आज जिस क्षेत्र में भी जाएँ हमें दौड़ का सामना करना पड़ता है। घर से सड़क पर निकलते ही देख लें। यातायात में हर कोई आगे निकल लेना चाहता है, चाहे उसे नियम तोड़ने ही क्यों न पड़ें। यही बात हर क्षेत्र में है। शिक्षा क्षेत्र में छात्र दौड़ रहे हैं तो कैरियर के लिए हर कोई दौड़ रहा है। दौडें तनाव पैदा करती हैं और दौड़ में ही जीवन समाप्त हो जाता है। आस पास देखने और जीने का अवसर ही प्राप्त नहीं होता। इसी दौड़ को अभिव्यक्त किया है 'शिवराम' ने अपनी इस कविता में ...
'कविता'
दौड़
- शिवराम
दौड़ से बाहर हो कर ही
सोचा जा सकता है
दौड़ के अलावा भी और कुछ
जब तक दौड़ में हो
दौड़ ही ध्येय
दौड़ ही चिंता
दौड़ ही मृत्यु
होने को प्रेम भी है यहाँ कविता भी
और उन का सौंदर्य भी
मगर बोध कम भोग ज्यादा
दौड़ में दौड़ती रसिकता
सब दौड़ से दौड़ तक
सब कुछ दौड़मयी
दौड़ मे दौड़ ही होते हैं
दौड़ के पड़ाव
कुछ और नहीं सोचा जा सकता
दौड़ के अलावा
यहाँ तक कि
दौड़ के बारे में भी
14 टिप्पणियां:
गुरुवर जी, आगे निकल जाने की "दौड़" में पीछे छुटती जा रही है "इंसानियत" और पैसों को दौड़ में आत्मा की आवाज दबती जा रही है. कब खत्म होगी यह आत्याचारी दौड़?
श्री शिवराम जी की "दौड़" में बहुत सुंदर अभिव्यक्ति से अवगत करने का आभार.
गुढ़ बात कही है...दौड़ से बाहर निकल कर ही सोचा जा सकता है उससे ज्यादा कुछ भी...उम्दा रचना..
लेकिन लोग दौड़ के बीच में सब पा लेना चाहते हैं। शतरंज देखनेवाला खेलनेवाला से ज्यादा अच्छी चाल समझता है। ऐसा ही दौड़ के साथ भी है।
दौड़ तो आदमी ने सूर्य-चंद्रमा-पृथ्वी से ही सीखा है। लेकिन इसकी दौड़ में कोई निश्चित लक्ष्य नहीं। आज नौकरी के लिए दौड़, यह कल खत्म होगी फिर शादी में दौड़। वह खत्म होगी तब बच्चों के पीछे दौड़। और यह दौड़ा-दौड़ा के आदमी को पकौड़ा बना देती है।
बढ़िया रचना
दौड़ से बाहर होकर ही सोचा जा सकता है दौड़ के बारे में ...
बात सोचने की है , मगर सोचने की फुर्सत तो हो इन दौड़ते भागते लोगों के पास !
@दौड़ ही ध्येय
दौड़ ही चिंता
दौड़ ही मृत्यु..
.उम्दा रचना....
सुन्दर प्रस्तुति,
हार्दिक बधाई ||
दौड़ में रहते हुए
कुछ और नहीं सोचा जा सकता... gahan chintan
अब आमिर खान अगर कहते हैं कि भाग भाग बोस डी के तो क्या गलत कहते हैं...
जय हिंद...
गहन रचना ... अच्छी प्रस्तुति
आप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
joint my follower
bilkul sahi baat kahi aapne daud se bahar hokar hi socha ja sakta hai bahut kuch. hindi fonts n hone ke karan comment dene me pareshani ho rahi hai...kshama karen dinesh ji padhne mai kuch asuvidha hogi....shivram ji ne bahut achhi kavita likhi hai. dhanyavaad.
दौड़ दौड़ कर पस्त हुये सब।
दौड़ते हुए न सोचें, ठीक भी है. वैसे सोचना रुकता कब है.
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