कल मैं ने इस विषय पर पोस्ट लिखी थी कि विश्व होमियोपैथी दिवस और डॉ. हैनिमैन के जन्मदिवस पर होमियोपैथी का मेरे जीवन में क्या स्थान रहा है? इस पोस्ट पर आई टिप्पणियों में निशांत मिश्र ने कहा कि यह पद्धति जड़ संदेहियों के लिए नहीं बनी है। डॉ. अरविंद मिश्र, प्रवीण शाह और बलजीत बस्सी ने उन का समर्थन ही नहीं किया अपितु इसे अवैज्ञानिक बताया। प्रवीण शाह ने यह भी कहा कि "किसी भी वैज्ञानिक ट्रायल में यह पद्धति अपने आपको साबित नहीं कर पाई है।" जब मैं ने उन्हें इसे साबित करने को कहा तो उन्हों ने मुझे ब्रिटिश हाउस ऑव कॉमन्स की साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी कमेटी की 275 पृष्टों की रिपोर्ट भेज दी। निश्चित रूप से मैं उसे इतने कम समय में आद्योपांत पढ़ कर राय कायम नहीं कर सकता था। फिर कोई प्रोफेशनल होमियोपैथ इस काम को बेहतर ढंग से कर सकता है, मैं नहीं। फिर भी उस रिपोर्ट का चौथा पैरा इस प्रकार है।
4. This inquiry was an examination of the evidence behind government policies on homeopathy, not an inquiry into homeopathy. We do not challenge the intentions of those homeopaths who strive to cure patients, nor do we question that many people feel they have benefited from it. Our task was to determine whether scientific evidence supports government policies that allow the funding and provision of homeopathy through the NHS and the licensing of homeopathic products by the MHRA.
4. यह होमियोपैथी की जाँच नहीं, अपितु होमियोपैथी के संबंध में सरकारी नीतियों के पीछे उपलब्ध साक्ष्यों की एक परीक्षा थी। हम होमियोपैथ चिकित्सकों के रोगियों का इलाज करने के प्रयासों को चुनौती नहीं दे रहे हैं और न ही उन रोगियों पर सवाल खड़ा कर रहे हैं जो होमियोपैथी चिकित्सा से खुद को लाभान्वित होना पाते या महसूस करते हैं। हम केवल यह पता लगा रहे हैं कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से सरकार की वित्तीय सहायता की नीतियों और औषध व स्वाथ्यरक्षक उत्पाद नियंत्रक एजेंसी द्वारा होमियोपैथिक उत्पादों को अनुज्ञप्ति प्रदान करने का समर्थन करने वाले वैज्ञानिक साक्ष्यों का पता लगाना है।
इस पैरा को पढ़ने से ही पता लगता है कि हाउस ऑफ कॉमन्स की इस कमेटी का विषय होमियोपैथी की वैज्ञानिक जाँच करना नहीं था। इस रिपोर्ट के आधार पर होमियोपैथी को अवैज्ञानिक सिद्ध नहीं किया जा सकता। हम यह भी जान सकते हैं कि विश्व में दवा बाजार पर ऐलोपैथी दवाओं का एक छत्र साम्राज्य है। उन के उत्पादक किस तरह होमियोपैथी जैसी मात्र दो सौ वर्ष पुरानी और सस्ती पद्धति को स्वीकार कर सकते हैं जब तक उस में मुनाफा कूटने की पर्याप्त संभावनाएँ उत्पन्न न हो जाएँ। इधर होमियोपैथी का प्रभाव बढ़ना आरंभ हुआ है और उधर सरकारों के माध्यम से उन पर इतने प्रतिबंध आयद किए गए हैं कि पिछले चार-पाँच वर्षों में होमियोपैथिक दवाओं के दामों में दो से चार गुना तक वृद्धि हो गई है। जिस दिन यह लगने लगेगा कि इस दवा उत्पादन में ऐलोपैथी जैसा या उस से अधिक मुनाफा कूटा जा सकता है। यही जाँच कमेटियाँ इस पद्धति को वैज्ञानिक घोषित करने लगेंगी।
