@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: कभी दर्द सहने के बजाए, दर्द निवारक ले लेना चाहिए

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

कभी दर्द सहने के बजाए, दर्द निवारक ले लेना चाहिए

तवार की सुबह नींद टूटी तो गर्दन ने हिलने से इन्कार कर दिया। मैं धीरे-धीरे बिस्तर पर बैठा हुआ। मैं ने उसे बाईं तरफ घुमाया तो कोई विशेष तकलीफ नहीं हुई, लेकिन जब दायीं ओर घुमाया तो तकरीबन पाँच डिग्री घूमने के बाद ही तेज दर्द हुआ और गर्दन आगे घुमाई नहीं गई। मुझे छह साल पहले की याद हो आई। जब इस ने मुझे बहुत परेशान किया था। तब मुझे हड्डी डाक्टर की शरण लेनी पड़ी थी। उस ने कुछ दर्द निवारक औषधियाँ दी थीं और फीजियोथेरेपिस्ट के पास रवाना कर दिया था। फीजियोथेरेपिस्ट ने मुझे देखा, और एक जिम जैसे कमरे में भेज दिया। वहाँ एक दीवार में छत के पास एक बड़ी सी घिरनी लगी थी जिस से एक रस्सी लटकी हुई थी जिस के एक सिरे पर वजन लटकाने की सुविधा थी। दूसरे सिरे पर गर्दन को फँसाने के इंतजाम के रूप में एक चमड़े का बना हुआ लूप था। गनीमत यह थी कि यह लूप छोटा नहीं हो सकता था। वरना यहाँ मुझे ठीक उस घिरनी के नीचे एक स्टूल पर बैठा दिया गया गरदन को उस लूप में फँसा कर रस्सी के दूसरे सिरे पर कोई वजन लटका दिया गया। मुझे लग रहा था कि फाँसी पर चढ़ाए जाने वाले अपराधी में और मुझ में कुछ ही अंतर शेष रहा होगा। इस क्रिया को ट्रेक्शन कहा गया था। मैं समझ गया कि मेरी गर्दन को आहिस्ता-आहिस्ता खींचा जा रहा है। अनुमान भी हुआ कि गर्दन की छल्ले जैसी हड्डियों के बीच कोई तंत्रिका वैसे ही फँस गई है जैसे मोगरी (मूली की फली) की सब्जी खाने पर उस के तंतु दाँतों के बीच फँस जाते हैं और अनेक प्रयास करने पर ही बाहर आते हैं।
खैर, गर्दन खींचो कार्यक्रम लगभग एक सप्ताह चलता रहा। इस बीच मुझे आराम होने लगा। सप्ताह भर बाद फीजियोथेरेपिस्ट ने मुझे गर्दन की कुछ कसरतें बताई और मैं वे करने लगा। उन कसरतों का नतीजा यह रहा कि पिछले छह साल से गर्दन के छल्लों के बीच किसी तंत्रिका के फँसने की नौबत नहीं आई। लेकिन अब यह क्या हुआ? निश्चित ही यह पिछले दो माह से किसी तरह की कसरत न करने और बेहूदा तरीके से सोने का असर है। मैं अपनी इस अकर्मण्यता पर केवल शर्मिंदा हो सकता था। जो मैं खूब हो लिया। अपनी शर्म को छिपाने के लिए मैं अपने दर्द को छुपा गया। मैं ने किसी को न बताया कि मेरी गर्दन का क्या हाल है। रोज की तरह व्यवहार किया। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया गर्दन के दर्द में कमी आती गई। लेकिन शाम होते ही जैसे ही सर्दी का असर बढ़ा गर्दन का दर्द फिर से उभरने लगा। मैं ने रात्रि को दफ्तर में बैठ कर काम करना चाहा लेकिन न कर सका। बीच बीच में गर्दन गति अवरोधक का काम करती रही। सोमवार की सुबह जब नींद खुली तो उस का वैसा ही आलम था जैसा कि इतवार को था। इस दिन सुविधा यह थी कि मैं अदालत जा सकता था। सोमवार को भी दिन चढने के साथ दर्द कम हुआ लेकिन शाम पड़ते ही हालत वैसी ही हो गई। मैं फीजियोथेरेपिस्ट की बताई कसरतें भी कर चुका था लेकिन गर्दन थी की मानती न थी। रात को दफ्तर में बैठ कर कुछ काम भी करना पड़ा। आधी रात को बिस्तर पर पहुँचा तो जैसे तैसे निद्रा आ गई। 
मंगलवार की सुबह फिर वैसी ही रही। यह दिन बहुत बुरा गुजरा। एक तो एक बहुत जरूरी काम था  जिसे मैं दो दिन से टाले जा रहा था। उसे कैसे भी पूरा करना था। लेकिन पहले दो दिनों की तरह दिन चढ़ने के साथ दर्द में कोई कमी नहीं आ रही थी, वह जैसे का तैसा बना हुआ था। बस दो दिनों से दर्द सहने की बन गई आदत ने बहुत साथ दिया। जैसे-तैसे दिन तो अदालत में गुजर गया। लेकिन शाम बहुत बैचेनी हो गई। मुझे लगा कि गर्दन के इस तिरछेपन में सर्दी की भी भूमिका है। मैं ने शाम पड़ते ही गरदन को मफलर में लपेट कर सर्दी से पूरी तरह बचाने की कोशिश की। लेकिन मेरी इस हरकत ने मेरी पोल खोल दी। पत्नी जी ने पकड़ लिया। तुरंत सवालों की झड़ी लग गई। .... जरूर पेट खराब रहा होगा, गैस बनी होगी, आज कल कसरतें बिलकुल बंद कर दी हैं, वजन कितना बढ़ गया है.... आदि आदि। मेरे पास एक भी सवाल का जवाब नहीं था। होता भी तो क्या था? हर जवाब को बहाना ही समझा जाता। आखिर नौ बजते-बजते तो हालत खराब हो गई। दर्द असहनीय हो गया। पत्नी जी ने सुझाया कि अब परेशान होने के बजाय अलमारी में से नौवाल्जिन की गोली निकालो और खा लो। मेरे पास इस प्रस्ताव को टालने का कोई मार्ग नहीं था। मैं ने निर्देश पर तुरंत अमल किया। ये क्या? पन्द्रह मिनट भी नहीं बीते हैं कि मैं बिस्तर से निकल कर दफ्तर में आ बैठा हूँ, दर्द कम होता जा रहा है और इस पोस्ट को लिखते-लिखते इतना कम हो चुका है कि अब मैं दो घंटे और बैठ कर अपना काम पूरा कर सकता हूँ। जिस से मुझे कल अपने मुवक्किलों के सामने शर्मिंदा न होना पड़े।
भी-अभी एक बात और सीखी कि कभी दर्द सहने के बजाए दर्द निवारक का प्रयोग भी कर लेना चाहिए। जिस से आप की दैनिक गतिविधियाँ मंद न पडें और मस्तिष्क को भी आराम मिले। गर्दन के छल्लों में फँसी तंत्रिका भी दो चार दिन में अपने मुकाम को पा कर स्वस्थ हो ही लेगी। फिर तसल्ली की बात यह भी है कि सर्दी के दिन अब कितने रह गए हैं। आज का दिन, कल के दिन से दो सैकंड छोटा था आज की रात साल की सब से लंबी रात होगी, और कल का दिन साल का सब से छोटा दिन, वह आज से एक सैकंड छोटा होगा। फिर परसों का दिन 23 दिसंबर, वह कल के दिन से एक सैकंड बड़ा होगा। फिर उस के बाद दिन शनैः शनैः बड़े होते जाएँगे और सर्दी कम। आप चाहें तो नीचे बनी सारणी में देख सकते हैं.......
 
