इधर दीवाली जैसे-जैसे नजदीक आती है, घरों में भूचाल के हलके-भारी झटके चलते ही रहते हैं। सफाई अभियान सारी चीजों को इधर-उधर करता रहता है। परसों अदालत में था तो घर से फोन मिला कि कबाड़ी आया है, कूलर उसे दे दिया जाए। कुछ समझ नहीं आया, क्या जवाब दिया जाए? फिर साथियों से सलाह की तो निष्कर्ष निकला कि उस की आत्मा, पंखा और पम्प निकाल कर बाकी की जर्जर देह दे दी जाए। बेटे और उस की माँ ने यही किया। जर्जर देह के सवा-दोसौ रुपए खड़े हो गए, देह भूतों में जा मिली। अब फरवरी के अंत में पंखे और पम्प के लिए नई देह की तलाश शुरू की होगी। उस की भी सलाह मिल चुकी है कि आजकल कूलर के लिए स्टील के शरीर बनने लगे हैं। फरवरी में किसी स्टील-देह में पंखे और पम्प की आत्मा रख दी जाएगी। कूलर का एक और जन्म हो जाएगा। पर यह आत्मा अजर-अमर नहीं, हो सकता है दो-चार बरस बाद स्टील देह में नयी आत्मा डालनी पड़ जाए।
बेटी आई है, उसे कुछ कपड़े खरीदने थे, दशहरे का मेला घूमना था। अपने घर के पास से जिस तरह यातायात निकल रहा था, जाने की हिम्मत न हुई। किसी फिल्मी कलाकार की कला का प्रदर्शन था, भीड़ क्यों न होती? आखिर फरिश्तों को प्रत्यक्ष देखने का अनुभव लोग हाथ से थोड़े ही जाने देते। कल का दिन का समय बाजार के लिए और शाम का मेले के लिए तय हुआ। बाजार गए तो हमारी हैसियत मात्र कार-चालक की थी। बेटी ने अपने लिए कुछ कपड़े पसंद किए। भुगतान किया तो रसीद बना दी गई। कपड़े फिटिंग के लिए अभी चौबीस घंटे दुकानदार के पास रहने थे। रसीद दिखाने पर ही कपड़े मिलते। इस कारण खरीददार का नाम पूछा गया। दुकानदार ने नाम लिखा तो स्पेलिंग में चक्कर खा गया। झुंझला कर उस ने नाम हिन्दी में लिखा। हस्तलिपि सुंदर थी। मैं ने कहा, कितना खूबसूरत लिखा है? आप ने हिन्दी में। आप रसीद हिन्दी में ही क्यों नहीं बनाते? जवाब मिला -साहब! ऐसी ही फैशन है। मैं ने बताया कि मैं चैक हिन्दी में भरता हूँ, पत्र हिन्दी में लिखता हूँ। अधिकतर डाक्टर अंग्रेजी में पर्चा लिखते हैं,कोई-कोई हिन्दी में भी लिखते हैं। आप को कौन सा अच्छा लगता है? वह बोला, हिन्दी वाला अच्छा लगता है और समझ में भी आता है। मैं ने उसे कहा कि आप कुछ दिन हिन्दी में रसीद बनाइए, और देखिए ग्राहकों को कैसा लगता है? मुझे लगता है, उसे अधिक पसंद किया जाएगा। वह तैयार हो गया। आज उस के यहाँ कपड़े लेने जाना है। देखता हूँ, वह अपने वायदे पर कितना कायम है?
शाम साढ़े पाँच हम मेले में निकले। आगे आगे शोभा और पूर्वा दोनों थीं, और पीछे मैं। पूर्वा अपनी माँ से कोई छह-सात इंच लम्बी है, पर जिस तरह वह अपनी माँ के बाजू में बाजू डाले चल रही थी, पंद्रह साल पहले की याद आ गई। जैसे उसे भय लग रहा हो की मम्मी कहीं बिछड़ न जाए। कैमरा साथ होता तो बहुत भला चित्र लिया जा सकता था। पूर्वा को सोफ्टी खानी थी। हमें वह पसंद नहीं, उस ने अकेले ही खाई। दो बरस पहले जिस सोफ्टी के छह रुपए दिए थे, उसी के दस देने पड़े। आगे सुरेश कुल्फी वाले की दुकान देख हमारे मुहँ में पानी आया तो वहाँ जा बैठे। बंद हवा में दो मिनट में ही पसीना आने लगा। उस की कुल्फी अभी पकी नहीं थी। हम वहाँ इंतजार करने के स्थान पर मेले में टहलने चल दिए। माँ-बेटी ने दो-एक स्थान पर बैगों के भाव कराए, लेकिन सौदा नहीं पटा। एक दुकान से ढाई सौ ग्राम ओरेंज कैंडी खरीदी गईँ। कुछ प्रदर्शनियाँ देखीं। पुस्तकें देखीं तो वहाँ सारी धार्मिक पुस्तक वालों की प्रदर्शनियाँ मौजूद थीं, इक्का-दुक्का लोग अंदर जा तो रहे थे, लेकिन पुस्तक खरीदी नाम मात्र की थी। पुराना सोवियत पुस्तकों वाला जरूर मौजूद था, पर अब केवल पुस्तक प्रदर्शनी का बोर्ड लगा था। वहाँ अभी भी स्टॉक में बची सोवियत पुस्तकें बेची जा रही थीं। बाकी सब पुस्तकें वही थीं, जो