हे, पाठक!
देश के वोट डालने वाले लोगों में से लगभग आधों ने जवानी पर भरोसा किया था। पर नेता के इरादे सही होने पर भी शायद वह अनुभव हीन था। मिले जुले बंद बाजार को खुले बाजार की ओर खींचने की कोशिशों के बीच तोपों का सौदा भारी पड़ा। जब खजाँची-सेनापति ही शहंशाह की नीयत पर शक करने लगे तो बाकी मनसबदार क्यों न सरकने लगें? उसे पद से हटाना ही मुनासिब! बाद में उस ने दरबार ही छोड़ दिया। कुछ और लोगों के साथ नई पार्टी बना ली और चुनाव जीत कर फिर से दरबार में जा बैठा। नीति यही कहती है कि जब कोई घर का भेदी बाहर आ जाए, तो घर ढहाने को सब उस के साथ होलें। सो सारे विपक्षी साथ हो लिए। इधर बाहर आधा-अधूरा पंचनद चैन नहीं लेने दे रहा था कि हमने पडौसी देश की आग में हाथ दे डाला। हाथ खींचना चाहा तो वापस खिंचा ही नहीं, वहीं पकड़ लिया गया।
वोटों से मिला जनता का समर्थन क्षण भंगुर होता है। वह वोट देते ही खिसक लेता है। वोट पाने वाला समझता है वह सिकंदर हो लिया, ऐसा होता नहीं है। घर के अंदर विरोध तो घर कमजोर, मुहल्ले के अखाड़ची रोज लंगोट घुमा जाएँ, ऐसे में अपना घर संभालने के बजाए पड़ौसी का झगड़ा सुलझाने को अपने लठैत वहाँ भेज दें और मंदिर-मस्जिद झगड़े का ताला खुलवा दें तो क्या होगा? वही नौजवान शहंशाह का हुआ। सारी जमातें एक हो गईं। यहाँ तक कि उत्तर-दक्खिन ध्रुव एक हो लिए। चुनाव में भारी मोर्चा लगा। फिर चुनाव की शतरंज बिछ गई। हाथी तो तोप प्रकरण ने मार लिए। घोड़े पड़ौसी के यहाँ लठैती में चले गए। अब ऊँटों के जरिए कहाँ तक बाजी संभलती।
नौ वीं लोक सभा के लिए नतीजे उलट गए। इस बार पेटी ने ताकत आधी से भी कम रहने दी। घर-भेदी को पंचों ने गद्दी पकड़ा दी। घर-भेदी पिछडों को आरक्षण की तरफदारी मंडल कर गया था। उस ने सारा जोर आरक्षण बढ़ाने में लगा दिया। इधर पंचों के इरादे ठीक न थे। ताकत के बल पर मंदिर-मस्जिद का झगड़ा निपटाने का प्रचार करना फायदे का सौदा लगा। कुछ पंच कमंडल ले कर जातरा पर निकल पड़े। दूसरे पंच के यहाँ पहुँचे तो उस ने जातरी को जेल पहुँचा दिया। आग में घी पड़ चुका था। पंचों की एकता छिन्न भिन्न हो गई। घर के भेदी का समय इतना ही था। दरारें दिखते ही कभी के युवा तुर्क जवान नेता की बैक्टीरिया पार्टी की तरफ झाँका, -तुम सहारा दो तो मैं भी तमन्ना पूरी कर लूँ? उन्हों ने अपनी हथेली लगा दी। युवा तुर्क गद्दी पर पहुँच गए। बड़ों की हथेली पर छोटों की गद्दी ज्यादा दिन नहीं टिकती। हथेली हिली कि गद्दी गिरी। यह हथेली जल्दी ही हिल गई। पाँच साल के चौथाई वक्त, सवा साल में ही दसवी महापंचायत के लिए रणभेरी बज गई।
आज कथा यहीं तक, लेकिन आगे जारी रहेगी।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
8 टिप्पणियां:
नारायण, नारायण.
दसवें अध्याय का इंतजार । रोचक अंदाज है । धन्यवाद ।
कथा सही दिशा में चल रही है ,बधाई .
राजनीति के दाँव पेच और जनता की हालत का कच्चा चिठ्ठा रख दिया आपने तो
- लावण्या
श्रीमदभागवत कथा के जैसी ही कथा चल रही है. अगले भाग का इंतजार करते हैं.
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
रामराम.
बहुत ही रोचक शैली में देश के राजनैतिक घटनाक्रम का विशद चित्रण। बधाई।
बहुत ही बढ़िया कथा चल रही है।
घुघूती बासूती
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
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