हे, पाठक!
यात्रा की थकान से निद्रा देर से खुली,वातायन पर लटक रहे पर्दे के पीछे से बाहर की रोशनी अंदर झांक रही थी। द्वार के नीचे से कुछ अखबार अंदर प्रवेश कर गए थे। सूत जी उठे, स्नानघर में घुस लिए। स्नान हुआ, ध्यान हुआ, फिर सुबह के कलेवे का आदेश दे अखबार बाँचने बैठे। मुखपृष्टों पर सब जगह इस चुनाव के नायक नायिका जूते-चप्पल छाए थे। एक ही नगर में वर्तमान और प्रतीक्षारत प्र.मुखियाओं के सामने निकल आए थे वर्तमान ने चलाने वाले को माफ कर दिया और प्रतीक्षारत ने क्या किया? पता नहीं चला। चुनाव का अवसर है, संसद बंद है। सारी गतिविधियाँ सड़कों और मैदानों में हो रही हैं तो संसद का ये स्थाई निवासी रौनक देखने वहाँ चले आए तो चलाने वाले का क्या दोष? उन्हें माफ किया ही जाना चाहिए। कल से वापस संसद में चलेंगे तब भी तो माफ करना पड़ेगा न?
हे, पाठक!
अखबारों से ही नगर की दिन भर की गतिविधियों की खबर मिली। नगर में साइकिल सवारी का महत्वाकांक्षी न्यायालय से स्वीकृति न मिलने पर साइकिल दुकान पर मिस्त्री गिरी कर रहा था और बहन जी की पप्पी-झप्पी लेने का महत्वाकांक्षी हो चला था। नगर के आस पास ही चक्कर लगा रहा था। वायरस दल की ओर से तीन बार महापंचायत के मुखिया रहे इस बार नगर से चुनाव न लड़ने से नगर में हलचल नहीं थी। पप्पी-झप्पी वाले को अदालत ने रोक दिया था। दो-दो कलाकारों के बाहर हो जाने से दर्शकों को चित्रपट में रुचि नहीं रह गई थी और केवल पोस्टर देख-देख लौट रहे थे। वायरस दल का स्थानापन्न अभिनेता मुखिया जी से चिट्ठी लिखा कर लाया था। अब आज कल चिट्ठी सिफारिश पर कौन चित्रपट देखता है? बैक्टीरिया दल नगरों के स्थान पर ग्रामों में सेंध लगाने में व्यस्त था। रात में भी चल सके इस लिए साइकिल पर लालटेन टांग ली गई थी फिर भी रास्ता नहीं सूझ रहा था। बहन अकेले पिली पड़ी थी, उसे अपनी अभियांत्रिकी पर भरोसा था, कहती थी खंड पंचायत की मुखिया बन सकती हूँ तो महापंचायत की क्यों नहीं? नगर में उस की सभा शाम को थी। कलेवा कर सूत जी नगर का भ्रमण पर निकल पड़े।
हे, पाठक!
नगर में पैदलों और दुपहिया वालों की मुसीबत हो गई थी। रात से ही चौपायों की संख्या यकायक बढ़ गई थी और वे इधर-उधर आ-जा रहे थे। बढ़े हुओं में तिहाई तो पुलिस के थे जो नगर में व्यवस्था बनाने में लगे थे, विशेष रूप से उस मैदान के आसपास जहाँ बहन जी शाम को भाषण पढ़ने वाली थीं। चोरी-चकारी, लूट-डकैती, तस्करी वगैरा की गुंजाइश पूरे खंड में न्यूनतम रह गई थी। इन के प्रायोजक किसी न किसी दल के प्रचार में लगे थे। पुलिस निश्चिंत हो कर बहन जी की सेवा में लगी थी। इस में वे भी थे जिन्हें बहन जी ने हटा दिया था और अदालत ने फिर से बिठा दिया था। बढ़े हुए शेष दो तिहाई चौपाए सार्वजनिक परिवहन में लगे निजि वाहन थे जो श्रोताओं और दर्शकों को गाँवों से ला रहे थे। परिवहन विभाग का निरीक्षक वाहनों के नंबर नोट कर रहा था जिन के परमिट पक्के करने थे। सूत जी मैदान के नजदीक पहुँचे वहाँ अभी भी तैयारियाँ चल रही थीं। ग्रामीण लोग सजावट देख देख उस और जा रहे थे, जहाँ सरकारी अभियंताओं की निगरानी में ठेकेदारों ने भोजन-पानी की भोजन-पानी की पर्याप्त से अधिक व्यवस्था कर रखी थी। सब देख कर सूत जी वापस लौट पड़े।
हे, पाठक!
