@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: भांग की तरंग होली के चित्रों के संग

सोमवार, 1 मार्च 2010

भांग की तरंग होली के चित्रों के संग

होली की पूर्व संध्या पर काव्य-मधुबन के कार्यक्रम फुहार2010 में सूर्यकुमार पाण्डेय को ग्यारहवाँ व्यंग्य श्री सम्मान प्रदान किया गया। इस समारोह में जाने के पहले ही बच्चा-लोगों ने हमारे घर विजया की ठंडाई घोंटी थी। उस के चित्र देखिए--

 तैयारी जारी है

 जरा और घोंट भाई!

 अब मामला तैयार है

 थोड़ी ही लूंगा

 अपने को कितनी भी चलेगी
 सूर्य कुमार पाण्डेय जी से सम्मान समारोह के बाद आग्रह किया गया कि सुबह ग्यारह बजे महेन्द्र जी के यहाँ विकल्प की गोष्ठी में पधारें। आग्रह अविलंब स्वीकार कर लिया गया। गोष्टी हुई मेरे और महेन्द्र 'नेह' के घर के सामने वाले सत्यम उद्यान में। गोष्ठी में सभी कवियों ने रचनाएँ पढ़ीं और स्वयं पाण्डेय जी ने भी बहुत ही रोचक रचनाएँ सुनाईं। शिवाराम  की कविता 'अनुभवी सीख' सर्वाधिक चर्चित रही।

अतुल चतुर्वेदी, भगवती प्रसाद गौतम, सूर्यकुमार पाण्डेय

 महेन्द्र 'नेह' कविता पाठ करते हुए

  शिवाराम कविता पाठ करते हुए

गोष्ठी का संचालन करते हुए शकूर 'अनवर'

 दिन कैसे निकला पता ही नहीं लगा। शाम को हम बाजार गए, सोचा था मिठाइयाँ खरीदेंगे और वहीं कुछ खा भी आएँगे। लेकिन बाजार में भीड़ देखते हुए बाहर खाने का इरादा त्यागा और मिठाइयाँ ले कर वापस लौट आए। शोभा भोजन बनाने सीधे रसोई में घुस गई। मैं और पूर्वा होली देखने पार्क में घुसे। पूरा पार्क पेड़ों और दूब से ढका है। लेकिन पार्क का एक कोना केवल होली के निमित्त ही खाली है। वहीँ होली बनाई गई थी। एक लंबे बांस से लगा ऊँचा लाल रंग का गोटे लगा झंडा और उस के इर्द-गिर्द लकडियाँ लगी हुईं। लोग अपने घरों से उपले ला कर डाल गए थे। महिलाएँ होली की पूजा कर जा रही थीं। कुछ ही देर में होली जलने की तैयारी थी। फोन कर के शोभा को भी बुला लिया गया। जब मुहल्ले के सब लोग आ गए तो होली जलाई गई। मौके पर माचिस नहीं थी। एक मिली तो उस में  एक ही तीली थी और कवर गीला। फिर एक एक्सपर्ट आए उन्हों ने इकलौती तीली को सुलगा लिया। फिर एक गत्ता सुलगाया गया। फिर होली में आग डाल दी गई।

 होली जलने लगी

 कुछ ही देर में उस ने आग पकड़नी आरंभ कर दी

 फिर ताप इतना बढ़ा कि लोगों को दूर हटना पड़ा

 महिलाओं ने जलती हुई होली की परिक्रमा की

फिर लोगों ने डेक के संगीत पर थिरकना आरंभ किया
 
 क्या बच्चे, क्या जवान? क्या पुरुष क्या स्त्रियाँ सभी नाचने लगे

 सब ने अपना नृत्य कौशल दिखलाया

 सब अपनी उमंग भर नाचे

 देर रात तक यह नृत्य चलता रहा


तब तक होली का मुख्य स्तंभ गिर गया, 
उस में लगा झंडा साबुत ही बाहर आ गया। 
लोगों ने कहा होली जल गई प्रहलाद साबुत निकल आया।

24 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत-बहुत धन्यवाद होली के सचित्र और सजीव वर्णन के लिये. लगा कि हम भी वहीं पहुंच गये हैं.
होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

यही है राजस्थान की होली,
खुब जमाई भंग की टोली
मस्त हुआ कविता पाठ
और चलती रही ठिठोली

सभी को होली की राम-राम
अब गणगौर का इंतजार है।

Unknown ने कहा…

जीवन्त होली
जलती हुइ ज्वाला
उठती हुई लपटे
प्रमुदित नाच
हर्ष और उल्लास
भान्ग का नशा
कविता पाठ

मजा आ गया

होली की शुभकामनाये

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत बढ़िया रही होली और वर्णन। इस साल तो हमने नहीं मनाई होली।
ज्यादातर तस्वीरें हिली हुई हैं। भंग से पहले की हैं या बाद की?