चलते चलते एक अनुभव और बताता जाता हूँ। हमारी बेटी पूर्वा जन्म के बाद से ही होमियोपैथी पर निर्भर थी। लेकिन हम दोनों पति-पत्नी को दवाओं की कम ही आवश्यकता होती थी। यदि कभी होती भी थी तो मेडीकल स्टोर से लाई गई पूर्व परिचित सामान्य दवाओं से काम चल जाता था। उन दिनों तक घर में पच्चीसेक होमियोपैथी दवाएँ आ चुकी थीं।उस दिन पिताजी घर पर आए हुए थे। मेरी बगल में एक फुंसी उभर आई थी जो तनिक दर्द कर रही थी। मुझे उस हाथ को कुछ ऊँचा कर चलना पड़ रहा था। पिताजी ने देखा तो पूछ लिया हाथ ऐसे क्यों किए हो? मैंने बताया कि शायद काँख में कोई फुंसी निकल आई है। उन्हों ने उसे जाँचा और मुझे डाँट दिया। तुम्हारे आयुर्वेद और जीवविज्ञान स्नातक होने का यही लाभ है क्या कि तुम इस की चिकित्सा भी नहीं कर सकते। मेडीकल स्टोर से बैलाडोना प्लास्टर तो ला कर चिपका सकते थे। मैं तुरंत घर से बाहर भागा और मेडीकल स्टोर की ओर देखा। लेकिन वह बंद हो चुका था। आसपास किसी और मेडीकल स्टोर के खुले होने की कोई संभावना नहीं थी।
मैं उलटे पैरों वापस लौटा। पिताजी ने मेरी और प्रश्ववाचक निगाहों से देखा। मैं ने उन्हें कहा कि मेडीकल स्टोर तो बंद हो चुका है, बैलाडोना प्लास्टर तो अब सुबह मिलेगा। मेरे पास होमियोपैथिक बैलाडोना 200 पोटेंसी का डायल्यूशन घर पर है तो एक खुराक खा लेता हूँ। मैं ने यही किया। हालांकि मैं नहीं जानता था कि इस का असर क्या होगा? सुबह सो कर उठा तो सामान्य कामकाज में लग गया। मुझे ध्यान ही नहीं आया कि मैं उस फुंसी को जाँच लूँ। पिताजी ने ही पूछा फुंसी का क्या हाल है। मैं ने कहा दर्द तो नहीं है पर फुंसी तो आप ही देख सकते हैं। उन्हों ने फुंसी को देखा तो उसे सिरे से गायब पाया। मैं चौंका। मैं ने होमियोपैथी की किताब उठाई और बेलाडोना के लक्षण पढ़े तो वहाँ अंकित था कि इन लक्षणों में बैलाडोना का उपयोग सही है। उस के उपरांत मैं कम से कम पाँच सौ बार बैलाडोना का समान परिस्थितियों में अपने लिए और औरों के लिए उपयोग कर चुका हूँ। एक बार भी यह प्रयोग असफल नहीं हुआ। अब इस के उपरांत होमियोपैथी को अवैज्ञानिक कम से कम मैं तो नहीं कह सकता था।
35 टिप्पणियां:
homeopathy achi aur sasti padhti hai,aur samaj bhi ise sweekaar kar raha hai
थोडे ठंड में भी रहने पर सर्दी और खांसी हो जाने वाले मेरे बेटे को एलोपैथी के डॉक्टर किसी दवा से नहीं ठीक कर सके .. उनका मानना था कि उसे ठंड से एलर्जी है जो ठीक नहीं की जा सकती .. कई वर्षों तक पूरी सर्दी गरम कपडे , मोजे और दास्ताने पहनकर व्यतीत करने वाले मेरे बेटे ने मात्र छह महीने होम्योपैथी की दवा खायी और आज जाडे में भी बिल्कुल निश्चिंत रहा करता है .. इसी तरह कई परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को भी कई स्थान पर मैने सही पाया है .. पर होम्योपैथी या परंपरागत ज्ञान की तुलना एलोपैथी से नहीं की जा सकती .. क्यूंकि दोनो पर समानांतर खर्च या रिसर्च नहीं हो रहा है!!
ek baar cricket khelte hue, catch lene ke prayaas me ball meri do anguliyen ke beech se nikal unke joint ko kafi neeche tak cheerte hue nikal gayee, umra kam thee aur doctor ne 4 stiches bataye to main seedha apne ek bade bhai ke paas pahuncha, jo ki homyopathy chikitsa karte the. unhone koi solution us kate hue hisse par dala aur tape se dono anguliyon ko jod kar baandh diya aur kam se kam 1 din na kholne ki hidayat di. agle din 50% se jyada ghaav bhar chuka tha aur sirf 3-4 din me wo ghaav bhar gaya jo 4 stiches maang raha tha. maine ghar par bhi tabhi bataya jab mera hath theek ho gaya, us samay summer vacations theen to kisi ko pata bhi na chala. ab ise kya kahenge aap.
uske baad kai baar maine dekha homiopathy mujh par to kafi kaam karti hai. meri khud ki bua ji jo pichhle kai saalon se iski practice kar rahi hain unhone kai aise case solve kiye jinke liye allopathy doctors ne last solution surgery batai thee, jaise ki embryo ka pet me hi seedhe se ulte hona.
मैं विरोधी तो नहीं, किन्तु इसे लेकर अनावश्यक आग्रहों से घिरा हुआ भी नहीं !
