हे, पाठक!
किसी भी पंचायत का पाँच साल चल जाना आज के वक्त में बड़ी बात है। भले ही चाचा पन्द्रह साल और उन की बेटी दस साल पंचायत में बैठी रही हो, पर अब वह अपवाद ही नजर आता है। अब तो इस का उदाहरण भारतवर्ष में केवल बंग ही रह गया है जहाँ इक्सीस सालों से एक ही गठबंधन पंचायत में जमा बैठा है। बाकी तो यह कहा जाता है कि जो भी सरकार पाँच साल चले वह विपथगामिता का शिकार हुए बिना नहीं रहती। जनता को भी अब रोटी पलट कर सेंकने की आदत बन चली है। ऐसा नहीं कि वायरस पार्टी की छत्रछाया में चली इस सरकार की उपलब्धियाँ कम रही हों। लेकिन जनता का वह तबका जो हर बार अपनी राय बदल कर नतीजे बदलता है, शायद सिर्फ यही देखना चाहता है कि उस की खुद की हालत पंचायत ने कितनी और कैसी बदली है? जैसी उस की हालत बदलती है वैसी ही वह सरकार की बदल देती है।
हे, पाठक!
पिछला महापंचायत चुनाव जहाँ दो शख्सियतों का सीधा टकराव था वहीं दो गठजोड़ों का मुकाबला था। तीसरी ताकत बीच में कहीं नहीं थी। गठजोडों के मुकाबले में जहाँ वायरस पार्टी को तेरह दिन, तेरह माह पंचायत चला कर महारत मिल गई थी, वहीं बैक्टीरिया पार्टी को एकला चालो रे से मुक्ति पानी थी। देखा जाए तो वायरस पार्टी एण्ड कंपनी के अच्छे चांसेज थे। चौथे खंबे ने भी उन का बहुत साथ दिया। वे मतदान के पहले ही नमूने के मतदानों में इसे विजयी भवः का आशीर्वाद दे चुके थे। पर महान देस की महान जनता की महानता इसी में है कि वह आखिरी पल तक भी इस बात का अनुमान नहीं देती कि वह क्या करने जा रही है। शायद गुप्त मतदान का पाठ सब से अच्छी तरह उसी ने पढ़ा है। सबक सीख कर सिखाना भी वह सीख चुकी है।
हे, पाठक!
जनता ने देखा कि, इस सरकार ने अपनी उपलब्धियाँ गिनाना शुरू कर दिया। वह कह रही थी, हम ने जनता को फील गुड कराया है अब हम देस को चमकाएँगे। देस की जनता को फील गु़ड पसंद नहीं आया। शायद वह फील गुड केवल नेता महसूसते थे। जनता ने सोचा, हमारा काहे का फील गुड? हम तो वही हैं जहाँ पहले थे, जीने की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। वह अपना पाँच साल का बेड फील बताती तो चमचे उसे चुप करा देते। बोलते यह फील गुड में समझती ही नहीं है। जनता ने वायरस पार्टी एण्ड कंपनी को फील गुड करा दिया बोली, तुम काहे का देस चमकाओगे हम तुमको ही चमकाए देत हैं।
हे, पाठक!
जब नतीजे आने लगे तो वायरस पार्टी के फील गुड ने अंतरिक्ष की राह पकड़ी और नतीजे आने के बाद अपनी हार स्वीकार कर ली। बैक्टीरिया पार्टी के लिए फिर से सत्ता के सुहाने सफर का मार्ग प्रशस्त हो चला था। चुनाव के पहले वह किसी से पक्का याराना नहीं बना सकी थी। लेकिन बाद में उस ने जुगत भिड़ा ली और यार कबाड़ लिए, यहाँ तक कि लाल वस्त्र धारिणी बहनों ने भी घर के बाहर से ही सही साथ देने का वायदा कर लिया। अन्दाज था कि लोग परदेसी मेम को ही मुखिया मान लेंगे। वायरसों ने हल्ला भी खूब मचाया। लेकिन परदेसी मेम शातिर निकली। उस ने खुद ही मुखिया बनने से इन्कार कर दिया और एक अर्थ विद्वान को मुखिया बना दिया। लाठी भी न टूटी, और साँप भी मर गया। स्कीम में बिना मरे, शहीद का दर्जा पाया सो अलग। महापंचायत फिर चल निकली। पूरे पाँच साल गुजारे। हालांकि लाल वस्त्र धारिणियों ने बीच में साथ छोड़ा तो वे काम आए जो बेचारे पहले बेइज्जत हुए थे।
हे, पाठक!
इस तरह अब तक खंडित भरतखंड के इस भारत वर्ष में आज तक जितनी महापंचायतें हुई हैं और उन के चुनाव की जो गाथा थी वह सार संक्षेप में आप को बताई। उन्हें विस्तार से बताया जाता तो हनुमान की पूँछ की तरह हो लेती। यह भी भय था कि पाठक मंडल प्रसन्न होने के स्थान पर नाराज हो कर हमें फील गुड कह देता। वैसे भी सूचना की दुनिया इतनी विस्तृत है कि जानने को बहुत कुछ है और समय बहुत कम। आजकल फिर महापंचायत का चुनाव चल रहा है। कल उस के लिए देस की चौथाई हिस्सा मतदान कर चुका है।
आज का वक्त यहीं खत्म, अगली बैठक में... कथा होगी मौजूदा महापंचायत चुनाव की
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
12 टिप्पणियां:
sundar prastuti . ab aglee mahapanchayat par aapse jaroor janna chahenge , andaz yehee rahe .
dwivedi bhai,
kamaal kee panchaayat lag rahee hai, mujhe to lagtaa hai iskaa seedhaa prasaaran apnee sansad mein ho to shaayand unhein kuchh akl
महापंचायत अब समापन की ओर ?
बहुत अच्छा ज्ञानवर्धन चल रहा है.
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
रामराम.
जो चमकाए देस उन को हम चमकाए देत : जनतन्तर कथा बहत ही बढ़िया चल रही है और पसंद भी आई . आभार.
हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
अगली कथा कल, अब स्पष्ट स्वर में जोर से बोलिए - हे कृष्ण , गोविन्द, हरे मुरारी ......
बढ़िया ! अब कुछ इस चुनाव् का प्रेडिक्शन भी हो जाय.
बहुत बढ़िया। अगली कड़ी कब? यही प्रतीक्षा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी . जब कथा का प्रसाद बाँटने का समय आ जाय तो बता दीजिएगा। हम तो तब्बे पहुँचते हैं। ई नेतन का कथा सुनकर अब मन खट्टा हो जाता है।
अंतिम कड़ी में इस कथा के श्रवण से होने वाले पुण्य-प्रताप की भी चर्चा कर दीजिये । साथ ही यह भी कि जो इस कथा को न सुनने अथवा बीच में ही छोड़ कर चले जाने के पाप का भागी बनेगा, उसे प्रारब्ध के कैसे-कैसे कष्टों का सामना करना होगा?
अतः मैं इस कथा को १५वीं पंचायतांतोपरांत पुनः श्रवण करने का संकल्प लेता हूँ ।
sundar, narayan narayan
जय हो! भारत चमक कर बुझ भी चुका। समय कितना बलवान है।
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