हैं!
मुझे भी खेमेबन्दी की बजाय रजाईबन्दी ज्यादा प्रिय है। :-)
मैं भी कह रहा हूं खेमेबंदी मुर्दाबाद
गुड नाइट -नो खेमाबंदी प्लीज... :)
बड़ी शानदार कविता लिख दी आपने।
मेरा तो गुडनून स्वीकार कीजिए!! नेट की खराबी के कारण अभी पढ़ पा रहा हूं यह पोस्ट!!
खेमाबंदी किया नहीं जाता, हो जाता है..........:-)
बहुत खूब ....
बिल्कुल जी बिल्कुल खेमेबन्दी मुर्दाबाद्…गुड नाइट
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