सिबिलिया सिमिलिस आकर्षित तो करती है, और इसमें मैंनें मगजमारी भी की है ।
ऍलॉस पैथॉस के सिद्धान्त को लेकर आलोच्य ऎलोपैथिक से जुड़े विज्ञानसँकाय, आज जबकि मॉलिक्यूलर मेडिसिन की ओर उन्मुख हो रहा है । होम्योपैथी को अपनी तार्किकता सिद्ध करना शेष है । लक्षणों के आधार पर दी जाने वाली दवायें सामान्य स्थिति में उन्हीं लक्षणों के पुनर्गठन में असफ़ल रही हैं । अपने को स्पष्ट करने के लिये मैं कहूँगा कि The results of any scientific experiment should be repeatedly reproducible in universality ! जहाँ बात जीवित मानव शरीर से छेड़खानी की हो, वहाँ सस्ते मँहगे और मुनाफ़े से जुड़े मुद्दों से ऊपर उठ कर, उपचार की तार्किकता देखनी चाहिये ।
यदि ऎसा ही है तो 50 रूपये मात्र की एन्ट्री फ़ीस लेकर कैन्सर ठीक करने वाले ( ? ) पीर बाबा भी प्रासँगिक ठहराये जा सकते हैं ।
हमारे देश में ऐसे छद्म विज्ञानियों का एक बड़ा तबका है जो पश्चिम की बातों पर हां में हां मिलाता है बिना विश्लेषण किये| यह तबका स्वयम दिमाग नहीं चलाता बल्कि पश्चिम से भेजी गयी ऐसी ही रपटों को आगे कर देता है| इस तबके को भारतीय संस्कृति अच्छी नहीं लगती क्योंकि पश्चिम को अच्छे नहीं लगती| वे भारतीय आस्थाओं को अंध-विश्वास ठहराने लगते हैं और पश्चिम का हवाला देते रहते है| वे इस बात को अनदेखा कर देते हैं कि जितना अंध-विश्वास और भूत-प्रेत के कपोल कल्पित रूप वहां है उसके आगे हमारा देश कुछ भी नहीं|
मैंने एग्रोहोम्योपैथी पर काम किया है अर्थात कृषि में होम्योपैथी का प्रयोग| दुनिया में मुठ्ठी भर लोग ही इसमे काम कर रहे है आप गूगल देख ले| मैंने इस पर शोध पत्र भी प्रकाशित किये हैं| मैं होम्योपैथी का प्रशंसक रहा हूँ| आज के चिकित्सको ने कम पढाई करके और धंधे के नाम पर गलत दवाओं को देकर इसका नाम खराब किया है| गहन अध्ययन कोई नहीं करना चाहता|
विश्व स्वास्थ्य संगठन इस पर प्रतिबन्ध लगवाना चाहता है| उसका कहना है कि यह कारगर नहीं है| अन्दर की बात यह है कि यह कारगर है इसलिए एलोपैथो की आंखों की किरकिरी बनी हुयी है| वे चाहते है कि कैसे भी इसे अवैज्ञानिक घोषित कर दिया जाए| विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्वसनीयता कम है विशेषकर स्वाइन फ़्लू की अफवाह फैलाने के बाद| बड़ी दवा कंपनियों के हाथों में बिका हुआ संगठन है यह|
यदि होम्योपैथी के असर को विज्ञान वर्तमान तर्कों से समझा नहीं पा रहा है तो ये विज्ञान की गलती है न कि होम्योपैथी की| असर तो इसका होता है, हम सभी जानते हैं|
homeopathy kee vaigyankta ko chunautee dee gayee thee, aap is parashan ko taal gaye.davaeean banane valon ke apne munafekhor hit hote hain, is men koi shak naheen. lekin yahan prashan is padhatee kee vaigyankta ka hai.comittee kee report ka aadhar is system kee avigyankta hee hai. panee ke liye sarkar das million pound kyon kharche.itne paison men kitne logon ko rujgar mil sakta hai.
seedhee see bat hai. 30c potency valee homeopathic medicine men agar ek bhee active molicule ho to is ko delute karne ke liye dhartee ke sare smundar bhee kam hai. anuman hai ki sara solar system men hee itna paanee sama sakta hai!
chakitsa men astha ka saval naheen hai yahan manushya kee zindagee maut ka saval hai. hamare desh men to gobar aur muutar se bhee ilaj ho jata hai aur lakhon log kah dete hain ki vah un se theek huye hai. Murarjee Desai iska bhakt tha . ek to party hee aisee hai jis ne apna raaj aane par aisa andh vishvas phailaya tha. yah logon kee seht par khilvad hee hai.logon ne to bhoot paret aur flyng saucer bhee dekhen hain.duniya ka sab se bada evolutionary biologist aur oxford university ke professor Richard Dawkins ne homeopathy ke bare men bade parbhavshalee dhang se likha hai.chhoti see tippnee men itna kuchh naheen likha ja sakta.
aap is padhtee par aur vichar karen . you-tube par yah link dekhen:
http://www.youtube.com/watch?v=BWE1tH93G9U
http://www.youtube.com/watch?v=jYqQ_n2vOOI
aur yah link zaroor dekhen
http://richarddawkins.net/articles/5139
विज्ञानं अविज्ञान के नज़रिये से कभी देखा नहीं ...सोचा भी नहीं...तकलीफ भयंकर थी और उससे छुटकारा भी मिला था तब क्या ये मेरा विश्वास है या वहम या होमियोपैथी का कारगर होना ? बलजीत भाई नें तो डरा सा दिया है !
जो भी हो, हमारा तो विश्वास है होम्योपैथी में. खानदानी पेशा भी यही था पहले हमारे दादा जी, चाचा और अब उनका लड़का..सब नामी होम्योपैथ रहे हिन्दुस्तान के.