सूत जी ने दोपहर का भोजन कर तनिक विश्राम किया और ठीक समय से मैदान पहुंच गए मैदान में बना पांडाल तमाम कोशिशों के भी भर नहीं पा रहा था। कुछ दूर अभी भी वाहन आए जा रहे थे, पर उन में से उतरे लोग कुछ ही लोग पांडाल की ओर आ रहे थे, कुछ कहीं और जा रहे थे। बहन जी के आने का समय हो चला था। पांडाल भर नहीं पा रहा था, कोशिशें जारी थीं। एक घड़ी गुजरी, दूसरी गुजर गई। बहन जी पूरे पांच घड़ी देरी से आई। पांडाल फिर भी खाली था। मंचासीन होते ही उन्हों ने पांडाल पर दृष्टिपात किया। चौपायों के मालिकों के अंदर एक शीत लहर विद्युत धारा की तरह दौड़ गई। उन्हें वर्तमान परमिट कैंसल होते प्रतीत हो रहे थे। माल्यार्पण और स्तुति गान के बाद बहन जी माइक पर आ गईं।
हे, पाठक!
बहन जी आते ही आयोग पर बरस पडीं। वह उन्हें महापंचायत का मुखिया नहीं बनने देना चाहता इस लिए बैक्टीरिया दल के इशारे पर बहुत रोड़े अटका रहा है। आज की इस सभा में बहुत लोग उन के इशारे पर आने से रोक दिए गए। फिर आया पप्पी-झप्पी के महत्वाकांक्षी को आड़े हाथों लिया। हम इस तरह के लोगों को सीधे अंदर कर देते हैं। या तो सीधे सीधे हमारे तम्बू में आ जाओ या फिर हम बड़े घर पहुँचा देंगे, मुकदमे हम ने दर्ज करवा दिए हैं। फिर सब पर एक साथ बरस पड़ीं, बहुजन एक हो रहा है तो लोगों की आँख की किरकिरी हो गया है। ये साइकिल, हाथ, फूल वाले और भी सब लोग बहुजन को बिखेरने में लगे हैं। पर उन को पता नहीं है कि इस बार मेरा ही नंबर है और कोई है ही नहीं जिस पर चुनाव के बाद सहमति बने। इस के बाद कागज समाप्त हो गया। लोगों ने बीच बीच में बहुत तालियाँ बजाईं। बहन जी पढ़ने के बाद वापस सिंहासन पर नहीं बैठी मंच से उतर कर सीधे अपने वाहन में बैठीं और चल दीं। इस के साथ ही सब लोग दौड़ पड़े। सूत जी भी तेजी से वापस लौटे। थोड़ी देर में रास्ते में जाम लगने वाला था।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
सोमवार, 27 अप्रैल 2009
माया नगरी में सूत जी महाराज : जनतन्तर कथा (20)
हे, पाठक!
सूत जी को पहली बार तापघात हुआ था इसलिए उन्हें कष्ट भी बहुत हुआ। विचार किया तो संज्ञान हुआ कि यह दो दिन वातानुकूलन का सुख-भोगने का परिणाम था। सूत जी ने प्रण कर लिया कि वे कभी इस तरह वातानुकूलन का सुख नहीं लेंगे। ऐसा सुख किस काम का जो बाद में जीवन ही संकट में डाल दे। इस के साथ ही उन्हों ने चुनाव के इस काल में किसी नेता का साक्षात्कार करने की इच्छा भी त्याग दी। अपने पत्र के लिए गतिविधियों के आधार पर ही समाचार भेजने का निर्णय किया। वायरस दल की गतिविधियाँ तो वे देख ही चुके थे। इस के बाद अन्य दलों की गतिविधियों का जायजा लेने का क्रम था। सूत जी ने एक वाहन भाड़े पर लिया और निकल पड़े दिल्ली के राजनैतिक गलियारों की ओर। जहाँ बारहों मास देस भर के नेताओं और जनता की रहती है, उन सब गलियारों में सन्नाटा पसरा मिला। सब स्थानों से नेता अन्तर्ध्यान थे तो जनता कहाँ होती। पता लगा सब अपनी अपनी जनता के शक्ति प्राप्त करने गए हैं। अब राजधानी में रुकना व्यर्थ था।
हे, पाठक!
