@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: स्वर्ण बनाने का सूत्र

गुरुवार, 27 मई 2010

स्वर्ण बनाने का सूत्र

ये सज्जन अदालत परिसर में दुकान लगाते हैं, पकौड़ियाँ बनाने और बेचने में माहिर हैं। सज्जन हैं, सुबह से ही विजया के आनंद में मगन रहते हैं। दिन भर में पकौड़ियाँ और चाय बेच कर अपना गुजारा चलाते हैं। पिछले कुछ दिनों से इन की दुकान पर यह बैनर लगा दिखाई पड़ता है।



इस बैनर पर लिखा है -
तोरस, मोरस, गंधक, पारा
इनहीं मार इक नाग संवारा।
नाग मार नागिन को देही
सारा जग कंचन कर लेही।।

मैं तीन-चार दिनों से इस छंद को पढ़ रहा हूँ, इस का गूढ़ार्थ निकालने की कोशिशें भी कर चुका हूँ। लेकिन अभी तक असफल रहा हूँ। आखिर आज मैं ने इन्हीं सज्जन से पूछ लिया -भाई इन पंक्तियों का क्या अर्थ है। उन्होंने बताया तो मैं अवाक् रह गया। उन का कहना है कि यह सोना बनाने का सूत्र है। 
मैं ने पूछा -आप ने कोशिश की? तो उन का कहना था कि कोशिश तो की है, लेकिन हर बार कुछ न कुछ कसर रह जाती है। कभी रंग सही नहीं बैठता और कभी घनत्व सही नहीं बैठता। मैं ने और दूसरे देसी कीमियागरों को भी सोना बनाने की कोशिशें करते देखा है। लेकिन कभी किसी को सफल होते नहीं देखा। यह संभव भी नहीं है। सोना एक मूल तत्व है जिसे नहीं बनाया जा सकता। यह केवल तभी संभव है जब किसी दूसरे मूल तत्व के नाभिक और उस के आस पास चक्कर लगा रहे इलेक्ट्रोनों को बदल कर स्वर्ण प्राप्त किया जाए। लेकिन वह एक नाभिकीय प्रक्रिया है, यदि उस तरह से स्वर्ण बनाना संभव हो भी जाए तो वह प्रकृति में प्राप्त स्वर्णँ से कई सौ या हजार गुना महंगा हो सकता है।
फिर भी जिस किसी ने ये पंक्तियाँ लिखी हैं, उस के लिखने का कुछ तो लक्ष्य रहा होगा। हो सकता है वह मनुष्य से उस के अंदर का विष मार कर उसे कंचन की भाँति बन जाने की बात ही कह रहा हो? क्या कोई पाठक या ब्लागर साथी, इस का सही-सही अर्थ बता सकेगा?

46 टिप्‍पणियां:

निशांत मिश्र - Nishant Mishra ने कहा…

आपके पोस्ट के अंतिम पैराग्राफ पर लिखना चाहता था पर मूढ़मना को कुछ सूझा ही नहीं.:)
विज्ञान का इतिहास ऐसे असंख्य सफलताओं से भरा पड़ा है जब धुर वैज्ञानिकों से लेकर हर किसी ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे ने हर संभव विधि से सोना बनाने के प्रयास किये. उसपर गज़ब यह भी है कि विज्ञान के विकास में इन घटनाओं ने बहुत योगदान दिया क्योंकि इनके आधार पर ही शुद्ध नियमसंगत विज्ञान की नींव पडी.

निशांत मिश्र - Nishant Mishra ने कहा…

पहले वाले कमेन्ट में 'सफलताओं' को 'असफलताओं' पढ़ा जाये. जल्दबाजी में गलती हो गयी. :(

honesty project democracy ने कहा…

हमारे समझ से तो घनत्व का मेल न होने का अर्थ है सत्य,न्याय,ईमानदारी व अच्छाइयों का संपर्क न होना ,जिससे कोई भी वस्तु या इन्सान सोना नहीं बन सकता बल्कि सोना भी पीतल बन जाता है /

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

मै भी उत्सुक हूं जानने के लिये

Arvind Mishra ने कहा…

ये किस गोरख धंधे में फस गए आप =पारद से सोना बनाने के कई कीमीयागीरी प्रयास हुए हैं ...मगर कोई भी प्रमाणित नहीं है ...
....
नाग नागिन को इसमें लपेट कर यह बन्दा ऐसे ही एक मिस्ट्री सृजित कर रहा है और कोर्ट कचहरियों के मदारियों के रोचक और रहस्यमय खेलों में एक नया योगदान दे रहा है ..इससे दूर रहने में ही भलाई है !

