कोई तीस-बत्तीस बरस पहले की बात है। मेरे पितृ-नगर बाराँ में मुख्य चौराहे पर कवि सम्मेलन आयोजित किया गया था। सड़क रोक दी गई थी। कोई चार हजार श्रोता जमीन पर बिछे फर्शों पर विराजमान थे। कोई हजार इन के पीछे थे। इन श्रोताओं में नगर के सम्मानित और प्रतिष्ठित लोगों से ले कर सब से निचले तबके के कविता प्रेमी थे।
एक से एक सुंदर कविताएँ पढी़ जा रही थीं। एक मधुर गीतकार के गीत पढ़ चुकने के उपरांत संचालक को लगा कि इतने अच्छे गीत के बाद शायद ही किसी कवि को जनता पसंद करे। ऐसी हालत में संचालक के पास एक ही विकल्प रहता है कि वह किसी हास्य कवि को मंच पर खड़ा कर दे।
यही हुआ भी। उस वर्ष ग्वालियर के नए नए मशहूर हुए हास्य कवि प्रदीप चौबे को बुलाया गया था। उन के नाम की सिफारिश नगर पालिका के किसी पार्षद ने की थी। कवि चौबे ने मंच पर आते ही हास्य कवियों की अदा में तीन चार चुटकले सुनाए। चुटकले ऐसे थे कि महिलाओं की उपस्थिति में कोई अपने घर में न सुना सके। कुछ ने उन चुटकुलों का आनंद लिया, कोई हंसा तो किसी ने तालियाँ बजाईं। जैसे ही मधुर गीत का माहौल स्वाहा हुआ और श्रोतागण हलके मूड में आए। चौबे जी ने अपनी कविता आरंभ कर दी। चोबे जी कुल तीन पंक्तियाँ पढ़ पाए थे चौथी पढ़ने की तैयारी में थे कि एक अधेड़ पुरुष दर्शकों के ठीक बीच में से खड़े हुए और तेज आवाज में बोले, "चौबे जी कविता बाद में पहले हमारी सुनिए।"
चौबे जी चौंक गए, उन का कविता पाठ वहीं ठहर गया। सभा में सन्नाटा छा गया। बोलने खड़े हुए ठिगनी काठी के सज्जन ने खादी की पेन्ट शर्ट पहनी थी, चश्मा लगाए हुए थे। वे थे, नगर के दीवानी मामलात के खास वकील श्याम किशोर शर्मा।
चौबे जी! यह बारां का कवि सम्मेलन है। यहाँ कविताएँ सुनी जाती हैं। चुटकुले नहीं और जो आप पढ़ रहे हैं वह कविता नहीं है। यौन जुगुप्सा जगाने का मंत्र है जो महिलाओं का सरासर अपमान है। आप से निवेदन है कि आप अब इस मंच से कविताएँ नहीं पढ़ें। आप हमारे मेहमान हैं इस लिए हम आप से सिर्फ निवेदन कर रहे हैं। यदि हमारा निवेदन स्वीकार नहीं है तो कवि सम्मेलन यहीं समाप्त हो जाएगा।
प्रदीप चौबे हक्के-बक्के रह गए। उन्हें उसी समय मंच से नीचे उतरना पड़ा। उन्हें ससम्मान उन के ठहरने के स्थान पहुँचाया गया और उन के मानदेय का तुरंत भुगतान कर दिया गया।
प्रदीप चौबे के साथ एक भी कवि मंच से नहीं उतरा। कवि सम्मेलन रात भर चला कवियों ने श्याम किशोर जी को पूरा सम्मान दिया। कहा भी कि यदि इस तरह के श्रोता सब स्थानों पर मिलें तो कवि सम्मेलन फिर से उच्च सम्मान पाने लगें।