@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: जनतन्तर-कथा (7) : चौधरी चाचा की तमन्ना पूरी हो गई

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

जनतन्तर-कथा (7) : चौधरी चाचा की तमन्ना पूरी हो गई

हे, पाठक!
लट्ठों की नाव, पार लग ही गई।  सवारियाँ सतरंगी थीं।  झण्डा एक हो गया था।  ऊपर के वस्त्र भी बदल गए थे। पर अंतर्वस्त्र पुराने ही रहे, उन की तासीर भी वही रही।  सब से बुजुर्ग और अनुभवी गुजराती भाई को नेता चुना गया और सरकार चल निकली।  इस सरकार ने बड़े बड़े काम किए।  उत्तर के पड़ौसी से रिश्ते और पच्छिम के पड़ौसी से आपसी संबंध बनाए, तो आफत के वक्त हुए अत्याचारों की जाँच और गुनहगारों को सजा के लिए अधिकरण भी बनाए।   इस बीच बूढ़ा अगिया बैताल बीमार हो चला।  लोगों ने उस की शरम करना बंद कर दिया।  लोग कपड़े उतार-उतार अपने रंगबिरंगे अन्तर्वस्त्र दिखाने लगे।  चौधरी चाचा और राम बाबू, गुजराती भाई के काम काज पर गुर्राने लगे।  सबूतों के अभाव में चाचा की बेटी के खिलाफ मुकदमा चलाने के मंसूबे ख्वाब होने लगे।  कानूनदाओं के मुकाबले एक असहाय महिला के रूप में चाचा की बेटी के लिए जनता की सहानुभूति अँकुराने लगी।  गरीबी, अशिक्षा और आर्थिक तंगी के खिलाफ गुजराती भाई मजबूती से कुछ नहीं कर पाए।  जनता में असंतोष उमड़ने लगा।

हे, पाठक! 
इन सब से अलग लाल स्कर्ट वाली दो बहनें अलग ही खेल रही थीं।  बड़ी बहन आफत काल में चाचा की बेटी के साथ थी।  तो छोटी वाली बूढ़े अगिया बैताल के अगल-बगल चल रही थी,  आखिर उस ने भी चाचा की बेटी के कोड़े खाए थे।  चुनाव में चार परसेंट की हकदार वह भी हो गई थी। पर वह किसी तरफ न थी।  उस ने पूरब और दक्खिन में तीन बड़े खंड हथिया लिए।  एक तो ऐसा हथियाया कि सब ने बहुत हाथ पैर मारे पर आज तक छोड्या ही नहीं।




हे, पाठक!
ऐसे मौसम में चौधरी चाचा के हनुमान और मधु बाबू को रोज सुबह मुहँ अँधेरे वायरस पार्टी के नेताओं की निक्कर दिख जाती और वे बैचेन हो भड़क उठते।  रोज दिन में झगड़ा करते कि धोती और निक्कर साथ नहीं चलेगी।  आखिर ढाई साल गुजरते-गुजरते दोनों वायरस अपने जत्थे समेत अलग हो लिए।  उधर चौधरी चाचा ने भी अलग ढपली बजाने का ऐलान कर दिया।  गुजराती भाई ने स्तीफा दे चलते बने।  बेचारी लट्ठा सरकार असमय ही चल बसी। 

हे, पाठक !
एक उल्लेख पहले छोड़ आए थे, अब उस का समय आ गया है।  हुआ यूँ कि चाचा की बेटी पर जो संकट आया था उस में अदालत का फैसला भी तात्कालिक कारण था, जिस ने चाचा की बेटी को चुनाव में सरकारी अमले के इस्तेमाल का दोषी करार दिया था।  मुकदमा करने वाले थे, चौधरी चाचा के हनुमान।  उन्हों ने ही चाचा की बेटी की लंका में आग लगाई थी।  पर चाचा की बेटी रावण से भी बड़ी कूटनीतिक निकली।  उस ने इस हनुमान के राम को ही कंधा दे कर कुर्सी पर जा बिठाया।  चौधरी चाचा की तमन्ना पूरी हुई, जाट खुश हुए।  आखिर जाट परधानमन्तरी हुआ।  पर चाचा की बेटी ने कुर्सी पर बिठा कर कुर्सी खेंच ली।   हाय!   नौ माह भी पूरे न हुए, एक बार भी पंचायत न बैठी कि सरकार गिरने की नौबत आ गई।  लो फिर चुनाव आ गए।
आज फिर वक्त हो चला है, कथा आगे भी जारी रहेगी।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....

12 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

अथ श्री इतिहास / राजनीति कथा अध्याय No. 7 समाप्तम ..

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

बहुत सुन्दर आप चाहें तो इसे विकसित करके पूरा उपन्यास लिख सकते हैं, सलमान रश्दी के 'शेम' की तरह।

Arvind Mishra ने कहा…

इन्ही में कहीं है वो स्विस बैंक का धनी -वो चोर !
पता लगे तो बहियाँ दूं मरोर !
कुछ बताईये तो इस पर भी !

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

बहत अच्छी रोचक जानकारी .

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....

बहुत अच्छा अतिहासिक प्रवचन चल रहा है. कल फ़िर हरि कथा मे आते हैं.

रामराम.

Kapil ने कहा…

अच्‍छा लिख रहे हैं द्विवेदीजी, खूब बखिया उधेड़ रहे हैं हमारे ''जनतन्‍तर'' की। बधाई स्‍वीकार करें।

डॉ .अनुराग ने कहा…

क्या बात है ,आपके इस अंदाज के.....बहुत अच्छे .

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत बढ़िया चल रहा है। राजनारायण का उल्लेख हो गया जो बहुत जरूरी था!

Shiv ने कहा…

हे वाचक श्रेष्ठ आपके द्बारा भासी गयी कथा इतिहास का सनीमा दिखा गयी. बहुत अद्भुत वर्णन किया है आपने इतिहास का. जब भूतपूर्वों की जगह अभूतपूर्वों और अपूर्वों ने ले ली थी.

निक्कर को धोती के भीत्तर ही दबा कर रखना था न.

दर्पण साह ने कहा…

phir narad bole: Aage kya hue prabhu wo kahein......
.....
intzaar hei!

बेनामी ने कहा…

लट्ठों की नाव, अंतर्वस्त्र की तासीर, लाल स्कर्ट वाली बहनें, हनुमान के राम को कंधा!

वाह!!

समयचक्र ने कहा…

हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....