भारतीय रेलवे भारत में यात्रा का उपयुक्त साधन है। हर तरह के यात्री इस में यात्रा करते हैं। लंबी दूरियों की यात्रा करने वाले सभी यात्री रेल में यात्रा करना चाहते हैं। भारतीय रेलवे की अधिकांश गाड़ियों में पूर्व आरक्षण सुविधा है। रेलवे ने आरक्षण के लिए अनेक व्यवस्थाएँ की हैं। आरक्षण कार्यालयों की खिड़की से आरक्षण प्राप्त किया जा सकता है, यदि आप ने रेलवे आरक्षण की साइट https://www.irctc.co.in/ पर पंजीकरण किया हुआ है तो आप वहाँ से ई-टिकट और आई-टिकट प्राप्त कर सकते हैं, किसी अधिकृत एजेंट से टिकट बुक करवा सकते हैं, आदि आदि। मैं स्वयं बहुत कम यात्राएँ करता हूँ। इस कारण आरक्षण-तंत्र से बहुत अधिक परिचित भी नहीं हूँ। लेकिन बेटा और बेटी दोनों अपने अपने नियोजनों के कारण बाहर रहते हैं और उन्हें घर आने के लिए रेलवे का ही सहारा होता है। दोनों के पास इंटरनेट पर जाने के लिए अपने-अपने साधन हैं। फिर भी कभी जब उन्हें आना-जाना होता है और त्योहारों के कारण टिकिट की मांग बहुत अधिक होती है तो वे मुझे टिकट प्राप्त करने के लिए कहते हैं। बेटे को दीवाली पर घर आना है। उस ने मुझे टिकट के लिए कहा तो मैं ने एक एजेंट को टिकट बनाने के लिए बोल दिया। जिस दिन का हम चाहते थे टिकट नहीं मिला, एक दिन पहले का मिला। अब उसे एक दिन पहले आने के लिए एक दिन का अवकाश अधिक लेना होगा।
घर आने का टिकट प्राप्त हो जाने के बाद वापसी का टिकट भी तो चाहिए। उस के लिए हमें कुछ दिन प्रतीक्षा करनी थी। रेलवे किसी भी दिन का आरक्षित टिकट प्राप्त करने की सुविधा उस दिन से 90 दिन पहले सुबह 8:00 बजे आरंभ करती है। उस से पहले कोई टिकट रेलवे जारी नहीं करती। बेटे को 30 अक्टूबर का टिकट चाहिए था। लेकिन मैं ने टिकटों की मारा-मारी के कारण यह उचित समझा कि 29 अक्टूबर का टिकट ले लिया जाए। यदि 30 का भी मिल जाएगा तो हम 29 अक्टूबर का निरस्त करवा लेंगे। 29 अक्टूबर के टिकट के लिए आरक्षण आज खुलना था। इस लिए सुबह सुबह ही एजेंट को फोन कर के बताया कि वह टिकट बना ले। मैं ने सोचा कि मैं स्वयं क्यों न कोशिश करूं? मैं ने सुबह आठ बजे irctc पर लोग-इन किया। लेकिन वहाँ पता लगा कि 'क्विक बुक' की सुविधा सुबह 8 से 9 बजे तक बंद रहती है। फिर 'प्लान माई ट्रेवल' में गए तो सब औपचारिकताएँ पूरी कर देने के उपरांत स्टेशन सूची के लिए चटका लगाया तो साइट ने स्टेशन सूची खोलने से इन्कार कर दिया। सुबह 8 बजे से प्रयत्न करता रहा, 9 बजने तक स्टेशन सूची खुल ही नहीं रही थी।
आखिर 9 भी बजे। अब मैं 'क्विक बुक' सुविधा का उपयोग कर सकता था। रेलवे की सामान्य साइट पर आज 29 अक्टूबर तक के ही टिकट जारी होना बताया जा रहा था। लेकिन जब मैं टिकटों की उपलब्धता पर गया तो पता लगा कि 31 अक्टूबर तक के टिकट बुक हो चुके हैं। इस का अर्थ था कि आज 92वें दिन तक के टिकट भी बुक किए जा चुके थे। यह रेल नियमों का उल्लंघन है। क्यों कि नियमों में यह बताया गया है कि टिकट 90 दिन पहले ही जारी किया जा सकता है, उस से पहले नहीं। मैं ने इन नियमों को रेलवे की साइट पर जा कर जाँच भी लिया। वहाँ अंग्रेजी में दो स्थानों पर 90 दिन पूर्व की सूचना अंकित है, लेकिन हिन्दी साइट पर पहले 60 दिन और फिर 90 दिन अंकित है। शायद हिन्दी साइट पर यह त्रुटि दुरुस्त नहीं की गई है। किसी ने ध्यान भी नहीं दिलाया है कि उसे दुरुस्त किया जा सके।