दुनिया की कई चिकित्सा पद्धतियाँ प्रेक्षनीय ज्ञान पर भी आकलित होती आयी हैं -आयुर्वेद भी उसमें हैं -वर्षों पहले जब वैज्ञानिक पत्रिका नेचर के सम्पादक जान मैडाक्स हुआ करते थे तो उनके नेत्रित्व में एक जांच दल ने होम्योपैथी की पूरी जांच पड़ताल कर इसे वैज्ञानिक पद्धति के अनुकूल न पाकर एक गैर वैज्ञानिक पद्धति साबित किया था -अंतर्जाल पर यह सामग्री होनी चाहिए -जिन लोगों के नाम आपने गिनाये हैं वे सभी भयंकर संशयी लोग है ,मैं भी ,मगर मैं लोगों के निजी अनुभवों और दावों से इतना संतप्त हो चुका हूँ की अब होमियोपैथी को गैर वैज्ञानिक कहने में हिचकने लगा हूँ -मगर खुद का आपना प्रयोग परीक्षण कम ही हो पाया है .आपका बेलाडोना ,औरों के थूजा के दावे सच ही लगते हैं .फिर ?
यदि मेरे शरीर में कहीं कट-फट जाता है और खून रिसने लगता है तो मेरे होमियोपैथ मित्र द्वारा दी गयी दवा की दो बूंद जख्म के पकने की संभावना पूरी तरह समाप्त कर देती है।
कभी मुझे घाव हो जाता है और एलोपैथ उसे चीरना चाहते हैं व एंटीबायटिक दवाएं खाने को कहते हैं, लेकिन होमियोपैथी की मीठी गोलियों की वजह से ऐसी नौबत अब कभी नहीं आती।
पहले मुझे खांसी होती थी तो कफ सीरप की कितनी बोतलें व एंटीबायटिक दवाएं गटकनी होती थीं। अब दस रुपए की होमियोपैथी दवा लाता हूं और उसकी दो बूंदों की चार-छह खुराकों में खांसी छू-मंतर।
क्या मुझे इन उपचारों का लाभ उठाने से पहले यह शोध करना चाहिए कि यह पद्धति वैज्ञानिक है अथवा नहीं??
मैंने तो कई मामलों में होमियोपैथी को बहुत कारगर पाया है। होमियोपैथी से संबंधित कुछ विचार यहां भी हैं http://khetibaari.blogspot.com/2009/08/blog-post_21.html
प्रत्यक्ष से बड़ा कोई प्रमाण नहीं । जो असर करे, वह वैज्ञानिक ।
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@ पंकज अवधिया Pankaj Oudhia,
एग्रोहोम्योपैथी अर्थात कृषि में होम्योपैथी का प्रयोग|
रहम करिये हुजूर, पादपों में भी प्रूविंग्स हो सकती हैं क्या ?
हमारे देश में ऐसे छद्म विज्ञानियों का एक बड़ा तबका है जो पश्चिम की बातों पर हां में हां मिलाता है बिना विश्लेषण किये| यह तबका स्वयम दिमाग नहीं चलाता बल्कि पश्चिम से भेजी गयी ऐसी ही रपटों को आगे कर देता है| इस तबके को भारतीय संस्कृति अच्छी नहीं लगती क्योंकि पश्चिम को अच्छे नहीं लगती| वे भारतीय आस्थाओं को अंध-विश्वास ठहराने लगते हैं और पश्चिम का हवाला देते रहते है|
कुछ भी नया नहीं कह रहे आप यहाँ पर, झाड़फूंक, मंत्र, एक नाक बंद कर सांस-चालन, गंडा-ताबीज, भभूत आदि आदि से इलाज करने वाले भी यही सब कहते हैं, दरअसल यह सब इस वजह से होता है कि 'बीमारी' अच्छी तरह से परिभाषित शब्द नहीं है... मिसाल के तौर पर सब कुछ सही होते हुऐ भी कोई कह सकता हूँ कि मुझ में 'ताकत' नहीं रही... अब निश्चित तौर पर आधुनिक evidence based medicine उसे यहाँ पर कुछ दे नहीं सकती... तब रोल आता है अजीबोगरीब वैकल्पिक उपायों या पद्धतियों का... पर हकीकत में Placebo से ज्यादा नहीं हैं ये सब...
एक और चीज जो इन Placebo Like उपायों को मान्यता प्रदान करती है वह है "चमत्कार" का आदिम इंतजार... और सामान्य से हट कर किसी 'विशेष चीज' पर श्रद्धा, आस्था और विश्वास रखने की प्रवृत्ति!
"यदि होम्योपैथी के असर को विज्ञान वर्तमान तर्कों से समझा नहीं पा रहा है तो ये विज्ञान की गलती है न कि होम्योपैथी की| असर तो इसका होता है, हम सभी जानते हैं|"
मैं इसे इस तरह कहना चाहूँगा:-
" यदि होम्योपैथी की बेअसरी को आप वर्तमान में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर भी समझ नहीं पा रहे हैं तो ये आपकी गलती है विज्ञान की नहीं। यह बेअसर है , विज्ञान इसे साबित कर चुका है।"
आभार!