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

विद्वत्‌जनों कि राय राय जानने दुबारा आता हूँ। बहुत रोचक है।

राज भाटिय़ा ने कहा…

यह मत्रं तो मुझे नही पता सोना बना पाये या ना, लेकिन मेरे पास है एक मंत्र जिस से सोना जरुर बन सकता है, ओर वो मंत्र है... लगन, मेहनत ओर इमान दारी... लेकिन चुहे वाली मेहनत ओर लगन नही, बल्कि मधु मकखी वाली मेहनत ओर लगन... फ़िर इंसान जहां हाथ रखेगा वही उसे सोना मिलेगा

hem pandey ने कहा…

आज के सन्दर्भ में इसका एक अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि गंधक आदि विस्फोटक पदार्थों(आर डी एक्स) से युक्त नाग (आतंकवादी ) और नागिन (आतंकवाद) को समाप्त कर दो. दुनिया स्वर्ण जैसी मूल्यवान हो जायेगी.

उम्मतें ने कहा…

द्विवेदी जी मुद्दा सारे जग को कंचन कर लेने का है इसलिये यह मानना ठीक नही है कि छन्द मे स्वर्ण निर्माण के सूत्र निहित है !... ना स्वर्ण तो कदापि नही !
अब अगर इसे प्रतीकात्मकता मे लेकर कल्पना की जाये तो ...स्त्री को मुक्ति का आधार मानकर बात आगे बढाई जा सकती है ! निसन्देह यह छन्द किसी नागपूजक/स्त्रीपूजक समुदाय द्वारा रचा गया होगा !

मेरे ख्याल से स्त्री को सुखी करने से सारे परिवार के सुखी हो जाने का भाव भी इसमे निहित हो सकता है !

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

चलिए हम भी पाठकों के लिए एक सूत्र दिए देते है....
गरूण भुजंग समकर सूता
देवदाली रस में लों पूता
हालर हूलर मत करो खेती
बावन तौला पाव रत्ती

अर्थात गरूण यानि माक्षिक(धातु विशेष) और भुजंग यानि नाग...इन दोनों के बराबर पारद मिलाकर उसमें देवदाली(एक बूटी) का स्वरस मिलाकर हालर हूलर का मतलब है कि खूब खरल करो......यह द्रव्य सिर्फ पाव रत्ती ही तोले को वेधकर सोना बना देता है
एक ओर भी सूत्र याद आ रहा है.....
गरल भुजंगल समकर सूता
पार्वती रस में ला सूता
रगडत रगडत होवे खार
कंचन होत न लागे बार
*रसायन शास्त्र के आदि ग्रन्थों में पारद को शंकर जी का वीर्य और गन्धक को पार्वती जी का रज कहा गया है...सो, उपरोक्त सूत्र में कहे गए पार्वती रस से तात्पर्य गन्धक होना चाहिए...

Smart Indian ने कहा…

तोरस, मोरस, गंधक, पारा
इनहीं मार इक नाग संवारा।
नाग मार नागिन को देही
सारा जग कंचन कर लेही।।

शैली तो संत कबीर की उलटबांसी जैसी दिख रही है

Ra ने कहा…

मै भी उत्सुक हूं जानने के लिये

Abhishek Ojha ने कहा…

लग तो रहा है कुछ न कुछ और भी मतलब होना चाहिए. कुछ मिले तो मुझे ईमेल भेजिएगा... कुछ दिन ब्लॉग से दूर रहने वाला हूँ.

vedvyathit ने कहा…

is desh me kai bar sona bnaya ja chuka hai pr vh vigyan ab lupt pray hai
pr sona bn skta hai ydi purane shstron ka gmmbhir adshyyn kiya jaye
dr. ved vyathit

Udan Tashtari ने कहा…

जरुर कोई जीवन का सूत्र है.

विष्णु बैरागी ने कहा…

सोना बनानेवाली बात तो गले नहीं उतरती। जीवन दर्शन का ही कोई रहस्‍य या संकेत छुपा लगता हे इसमें।

naresh singh ने कहा…

इस प्रकार से बना सोना समाज हित में नहीं हो सकता है | अगर कोइ बना ले तो ज़रा हमें भी भिजवा देना |

बेनामी ने कहा…

https://sites.google.com/site/pardeepgold/
pardeep kukreja 9855319000 abohar punjab