उसी रात सूत जी उत्तर प्रांत में प्रवेश कर गए। यह देश का सब से बड़ा प्रांत था। सब से अधिक खेत भी यहीं थे। यहाँ नाना प्रकार के दल चुनाव मैदान में थे। कोई हाथी पर सवार था तो कोई साइकिल पर था। वायरस और बैक्टीरिया दल भी यहाँ भिड़े हुए थे। एक जमाना था जब प्रधानमंत्री इसी प्रांत का हुआ करता था। आज यहायहा जिधर देखो हाथी का बोल बाला था। इस प्रांत में जनता की बहुसंख्या दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की थी जो कभी भी सत्ता का समीकरण बदल सकते थे। बैक्टीरिया दल को यहाँ से बहुमत हासिल होता था। उस ने इन संबंधों में हेरफेर को उचित न समझा। जैसे कोई भी बनिया कभी भी चलती दुकान में ग्राहकों को नयी सुविधाएं नहीं देता। जब तक कि कोई प्रतियोगी मैदान में न आ जाए। वायरस दल मैदान में आया भी तो उस ने बहुमत के धर्म को अपना आधार बनाया। उस का लाभ उठा कर खंड पंचायत पर कब्जा भी किया। पर उस में जिस कमजोरी का लाभ उठा कर सत्ताधीश धर्म परिवर्तन करा कर राज करते रहे वही भेदभाव उस की भी कमजोरी बन गया।
हे, पाठक।
इस प्रांत में अल्पसंख्यक कम नहीं थे उन के एक मुश्त मत किसी को भी राजा या रंक बना सकते थे। उन की भलाई का ढोंग करते हुए बैक्टीरिया दल पहले विजयी होता रहा। लेकिन यह तिलिस्म कभी तो टूटना था। आखिर उस की यह मतजागीरदारी टूट गई, जब साइकिल वालों ने उस में सेंध लगाई। उन्हीं दिनों एक नया दल बहुसंख्या दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की एकता के नाम पर पनप रहा था। कुछ बचा खुचा था वे छीन ले गए। एक बार तो इस नए दल की नेत्री ने वायरस दल के कंधे पर चढ़ कर सांझे का झांसा दे कर सत्ता की सवारी भी की। जब सवारी ढोने का अवसर आया तो साफ मुकर गई। धीरे धीरे उस ने सब को पीछे छोड़ दिया और अब प्रदेश में हाथी की सवारी कर रही थी।
हे, पाठक!
अर्ध रात्रि को सूत जी महाराज जिस माया नगर में पहुँचे वहाँ एक विशाल मैदान में जोर शोर से मंच बनाने की तैयारियाँ चल रही थीं। बहुत से वाहन आ जा रहे थे। नीली पताकाएँ सजाई जा रही थीं। पता लगा कि प्रान्त की मुख्यमंत्री कल यहाँ अपने दल के प्रत्याशी के समर्थन में सभा को संबोधित करने वाली हैं। सूत जी ने इस माया के कभी दर्शन नहीं किए थे। उन्हों ने इसी नगर में एक ठीक-ठाक सा सितारा विश्रामालय देखा और वहीं रात्रि विश्राम के लिए रुक गए।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
सूत जी को पहली बार तापघात हुआ था इसलिए उन्हें कष्ट भी बहुत हुआ। विचार किया तो संज्ञान हुआ कि यह दो दिन वातानुकूलन का सुख-भोगने का परिणाम था। सूत जी ने प्रण कर लिया कि वे कभी इस तरह वातानुकूलन का सुख नहीं लेंगे। ऐसा सुख किस काम का जो बाद में जीवन ही संकट में डाल दे। इस के साथ ही उन्हों ने चुनाव के इस काल में किसी नेता का साक्षात्कार करने की इच्छा भी त्याग दी। अपने पत्र के लिए गतिविधियों के आधार पर ही समाचार भेजने का निर्णय किया। वायरस दल की गतिविधियाँ तो वे देख ही चुके थे। इस के बाद अन्य दलों की गतिविधियों का जायजा लेने का क्रम था। सूत जी ने एक वाहन भाड़े पर लिया और निकल पड़े दिल्ली के राजनैतिक गलियारों की ओर। जहाँ बारहों मास देस भर के नेताओं और जनता की रहती है, उन सब गलियारों में सन्नाटा पसरा मिला। सब स्थानों से नेता अन्तर्ध्यान थे तो जनता कहाँ होती। पता लगा सब अपनी अपनी जनता के शक्ति प्राप्त करने गए हैं। अब राजधानी में रुकना व्यर्थ था।
हे, पाठक!
