तारीख बदलने के साथ ही महीने का आठवाँ दिन भी निकल चुका है, और इस माह में यहाँ एक भी चिट्ठी नहीं लिख पाया हूँ। कारणों में मैं नहीं जाना चाहता, बताने लगूंगा तो ऐसा लगेगा जैसे कोई मौसम विज्ञानी मौसम की भविष्यवाणी के लिए आवश्यक कारक गिना रहा है। रक्षाबंधन पर बेटी पूर्वा आ गई थी। उसे सुविधा है कि यदि वह दो दिन पहले भी कोशिश करे तो उसे जन-शताब्दी में यात्रा के लिेए स्थान मिल जाता है। बेटा वैभव मुम्बई में है और भारतीय रेलवे ही घर आने का एक मात्र उपयुक्त साधन। किसी अवकाश का उपयोग करना हो तो तीन माह पहले आरक्षण खुलने के दिन ही चेता जाए। फिर भी आरक्षण मिल जाए तो यह समझना पड़ता है कि लॉटरी लग गई है। बहिन-भाई रक्षाबंधन पर चाह कर भी न मिल पाएँ तो मलाल रह ही जाता है। दोनों ने कोशिश की और उन्हें ईद के अवकाश के आसपास आने जाने के आरक्षण मिल गए। पूर्वा 30 अगस्त को और वैभव 31 अगस्त को घर पहुँच गया, हमारी तो ईद और रक्षाबंधन एक ही दिन हो गए। फिर 4 सितंबर दोपहर बाद वैभव, और 5 सितंबर की सुबह पूर्वा वापस अपने काम पर चल दिए।
बेटी-बेटे घर आएँ तो घर स्वतः ही एक उत्सव स्थल बन जाता है। फिर इन चार-पाँच दिनों की अवधि में तो नित्य ही कोई न कोई उत्सव घर में घर किए रहा। दिन के लिए चौबीस घंटों का समय कम लगने लगा। लिखने को बहुत कुछ था, बस समय ही नहीं था। बहुत दिनों से लिखने के औज़ार भी तंग कर रहे थे। प्रिंटर ने जो स्केनर, कॉपियर और फैक्स का भी काम कर रहा था, वह पहले ही जवाब दे चुका था। उसे अस्पताल भेजा तो तीन दिन में लौटा, लेकिन काम नहीं कर सका। मेरा तो व्यवसायिक काम ही रुक गया। उसे वापस अस्पताल भेज कर नया 'कैनन 2900 लैसर' लाए। वह केवल प्रिेंट का ही काम कर सकता है, पर करता लाजवाब है। वह ऐसा उत्पाद निकालता है कि मन प्रसन्न हो जाता है। उस से दूसरा कोई काम नहीं लिया जा सकता। फैक्स का काम तो आजकल मेल से निकल जाता है, कॉपियर का काम वैसे भी बाजार से ही कराया जाता था। लेकिन स्केन, वह तो जरूरी है। उस के बिना तो बहुत काम अटक जाते हैं।
कंप्यूटर ने 2003 में गृहप्रवेश किया था। सेलरॉन प्रोसेसर, 256 जीबी रैम और 40 जीबी हार्ड डिस्क वाले इस साथी ने बहुत साथ निभाया। कुछ परेशानी हुई तो तीन-चार बरस पहले रैम और हार्डडिस्क को दुगना कर लिया गया। लेकिन अब तो उस से काम ही चलाया जा रहा था। रोज ही स्थान रिक्त करना पड़ता था। पूर्वा-वैभव आए तो कहने लगे हमें तो इस पर काम करने में आलस आता है, बहुत इंतजार कराता है। आखिर उसे बदलना तय हुआ। अनेक ब्रांडों पर विचार करने के बाद तय हुआ कि अपने कंप्यूटर वाले को कहा जाए कि वह असेंबल ही कर दे, लेकिन पार्टस् सभी अच्छे हों। 3 सितंबर की रात को जब मैं एक आयोजन से वापस लौटा तो नया सीपीयू माउस, की-बोर्ड के साथ घर आ चुका था और पुराने मॉनीटर के साथ अच्छी संगत कर रहा था। मैं ने टेस्ट राइड की तो ऐसा लगा जैसे मैं साधारण यात्री गाड़ी छोड़ कर सीधे राजधानी एक्सप्रेस में आ बैठा हूँ।
पूर्वा-वैभव के जाने के बाद पाँच सितम्बर की सुबह मैं ने नए साथी से जान-पहचान आरंभ की। वह मेरे लिए लगभग अनजान था। मेरी सारी फाइलें पुराने के साथी के कब्जे में थीं। उन के बिना कोई भी काम कर सकना संभव नहीं था। अच्छा हुआ कि इस नए साथी के आने के पहले मैं सप्ताह भर के मुकदमों की दैनिक-सूची प्रिंट कर चुका था। नहीं तो मेरे लिए यह पता कर पाना भी कठिन हो जाता कि मुझे अदालत जा कर करना क्या है। समझ नहीं आ रहा था कि पुराने साथी से अपनी फाइलें ले कर इस नए साथी को कैसे सौंपी जाएँ। सीपीयू, माउस, की-बोर्ड दो-दो होने से क्या होता है? मॉनीटर भी तो दो होने चाहिए थे। दिन में अदालत में अपने सहायक से कहा तो शाम को वे अपना मॉनीटर दे गए। रात को फाइलों का स्थानांतरण आरंभ हुआ, पेन ड्राइव को मध्यस्थ बनाया गया। वकालत के लिए जरूरी फाइलें हस्तांतरित कर दी गईं। शेष काम अगले दिन के लिए छोड़ दिया गया। सुबह