वैसे तो यह
पूरा पखवाड़ा कृषि उपज और समृद्धि से संबंध रखने वाले त्यौहारों का है, जिन
के मनाए जाने वाले उत्सवों में मनुष्य के आदिम जीवन से ले कर आज तक के
विकास की स्मृतियाँ मौजूद हैं। बेटी-बेटा पूर्वा-वैभव दोनों ईद के दिन ही
पहुँचे थे। सारे देश के मुसलमान उस दिन भाईचारे, सद्भाव और खुशियों का
त्योहार ईद मना रहे थे तो उसी दिन देश की स्त्रियों का एक बड़ा हिस्सा
हरतालिका तीज का व्रत रखे था जिस में पति के दीर्घायु होने की कामना से
देवी माँ की उपासना की जाती है। हाडौती अंचल में इस दिन अनेक परिवार
रक्षाबंधन भी मनाते हैं। कहा जाता है कि जिन परिवारों में भूतकाल में राखी
के दिन किसी का देहान्त हो गया हो वे परिवार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन
को अशुभ मानते हुए हरतालिका तीज को रक्षाबंधन मनाते हैं। मेरे ससुराल में
रक्षाबंधन इसी दिन मनाया जाता है। दोनों बहिन-भाई रक्षाबंधन पर नहीं मिल
पाये थे और उस के बाद इसी दिन आपस में मिल रहे थे। मेरे साले का पुत्र भी
कोटा में ही अध्ययन कर रहा है, उस के लिए तो वह राखी का ही दिन था वह भी आ
गया और हमारे घर पूरे दिन रक्षाबंधन की धूम रही। ईद के दिन मैं अपने
मित्रों से ईद मिलने जाता हूँ, लेकिन उस दिन घर में ही मंगल होने से नहीं
जा सका।
अगला
दिन गणेश चतुर्थी का था। वे समृद्धि के देवता कहे जाते हैं। समृद्धि के
साथ स्त्रियों का अभिन्न संबंध रहा है। जब तक मनुष्य अपने विकास क्रम में
संपत्ति संग्रह करने की अवस्था तक नहीं पहुँच गया था, तब तक समृद्धि का
अर्थ केवल और केवल मात्र एक नए सदस्य का जन्म ही था। एक नए सदस्य को केवल
स्त्री ही जन्म दे सकती थी। वनोपज के संग्रह काल में वनोपज को संग्रह करने
का काम भी स्त्रियाँ ही किया करती थीं। पौधों के जीवनचक्र को उन्हों ने
नजदीक से देखा था, जिस का स्वाभाविक परिणाम यह हुआ था कि उन्हों ने ही सब
से पहले कृषि का आरंभ किया था। वर्षाकाल के आरंभ में बोये गये बीजों से
पौधों का भूमि से ऊपर निकल आना और वर्षा ऋतु के उतार पर उन में फूलों और
फलों का निकल आना निश्चय ही समृद्धि का द्योतक था। ऐसे काल में समृद्धि के
लिए किसी नारी देवता का अनुष्ठान एक स्वाभाविक बात थी। लेकिन हरतालिका तीज
पर देवी पूजा के अगले ही दिन एक पुरुष देवता गणपति की पूजा करना कुछ
अस्वाभाविक सा लगता है। लेकिन यदि हम ध्यान से अध्ययन करें तो पाएंगे कि
गणपति वास्तव में पुरुष कम और स्त्री देवता अधिक है। (इस संबंध में आप
अनवरत के पुरालेख गणेशोत्सव और समृद्धि की कामना और क्या कहता है गणपति का सिंदूरी रंग और उन की स्त्री-रूप प्रतिमाएँ? अवश्य पढ़ें।)
बच्चे
सुबह से ही कह रहे थे कि मम्मी इस साल गणपति घर ला कर बिठाने वाली है।
मेरी उत्तमार्ध शोभा ने मुझ से इस का उल्लेख बिलकुल नहीं किया था। लेकिन
मैं ने इस काम में कोई दखल दिया। सोचता रहा कि लाए जाएंगे तब देखा जाएगा।
पर दुपहर तक का समय बच्चों से बतियाते ही गुजर गया। गणेश चतुर्थी से अगला
दिन ऋषिपंचमी का है, और उस दिन मेरे यहाँ रोट बनते हैं। यह अनुष्ठान भी
खेती और उस की उपज से उत्पन्न समृद्धि की कामना से जुड़ा है। इस दिन खीर
बनती है। घर में चार सदस्य थे, इस कारण से कम से कम तीन किलो दूध की खीर तो
बननी ही थी और दूध की व्यवस्था करनी थी। शाम को शोभा और मैं दोनों गूजर के
यहाँ जा कर सामने निकाला हुआ भैंस का तीन किलो दूध ले आए और तीन किलो सुबह
लेने की बात कह आए। जब वापस लौट रहे थे तो मार्ग में मूर्तिकार के यहाँ से
गणपति की प्रतिमाएँ लाने वाले गणेश मंडलों के जलूस मिले। तब मैं ने शोभा
से पूछा तो उस ने बताया कि उस की गणपति लाने की कोई योजना नहीं थी और वह
वैसे ही बच्चों से बतिया रही थी। (रोट के बारे में कल चित्रों सहित ...)
6 टिप्पणियां:
Guruwr ji, kafi sundar aalekh hai.
रोठ तो हमारे यहाँ भी बनते है पर अनंत चतुर्दशी पर
त्योहारों व उत्सवों का माह।
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम के तीज त्योहारों के बारे में सोच ही रहा था. आपका यह आलेख बहुत ही अच्छा लगा. यकीनन हमारे अधिकतर त्यौहार कृषि से ही जुड़े हैं. इस कारण देश में कुछ भिन्नताएं भी पायी जाती हैं.
मंगलमूर्ति हर एक के लिए मंगल करें...
जय हिंद...
बाकी तो सब ख्याल अपना अपना है. लेकिन भाई आपकी बात सुन कर की दोनों गूजर के यहाँ जा कर सामने निकाला हुआ भैंस का तीन किलो दूध ले आए"
मेरा भी दिल कर रहा है आप के यहाँ से दूध मंगवाया जाए. यहाँ मुंबई मैं तो यह सुविधा नहीं मिल पाती.
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