@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: जनता के लिए क्या है, आप के पास? : जनतन्तर कथा (19)

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

जनता के लिए क्या है, आप के पास? : जनतन्तर कथा (19)

हे, पाठक!
भारत वर्ष की महापंचायत के एक प्रतीक्षारत मुखिया के साक्षात्कार का अवसर मिल जाने से सूत जी अति-प्रसन्न थे।   दो दिन रिक्त रहने की सारी उदासी अन्तर्ध्यान हो गई।  वे तुरंत तैयारियों में जुट गए।  अपने यंत्रों की सार संभाल की कि साक्षात्कार कैसे अच्छा से अच्छा  अंकित किया जा सकता है।  वैमानिक कोलाहल में भी इस की जाँच करना चाहते थे। इस के लिए एक ऐसे कमरे की आवश्यकता थी जिस में आवाज करने वाला यंत्र हो।  इस भवन में ध्वनिरहित वातानुकूलक बहुत थे,  पर कोलाहल कहीं नहीं,,  वे बहुत चिंतित हुए।  अचानक उन्हें स्मरण आया कि वे अपने जंघशीर्ष पर जाल के माध्यम से विमान ध्वनि  पैदा कर सकते हैं। उन्हों ने विमान ध्वनि उत्पन्न कर अपने यंत्र जाँच लिए।  संध्याकाल में सूचना आई कि प्रातः पाँच बजे ही उन्हें उस वाहन में बैठना है जो प्रेस को ले कर विमान पत्तन के लिए जाएगी।

हे, पाठक!
अगले दिन सूत जी को ले कर वाहन निकला तो पूरे नगर में न जाने कहाँ कहाँ चक्कर लगाता हुआ विमानपत्तन पहुँचा।  इस बीच वाहन में अनेक लोग स्थान-स्थान से सवार हुए।  पत्तन पर वहाँ विशेष विमान तैयार था, सब को विमान पर चढ़ा दिया गया।  सब से अंत में सात बजे जो अंतिम व्यक्ति विमान पर चढ़ा, वह प्रतीक्षारत मुखिया था।  उसने सब पर दृष्टिपात किया और अपने निर्धारित आसन पर जा बैठा।  फिर अपने सहायक से सूत जी की ओर इशारा कर उन के बारे में जाना।  विमान चल पड़ा।  जैसे ही विमान व्योम में पहुंचा और कमरबंद खोले गए,  सहायक सूत जी के पास आया और प्रतीक्षारत मुखिया जी के पास वाले आसन पर जा कर अपना काम निपटा लेने को कहा, इस चेतावनी के साथ कि आप के पास मुश्किल से आधा घंटा है, इतने में काम पूरा कर लेना होगा।  सूत जी तुरंत  प्र. मुखिया जी के पास वाले आसन पर पहुँचे, अपना परिचय देने लगे, तो प्र. मुखिया जी खुद ही बोल पड़े - महाराज, आप को कौन नहीं जानता? आप की कथाएँ पढ़-पढ़ कर ही तो हम यहाँ तक पहुँचे हैं।  आप की कथाएँ नहीं होतीं तो हम न जाने कहाँ होते?  आप श्रीगणेश कीजिए।  सूत जी आरंभ हुए।

हे, पाठक!
सूत जी ने पूछा- इस बार तो इस महापंचायत चुनाव में आप का दल अकेला हैं जो कह रहा हैं कि आप निर्विवादित रूप से दल की ओर से मुखिया के प्रत्याशी हैं, क्या आप के दल इस बारे में कोई विवाद नहीं है?
प्र. मुखिया जी बोले- वायरस दल में मुखिया के लिए कभी विवाद  के जन्म की कोई संभावना ही उत्पन्न नहीं होने दी जाती है।  हम वरिष्ठता से चलते हैं। जो हम से वरिष्ठ हैं, उन के टायर घिस गए थे।  चाल बाधित हो गई थी, दल ने टायर भी बदलवाए, वे चले भी, लेकिन समय के साथ नहीं चल सकते थे, इस लिए दल ने उन्हें अवकाश दे दिया।  तत्पश्चात मेरा ही क्रम था, विवाद कैसे जन्म लेता।
सूत जी- क्या यह सही नहीं कि दल के युवाओं ने गुर्जर खंड के नेता के पक्ष में ध्वनियाँ की हैं?
प्र.मुखिया-  सही है, किन्तु केवल यह कहा जाता है कि वे मुखिया के योग्य हैं।  ध्वनि तीव्र होती उस से पहले ही दल ने मुझे आगे कर दिया।  प्रचार आरंभ हो गया।  अब ध्वनियाँ होती रहें, उन के परिपक्व  होने की संभावना समाप्त हो गई।
सूत जी- क्या यह नहीं कहा जाना चाहिए कि एक जन्म लेने की संभावना को गर्भ में ही समाप्त कर दिया गया जो अमानवीय था?
प्र. मुखिया-  नहीं, संभावना कोई जीव नहीं होती।  उसे कहीं भी समाप्त किया जा सकता है।
सूत जी- क्या आप के दल को बहुमत प्राप्त होने की संभावना है?
प्र.मुखिया- हमने ऐसा कभी नहीं कहा, हम ने कहा हमारा दल महापंचायत का सब से बड़ा दल होगा।  हम बहुमत जुटाएंगे।
सूत जी- यह तेरह दिवस, मास का खेल तो पहले भी असफल हो चुका है?
प्र. मुखिया- नहीं, अब नहीं होने देंगे।  कुछ दल हमारे साथ हैं, शेष हम जुटा लेंगे।
सूत जी- उन में से किसी ने आप के मुखिया होने पर आपत्ति हुई तो?
प्र. मुखिया- नहीं होगी, यही तो एक कारण है कि दल मुझे पहले ही मैदान में ले आया।  वरना जवानों की ध्वनियाँ गुर्जरखंड नेता के लिए तीव्र हो जातीं तो दल को साथ मिलना कठिन हो जाता।
सूत जी- पन्द्रहवीं महापंचायत के लिए आप के दल का मुख्य नारा क्या है?
प्र. मुखिया- यही कि हमारे पास मुखिया के लायक नेता है,  किसी और के पास नहीं।
सूत जी- यह तो आप के दल के लिए हुआ, जनता के लिए क्या है?
प्र. मुखिया- जनता के लिए किस के पास क्या है? किसी के पास कुछ नहीं, हम से ही क्यों अपेक्षा की जाती है। फिर जनता के लिए बहुत कुछ है।  दल ने घोषणा की है। राम मंदिर बनाएंगे,  समान नागरिक संहिता बनाएंगे, भारतवर्ष को आतंकवाद हीन कर देंगे, गरीबों को सस्ता चावल देंगे, बहुत कुछ है .... आप ने हमारा घोषणा-पत्र नहीं पढ़ा?
प्र. मुखिया- राम मंदिर और समान नागरिक संहिता तो आप आप के दल के बहुमत की स्थिति में बनाएँगे जिस के लिए आप खुद स्वीकार करते हैं कि वह नहीं आ रहा है। आतंकवाद के लिए विपक्षी आप को आतंकवादियों को कैकय छोड़ देने का स्मरण करवा चुके हैं। सस्ता चावल गरीबों को तब मिलेगा जब रोजगार मिलेगा। उस के लिए कुछ है आप के घोषणा पत्र में .....