काम करने को बैठे तो पता लगा कि सब से जरूरी फोल्डर की बहुत सी फाइलें अभी भी पुराने साथी के पास ही रह गयी हैं। मुवक्किलों के फोन आने लगे। अदालत जाना पड़ा। शाम को शेष फाइलें भी हस्तांतरित कर ली गईं। देख भी लिया कि कुछ ऐसा तो नहीं छूट गया है जो काम का है। अब पिछले तीन दिनों से नए साथी के साथ काम कर रहा हूँ। नए साथी ने मुझे न समझने की कसम ले रखी है। कहता है कि मेरे साथ काम करना है तो मुझे ही समझना पड़ेगा। कंप्यूटर और इंसान में यही फर्क है। इंसान एक दूसरे को समझ लेते हैं, कंप्यूटर तो इंसान को ही समझना पड़ता है।
अब मॉनीटर पुराना पिक्चर ट्यूब वाला रह गया है, बड़ा और भारी-भरकम सा। दिल कर रहा है इस भारी-भरकम को भी विदा कर के नया स्लिम वाला ले लिया जाए। वैसे भी चाहे पच्चीस हजार से जेब हलकी कर के इसे छोड़ कर सब कुछ नया कर लिया हो, पर इसे देख कर सभी सोचते हैं कि मैं अभी भी पुराने पर ही काम कर रहा हूँ। उधर स्केनर के बिना भी परेशानी है। मैं ने कंप्यूटर वाले को कहा है कि वह सब कुछ पुराना ले जाए और एक नया बीस इंची टीएफटी दे दे। स्केनर की मैं कीमत अदा कर दूंगा। वह कह कर गया है कि कोई ग्राहक देखता हूँ शायद जुगाड़ बैठ जाए!
12 टिप्पणियां:
256 जीबी रैम? एमबी। पुराने साथियों को विदा करने के साथ एक बाह्य हार्ड डिस्क भी ले लेंगे तो और सुविधा होगी।
टेक्नोलोजी का यही है रोना ..गए आठ दिन बीत से तो मैं तो डर ही गया था ...
विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत का सहसा स्मरण हो आया ....
फिर बोले राम सकोप तब भय बिनु होई न प्रीत ...
इसी लिहाजा से मैंने दिल कडाकर आपका ब्लॉग खोला :)
बेटी-बेटे घर आएँ तो घर स्वतः ही एक उत्सव स्थल बन जाता है।....बस, हम भी इसी उत्सव को मना रहे हैं.....
@@वह कह कर गया है कि कोई ग्राहक देखता हूँ शायद जुगाड़ बैठ जाए!
--थोडा मुश्किल है ,अब कोई पुराना नहीं लेना चाहता.
उत्सव का आनन्द उठायें, साथ ही साथ नये कम्प्यूटर पर दक्ष हाथ चलायें।
इधर काफी व्यस्त रहे आप। कुछ रक्षाबंधन उत्सव में और कुछ नये कम्प्यूटर से जान पहचान में। आपके जैसी स्थिति कुछ कुछ मेरी भी रही। अभी 31 अगस्त को पोस्ट डाली है जबकि मेरी पिछली पोस्ट 31 जुलाई की थी। कारण मेरे लिए भी खुशनुमा ही था। एक अगस्त को मैं एक प्यारी सी बेटी का पिता बन गया। कुछ पारिवारिक व्यव्स्तताएं बढ़ गयीं। लेकिन हम ब्लॉगरों को भला ब्लॉगिंग से कोई चीज रोक सती है। वापस अपनी खुजली मिटाने ब्लॉग पर आ ही गये।
बच्चों के घर आने से बड़ा उत्सव तो और कुछ हो ही नहीं सकता ,जब भी मौका मिल जाये इसका आनन्द उठाते रहिये ......
परिवार इकठ्ठा हो तो ब्लॉगिंग से पहले जिम्मेदारी उनकी ओर ही बनती है !
यह तो उत्सव ही उत्सव है
गुरुवर जी, मेरे विचार से आपका पुराना साथी 256 एमबी रैम का रहा होगा.वैसे पुराने साथियों को विदा करने के साथ एक बाह्य हार्ड डिस्क 320 या 160 जीबी की भी ले लेंगे तो और सुविधा होगी, इससे कभी भी कहीं पर डाटा ले जाने में भी सुविधा होती है या आप थोडा-सा अतिरिक्त खर्च करके दोनों कम्प्यूटरों को आपस में जोडवा(नेटवर्किंग) लीजिये. किसी भी विपरीत स्थिति में बहुत उपयोगी होता है. । बच्चों के घर आने से बड़ा उत्सव तो और कुछ हो ही नहीं सकता, जब भी मौका मिल जाये इसका आनन्द उठाते रहिये. आपकी ईद और रक्षाबंधन एक ही दिन होने के लिए मुबारकबाद स्वीकार करें. इन दिनों मेरा हिंदी का टूल कार्य नहीं कर रहा है. इसलिए मैं रोमन (अंग्रेजी) में टिप्पणियाँ नहीं करता हूँ. आज भी टिप्पणी को transliteration में लिखकर कर रहा हूँ.
बच्चे घर आए तो लगता है मेहमान नवाज़ी में कमी न हो... आखिर वे दो दिन के मेहमान हॊ तो होते हैं :)
बच्चे कितने भी बड़े हो जाएं लेकिन बड़ों के लिए हमेशा वैसे ही प्यारे रहते हैं, जैसे जन्म लेने के बाद पहले दिन घर आते हैं ...
जय हिंद...
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