खैर, मुझे आशंका हो चली थी कि अब 29-30 अक्टूबर का शायद ही कोई टिकट मिल पाए। यही हुआ भी, जिस गाड़ी में मैं टिकट लेना चाहता था उस में कोई भी टिकट इन दो दिनों का उपलब्ध नहीं था। मैं गाड़ियाँ बदल बदल कर देखने लगा कि किसी अन्य गाड़ी में इन दिनों का टिकट मिल जाए। इसी बीच एजेंट का फोन आ गया कि 29-30 अक्टूबर को दोनों दिन प्रतीक्षा सूची 6 और 10 तक जा चुकी है क्या टिकट ले लिया जाए? मैंने उसे 30 अक्टूबर का प्रतीक्षा टिकट लेने को कहा और फिर से तलाश में जुट गया। एक अन्य ट्रेन में 30 अक्टूबर का पुष्ट टिकट मिल रहा था। मैं ने तुरंत उस के लिए कार्यवाही की और उसे पुष्ट कर लिया। अब मैं निश्चिंत था कि बेटे का दीवाली पर घर आने का ही नहीं वापसी की व्यवस्था भी हो गई है।
रेलवे टिकट के लिए मारामारी आम बात है। अक्सर ही यह अनुभव हुआ है कि 90 दिन पहले आरक्षण खिड़की पर पंक्ति में सब से आगे खड़े व्यक्ति को भी पुष्ट टिकट नहीं मिल पाता है। कैसे एक मिनट से भी कम समय में ही पूरी गाड़ी की सारी आरक्षित शैयाओं के टिकट जारी हो जाते हैं? इस प्रश्न का उत्तर आज तक नहीं मिल पाया है। तुरंत यात्रा कार्यक्रम वालों के लिए दो दिन पहले कुछ अधिक धन खर्च कर के टिकट प्राप्त करने की सुविधा भी है लेकिन उस का भी अपना कड़वा अनुभव है। जब हम गाड़ी पर पहुँचते हैं तो वहाँ आरक्षित डब्बों के बाहर अक्सर कुछ लोग दिखाई दे जाते हैं जिन के हाथों में आरक्षण खिड़की से प्राप्त किए हुए दर्जनों टिकट होते हैं और वे अपने मुवक्किलों को प्लेटफार्म पर ही टिकट देते हैं और पैसे वसूल करते हैं। यह रेलवे की कौन सी सुविधा है यह आज तक पता नहीं है। हाँ इतना जरूर पता है कि टिकट ले कर खड़े रहने वाला यह व्यक्ति रेलवे का कर्मचारी या एजेंट नहीं होता है। मैं ने आज जो अनियमितता देखी है उस का तो कोई स्पष्टीकरण मुझे सूझ नहीं रहा है। इस का स्पष्टीकरण रेलवे को करना ही चाहिए कि जब आरक्षित टिकट केवल 90 दिन पहले तक के ही जारी किए जा सकते हैं, तब 90 वें दिन से पहले के टिकट कैसे जारी किए गए हैं?
पुनश्चः
2:33 अपरान्ह
एक खबरिया चैनल बता रहा है कि आज सुबह 29 अक्टूबर के रेल टिकटों का आरक्षण जारी करना आरंभ हुआ और 10 मिनट में 100 गाडि़यों के सभी शायिकाएँ आरक्षित हो गईं।
यह प्रश्न अब भी बना हुआ है कि मुझे 30 अक्टूबर की टिकट का आरक्षण कैसे मिला?
पुनश्चः
2:33 अपरान्ह
एक खबरिया चैनल बता रहा है कि आज सुबह 29 अक्टूबर के रेल टिकटों का आरक्षण जारी करना आरंभ हुआ और 10 मिनट में 100 गाडि़यों के सभी शायिकाएँ आरक्षित हो गईं।
यह प्रश्न अब भी बना हुआ है कि मुझे 30 अक्टूबर की टिकट का आरक्षण कैसे मिला?
16 टिप्पणियां:
हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। कल सोमवार को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
गुरुवर जी, हमें आज तक रेलवे के ऐसे अनुभव नहीं हुए है या यह कहे हमने रेलवे की अब तक छोटी छोटी ही यात्रा की है. जिसमें यात्रा करने से पहले टिकट लिया है. फिर भी आपके अनुभव से उपयोगी जानकारी प्राप्त हुई. साथ रेलवे की वेबसाइट का पता भी. बस किसी दिन कुछ हम अनुभव प्राप्त करेंगे.
रेलवे अगर एक साल पहले भी टिकट देने लगे तो भी दल्ले उन्हें बुक करा के बैठ जाएंगे... इसका बस एक ही उपाय है ... भीड़ के दिनों में प्रर्याप्त रेलें चलाना.