Himwant ने कहा…

आवर्त सारणी (Periodic Table) रासायनिक तत्वों को उनकी आणविक विशेषताओं के आधार पर एक सारणी (Table) के रूप में दर्शाने की एक व्यवस्था है। वर्तमान आवर्त सारणी में ११७ ज्ञात तत्व (Elements) सम्मिलित हैं। रूसी रसायन-शास्त्री मेन्देलेयेव ने करीब १४३ साल पहले अर्थात सन 1869 में आवर्त सारणी प्रस्तुत किया। उस सारणी में उसके बाद भी कई परिमार्जन भी हुए. आज उस सारणी का जो स्वरूप है उसके अनुसार ७९ वें पायदान पर सोना (गोल्ड) है तथा ८० वे पायदान पर पारद (मर्करी) है. यह सारणी तत्वों के आणविक गुणों के आधार पर तैयार की गई है. किस तत्व में कितने प्रोटोन है तथा उसका वजन (mass) कितना है आदि शुक्ष्म विश्लेषण के आधार पर १४३ वर्ष पहले यह सारणी तैयार की गई थी.

लेकिन भारत में हजारों साल पहले ग्रंथो में लिखा मिलता है की पारद से सोना बनाया जा सकता है. इस आधार पर हमें मानना होगा की हमारे ऋषियों को किसी भिन्न आयाम से तत्वो की आणविक संरचना ज्ञात थी. एसा माना जाता है की नालंदा के गुरु रसायन-शास्त्री नागार्जुन को पारद से सोने बनाने की विधी ज्ञात थी. लेकिन वह ज्ञान हमारे बीच से लुप्त हो गया है.

आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता है की पारद को सोने में परिवर्तित किया जा सकता है. आणविक त्वरक (Atomic Acceletor) या आणविक भट्टी (Nuclear Reactor) की मदत से पारद के अनु में से कुछ प्रोटोन घटा दिए जाए तो वह सोने में परिवर्तित हो जाएगा. यह प्रविधी महंगी है लेकिन संभव है यह आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता आया है.

विकसित मुलुक पारद को सोने में परिवर्तित करने की सस्ती प्रविधी पर निरंतर शोध करते आए है. क्या चीन तथा अमेरिका आदि विकसित मुलुको ने कृत्रिम रूप से सोना बनाने की सस्ती प्रविधी खोज ली है. पिछले दिनों जिस रफ़्तार से सोने के भावों में तेजी लाई गई उससे इस आशंका को बल मिलता है.

विश्व में सोने की सबसे ज्यादा खपत भारत में है. सोना अपने आप में अनुत्पादनशील निवेश है. अमेरिकी सिर्फ आभूषण के लिए सोना खरीद सकते है. अमेरिकी कानून के तहत निवेश के लिए स्थूल रूप (बिस्कुट या चक्की) के रूप में सोना रखना गैर-कानूनी है.

एक अमीर मुलुक ने सोने के निवेश पर बन्देज लगा रखा है लेकिन भारत में लोगो की सोने की भूख बढती जा रही है. लोग अपनी गाढ़ी कमाई को सोने में परिवर्तित कर रहे है. आज भारत एक ग्राम भी सोना उत्पादन नहीं करता लेकिन विश्व का सबसे बड़ा खरीददार बना हुआ है.

जिस दिन कृत्रिम स्वर्ण बनाने की प्रविधी का राज खुलेगा उस दिन सोना मिट्टी हो जाएगा. हमारी सरकार स्वर्ण पर रोक क्यों नहीं लगाती? हमारे स्वर्ण-पागलपन को ठीक करने के लिए समाज सुधारक क्यों नहीं आंदोलन करते है?

हमारे पास पूंजी के अभाव में स्कुल नहीं है, सडके नहीं है, ट्रेने नहीं है. हमारी पूंजी सोने में फंसी है. जिस दिन वह पूंजी मुक्त होगी हम फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगे.

Vikas ने कहा…

dekhiye bhai suvarna sutra hum bataa detaai hai
shri
tauras gandhak mauras para
bich bich de naag sitaara
nausadar se karle gara
pila pila laile

Vikas ने कहा…

garud bhujaang samkar suta
parvaati ras mailo puta
ragdat ragdat hovai khaar
kanchaan hot na laage baar

vidhi :- jaastai ka sikka , para , gandhak bahut ragad na aur phir gajputa mia bhasma banana bavan tola mai pav ratti aisi vidhi di hai hastlikhit book mai

Vikas ने कहा…

or batta ta hu
tauraas gandhak maauras paara
bich bich dai naag sitaara
ark(akda sweta pushpa ka)dudha
mai dije jaar asaakta karlije shaar
lai sisa mai darai koi parvaat smaan kanchaan hoi