इस बात में कोई दो राय नहीं कि होमियोपैथ में सही दवा का चुनाव हो जाने पर यह अच्छा कार्य करती है. कई बिमारी जिसे एलोपैथ ठीक नहीं कर सकता है उसे होमियोपैथ ठीक करता है. फिर भी न जाने क्यों होमियोपैथ की इतनी उपेक्षा की जाती है? यहाँ मैं एक घटना दे रहा हूँ:
मैं DTDC Courier Office में में काम करता हूँ. कुछ माह पहले की बात है कि कोई व्यक्ति विदेश में रह रहे अपने एक व्यक्ति (मरीज) के लिए होमियोपैथ के कुछ दवा भेजने के लिए मेरे ऑफिस में बुक कराया. दवा tablet के रूप में था जो होमियोपैथ के नामी कंपनी स्वाबे कंपनी का था. हमारे ऑफिस में तो दवा बुक कर लिया गया. पर जब इसे आगे भेजा गया तो DTDC Patna के head office में नहीं लिया गया. कहा गया कि होमियोपैथ दवा नहीं जाएगा. और वहाँ दवा नहीं लिया जबकि डॉक्टर का पुर्जा व दवा खरीदने का invoice भी दिया जा रहा था. इस प्रकार हेड ऑफिस में दवा नहीं लेने के कारण वह वापस मेरे ऑफिस में आ गया. मेरे ऑफिस के manager इस संबंध में Kolkata Regional Office में बात किये. पर वह भी होमियोपैथ दवा भेजने को तैयार नहीं हुआ. पर वह एक रास्ता बताया कि भेजने वाला यदि यह लिखकर दे देगा कि यह दवा होमियोपैथ नहीं एलोपैथ है तब जा सकता है. अब आप सोचिये जो दवा होमियोपैथ के नामी कंपनी स्वाबे का है और वह tablet के रूप में seal है और उसपर homeopath medicine लिखा हुआ है. उसपर भेजने वाला यह कैसे लिखता कि यह होमियोपैथ नहीं एलोपैथ दवा है? कुछ दिनों तक वह packet मेरे ऑफिस में पड़ा रहा फिर भेजने वाला ग्राहक उसे वापस ले गया.
इस घटना से यह प्रतीत होता है कि होमियोपैथ के नामी कंपनी स्वाबे का दवाई को भारत के नामी कंपनी के courier DTDC में भी स्थान नहीं है.
आखिर हमारे देश में होमियोपैथ की यह दशा क्यों है?
आपका
महेश
आदरणीय डॉ द्विवेदी !
कुछ जगह पर वैज्ञानिक अपना मत कुछ वर्षों में बदलते रहे हैं, साइंटिफिक चेक उसी को करना चाहिए जिसपर आपको कुछ पता हो ! होमिओपैथी के मूलभूत सिद्धांत को ही साइंस स्वीकार नहीं कर सकता तो आगे चर्चा साइंस से क्यों की जाए ?
डॉ अमर कुमार को मैं जरूर बताना चाहता हूँ सैकड़ों गरीबों और जरूरत मंदों की अनगिनत भयानक बीमारियाँ मैंने खुद ठीक की हैं उनमें गैंग्रीन जिसमें पैर कटाने की तारीख मिल चुकी थी, स्पाइनल स्लिपडिस्क जिसमें ३ ओपरेशन बताए गए थे, आदि बहुत उदाहरण हैं ! इस वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के के कारण मैंने पिछले २५ वर्षों में मैंने अपने परिवार पर एलोपैथिक डॉ को कोई पैसा नहीं दिया ( डॉ अमर कुमार से क्षमा याचना सहित ) :-)
मैं आपको शुभकामनायें देता हूँ कि आपने होमिओपैथी की चर्चा की, होमिओपैथी को जानने वाले सैकड़ों जगह जगह मिल जायेंगे और बीमारी का नाम सुनकर ही दवाएं देने वाले भी हर जगह मौजूद हैं (जिनके कारण होमिओपैथी बदनाम है ) !
मगर इस विषद विषय पर चर्चा करना और उससे भी मुश्किल उसे कम समय में समझा पाना असंभव सा है ! आपके लेख पर डॉ अमर कुमार की प्रतिक्रिया के कारण लिखने का मन है , और एक लेख शीघ्र लिखने का प्रयत्न करूंगा !
इस विषय पर श्री प्रवीण शाह और डॉ अमर कुमार से स्पष्ट मतभेद दर्ज करें !
सादर
सिर्फ होमिओपैथी ही नहीं एलॉपथी से इतर सभी चिकित्सा विधियों को संदेहास्पद दृष्टि से देखा जाता है मध्य प्रदेश में कुछ समय पूर्व झोला छाप में प्राकृतिक चिकित्सा को भी ले लिया था और प्रतिबन्ध ला दिया था जब कि ये विधि सबसे निरापद विधि है क्योंकि इसमे किसी प्रकार की दवाइयों का प्रयोग ही नहीं होता है. सच तो ये है कि सभी विधियों में कुछ न कुछ खासियत है हमें जो जमे उसको अपना लेना चाहिए. क्योंकि किसी भी पद्धति का असर शरीर से ज्यादा मन पर निर्भर होता है.