यही समस्या हमारे साथ हो चली है, जैसे तैसे घर जाने का टिकट तो कन्फ़र्म मिल गया, वो भी एक ही ट्रेन में दो टुकड़ों में, मतलब बैंगलोर से उज्जैन का टिकट कन्फ़र्म नहीं था, परंतु धरमावरम से कन्फ़र्म उपलब्ध था और बैंगलोर से धरमावरम तक भी कन्फ़र्म उपलब्ध था, तो बस अभी तो जाने के हुआ है, परंतु अब कल पता चलेगा कि आने का क्या करना है।
द्विवेदी जी, अगर आप ट्रेन नम्बर भी बता देते तो मुझे भी अपना दिमाग लगाने में सुविधा हो जाती। पहली बात तो यह है कि irctc.com रेलवे की साइट नहीं है। यह एक प्राइवेट साइट है जिसे रेलवे ने ठेका दे रखा है। इस साइट पर मैंने रात साढे बारह बजे से रात साढे ग्यारह बजे तक यानी 23 घण्टों तक आरक्षण होता देखा है। जबकि रेलवे में आरक्षण सुबह आठ बजे से लेकर रात दस बजे तक ही होता है।
जो अनुभव आपको irctc की साइट पर हुआ है, मैं उसे रेलवे की साइट पर देखना चाहता था। फिर भी देखता हूं कुछ ट्रेनों में क्या चल रहा है। कुछ गडबड तो irctc करता ही है। अगर यह सही है तो रेलवे का यह सिस्टम फेल ही कहा जायेगा।
एक नियम है कि ज्यादातर ट्रेनों में आरक्षण 90 दिन पहले ही होता है लेकिन अगर वो ट्रेन किसी स्टेशन पर अपने प्रारम्भिक स्टेशन से छूटने के अगले दिन पहुंचती है तो उस स्टेशन पर उस ट्रेन का आरक्षण 91 दिन पहले शुरू हो जाता है।
19020 देहरादून- बांद्रा एक्सप्रेस का उदाहरण लेते हैं। इसमें देहरादून से बान्द्रा तक आज 29 अक्टूबर तक का ही आरक्षण हो रहा है, 30 का नहीं। लेकिन अगर इसी ट्रेन में हम कोटा से आरक्षण करवाना चाहते हैं तो 91 दिन बाद यानी 30 अक्टूबर का आरक्षण भी मिल रहा है। यह ट्रेन देहरादून से चलने के अगले दिन कोटा पहुंचती है।
कोटा से गुजरने वाली लगभग सभी गाडियां कहीं पीछे से ही आती हैं। इसीलिये कोटा में आरक्षण पीरियड अपने आप ही 1 दिन बढकर 91 दिन हो जाता है।
सवाल ब्लागर की पोस्ट के साथ वकील की ओर से भी हो तो शायद बात बने. बताया जाता है कि डा. हरिसिंग गौर, ट्रेन लेट होने पर रेलवे से हरजाना वसूल लिया करते थे.
यह तो सही कहा आप ने अक्सर एसा ही होता है, हर्मारे साथ भी
हम सब परेसान ........
माँग आगे आगे भाग रही है, आपूर्ति पीछे पीछे।
@ नीरज जाट
आप का स्पष्टीकरण उचित लग रहा है।
@प्रवीण पाण्डेय
हम भारतीय हमेशा वर्तमान की कमियों की पूर्ति के लिए काम करते हैं। भविष्य की कमियों की पूर्ति की योजना पर काम नहीं करते। यदि ऐसा करने लगें तो बहुत सी समस्याएँ स्वतः ही दिखाई देना बंद हो जाएँ। हम खाली पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया आरंभ करते हैं जो भारतीय स्वभाव से दो-तीन वर्ष में पूरी होती है। जब तक पद भरने के लिए व्यक्ति उपलब्ध होते हैं तब तक अन्य पद खाली या सृजित हो जाते हैं। आखिर हमे कुछ पद खाली रखने की आदत जो है।
काजल जी की बात से सहमत और आपके प्रवीण जी को लिखे से भी सहमत। रेल मंत्री, आज तेल मंत्री है, कल खेल मंत्री, परसों जेल मंत्री और कल मेल मंत्री बन जाता है। सुन्दर और भारत की उत्तम व्यवस्था से कष्ट किसे होता है, आदमी को या आ…दमी को।
रेलवे का एक और घोटाला सुनिए...ये है यूटीएस यानि अनरिजर्वड टिकट सिस्टम का...इसमें रेलवे के ही लोग छोटी दूरी की टिकट कटा लेते हैं और फिर उसी टिकट को बड़ी दूरी की टिकट में बदल कर जो पैसा आता है उसे जेब में भर लिया जाता है...सरकार को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है...
और सुनिेए पंजाब में एक घोटाला सामने आया है जिसमें सीनियर सिटीजंस और बच्चों के नाम की टिकट पर सामान्य यात्रियों को मिलीभगत से धड़ल्ले से यात्रा कराई जाती हैं...इस खेल मे भी करोड़ों के वारे-न्यारे हो रहे हैं...
जय हिंद...
पूरा घनचक्कर है -प्रवीण जी तो बारीकी से चल दिए अब ज्ञान जी जरा समझाएं !
@ अरविन्द मिश्र - माल गाड़ी होती तो कुछ कहते भी! :D
आपका सवाल और जिज्ञासा सही है।
एक टिप्पणी भेजें