कोटा, राजस्थान में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय

दिनांक
सूर्योदय
सूर्यास्त
दिनमान
समयांतर


21 दिसंबर 2010
07:07
17:42
10h 34m 21s
− 02s

22 दिसंबर 2010
07:08
17:42
10h 34m 21s
< 1s

23 दिसंबर 2010
07:08
17:43
10h 34m 23s
+ 01s

24 दिसंबर 2010
07:09
17:43
10h 34m 26s
+ 03s

25 दिसंबर 2010
07:09
17:44
10h 34m 32s
+ 05s

26 दिसंबर 2010
07:10
17:44
10h 34m 40s
+ 07s

27 दिसंबर 2010
07:10
17:45
10h 34m 50s
+ 10s




12 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आपकी गर्दन का दर्द जल्द ठीक हो..

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी यह गर्दन का दर्द होने का एक ओर भी कारण हे, हम कई बार कार चलाते समय खिडकी का शीशा नीचे कर देते हे, बस इस से भी दर्द बढ जाता हे जो करीब दस दिन रहता हे, इस लिये कभी भी शीशा नीचे कर के कार मत चलाये, या आमने सामने की खिडकीयां ( घर की ) खोल कर उन के सामने ना बेठे, ऎसा दर्द मुझे पहले बहुत होता था, फ़िर यहां डा० ने बताया कारण, ओर अब मै साबधान रहता हुं, ओर अब कई सालो से आराम हे, दो सप्ताह पहले छोटे बेटे के दर्द हुआ, तो कारण यही था, उसे दस दिन लगे अराम आने मे, इस की एक कसरत भी हे, वो ऎसे जेसे गरदन को बिलकुल ढीला छोड दो बिलकुल ढीला ओर फ़िर सिर को आरम से चारो ओर घुमाओ याद रहे गर्दन बिलकुल ढीली हो (जेसे टुटी हुयी हो) इस से दर्द मै बहुत आराम मिलता हे ओर रोजाना बिना गोली के आप अपना काम कर सकते हे, यानि दर्द आधे से भी कम.

