शिवराम की एक कविता .................
शेर और भैंस
- शिवराम
जिस जंगल में शेर होता है
वहाँ भैंसे झुण्ड में रहती हैं
जब विश्राम करती हैं तो
गोल घेरा बना कर बैठती हैं
चौकस और चौकन्नी रहती हैं
मुहँ बाहर की ओर
भैंसे शेर से नहीं डरतीं
शेर भैंसों को सुरक्षा व्यूह से
डरता है
दुस्साहस करता है
तो अक्सर मारा जाता है
हम भैंस का दूध पीते हैं
और गली के कुत्तों से डरते हैं।
8 टिप्पणियां:
हम भैंस का दूध पीते हैं
और गली के कुत्तों से डरते हैं।
बहुत सुंदर ढंग से शिवराम जी ने इस कविता मे समाज की कमजोरी को बताया,
धन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये
यह मनुष्य को उसकी स्थिति का अहसास दिलाती हुई कविता है ..वह शेर है ना कोई इनकी सोई हुई दुम हिलादे । शिवराम जी के जनगीत और नाटकों के अंश भी दीजियेगा ।
सुंदर. मन:स्थिति का सही दर्पण है यह कविता.
जन सामान्य की मानसिकता का कितनी गहन अनुभूति शिवरामजी को थी, यही बताती है यह छोटी सी कविता।
सभी भैंस का दूध कहाँ पीते हैं ..कुछ गाय का कुछ बकरी का पीते हैं ..कुछ मुझ जैसे दूध पीते ही नहीं ....बछ्ड़ें फिर क्या पीएगें
कुछ छठी का दूध पीते हैं जो भैंस के दूध से ज्यादा जरुरी है ......
शिवराम की इस रचना का उदहारण यू ट्यूब के एक विडिओ में अभी देखा था.
सुन्दर और सारगर्भित कविता।
झकझोर देने वाली कविता !
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