मैंने होम्योपेथी की कोई दवा अब तकग नहीं ली है। सदैव एलोपेथी पर ही निर्भर रहा हूँ1 किन्तु मेरे कुछ मित्र होम्योपेथ हैं जिनके पास बैठने के मौके खूब आते हैं और बार-बार आते हैं। उस समय उनके पास आने वाले मरीजों के अनुभव सुनकर होम्योपेथी के प्रति बरबस ही आदरभाव बढ जाता है। मैं केवल श्रोता रहता हूँ ऐसे अवसरों पर। सबकी सुनने के बाद मेरा निष्कर्ष है - होम्योपेथी की वैज्ञानिकता पर प्रश्न खडे किए जा सकते हैं किन्तु यह असंदिग्ध है कि इससे अधिक मानवतावादी पेथी और कोई नहीं है।
@ होमिओपैथी के आलोचक एलोपैथिक समर्थकों से !
विश्व में विभिन्न चिकित्सा पद्धतिया प्रयोग में लाई जाती हैं क्या आप लोग, एलोपैथिक पद्धति की विकल्प में प्रयुक्त पद्धतियों के बारे में कुछ भी जानते हैं ! आप एलोपैथिक डॉ हैं और विवेचना कर रहे हैं होमिओपैथी की जिसके बारे में आपकी जानकारी ही लगभग शून्य है ! क्या आप आयुर्वेद , यूनानी और चायनीज पद्धतियों की जानकारी रखते हैं ? उनकी भी कमियां क्यों नहीं बताते ?
इन पद्धतियों की जानकारी न होने पर भी, अपने होमिओपैथ कुत्संग के कारण, ( कोई कम जानकार तथाकथित डॉ ) आप इनको निरर्थक साबित होने पर कायम हैं ! आपकी विद्वता को नमन !
एलोपैथ होने के गर्व के कारण, विश्व में सारी बीमारियों को ठीक करने का ठेका सिर्फ आपने ले रखा है ! यह मत भूलियेगा कि विश्व में सैकड़ो एलोपैथ आज भी होमिओपैथ की प्रैक्टिस कर रहे हैं ! मेरे कम से कम तीन एलोपैथ डॉ मित्र अपने पूरे घर की दवा होमिओपैथ से लेते हैं ! जब सारे मोहल्ले में और स्कूल में वायरल बुखार फैल रहा था मेरे दोनों बच्चे २४ -३६ घंटे में बिना एंटीबायोटिक्स लिए ठीक होकर स्कूल जाते रहे !
कृपया उपरोक्त कमेन्ट को व्यक्तिगत न लें अगर फिर भी दिल किसी का न दुखे अतः क्षमा याचना सहित !
@ प्रवीण जी, आपकी प्रतिक्रया बड़ी रोचक है| मुझे बरबस ही आपके मानसिक लक्षणों से एक होम्योपैथिक दवा याद आ रही है| जीवन के किसी भी मोड़ पर यदि आपको कोई तकलीफ हो और भगवान न करे उसका कोई इलाज न हो तो मुझे याद कर लीजिएगा| मै दवा का नाम बता दूंगा| आप किसी होम्योपैथिक चिकित्सक की सहायता से ले लीजिएगा|
एग्रोहोम्योपैथी के बारे में आपसे तर्क करना बेकार है|
वो कहा गया है न कि बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद---
इस पर शोध पत्र वैज्ञानिक पत्रिकाओं में छपे है| इसका मखौल उड़ाकर आप अपनी बातों को झूठा सिद्ध कर रहे हैं| खैर, जैसी आपकी मर्जी|
धन्यवाद
@ प्रवीण जी एक बात तो रह ही गयी|
प्राचीन समय से यह कहा जा रहा है कि सांप को मारने के बाद उसका साथी पीछा करता है| इसे अंध-विशवास बताया जाता रहा| इसे गलत साबित करने हजारों लेख लिखे गए और व्याख्यान दिए गए| विज्ञान के नजरिये से कोई इसे समझ नहीं पाया| कुछ समय पहले अरविन्द मिश्र की के ब्लॉग में मैंने पढ़ा कि यह अंध-विशवास नहीं बल्कि विज्ञान सम्मत है| बहुत से सांपो में विशेष ग्रंथियाँ होती हैं| जब आप उन्हें लाठी से मारते है तो गंध लाठी में लग जाती है और उसी के सहारे साथी लाठी तक पहुंच सकते हैं| इसलिए सांप मारने के बाद लाठी अच्छे से धो लेनी चाहिए| जिस सत्य को विज्ञान पहले समझ नहीं पाया और अंध-विश्वास ठहराता रहा वही विज्ञान अचानक ही उल्टी करवट बैठ गया| हो सकता है कि कल को उसे होम्योपैथी को समझने की भी समझ आ जाए|
क्या आपको नहीं लगता कि सांप के विषय में एक प्राचीन सत्य को अंध-विश्वास ठहराने वाले छद्म विज्ञानियों को एक पूरी पीढी से क्षमा मांगनी चाहिए? दरअसल अंध-विश्वास तो उन्होंने फैलाया, विज्ञान के प्रति अंध-विश्वास|
हो सकता है कि आने वाले युगों में धरती चपटी है, ऎसा साबित हो जाये !
