यूँ तो हाड़ौती (राजस्थान का कोटा संभाग) में होली की विदाई न्हाण हो चुकने के उपरांत होती है। न्हाण इस क्षेत्र में होली के बारहवें दिन मनाया जाता है। हमारे बचपन में हम देखते थे कि होली के दिन रंग तो खेला जाता था लेकिन केवल सिर्फ गुलाल से। लेकिन गीले रंग या पानी का उपयोग बिलकुल नहीं होता था। लेकिन बारहवें दिन जब न्हाण खेला जाता था तो उस में गीले रंगों और रंगीन पानी का भरपूर उपयोग होता था। सब लोग अपनी अपनी जाति के पंचायत स्थल पर सुबह जुटते थे और फिर टोली बना कर नगर भ्रमण करते हुए जाति के प्रत्येक घर जाते थे। शाम को जाति की पंचायत होती थी जिस में पुरुष एकत्र होते थे। जिस में वर्ष भर के आय-व्यय का ब्यौरा रखा जाता था। पूरे वर्ष में पंचायत ने क्या-क्या काम किए उन पर चर्चा होती थी। अगले वर्ष में क्या-क्या किया जाना अपेक्षित है, इस पर चर्चा होती थी और निर्णय लिए जाते थे और अगले वर्ष के लिए पंच और मुखिया चुन लिए जाते थे।
पंचायत में भाग लेने वालों को देशी घी के बूंदी के लड़्डू वितरित किए जाते थे जो कम से कम ढाई सौ ग्राम का एक हुआ करता था।पंचायतें अब भी जुटती हैं। लेकिन न्हाण लगभग समाप्त प्राय हो चला है। केवल ग्रामीण इलाकों में ही शेष रह गया है। कोटा जिले के एक कस्बे सांगोद में न्हाण को एक विशेष सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाया जाता है जो होली से ले कर न्हाण तक चलता रहता है। उस के बारे में फिर कभी।
मेरे यहाँ होली का आरंभ हुआ था बेटी और बेटे के आने से। कल दोनों चले गए। हम उन्हें छोड़ने स्टेशन गए। दोनों की ट्रेन में कोई घंटे भर का अंतर था। पहले बेटे को ट्रेन मिली और घंटे भर बाद बेटी को। बेटी सुबह अपने गंतव्य पर पहुँच गई। बेटा अभी सफर में है उस का सफऱ करीब छत्तीस घंटों का है। वह आज दोपहर बाद ही बंगलूरू पहुँच सकेगा। स्टेशन पर जाते समय उन के चित्र लिए जो यहाँ मौजूद हैं। आज घर एकदम सूना सा लगा। होली पर सब के साथ रहने से फेल गए घऱ को पुनः समेटने में आज पत्नी ने पूरा दिन लगा दिया। मेरे घऱ होली समाप्त हो गई है और घऱ सिमट गया है।