उसी रात सूत जी उत्तर प्रांत में प्रवेश कर गए। यह देश का सब से बड़ा प्रांत था। सब से अधिक खेत भी यहीं थे। यहाँ नाना प्रकार के दल चुनाव मैदान में थे। कोई हाथी पर सवार था तो कोई साइकिल पर था। वायरस और बैक्टीरिया दल भी यहाँ भिड़े हुए थे। एक जमाना था जब प्रधानमंत्री इसी प्रांत का हुआ करता था। आज यहायहा जिधर देखो हाथी का बोल बाला था। इस प्रांत में जनता की बहुसंख्या दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की थी जो कभी भी सत्ता का समीकरण बदल सकते थे। बैक्टीरिया दल को यहाँ से बहुमत हासिल होता था। उस ने इन संबंधों में हेरफेर को उचित न समझा। जैसे कोई भी बनिया कभी भी चलती दुकान में ग्राहकों को नयी सुविधाएं नहीं देता। जब तक कि कोई प्रतियोगी मैदान में न आ जाए। वायरस दल मैदान में आया भी तो उस ने बहुमत के धर्म को अपना आधार बनाया। उस का लाभ उठा कर खंड पंचायत पर कब्जा भी किया। पर उस में जिस कमजोरी का लाभ उठा कर सत्ताधीश धर्म परिवर्तन करा कर राज करते रहे वही भेदभाव उस की भी कमजोरी बन गया।
हे, पाठक।
इस प्रांत में अल्पसंख्यक कम नहीं थे उन के एक मुश्त मत किसी को भी राजा या रंक बना सकते थे। उन की भलाई का ढोंग करते हुए बैक्टीरिया दल पहले विजयी होता रहा। लेकिन यह तिलिस्म कभी तो टूटना था। आखिर उस की यह मतजागीरदारी टूट गई, जब साइकिल वालों ने उस में सेंध लगाई। उन्हीं दिनों एक नया दल बहुसंख्या दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की एकता के नाम पर पनप रहा था। कुछ बचा खुचा था वे छीन ले गए। एक बार तो इस नए दल की नेत्री ने वायरस दल के कंधे पर चढ़ कर सांझे का झांसा दे कर सत्ता की सवारी भी की। जब सवारी ढोने का अवसर आया तो साफ मुकर गई। धीरे धीरे उस ने सब को पीछे छोड़ दिया और अब प्रदेश में हाथी की सवारी कर रही थी।
हे, पाठक!
अर्ध रात्रि को सूत जी महाराज जिस माया नगर में पहुँचे वहाँ एक विशाल मैदान में जोर शोर से मंच बनाने की तैयारियाँ चल रही थीं। बहुत से वाहन आ जा रहे थे। नीली पताकाएँ सजाई जा रही थीं। पता लगा कि प्रान्त की मुख्यमंत्री कल यहाँ अपने दल के प्रत्याशी के समर्थन में सभा को संबोधित करने वाली हैं। सूत जी ने इस माया के कभी दर्शन नहीं किए थे। उन्हों ने इसी नगर में एक ठीक-ठाक सा सितारा विश्रामालय देखा और वहीं रात्रि विश्राम के लिए रुक गए।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
शनिवार, 25 अप्रैल 2009
जनता के लिए क्या है, आप के पास? : जनतन्तर कथा (19)
हे, पाठक!