पर अपनी मौज़ूदा जानकारियों के आधार पर मैं तब तक इसे गोल तो मान ही सकता हूँ !
हे ईश्वर मुझ सहित सभी के निजी विश्वासों की रक्षा करना !
यहाँ दावों, चमत्कारों या निजी विश्वासों पर दृढ़ता को चुनौती नहीं दी जा रही है,
न ही किसी पद्यति का तिरस्कार किया जा रहा है, बात तो केवल तथ्यपरक प्रासँगिकता की है ।
हमारे विद्वान मित्र ने ज्ञानदत्त शैली में एक प्रश्न उठाया है कि " क्या होमियोपैथी अवैज्ञानिक है ? " जबकि वह स्वयँ ही होम्योपैथ के हामी हैं । किन्तु बहस का बिन्दु वैज्ञानिकता के स्तर से भटक कर दावों, चमत्कारों पर टिक गया है । अस्तु यह मान लेने में कोई बुराई नहीं हैं कि आदिशल्यक भगवान शिव ही थे, जो अँग प्रत्यारोपण जैसी शल्यक्रिया से गणेश को रच सके ।
अब यह बेमानी होगा कि Juxtraposition of Arteries and Nerves के टुच्ची अवधारणाओं पर यह प्रत्यारोपण असँभव दिखता है ।
अपने विद्वान मित्र सतीश जी के वाक्य को ही मैं थोड़ा बाज़ीगरी करने दोहराऊँगा..
आप होम्योपैथिक आस्था के हैं और विवेचना कर रहे हैं एलोपैथी की जिसके बारे में आपकी जानकारी ही लगभग शून्य है !
यदि अपनी चिकित्सा पद्यति से इतर मुझे कुछ अपनाना ही पड़ा तो मैं दादी माँ के नुस्खों पर ज़्यादा यकीन करूँगा, क्योंकि वह अपनी परम्पराओं के चलते अब तक अपना स्थान बनाये है !
मैं अपनी पिछली टिप्पणी की लाइन और लेंग्थ पर कायम हूँ,
मैं विरोधी तो नहीं, किन्तु इसे लेकर अनावश्यक आग्रहों से घिरा हुआ भी नहीं !
होमियोपैथी एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है ।
@ डॉ अमर कुमार,
गुरुदेव मैनें कहीं भी एलोपैथी के विद्वान् या उसे समझने का दावा नहीं किया और न मैं जानकार हूँ ! मैंने सिर्फ होमिओपैथी के अनजानों पर ऊँगली उठाई है ! कृपया एक बार मेरे कमेंट्स दुबारा पढने की कृपा करें !
सादर
अच्छा जरा इन्सोम्निया (नींद न आने) की दवा बतायें फटाफट! अपने को उससे ही काम है!
अपनी जानकारी क्षेत्र से बाहर निकल गयी है ये चर्चा !
दावे पर दावा ठोका जा रहा है. मैं हैरान हूँ हमारे देश का पढ़ा लिखा तबका अंध-विश्वास में पूरी तरह घिर चूका है. यहाँ तो विज्ञानं पर से ही विश्वास उठ चूका है. मनुष्य के शरीर में बीमारी से लड़ने की ताकत होती है और ६०% प्लेसीबो प्रभाव भी होता है.
बिना टिप्पणी के यह खबर दे रहा हूँ, मिल्लियन जीतिए:
Homeopathy Qalifies for the million Dollar Challenge
Swift
Written by James Randi
Tuesday, 02 June 2009 10:16
We've always said that homeopathy is eligible for the million-dollar prize, but Julia Wilson, Development Officer for Sense About Science in London needs it here on the page – for some strange reason. We've offered it on BBC, in print, by lectures, all over the world, and it has always – 100% of the time – failed tests. It was reported as a failure in Nature Magazine...
So, Julia, here it is, again, as if it had to be repeated once more: if anyone can show that homeopathy works, the James Randi Educational Foundation will pay them the million-dollar prize...
Homeopathy DOES NOT WORK. It's quackery, pure and simple. It's a farce, a fake, and flummery. Prove it works, and win the million dollars.
There! That's three times! Enough?
bhai main to Sateesh ji aur Pankaj ji se poori tarah sahmat hoon.. aur kahin jane ki jaroorat kya hai mujhe jab ki is dawa ne mere khud ke oopar kai baar kaam kiya hai to hath kangan ko aarsi ka.. aur ek sach ye bhi hai ki kaibaar to allopathic medicine ko effective hote nahin dekha. Science to main bhi kar raha hoon lekin yahan to log apni-apni haankte lag rahe hain.
