सुनील रात को ही अम्माँ से कह कर सोया था कि वह सुबह उसे जल्दी उठा दे, उसे मैडम से कुछ जरूरी पाठ पढ़ने जाना है। वह अपने कॉलेज के सब से होनहार विद्यार्थियों में एक था। पढ़ाई तो पढ़ाई, कोई गतिविधि ऐसी न थी, जिस में उस का दखल न हो। हर कोई उस से प्रसन्न रहता था। अम्माँ ने उसे सुबह साढ़े पाँच बजे ही उठा दिया, उसे उठाने के पहले वह उस के लिए चाय बना चुकी थी। एक घंटे में स्नानादि से निवृत्त हो वह तैयार हो गया और अम्माँ को कह कर साइकिल उठा कर चल दिया। साइकिल उस की हिन्दी शिक्षक के घर की ओर चली जा रही थी। मैडम के घर पहुँच कर उस ने साइकिल दरवाजे के बाहर ही खड़ी की और ताला लगा दिया। दरवाजे की घंटी बजाई। मैडम ऊपर से झाँकी और सुनील को देख कर कहा -दरवाजा खुला है, आ जाओ।
दरवाजा धक्के से खुल गया। सुनील ने देखा वहाँ गीला हो रहा था, सीढ़ियों की ओर जाने वाले रास्ते में पानी था। सीढ़ियों के नीचे बने टॉयलेट से पानी बाहर आ रहा था। शायद नल खुला छूट गया था। वह उसे बंद करने लगा। नल बंद कर के जैसे ही वह मुडा़ उस का पैर फिसला, और वह गिरने लगा। संभलने के लिए उस ने हाथ को टिकाया तो सारा वजन उस पर पड़ा, उस की चीख निकल गई...... अम्माँ री ई S S S S S S ई मर गया S S S S S S आ .....
सुनील की चीख सुन कर मैडम तेजी से जीना उतर कर नीचे आई तो सुनील हाथ पकड़े बैठा था। उस के चेहरे से लगता था जैसे उसे हाथ में असहनीय दर्द हो रहा है। सुनील ने बताया की हाथ में बहुत चोट लगी है। मैडम घबरा गई। तुरंत अस्पताल जाने को कहा। पर हाथ के कारण साइकिल तो वह चला नहीं सकता था। मैडम ने तुरंत अपनी मोपेड निकाली और सुनील को बैठा कर अस्पताल पहुँचाया। अस्पताल में ड्यूटी डाक्टर था। सुनील को उस की सामाजिक गतिविधियों के कारण जानता था और उस का मुरीद भी था। उस ने सुनील को देखा और अनुमान से कहा कि हाथ में फ्रेक्चर हो सकता है। पक्का पता तो एक्स-रे से ही चलेगा। आज तो रविवार है, एक्सरे तो कल ही हो सकेगा। तब तक कच्चा प्लास्टर लगा देना उचित रहेगा। तुरंत कंपाउंडर को बुलाया गया। कंपाउंडर ने प्लास्टर रूम में ले जा कर प्लास्टर चढ़ा दिया। तब तक आठ बजे थे। सुनील ने एक मित्र को मोबाइक ले कर बुला लिया था। वह दोस्त की मोबाइक पर घर चला आया।
घर पहुँचते ही कोहराम मच गया। छोरा अच्छा भला पढ़ने गया था, प्लास्टर में हाथ, वह भी गले से लटका हुआ, देख कर अम्माँ घबरा गई। सुनील ने सारा किस्सा सुनाया। साथ आए दोस्त को कहा कि दो किलो दूध ला कर घर में रख दे, अभी पता लगते ही लोग मिलने आने लगेंगे। थोड़ी देर में मोहल्ले और दोस्तों को पता लगा तो आने वालों का ताँता बंध गया। एक जाता तो दूसरा आ बैठता। अम्माँ सब से चाय के लिए पूछती। चाय की पतीली गैस पर चढ़ी तो दोपहर तक उतरी ही नहीं। लोग आते रहे। बैठते, चाय पीते और चल देते। रिश्तेदार भी आए। मामा जी उसे बहुत प्यार करते थे। सुनील को देख कर उन की आँखों में आँसू आ गए। वे बहुत देर साथ बैठे।
