हे, पाठक!
जैसे हरि अनंता, हरि कथा अनंता! वैसे ही जनतन्तर अनंता और जनतन्तर कथा अनंता! सकल परथी के भिन्न-भिन्न खंडों पर भाँत-भाँत के रूप,आकार और रंगों के कीट दृष्टिगोचर होते हैं, उन की जीवन शैली भी भाँत-भाँत की है। वैसे ही जनतन्तर भी देस-देस में भाँत-भाँत का होता है। जब भरतखंड के एक खंड को भारतवर्ष कहा गया तो उसे गणतन्तर भी घोषित कर दिया। सब कहते हैं कि गणतन्तर भरतखंड की प्राचीन परंपरा है। पर जानते कितने हैं? एक पाठक ने प्रश्न किया गणतन्तर और जनतन्तर में क्या भेद है?
हे, पाठक!
अब हम गणतन्तर और जनतन्तर भेद लिखते हैं। पहले के जमाने में देस में एक राजा हुआ करता था जो देस पर राज करता था। राज करना एक कला भी थी और सामर्थ्य भी, कला से ज्यादा सामर्थ्य थी। राजा को अपने देस पर और परजा पर नियंत्रण बना कर रखना पड़ता था। यह सब काम वह किसम किसम के लोगों के जरीए करता था। जिनमें मतरी, जागीरदार वगैरा हुआ करते थे। देस बड़ा हुआ तो सूबे भी होते थे और सूबेदार भी। राजा को हटाने का तरीका यही था कि देस में बगावत हो जाए, या दूसरा कोई राजा लड़ाई कर देस पर कब्जा कर ले। आम तौर पर राजा का बेटा ही अगला राजा हुआ करता था। इसी को राजतन्तर कहते थे। पुराने जमाने में भरतखंड के बहुत से देसों में गणतन्तर होते थे। यानी परिवारों के मुखियाओं की पंचायत, पंचायत के मुखियाओं से कबीलों की पंचायत, कबीलों के मुखिया सरदार और सरदारों की पंचायत देस की पंचायत, देस की पंचायत का मुखिया राजा। विद्वानों ने गणतन्तर को इस तरह कहा, कि जो राजतन्तर न हो और जिस में बंस परंपरा से बनने वाले राजा शासन न हो। बल्कि किसी भी और तरीके से जनता या जनता का कोई हिस्सा राज करने वालों की पंचायत को चुनता हो।
हे, पाठक!
भारतवर्ष गणतन्तर बना तो साथ ही यह भी घोषणा हो गई कि यह जनतन्तर होगा और देस के हर एक बालिग को वोट देने का अधिकार होगा। देस का राज महापंचायत करेगी, जिस के लिए हर खेत के बालिग अपना एक गण चुनेंगे। इन गणों के बहुमत का नेता महापंचायत का परधान होगा। हमने भारतवर्ष को गणतन्तर भी बना लिया और जनतंतर भी बना लिया। पर इस में भी भीतर ही भीतर वो सबी तन्तर पलते रह गए जिन को परदेसी के साथ ही सिधार जाना था। परदेसी चले गए, । देस में उन का राज चलाने वाले सब यहीं रह गए। परदेसी के जाने की हवा बनते ही उन ने कहना शुरू कर दिया था कि राज तो वे ही चलाएँगे, जो चलाना जानते हैं। उन को चुना न गया तो सुराज फेल हो जाना है। लोग झाँसे में आ गए, लोगों ने उन को ही चुनना शुरू कर दिया।
हे, पाठक!
इस तरह गणतन्तर में पुराने सब तन्तर जिन्दा रहे । वैसे ही, जैसे कंपनी ने पुरानी कार को चमका-चमकू के शो-रूम में खड़ी कर दी हो, और खरीद के नया रजिस्ट्रेशन नंबर ले कर इतरा रहे हों कि नए कार के मालिक हैं। बरस भर बाद जब अंदर के घिसे पुरजे जवाब देना शुरू करें तो पता लगे कि नयी कार नयी होती है और पुरानी पुरानी। पर करें तो क्या करें? जब तक नयी कार न लेंगे पुरानी से ही काम चलाना होगा। भारतवासी तीन-बीसी से पुरानी कार घसीट रहे हैं। नयी कार कब आएगी? यह भविष्य के गर्भ में है। कार की हर पाँच साल में सर्विस जरूरी है। पुरानी है तो बीच में जब भी झटके खाने लगती है तभी बरक्शॉ में खड़ी हो जाती है। इस बार कुछ ऐहतियात से चलाई गई तो झटके कम लगे, एक जोर का आया तो था पर वो साइकिल वाले की मदद से झेल लिया गया। फिलहाल पुरानी कार पाँच साला सर्विस के लिए बरक्शॉ में है।
आगे की कथा में पढि़ए क्या हो रहा है वहाँ पुरानी कार के संग।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
12 टिप्पणियां:
जन तंतर गण तंतर के फर्क को अच्छा समझाया ! अनंतर कथा जारी रहेगी ही !
हम कसम खाते हैं की जब तक ये जननान्तर कथा चलती रहेगी , हमरी भी तिपंतर चलती रहेगी . बढ़िया है , .......जारी रहे
अब तो लगता है की कुछ जंतर मंतर होकर रहेगा.सुन्दर आलेख. आभार.
अंकल नमस्ते . लो मैं भी आगई आपकी कथा सुनने. दूर दुर तक खबर पहुंच रही है इसकी.
तो मैने सोचा कि चल रामप्यारी..तू भी अपना जीवन सुधार ले ये कथा कीर्तन सुनकर.
लोगो को पुरानी कारो से इतना मोह हो चुका है कि उसे नयी कार में कोई गूण नजर आता ही नही। अब इनका मोः कैसे टूटे इस के बारे में विचारिए।
बहुत सही!:)
कथा-यात्रा जारी है...
धन्यवाद ।
एक बात की गारंटी है....हमारे जीते जी तो नई कार नहीं ही आएगी.
कार पेंट भी होकर आएगी या वैसे ही आ जायेगी?
dwivedee jee,
gyan to mil hee raha hai lekin tarz aur bhee mast hai . hasy vyang aur aapka andaz sab mil is shrinkhla ko gajab ka 'rasedar' bana rahe hain .
aapne 'jantantar' 'gantantar' to bata diye ye naheen bataya ki isme 'prajatantar' kitna hai . lage haanth ho jaye !
kabhee ye bhee batayen ki jis tarah ka 'jantantar' hamne chuna,(samvidhan sabha me ) yani mukhiya ke bajay pradhan valee (adhyakxiya ke bajay sansdeey ) uska kya rahasya tha .aap naheen samajhte kee ye panchayatbajee se 'mukhiya tantar' jyada kargar hota , bharat jaise vishal desh ke lihaj se .
आज तो तसवीरेँ और कथा दोनोँ ही बढिया प्रस्तुत कीये हैँ आपने -
जय हो !!
- लावण्या
"गणतन्तर और जनतन्तर" का "अंतर" पढ कर अच्छा लगा. सोचने के लिये भी काफी कुछ मिल गया.
नल वाला चित्र तो गजब का है. सोचने के लिये प्रेरित करता है. इसे कहां से कबाड कर लाये.
बल्कि आपके चित्र तो एक से एक हैं. इनका प्रयोग बहुत सी बातों के लिये किया जा सकता है.
सस्नेह -- शास्त्री
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