विज्ञान जहां तक पहुंचा है .. उससे ऊपर की बाते को मानने को तैयार नहीं .. यह जितनी बडी बात नहीं .. उतनी बडी बात तो यह है कि वह सामनेवालों को झूठा मानने की धृष्टता भी करता है .. पंकज अवधिया जी की बात बिल्कुल सही है .. बंदर क्या जाने आदि का स्वाद !!
सवाल आस्था का है। बाकी द्विवेदी जी के तर्क सटीक हैं। साजिशन ऐसा हमेशा होता आया है। वैज्ञानिकता बहुत भ्रामक शब्द है।
श्रीगंगानगर में फार्मिंग करनेवाले और कोटा को कार्यक्षेत्र बनानेवाले मेरे एक मित्र ने मुझे बताया था कि वे अपने मवेशियों की चिकित्सा भी होम्योपैथी से ही करते हैं और नतीजे जबर्दस्त आते हैं।
होम्योपैथी जिंदाबाद। होम्योपैथी से कितने लोग आज तक मरे हैं और ऐलोपैथी से कितने इसका हिसाब लगाया जाए।
बलजीत बासी यहां क्या कर रहे हैं? क्या शब्द व्युत्पत्ति से उनका भरोसा उठ चुका है?
एलोपैथी , होम्योपैथी, आयुर्वेदिक --ये सभी चिकित्सा पद्धतियाँ भारत में मान्यता प्राप्त है सरकार द्वारा।
बेशक एलोपैथी वैज्ञानिक प्रयोगों और अनुसंधान द्वारा अर्जित किये गए ज्ञान पर आधारित है। अक्युट इलनेस और सर्जिकल कंडीशंस में इसका कोई विकल्प नहीं । लाइफ सेविंग पद्धति सिर्फ यही है।
लेकिन कुछ क्रोनिक यानि पुराने , लम्बी अवधि वाले रोगों में कभी कभी लाभदायक नहीं रहती।
ऐसे में होम्योपैथी या आयुर्वेदिक दवाएं काम आ जाती हैं। कोर्न्स , वार्ट्स और कैलोसिटिज में थूजा २०० का प्रभाव ड्रामैटिक है । इसी तरह गले के क्रोनिक या बार बार होने वाले संक्रमण को आयुर्वेदिक दवा -सेपतिलिन द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है। ये मैं अपने अनुभव से बता रहा हूँ। मुहांसों का कोई खास इलाज़ एलोपैथी में नहीं है , लेकिन होम्योपैथी में बहुत बढ़िया इलाज़ है।
इस तरह सबकी अपनी अपनी अहमियत है । देखा जाये तो ये एक दुसरे के पूरक ही हैं।
लेकिन सावधान रहने की ज़रुरत भी है क्योंकि हमारे यहाँ और भी कई तरह के डॉक्टर्स इलाज़ करते हैं जैसे पहलवान , बाबा , झाड फूंस और अनेकों पीर सिद्ध भगवान कहलाने वाले पाखंडी ।
मैं तो नहीं मानता होम्योपैथी को अवैज्ञानिक
क्या कहा जाये … होम्योपैथी के प्रति ऐसे विरोध आज से नही बल्कि हैनिमैन के समय से ही रहा है लेकिन इसके वावजूद इस पद्दति मे लोगों का विशवास सिर्फ़ आशवसन और भ्रम से नही बल्कि समय –२ पर मिल रहे अनगिनत परिणामों से है । तथ्यों की बात करें तो नैदानिक परीक्षणॊं ( clinical trials ) मे होम्योपैथी की विशव्सीयनता को सिद्ध करना बहुत मुशकिल है क्योंकि यह एक व्यक्तिपरक चिकित्सा पद्दति है ( individualized therapy ) , एक ही समय मे एक ही रोग मे दस विबिन्न रोगियों मे दवायें अलग-२ निकलती हैं , सिर्फ़ एक ही दवा एक रोग मे कारगर नही हो सकतॊ , रोग की उत्पति, उसके कारण , रोगी की मन: स्थिति , रोग किन कारणॊ से बढ रहा है या घट रहा है , दवा के सेलेक्शन मे इन कई बातों का ध्यान रखना बहुत आवशयक है जो नैदानिक परीक्षणॊ मे एक ही दवा को लेकर नही की जा सकती लेकिन इसके बावजूद ऐसे कई परीक्षणॊं मे होम्योपैथी कारगर भी सिद्ध होती रही है देखें अवशय :
http://hpathy.com/homeopathy-scientific-research/
http://homeopathyresearches.blogspot.com
होम्योपैथी -तथ्य एवं भ्रान्तियाँ " प्रमाणित विज्ञान या केवल मीठी गोलियाँ "( Is Homeopathy a trusted science or a placebo )
चलते-२ इस खबर पर को भी देखें :
U.K. Government defends right to homeopathy on the NHS
The Government has strongly rejected demands by MPs for the funding of homeopathy on the NHS to be withdrawn, claiming it would fly in the face of patient choice and local decision-making
साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी कमेटी की रिपोर्ट पर ब्रिटिश सरकार की सलाह
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