दोपहर के दो बज गए थे। अम्माँ बार-बार भोजन के लिए पूछ रही थी। सुनील समझ नहीं रहा था कि मिलने वालों से कैसे पीछा छुड़ाए। आखिर ढाई बजे अम्माँ एक बार फिर भोजन के लिए कहने पहुँची तो बैठे हुए दोस्तों ने उस से कहा कि वह भोजन कर के थोडा़ आराम कर ले, मिलने वाले तो आते ही रहेंगे। वह भोजन कर के फिर से बैठक में आ बैठा। दीवान पर लेट कर सोने की कोशिश की पर नींद कैसे आती, कोई उसे खाली छोड़ता तब न। आखिर उस के सब से प्रिय मित्र ने उसे कहा कि वह ऊपर अपने कमरे में जा कर अंदर से कुंडी लगा कर सो जाए। कोई आएगा तो वह मना कर देगा। सुनील जाने को तैयार न था। आखिर दोस्त के जबर्दस्ती करने पर वह साढ़े तीन बजे ऊपर अपने कमरे में चला गया। दोस्त ने नीचे बैठक पर कब्जा कर लिया। दोस्त आते तो वह कहता -सुनील बहुत मुश्किल से सोने गया है कम से कम शाम छह बजे तक तो उसे सो लेने दिया जाए। उस के बाद जगाएँगे। अम्माँ को भी राहत मिली वह भी कुछ देर आराम करने के लिए लेट गई।
शाम साढ़े छह बजे तक सुनील सो कर नहीं उठा था। अम्माँ चाय बनाने लगी तो उस ने बैठक में सो रहे सुनील के दोस्त को जगा कर कहा कि सुनील को भी जगा दे, वह भी नीचे आ कर चाय पी लेगा। अब दोस्त सुनील को आवाजें लगाने लगा। पर लगता था सुनील को अच्छी नींद लग गई थी वह कुछ सुन ही नहीं रहा था। आखिर वह ऊपर गया और जोर जोर से सुनील के कमरे की कुंडी खटखटाने लगा। थोड़ी देर बाद सुनील की अलसाई सी आवाज आई -कौन है? तब दोस्त ने कहा -अम्माँ ने चाय बना ली है, पीने के लिए नीचे बुला रही है। सुनील ने कहा तुम चलो, मैं आता हूँ। दोस्त नीचे चला गया। कुछ देर बाद सुनील नीचे उतरा तो उस का प्लास्टर उतरा हुआ था और हाथ भी सीधा लटका हुआ था। उसे देख कर दोस्त ने पूछा -प्लास्टर? सुनील बोला -मुझे नहीं सुहाया तो ब्लेड से काट लिया। कल पक्का बंधेगा ही। दोस्त ने कहा तुमने खुद काट लिया? अब रात को हाथ इधऱ उधर हुआ और नुकसान हुआ तो? सुनील ने जोरदार ठहाका लगाया - हा हा हा हा हा हा हा हा...... सबको अप्रेल फूल बनाया। तभी अम्माँ चाय ले कर आई। और सुनील को ठहाका लगाते हुए देख कर स्तब्ध रह गई। फिर जैसे ही उसे माजरा समझ आया वह भी ठहाके में शामिल हो गई।
दोस्त बहुत बेवकूफ बन चुका था। क्या कहता? वह चाय पीकर चुपचाप खिसक लिया। धीरे-धीरे सब को पता लग गया कि सुनील ने बड़े पैमाने पर अपनों को बेवकूफ बनाया है। सब दुबारा मिलने आए। मामा जी भी दुबारा मिलने आए। सुनील का हाथ सही सलामत देख कर खुश थे, पर जाते जाते सुनील के सिर में दो चपत जरूर लगा गए। सुनील का यह किस्सा कस्बे के लोग अब चाव से बैठकों में सुनाते हैं।