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी बहुत सुंदर लगा होली का यह संजीव चित्रण, ओर चित्र भी बहुत सुंदर लगे, एक बात मेने कभी भी भांग नही खाई ओर ना ही कभी पी है, पता नही केसा नशा हो डरता हुम,वेसे विस्कि ओर बीयर खुब पी है, बहुत मजा आया भंग को देख कर

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया रहा चित्रमय झांकी देखना...ठंडाई घुँटते देख तो जी ललचा गया.

ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.


आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

-समीर लाल ’समीर’

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@अजित वडनेरकर
अजित जी, आप ध्यान से देखें, या तो तस्वीरों में विपरीत प्रकाश प्रभाव है जिस से वे फीकी हैं। या फिर तस्वीरों के लक्ष्य हिले हुए हैं, क्यों कि वे गति में हैं। केमरे का एपर्चर अधिक देर तक खुला रहा। कम देर तक खुला रहता तो चित्र में प्रकाश कम आता और वे धुंधले हो जाते। फोन कैमरे की क्षमता और परिस्थितियों में ऐसे ही चित्र लिए जा सकते थे। पर विषय की प्रस्तुति के लिए पर्याप्त है।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

jai ho aisaa idhar bhee huaa

M VERMA ने कहा…

यह सचित्र होली क्या कहने
सुन्दर आलेख और बेहतरीन चित्रों ने चार चाँद लगा दिया.
बधाई

बेनामी ने कहा…

सचित्र और सजीव वर्णन
ऐसा लगा कि हम भी वहीं पहुंच गये

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

बहुत सुंदर लगा,हम लोंगों के यहाँ महिलाएं आग के पास नहीं जाती.

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

गज़ब चाल रह्यो छ...
कविताओं की बानगी भी हो जाती थोड़ी-थोड़ी सी...

निर्मला कपिला ने कहा…

सचित्र और सजीव वर्णन बहुत अच्छा लगा। आशा है अगली पोस्ट मे कवितायें भी पढने को मिलेंगी। शुभकामानायें

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

आभारी हूं

और भी भारी होता

यदि मेरा हिस्‍सा

भांग का

इंटरनेट से मिला होता।

बधाई

होली वालों को

पुरस्‍कार वालों को

और सूर्य नमस्‍कार

व्‍यंग्‍य विजेता को।

समयचक्र ने कहा…

सचित्र और सजीव वर्णन...होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें...

उम्मतें ने कहा…

ऊपर से १८ वें और अंतिम से पहले चित्र में भांग चढ़ जाने का अभिनय सा करते और पेड़ से टिके हुए सज्जन कौन हैं ?...वो क्या है कि ठंडाई पीने वाले चित्रों में इन्हें देखा नहीं :)

Abhishek Ojha ने कहा…

बढ़िया रहा वर्णन. इस साल तो हमने जीतनी होली खेली बचपन से आज तक नहीं खेला था.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@ali said...
अली भाई! आप ने भी खूब पकड़ा है। इन के और मेरे मकान के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। यानी मेरे मकान के पीछे इन का और इन के मकान के पीछे मेरा मकान है। बहुत दिलचस्प आदमी हैं। कभी किसी पोस्ट पर ही इन के बारे में बताउंगा।

Sanjay Karere ने कहा…

तो खूब धमाल किया आपने होली पर ... लगता है कैमरे को भी भंग पिला दी इसीलिए हिलता डुलता रहा... होली की शुभकामनाएं।


उदकक्ष्‍वेड़ि‍का …यानी बुंदेलखंड में होली

रानीविशाल ने कहा…

Bhaut bhadiya holi ka sachitra varnan kiya aapane dekh pad kar aananad aagaya....Aapko bahut bahut dhanywaad!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह जी ये तो खूब रही.

मुनीश ( munish ) ने कहा…

Khush kar diya aapne !

Himanshu Pandey ने कहा…

बेहतरीन वर्णन ! गोष्टी में पढ़ी कवितायें भी पढ़वाते आप !

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

भांग के बाद के चित्र कहां हैं?