भारत वर्ष की महापंचायत के एक प्रतीक्षारत मुखिया के साक्षात्कार का अवसर मिल जाने से सूत जी अति-प्रसन्न थे। दो दिन रिक्त रहने की सारी उदासी अन्तर्ध्यान हो गई। वे तुरंत तैयारियों में जुट गए। अपने यंत्रों की सार संभाल की कि साक्षात्कार कैसे अच्छा से अच्छा अंकित किया जा सकता है। वैमानिक कोलाहल में भी इस की जाँच करना चाहते थे। इस के लिए एक ऐसे कमरे की आवश्यकता थी जिस में आवाज करने वाला यंत्र हो। इस भवन में ध्वनिरहित वातानुकूलक बहुत थे, पर कोलाहल कहीं नहीं,, वे बहुत चिंतित हुए। अचानक उन्हें स्मरण आया कि वे अपने जंघशीर्ष पर जाल के माध्यम से विमान ध्वनि पैदा कर सकते हैं। उन्हों ने विमान ध्वनि उत्पन्न कर अपने यंत्र जाँच लिए। संध्याकाल में सूचना आई कि प्रातः पाँच बजे ही उन्हें उस वाहन में बैठना है जो प्रेस को ले कर विमान पत्तन के लिए जाएगी।
हे, पाठक!
अगले दिन सूत जी को ले कर वाहन निकला तो पूरे नगर में न जाने कहाँ कहाँ चक्कर लगाता हुआ विमानपत्तन पहुँचा। इस बीच वाहन में अनेक लोग स्थान-स्थान से सवार हुए। पत्तन पर वहाँ विशेष विमान तैयार था, सब को विमान पर चढ़ा दिया गया। सब से अंत में सात बजे जो अंतिम व्यक्ति विमान पर चढ़ा, वह प्रतीक्षारत मुखिया था। उसने सब पर दृष्टिपात किया और अपने निर्धारित आसन पर जा बैठा। फिर अपने सहायक से सूत जी की ओर इशारा कर उन के बारे में जाना। विमान चल पड़ा। जैसे ही विमान व्योम में पहुंचा और कमरबंद खोले गए, सहायक सूत जी के पास आया और प्रतीक्षारत मुखिया जी के पास वाले आसन पर जा कर अपना काम निपटा लेने को कहा, इस चेतावनी के साथ कि आप के पास मुश्किल से आधा घंटा है, इतने में काम पूरा कर लेना होगा। सूत जी तुरंत प्र. मुखिया जी के पास वाले आसन पर पहुँचे, अपना परिचय देने लगे, तो प्र. मुखिया जी खुद ही बोल पड़े - महाराज, आप को कौन नहीं जानता? आप की कथाएँ पढ़-पढ़ कर ही तो हम यहाँ तक पहुँचे हैं। आप की कथाएँ नहीं होतीं तो हम न जाने कहाँ होते? आप श्रीगणेश कीजिए। सूत जी आरंभ हुए।
हे, पाठक!
सूत जी ने पूछा- इस बार तो इस महापंचायत चुनाव में आप का दल अकेला हैं जो कह रहा हैं कि आप निर्विवादित रूप से दल की ओर से मुखिया के प्रत्याशी हैं, क्या आप के दल इस बारे में कोई विवाद नहीं है?
प्र. मुखिया जी बोले- वायरस दल में मुखिया के लिए कभी विवाद के जन्म की कोई संभावना ही उत्पन्न नहीं होने दी जाती है। हम वरिष्ठता से चलते हैं। जो हम से वरिष्ठ हैं, उन के टायर घिस गए थे। चाल बाधित हो गई थी, दल ने टायर भी बदलवाए, वे चले भी, लेकिन समय के साथ नहीं चल सकते थे, इस लिए दल ने उन्हें अवकाश दे दिया। तत्पश्चात मेरा ही क्रम था, विवाद कैसे जन्म लेता।
सूत जी- क्या यह सही नहीं कि दल के युवाओं ने गुर्जर खंड के नेता के पक्ष में ध्वनियाँ की हैं?
