वह निरा मूर्ख, दीवाना और निहायत पागल इंसान ही रहा होगा। उस की कौम के करीब डेढ़ सौ लोगों को जिन्दा जला डाला गया था। पूरी कौम सदमे में थी और बदले की आग से जल रही थी। तब वह अपनी मादरेजुबान पढ़ रहा था। उस पर लिख रहा था कि उस का क्या महत्व है। फिर उस ने दुनिया भर के सारे प्रसिद्ध लेखकों को पढ़ना आरंभ कर दिया। वह खुद तो उन्हें पढ़ता ही था, औरों को भी पढ़ने को कहता था। बदले की आग लगातार सीने में धधक रही थी। वह केवल उन लोगों से बदला नहीं लेना चाहता था जिन्हों ने, जिन के इशारे पर और जिन की मदद से कौम के लोग मारे गए थे। वह तो उन तमाम लोगों से बदला लेना चाहता था जो इंसान का खून चूसते थे और अपने कपड़ों पर दाग भी नहीं लगने देते थे।
फिर उस ने अपने ही जैसे मूर्खों, पागलों और दीवानों को तलाश करना आरंभ कर दिया। वह सब को किताबें पढ़ने को कहता, जो नहीं पढ़ते उन्हें खुद पढ़ाता। उसे अपने जैसे लोग मिलने लगे। वह फिर भी संतुष्ट नहीं था कि वह दुनिया के तमाम कातिलों को समाप्त कर सकता है। वह जानता था कि यह लंबा काम है और शायद अपने जीवन में न कर पाए। उस में जरा भी अक्ल होती तो असंभव दिखने वाले काम को छोड़ता। अपनी पढ़ाई का लाभ उठाता, रायबहादुर बन बैठता, और रुतबा बढ़ाता। लेकिन उस मूर्ख पर तो पागलपन सवार था। उस ने घर भी छोड़ दिया और इधर-उधर घूमता रहा। जरूरत पड़ती तो भेस भी बदलता। धीरे-धीरे उस ने गिरोह बना लिया।
सभी पागलों की तरह उसे भी विश्वास हो चला था कि लोग बहरे हो चुके हैं, उनकी खालों पर परत-दर-परत मैल जम गया है। खालों का मैल उतारने को उन की धुलाई करनी होगी, बहरों को सुनाने को धमाका करना पड़ेगा। पर उस में तो खतरा था, जान जाने का खतरा। पर पागलों के लिए जान की क्या कीमत है? लोग भी तो चाहते हैं कि ऐसे पागल जो सभी को परेशान करते हैं, मर ही जाएँ तो अच्छा है। उस ने मरना कबूल कर लिया। कुछ लोगों ने कहा कि वह फिजूल मर रहा है, वह पढ़ा-लिखा है कुछ कर के दिखा सकता है। उस की जगह वे मरने को तैयार हैं। पर पागल की जिद तो जिद है, उसे कोई जीत पाया है? फिर पढ़ा-लिखा पागल, उस ने सब को तर्क-हीन कर दिया। अब उसे मरने से कौन रोक सकता था? वह मरने चल दिया। मरने से पहले उस ने धमाका किया। बहरों के कान खुल गए। वे सुनने लगे, समझने लगे। पर उन की समझ कमजोर रह गई। उन्हों ने कौम के हत्यारों के मददगारों को तो अपने देस से जाने को मजबूर कर दिया। लेकिन हत्यारों के साथ समझौता कर लिया। अब हत्यारे सरे आम हत्या करते हैं। लेकिन किसी पागल का खून नहीं उबलता। कोई मूर्ख उत्तेजित नहीं होता, दीवानगी इतिहास की चीज हो गई।
लोग उस की शहादत के दिन मेले लगाते हैं, उस की मूर्तियाँ तलाश कर उन्हें धोते हैं, रंगते हैं और मालाएँ चढ़ाते हैं। उन्हों ने उस मूर्ख, दीवाने और पागल को भगवान का दर्जा दे दिया है। वे सोचते हैं कि एक दिन भगवान अवतार लेगा और उन की धरती को हत्यारों से मुक्ति दिला देगा। वे भूल गए कि उन का भगवान तो खुद किसी भगवान को नहीं मानता था और न ही पुनर्जन्म को। वह जानता था कि हत्यारों से मुक्त होना है तो दीवानों की फौज खड़ी करनी होगी। हत्यारों को नष्ट करना होगा। फिर दुनिया बदलनी होगी। एक नई दुनिया बनानी होगी। जिस में कोई हत्यारा नहीं होगा, किसी को किसी का खून चूसने की आजादी नहीं होगी। लोग कहते हैं, यह उस का सपना था, और सपने भी कहीं सच होते हैं?
आज कुछ लोग मिले, जो उसी की तरह मूर्ख थे, पागल भी और दीवाने भी। उन्हों ने भी उस की तस्वीर को माला पहनाई और कसम खा कर कहा कि वे भी उसी का जैसा सपना देखते हैं और उसे सच कर के दिखाएंगे। सपने को सच कर दिखाने के लिए कुछ भी करेंगे। अपने जीवन में उसे सच न कर सके तो ऐसे लोगों की फौज खड़ी करेंगे जिन की पीढ़ियाँ भी मूर्खों, पागलों और दीवानों की होंगी, और तब तक होती रहेंगी जब तक सपना सच नहीं हो जाता। मुझे लगा कि अब सपने को सच होने से कोई रोक नहीं सकता।