कल कामरेड पाण्डे के सब से छोटे बेटे की शादी थी, आज रिसेप्शन। मैं बारात में जाना चाहता था। लेकिन कल महेन्द्र के मुकदमे में बहस करनी थी, मैं न जा सका। आज रिसेप्शन में भी बहुत देरी से, रात दस बजे पहुँचा। सभी साथी थे वहाँ। नहीं थे, तो शिवराम! लेकिन उन का उल्लेख वहाँ जरूर था। सब कुछ था, लेकिन अधूरा था। शिवराम हमारे व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन के, संकल्पों के और मंजिल तक की यात्रा के अभिन्न हिस्सा थे। वहाँ से लौटा हूँ। उन की एक कविता याद आती है। मैं उन की किताबें टटोलता हूँ। उन के कविता संग्रह 'माटी मुळकेगी एक दिन' में वह कविता मिल जाती है। आप भी पढ़िए, उसे ...
नन्हें
- शिवराम
उस ने अंगोछे में बांध ली हैं
चार रोटियाँ, चटनी, लाल मिर्च की
और हल्के गुलाबी छिलके वाला एक प्याज
काँख में दबा पोटली
वह चल दिया है काम की तलाश में
सांझ गए लौटेगा
और सारी कमाई
बूढ़ी दादी की हथेली पर रख देगा
कहेगा - कल भाजी बनाना
इस से पहले सीने से लगाए उसे
गला भर आएगा दादी का
बेटे-बहू की शक्लें उतर आएंगी आँखों में
आँखों से छलके आँसुओं में
वह पोंछेगा दादी के आँसू
मुस्कुराएगा
रात को बहुत गहरी नींद आएगी उसे
कल सुबह जागने के पहले
नेकर-कमीज पहने
पीठ पर बस्ता लटकाए
वह स्कूल जा रहा है
वह टाटा कर रहा है और
दादी पास खड़ी निहार रही है
कल सुबह जागने के ठीक पहले
नन्हें जाएगा स्कूल
6 टिप्पणियां:
ओह!!क्या कहें...दुखी हुआ मन...
बेहतरीन प्रभावी कविता पढ़वाने का आभर.
भावभीनी कविता.. दर्द दिल में उतर जाता है..
bhaia jaan is kvitaa me to aapne jaan hi funk di is kvita ko to apne sanse dekar zindgi bkhsh di bdhai ho ...akhtar khan akela kota rajsthan
हर नन्हे स्कूल जायेगा, बहुत ही सुन्दर कविता है।
दो रोटी और लौकी की सब्जी जो मिलती है दोपहरी के भोजन में, उसकी बजाय चार रोटी और चटनी शायद बदलना चाहूं नन्हे के साथ - साथ में सपने भी।
नन्हें अभी काम पर जा रहा है...
स्कूल उसके सपने में है...
दो रोटी और लौकी की सब्जी के बावज़ूद...
एक टिप्पणी भेजें