प्र.मुखिया- सही है, किन्तु केवल यह कहा जाता है कि वे मुखिया के योग्य हैं। ध्वनि तीव्र होती उस से पहले ही दल ने मुझे आगे कर दिया। प्रचार आरंभ हो गया। अब ध्वनियाँ होती रहें, उन के परिपक्व होने की संभावना समाप्त हो गई।
सूत जी- क्या यह नहीं कहा जाना चाहिए कि एक जन्म लेने की संभावना को गर्भ में ही समाप्त कर दिया गया जो अमानवीय था?
प्र. मुखिया- नहीं, संभावना कोई जीव नहीं होती। उसे कहीं भी समाप्त किया जा सकता है।
सूत जी- क्या आप के दल को बहुमत प्राप्त होने की संभावना है?
प्र.मुखिया- हमने ऐसा कभी नहीं कहा, हम ने कहा हमारा दल महापंचायत का सब से बड़ा दल होगा। हम बहुमत जुटाएंगे।
सूत जी- यह तेरह दिवस, मास का खेल तो पहले भी असफल हो चुका है?
प्र. मुखिया- नहीं, अब नहीं होने देंगे। कुछ दल हमारे साथ हैं, शेष हम जुटा लेंगे।
सूत जी- उन में से किसी ने आप के मुखिया होने पर आपत्ति हुई तो?
प्र. मुखिया- नहीं होगी, यही तो एक कारण है कि दल मुझे पहले ही मैदान में ले आया। वरना जवानों की ध्वनियाँ गुर्जरखंड नेता के लिए तीव्र हो जातीं तो दल को साथ मिलना कठिन हो जाता।
सूत जी- पन्द्रहवीं महापंचायत के लिए आप के दल का मुख्य नारा क्या है?
प्र. मुखिया- यही कि हमारे पास मुखिया के लायक नेता है, किसी और के पास नहीं।
सूत जी- यह तो आप के दल के लिए हुआ, जनता के लिए क्या है?
प्र. मुखिया- जनता के लिए किस के पास क्या है? किसी के पास कुछ नहीं, हम से ही क्यों अपेक्षा की जाती है। फिर जनता के लिए बहुत कुछ है। दल ने घोषणा की है। राम मंदिर बनाएंगे, समान नागरिक संहिता बनाएंगे, भारतवर्ष को आतंकवाद हीन कर देंगे, गरीबों को सस्ता चावल देंगे, बहुत कुछ है .... आप ने हमारा घोषणा-पत्र नहीं पढ़ा?
प्र. मुखिया- राम मंदिर और समान नागरिक संहिता तो आप आप के दल के बहुमत की स्थिति में बनाएँगे जिस के लिए आप खुद स्वीकार करते हैं कि वह नहीं आ रहा है। आतंकवाद के लिए विपक्षी आप को आतंकवादियों को कैकय छोड़ देने का स्मरण करवा चुके हैं। सस्ता चावल गरीबों को तब मिलेगा जब रोजगार मिलेगा। उस के लिए कुछ है आप के घोषणा पत्र में .....
सूत जी का प्रश्न पूरा होता उस से पहले ही विमान में घोषणा हुई कि यात्री अपने-अपने कमरबंद कस लें विमान उतरने वाला है। सूत जी को अपने आसन पर आना पड़ा। साक्षात्कार अधूरा ही रह गया। दिन भर में विमान अनेक स्थानों पर गया। प्र. मुखिया जी ने सब स्थानों पर भाषण किया। सूत जी को उन के प्रश्नों के उत्तर न मिले। पर मुखिया जी जब भाषण दे कर वापस आने लगते तो विपक्षी का चुनाव चिन्ह जरूर दिखाते। सायंकाल जब विमान पत्तन पर उतरा तो यान की ठंडक और बाहर की गर्मी में आते जाते सूत जी तापघात के शिकार हो लिए। सूत जी पत्तन से बाहर आए तो सहायक सूत जी को एक कागजी थैला दे कर बोला- इस में प्र. मुखिया जी के छाया चित्र हैं इन्हें साक्षात्कार के साथ जरूर छापिएगा। तीन दिनों से कोई पत्र उन के चित्र नहीं छाप रहा है और इस