बाजार की स्टॉलों और दुकानों पर आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। प्रदर्शनी में सब से नयी जसवंत सिंह की जिन्ना पर लिखी पुस्तक थी। प्रदर्शनी में भीड़ बरकरार थी। यहां लोग पुस्तकें खरीद भी रहे थे। आठ बजने वाले थे। कुछ ही देर में एक अखबार की ओर से कराई जाने वाली आतिशबाजी आरंभ होने वाली थी। भीड़ का रैला मेले में प्रवेश करने लगा था। हम ने वापसी की राह ली। पूर्वा ने मक्का की फूली (पॉपकॉर्न) के दो पैकेट खरीदे, एक मेरे पल्ले पड़ा। एक-एक मक्का मुहँ में डालते रहे। दूसरा पैकेट खोलने की बारी आती तब तक घर पहुँच चुके थे।
17 टिप्पणियां:
आप भाग्यवान हैं -- ऐसा मेला देखे बरसों बीत गए
सच -
त्योहारों पर भारत की बहुत याद आती है -
पूर्वा बिटिया तथा सौ शोभा भाभी जी को दीपावली की शुभकामनाएं दीजियेगा
आपको भी --
हिन्दी में रसीद बनाने का सुझाव पसंद आया --
- लावण्या
बहुत रोचक संस्मरण| बिम्ब-सा खडा हो गया|
हिन्दी के प्रयोग के लिए दिया सुझाव एकदम व्यावहारिक है|
परिवार में सबों को तेरस, दीपावली और दूज की शुभकामनाएँ|
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पुनश्च : कुछ दिन पूर्व आपको इमेल लिखा था|
द्विवेदी सर,
आपने मेरठ मे लगने वाले नौचंदी मेले की याद करा दी...बचपन में हम भी मुंह में तूंतड़ू लेकर मेले में खूब धमाचौकड़ी मचाया करते थे...नौचंदी मेले मे ही सड़क के एक तरफ चंडी देवी के मंदिर पर जागरण चलता था और ठीक सामने बाले मियां की मज़ार पर नात और कव्वालियां...बारी-बारी से दोनों का ही आनंद लिया जाता था...ये थी गंगा-ज़मुनी तहज़ीब...जाने क्यों लोग आज देश की पहचान इसी तहज़ीब को भूलते जा रहे हैं...
दीवाली आपके और घर पर सभी के लिए मंगलमयी हो...
जय हिंद...
वाह! दिवाली पूर्व बाजार भ्रमण !
शायद पहली बार अकेले दीवाली मनेगी । कल बिटिया गयी माँ के साथ दीवाली मनाने । इसलिए ज्यादा रसपूर्वक पोस्ट ग्रहण की ।
प्रणाम ।
अफ़लातून
बात सही है। वैसे देखा जाये तो घरों में ऐसे बहुत से भूत बने ही रहते हैं जो पता नहीं कब काया धारण कर लेते हैं।
हिन्दी की अनुशंसा से कुछ तो बदलेगा । एक भी !
भ्रमण का सजीव चित्रण । आभार ।
बड़ा रोचक रहा पठन एवं भ्रमण.. :)
दिनेश जी बहुत अच्छा लगा परिवार के संग घुमनए का मजा ही अलग है, मै भी जब मेले वगेरा मै बच्चो के संग जाता हुं तो बहुत मजा आता है, ओर बच्चे जब हम से लम्बे होजाये तो उस खुशी का कोई टिकाना नही होता. आप ने दर्जी को भी हिन्दी पर लगा दिया बहुत अच्छा लगा, अगर हम रोजाना एक आदमी को भी हिन्दी मे लिखने पर लगा दे तो केसे नही हिन्दी फ़िर से राज करेगी.
बिटिया को बहुत प्यार कहे, आज का लेख पढ कर लगा जेसे यह लेख मेरे लिये लिखा हो, लेख आप का भावनाये मेरी है इस मै.धन्यवाद
आप को ओर आप के परिवार को दीपावली की शुभकामनाये
बहुत रोचक संस्मरण|
तो क्या पता चला? वो अभी भी हिंदी में ही लिख रहा है या वापस अंग्रेजी पर चला गया?
आज कल तो मैं कुछ अलग ही करता हूं.. देवनागरी लिपी में अंग्रेजी लिख कर दोस्तों को मेल या मैसेज करता हूं.. :)
बहुत बढिया रहा यह भ्रमण.
आपको दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
आपकी हैसियत तो कार चालक की है, हमारी तो वह भी नहीं। मेले ठेले में तो हमें लायबिलिटी समझा जाता है। पूछा ही नहीं जाता। :(
मम्मी ! हु हु हु !
मुझे घर जाना है !
इस बार भी नहीं जा पाया. बताइये तो क्या लाभ ऐसी नौकरी का?
दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें
मेले का सजीव चित्रण बहुत अच्छा लगा आपको व आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनायें
दीपावली पर प्रणाम स्वीकार करें!
हार्दिक शुभकामनाएं!
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