Unknown ने कहा…

Bahut Sarah bidhi h
Sulphar ke tel me parade ko kharal 12change take karna h for such seesha me Leo karna h ,Manson se seesha ko marna h for silver ko pighla kar use dalna h ,bad Jo bane utha lo Saral bidhi h

Sachin Singh Chauhan ने कहा…

जय नागार्जुन

Third Eye ने कहा…

ये दोहा ही गलत है ,नाग संवारा नहीं है नाग (सीसा धातु) मारण सही है

Third Eye ने कहा…

पारे से सोना बनता है भाई लेकिन ये भेदक का कार्य करता है ,गंधक रंजन का मतलब रंग का

Unknown ने कहा…

👍

Unknown ने कहा…

Para ,gandhak,aur nag ka matlab shisha yah dhatu hota hai.inki ayurvedik tarikese bhasmaa banayi jaye to garam tambe par dalne par sana banata hai.lekin pare ko shudhdha hona chahiye .nake khanij para nahi chahiye.

Unknown ने कहा…

इसमे पूरी आचार्य श्री नागार्जुन विधि है

Unknown ने कहा…

Parvati ras ka MATLAB safed aak hai

Unknown ने कहा…

Toras moras kya hai

अजीत भदौरिया ने कहा…

असम्भव कुछ भी नहीं है परन्तु जब तक पूर्ण जानकारी ना हो इसके पीछे पगलाना नहीं चाहिए।

Unknown ने कहा…

ए संत कबीर की वाणी नहीं हे ,नाथ संप्रदाय की गुप्त भाषा हे इन मे संच मे सोना बनाने कि विधी हे जो कोडवड हे

Unknown ने कहा…

ईण बाकी मुर्खोको नहीं समजेगा भारत पारद विज्ञान ,ईणे नागार्जुन पढणा चाहिए, आपकी बाद सही हे

Rtguty ने कहा…

😂😂😂😂😂

Rtguty ने कहा…

आपने बनाया

Unknown ने कहा…

यह सूत्र कई वर्ष पहले कादम्बिनी पत्रिका में प्रकाशित हुआ था ।कई और सूत्र भी थे । अपने ज्ञान को छुपाने की प्रवृत्ति के कारण इस तरह के सूत्र या संकेत लिखे जाते थे। इसका उदाहरण अगस्त मुनि के अगस्त सहिंता में भी बैटरी बनाने के सूत्र से मिलता है जब सिखग्रीवा शब्द को समझ कर बैटरी बनाई गई तो पता चला कि विद्युत के उत्पादन की जानकारी हमारे ऋषियों को थी और वह इसका निर्माण भी करते थे। ज्यादा जानकारी के लिये श्री राजीव रंजन प्रसाद का यू ट्यूब पर बैटरी संबधी वीडियो देख सकते हैं।

Unknown ने कहा…

तो रस पारा मा रस गंधक,ईसमे मिलावे नाग सुहारा
नाग(बच)सुहारा नाग मारके ना गिन को दीजै
खप्पर भरके कांचन लीजै!!!

Unknown ने कहा…

स्वर्ण निर्माण तो नागार्जुन 108 प्रयोग मे केवल एक प्रयोग था ये बहुत ही गुप्त है यहाँ नाग का अर्थ मुरछित पारे से है

Unknown ने कहा…

मेरे दादाजी स्वर्ण निर्माण की ये कला जानते थे पर उन्होंने न स्वयं के लिए ये क्रिया नहीं की न हमारे परिवार को बताई

Unknown ने कहा…

Para MTB shiv shiv ko kis ceej ki jaroorat he hame shiv ki jarurat he humm sab kuch prapt kar sakte he shiv aseem zyan he usi prakar para bhi aseem zyan he bus prapt karte chale jao safalta milti chali jayegi jo ise samajh gya sona bna lega

MICRO47 ने कहा…

एकदम सही बात

Unknown ने कहा…

Hello sir

Unknown ने कहा…

परेकी६४ क्रिया के बाद उससे सोना बनाया जा सकता हैं

RML jy0tish ने कहा…

Bat to shi hai pr clear nhi

नीरव रावल ने कहा…

यह कबीर का कोई दोहा नही है
ये गोरखनाथ की शाबर विधा का एक किलक मंत्र है और यंहा लिखा हुआ पूरा है भी नही और शाबर मंत्रों की ........... खेर इससे ज्यादा चर्चा सार्वजनिक संभव नही ये सुवर्ण सिद्धि से जुड़ा है इतना सीधा सरल नही जो चर्चा का विषय हो