वाहन में बैठिएगा यह आप को आप के आवास पर छोड़ देगा। सूत जी पहले ही अपना आवास छोड़ चुके थे। वहीं वापस पहुंचे तो वहाँ कोई स्थान खाली न था। सूत जी ने पुराना ग्राहक होने की दुहाई दी तो उन्हें बताया गया कि अर्धरात्रि को एक स्थान रिक्त होगा तब वे वहाँ जा सकते हैं। तब तक वे प्रतीक्षागृह में प्रतीक्षा करें। वे प्रतीक्षागृह आए जहाँ और भी लोग थे। उन्हों ने कागजी थैला खोला तो उस में चित्रों के साथ एक विज्ञापन था और साथ में शुल्क का एक चैक भी। तापघात से पीड़ित सूत जी दो दिनों तक अपने कक्ष में ही रहे। साक्षात्कार तीसरे दिन छपा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
भारत वर्ष की महापंचायत के एक प्रतीक्षारत मुखिया के साक्षात्कार का अवसर मिल जाने से सूत जी अति-प्रसन्न थे। दो दिन रिक्त रहने की सारी उदासी अन्तर्ध्यान हो गई। वे तुरंत तैयारियों में जुट गए। अपने यंत्रों की सार संभाल की कि साक्षात्कार कैसे अच्छा से अच्छा अंकित किया जा सकता है। वैमानिक कोलाहल में भी इस की जाँच करना चाहते थे। इस के लिए एक ऐसे कमरे की आवश्यकता थी जिस में आवाज करने वाला यंत्र हो। इस भवन में ध्वनिरहित वातानुकूलक बहुत थे, पर कोलाहल कहीं नहीं,, वे बहुत चिंतित हुए। अचानक उन्हें स्मरण आया कि वे अपने जंघशीर्ष पर जाल के माध्यम से विमान ध्वनि पैदा कर सकते हैं। उन्हों ने विमान ध्वनि उत्पन्न कर अपने यंत्र जाँच लिए। संध्याकाल में सूचना आई कि प्रातः पाँच बजे ही उन्हें उस वाहन में बैठना है जो प्रेस को ले कर विमान पत्तन के लिए जाएगी।
हे, पाठक!
अगले दिन सूत जी को ले कर वाहन निकला तो पूरे नगर में न जाने कहाँ कहाँ चक्कर लगाता हुआ विमानपत्तन पहुँचा। इस बीच वाहन में अनेक लोग स्थान-स्थान से सवार हुए। पत्तन पर वहाँ विशेष विमान तैयार था, सब को विमान पर चढ़ा दिया गया। सब से अंत में सात बजे जो अंतिम व्यक्ति विमान पर चढ़ा, वह प्रतीक्षारत मुखिया था। उसने सब पर दृष्टिपात किया और अपने निर्धारित आसन पर जा बैठा। फिर अपने सहायक से सूत जी की ओर इशारा कर उन के बारे में जाना। विमान चल पड़ा। जैसे ही विमान व्योम में पहुंचा और कमरबंद खोले गए, सहायक सूत जी के पास आया और प्रतीक्षारत मुखिया जी के पास वाले आसन पर जा कर अपना काम निपटा लेने को कहा, इस चेतावनी के साथ कि आप के पास मुश्किल से आधा घंटा है, इतने में काम पूरा कर लेना होगा। सूत जी तुरंत प्र. मुखिया जी के पास वाले आसन पर पहुँचे, अपना परिचय देने लगे, तो प्र. मुखिया जी खुद ही बोल पड़े - महाराज, आप को कौन नहीं जानता? आप की कथाएँ पढ़-पढ़ कर ही तो हम यहाँ तक पहुँचे हैं। आप की कथाएँ नहीं होतीं तो हम न जाने कहाँ होते? आप श्रीगणेश कीजिए। सूत जी आरंभ हुए।
हे, पाठक!
सूत जी ने पूछा- इस बार तो इस महापंचायत चुनाव में आप का दल अकेला हैं जो कह रहा हैं कि आप निर्विवादित रूप से दल की ओर से मुखिया के प्रत्याशी हैं, क्या आप के दल इस बारे में कोई विवाद नहीं है?