सूत जी का प्रश्न पूरा होता उस से पहले ही विमान में घोषणा हुई कि यात्री अपने-अपने कमरबंद कस लें विमान उतरने वाला है।  सूत जी को अपने आसन पर आना पड़ा।  साक्षात्कार अधूरा ही रह गया।  दिन भर में विमान अनेक स्थानों पर गया।  प्र. मुखिया जी ने सब स्थानों पर भाषण किया। सूत जी को उन के प्रश्नों के उत्तर न मिले।  पर मुखिया जी जब भाषण दे कर वापस आने लगते तो विपक्षी का चुनाव चिन्ह जरूर दिखाते। सायंकाल जब विमान पत्तन पर उतरा तो यान की ठंडक और बाहर की गर्मी में आते जाते सूत जी तापघात के शिकार हो लिए।  सूत जी पत्तन से बाहर आए तो सहायक सूत जी को एक कागजी थैला दे कर बोला- इस में प्र. मुखिया जी के छाया चित्र  हैं इन्हें साक्षात्कार के साथ जरूर छापिएगा।  तीन दिनों से कोई पत्र उन के चित्र नहीं छाप रहा है और इस वाहन में बैठिएगा यह आप को आप के आवास पर छोड़ देगा।  सूत जी पहले ही अपना आवास छोड़ चुके थे।  वहीं वापस पहुंचे तो वहाँ कोई स्थान खाली न था। सूत जी ने पुराना ग्राहक होने की दुहाई दी तो उन्हें बताया गया कि अर्धरात्रि को एक स्थान रिक्त होगा तब वे वहाँ जा सकते हैं। तब तक वे प्रतीक्षागृह में प्रतीक्षा करें।  वे प्रतीक्षागृह आए जहाँ और भी लोग थे।  उन्हों ने कागजी थैला खोला तो उस में चित्रों के साथ एक विज्ञापन था और साथ में शुल्क का एक चैक भी।  तापघात से पीड़ित सूत जी दो दिनों तक अपने कक्ष में ही रहे।  साक्षात्कार तीसरे दिन छपा।

बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....

7 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

सूतक सूतक सूतिया

हम तो यही गुनगुनायेंगे

किसको जितायेंगे

यह न हम बतलायेंगे

न कोई बतलाता है

पर गुण सामने वाले

के ही गाता है।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत लाजवाब कथा चल रही है.

बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी ...

रामराम.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

उन्हों ने कागजी थैला खोला तो उस में चित्रों के साथ एक विज्ञापन था और साथ में शुल्क का एक चैक भी। -----------
यह तो सर्वमान्य तकनीक है और प्रत्येक सूत को इसी की अपेक्षा होती है। :)

Abhishek Ojha ने कहा…

सूतजी का साक्षात्कार बढ़िया रहा... भागवत के लहजे में: सूतजी कहते हैं: 'हे ऋषियों इस तरह यह कथा समापन की ओर बढ़ रही थी पर हमने बैक्टीरिया पार्टी के एक सदस्य का भी साक्षात्कार लिया था वो कल सुनाता हूँ ! तब तक के लिए 'बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....' कल हम आते हैं आगे की कथा के लिए.

Arvind Mishra ने कहा…

अनूठा साक्षात्कार और थैला भी !

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

बहुत सही!:)

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

कथा रोचकता बनाये है गुरु जी .