वित्त मंत्री वाशिंगटन गए। वहाँ जा कर बताया कि प्रधानमंत्री बहुत मजबूत हैं। वे आर्थिक सुधार करने के लिए कटिबद्ध हैं (चाहे कुछ भी क्यों न हो)। उन्हों ने यह भी कहा कि फिलहाल अगले चुनाव में एक पार्टी की सरकार बनने की कोई संभावना नहीं है, फिर भी आर्थिक सुधारों की नैया को केवल अकेले प्रधानमंत्री के भरोसे छोड़ा जा सकता है। वित्त मंत्री के बयान का मतलब इधर दिल्ली में निकाला गया कि सरकार के स्तर पर सब कुछ बेहतरीन है, इस मोर्चे पर किसी और की कोई जरूरत नहीं, गाहे बगाहे हलचल हो भी तो टेका लगाने को वित्त मंत्री मौजूद हैं। कोई संकट है तो पार्टी में। उसे खुद की बे-बैसाखीदार सरकार बनानी है। उस के लिए सेनानियों की जरूरत होगी। अब सब से महत्वपूर्ण काम यही है कि पार्टी को मजबूत करो। यह भी महत्वपूर्ण है कि ऐसा दिखाया जाए कि इस दिशा में काम किया जा रहा है। खबर है कि तत्काल अग्रिम पंक्ति के सेनानियों ने पार्टी प्रधान को पत्र लिख कर सूचना दे दी कि वे पार्टी के लिए सरकार में अपने पद की बलि देने को तैयार हैं। बलि के बकरे देवी के मंदिर खुद ही पहुँचने लगे जैसे अगली सरकार में मंत्री पद के बीमे की किस्त जमा कराने आए हों।
प्रधानमंत्री जब भी या कहते या किसी और के श्रीमुख से कहलवाते हैं कि वे आर्थिक सुधारों के प्रति कटिबद्ध हैं, जनता की सांस उखड़ने लगती है। उधर कटिबद्धता का ऐलान होता है कि इधर डीजल मुक्त होने को छटपटाने लगता। जनता डिप्रेशन में आ जाती है। पेट्रोलियम मंत्री को तुरंत बयान देना पड़ता है कि रसोई गैस की सबसिडी वापस नहीं ली जाएगी। जनता को वेंटीलेटर मिल जाता है। वह गैस सिलेण्डर से साँस लेने लगती है। जान बची लाखों पाए। बची हुई जान सिलेण्डर में अटकी रहती है। अस्पताल में कोई वीवीआईपी भर्ती होने न आ जाए वरना सिलेंडर इधर से निकाल कर उधर लगा लगा दिया जाएगा। जान पर फिर बन आएगी।
... मैं सपना देख रहा हूँ। युद्ध स्तर पर पार्टी का शामियाना मजबूत करने के प्रयास चल पड़े हैं। जिस से वह आंधी या बवण्डर आने पर उस का मुकाबला कर पाए। सेनानी शामियाने का निरीक्षण कर रहे हैं। कई छेद दिखाई दे रहे हैं, छोटे-छोटे बड़े-बडे। उनमें पैबंद लगाने की जरूरत है। अनेक पैबंद पहले से लगे हैं, उन में से कई उधड़ गए हैं। बहस चल पड़ी है कि जो पैबंद पहले से उधड़े पड़े हैं उन्हें ठीक किया जाए या फिर नए छेदों में पैबंद लगाए जाएँ? बहस हो रही है। थर्मामीटर में पारा ऊपर की ओर चढ़ रहा है। सब लोग आपस में उलझने लगे हैं। कुछ सुनाई नहीं दे रहा है। इस बीच कुछ लोग बहस से अलग हो कर फुसफुसाते हैं –बहस से कुछ नहीं होगा, जल्दी से उधड़े हुए पैबंद सियो। पता नहीं कब आंधी चल पड़े। कुछ लोग सुई धागे ले कर उधड़े हुए पैबंद सीने को पिल पड़े हैं, कुछ लोग नये पैबंदों के लिए कपड़े का इन्तजाम करने दौड़ पड़े हैं। पैबंद सीने के लिए सुई घुसाई जाती है, दूसरी ओर से पकड़ कर खींची जाती है। खींचते ही शामियाने की तरफ से धागा कपड़े को चीर देता है। सुई धागे के साथ पैबंद हाथ में रह जाता है, शामियाना छूट जाता है। सीने वालों में से कोई कह रहा है पैबंद लगाना मुश्किल है। शामियाना सुई को तलवार समझ रहा है, शामियाना बदलना पड़ेगा। दूसरों ने तत्काल उस के मुहँ पर हाथ रख कर उसे बंद कर दिया। आवाज वहीं घुट कर रह गई। -शगुन के मौके पर अपशगुनी बात करता है। लोग उसका मुहँ दबाए उसे लाद कर मंच से बाहर ले जाते हैं और सीन से गायब हो जाते हैं।