Neeraj Rohilla ने कहा…

तकरीबन दो महीना पहले हम भी लैपटाप पर काम करते करते सिर रखकर सो गये थे। सुबह उठे तो गर्दन किसी भी दिशा में नहीं मुड रही थी।

दो दिन दर्दनिवारक गोलियों के सहारे रहे, दिन में ठीक रहता था लेकिन रात को दर्द असहनीय हो जाता था। हमारे धावक समूह में एक डाक्टर हैं, उनके क्लीनिक पर गये और उन्होनें कई कसरतें करवाईं। मेरे हिसाब से जिस चीज ने असल में आराम दिया वो इलेक्ट्रिक शाक वाली मशीन थी।

उन्होने २-२ इलेक्ट्रोड गर्दन के दांयी और बांयी तरफ़ फ़ंसाये और तकरीबन ३० मिनट तक १० सेकेंड्स विद्युत का झटका, फ़िर १० सेकेंड्स आराम का लूप दोहराया । उन्होने कहा कि इससे मांसपेशियां जो जकड गयी हैं शिथिल हो जायेंगी। लेकिन पहले १ घंटे तक दर्द बढेगा फ़िर कम हो जायेगा। एक घंटा दर्द से बेहाल रहे फ़िर दर्दनिवारक गोली लेकर सो गये। ३ घंटे बाद उठे तो जैसे जादू हो गया हो, गर्दन एकदम दुरूस्त.

१-२ दिन तो आपको दर्द सहना ही पडेगा।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सर क्षेत्र में कोई भी पीड़ा बहुत व्यथित करता है। दर्दनिवारक दवायें खाकर काम में लगे रहें, शारीरिक व्यवस्था धीरे धीरे आ जायेगी।

Sushil Bakliwal ने कहा…

लगता है नोवाल्जीन शायद अधिक बेहतर दर्द निवारक है । मैं तो ऐसे किसी भी समय काम्बिफ्लेम पर निर्भर रहता हूँ ।

Sunil Kumar ने कहा…

डाक्टर से ही सही उपचार मिलता है मगर कसरत करते रहना चाहिए| भारत में हर दूसरा आदमी डाक्टर है इस लिए हर तीसरा आदमी मरीज है

विष्णु बैरागी ने कहा…

इस भाव में भी इस निदान की जानकारी मँहगी नहीं है। आप अब ठीक हैं, यही अच्‍छी खबर है। अन्‍त भला सो सब भला।

निर्मला कपिला ने कहा…

दवा से फौरी तौर पर कुछ आराम तो मिलता है मगर योगा ही सही इलाज है। अगर आप लैपटाप पर काम करते हैं तो उसे टेबल पर रख कर ही काम करें और खुद कुर्सी पर बैठें गलत पोस्चर गर्दन की दर्द का सब से बडा कारण है। भगवान आपको जल्दी हर दर्द से आराम दे।
शुभकामनायें।

Arvind Mishra ने कहा…

आपका ग्रीवा दर्द संक्रामक तो नहीं ? मुझे लगता है इस पोस्ट के पढने के दौरान हो आया है :)
ध्यान रखें और सही निदान करवाएं तभी दवा आदि लें ,होमिओ पैथी पर भी आपका अटूट विश्वास है तो उसे भी आजमायें ,परहेज न करें !
और जल्दी से अपने कुशल क्षेम की सूचना दें ..
मैं दर्द शुरू हो इसके पहले ही दर्द निवारक की अच्छी खासी डोज ले लेता हूँ ....कौन फजीहत कराये ...यावत् जीवेत सुखम जीवेत !

शरद कोकास ने कहा…

द्विवेदी जी पहले हम भी ऐसे ही कहा करते थे कि दर्द का हद से गुजर जाना है दवा हो जाना लेकिन अब पत्नी की डाँट खाकर चुपचाप गोली खा लेते हैं ,वैसे एक मुफ्त की सलाह दूँ ... कितने भी ज़रूरी काम हो सब हो ही जायेंगे बस व्यायाम मत छोडिये .. दर्द के साथ जीना भी क्या जीना हाहाहा ।

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhayi jaan srvaaikl atek or hmen ptaa nhin yeh khin dushmn pakistan ki saazish to nhin vese trekshn or aekshn ke saath saath is musibt men vijay sar ka povdr lekr uski chay pina chaahiye men lakr dunga khuda jldi dukh drd dur kregaa goliyaan to chlna hi chahiyen kyonki komredon ko goliyon se dr kaaheka . akhtar khan akela kota rajsthan

ghughutibasuti ने कहा…

ओह, यहाँ भी गर्दन टूटी ही हुई है.मैं तो ठंड को भी दोष नहीं दे सकती.लिखना पढ़ना भी ठप्प है. कसरत चल रही है.
आपको जल्दी आराम मिले.
घुघूती बासूती