प्र. मुखिया जी बोले- वायरस दल में मुखिया के लिए कभी विवाद के जन्म की कोई संभावना ही उत्पन्न नहीं होने दी जाती है। हम वरिष्ठता से चलते हैं। जो हम से वरिष्ठ हैं, उन के टायर घिस गए थे। चाल बाधित हो गई थी, दल ने टायर भी बदलवाए, वे चले भी, लेकिन समय के साथ नहीं चल सकते थे, इस लिए दल ने उन्हें अवकाश दे दिया। तत्पश्चात मेरा ही क्रम था, विवाद कैसे जन्म लेता।
सूत जी- क्या यह सही नहीं कि दल के युवाओं ने गुर्जर खंड के नेता के पक्ष में ध्वनियाँ की हैं?
प्र.मुखिया- सही है, किन्तु केवल यह कहा जाता है कि वे मुखिया के योग्य हैं। ध्वनि तीव्र होती उस से पहले ही दल ने मुझे आगे कर दिया। प्रचार आरंभ हो गया। अब ध्वनियाँ होती रहें, उन के परिपक्व होने की संभावना समाप्त हो गई।
सूत जी- क्या यह नहीं कहा जाना चाहिए कि एक जन्म लेने की संभावना को गर्भ में ही समाप्त कर दिया गया जो अमानवीय था?
प्र. मुखिया- नहीं, संभावना कोई जीव नहीं होती। उसे कहीं भी समाप्त किया जा सकता है।
सूत जी- क्या आप के दल को बहुमत प्राप्त होने की संभावना है?
प्र.मुखिया- हमने ऐसा कभी नहीं कहा, हम ने कहा हमारा दल महापंचायत का सब से बड़ा दल होगा। हम बहुमत जुटाएंगे।
सूत जी- यह तेरह दिवस, मास का खेल तो पहले भी असफल हो चुका है?
प्र. मुखिया- नहीं, अब नहीं होने देंगे। कुछ दल हमारे साथ हैं, शेष हम जुटा लेंगे।
सूत जी- उन में से किसी ने आप के मुखिया होने पर आपत्ति हुई तो?
प्र. मुखिया- नहीं होगी, यही तो एक कारण है कि दल मुझे पहले ही मैदान में ले आया। वरना जवानों की ध्वनियाँ गुर्जरखंड नेता के लिए तीव्र हो जातीं तो दल को साथ मिलना कठिन हो जाता।
सूत जी- पन्द्रहवीं महापंचायत के लिए आप के दल का मुख्य नारा क्या है?
प्र. मुखिया- यही कि हमारे पास मुखिया के लायक नेता है, किसी और के पास नहीं।
सूत जी- यह तो आप के दल के लिए हुआ, जनता के लिए क्या है?
प्र. मुखिया- जनता के लिए किस के पास क्या है? किसी के पास कुछ नहीं, हम से ही क्यों अपेक्षा की जाती है। फिर जनता के लिए बहुत कुछ है। दल ने घोषणा की है। राम मंदिर बनाएंगे, समान नागरिक संहिता बनाएंगे, भारतवर्ष को आतंकवाद हीन कर देंगे, गरीबों को सस्ता चावल देंगे, बहुत कुछ है .... आप ने हमारा घोषणा-पत्र नहीं पढ़ा?
प्र. मुखिया- राम मंदिर और समान नागरिक संहिता तो आप आप के दल के बहुमत की स्थिति में बनाएँगे जिस के लिए आप खुद स्वीकार करते हैं कि वह नहीं आ रहा है। आतंकवाद के लिए विपक्षी आप को आतंकवादियों को कैकय छोड़ देने का स्मरण करवा चुके हैं। सस्ता चावल गरीबों को तब मिलेगा जब रोजगार मिलेगा। उस के लिए कुछ है आप के घोषणा पत्र में .....
सूत जी का प्रश्न पूरा होता उस से पहले ही विमान में घोषणा हुई कि यात्री अपने-अपने कमरबंद कस लें विमान उतरने वाला है। सूत जी को अपने आसन पर आना पड़ा। साक्षात्कार अधूरा ही रह गया। दिन भर में विमान अनेक स्थानों पर गया। प्र. मुखिया जी ने सब स्थानों पर भाषण किया। सूत जी को उन के प्रश्नों के उत्तर न मिले। पर मुखिया जी जब भाषण दे कर वापस आने लगते तो विपक्षी का चुनाव चिन्ह जरूर दिखाते। सायंकाल जब विमान पत्तन पर उतरा तो यान की ठंडक और बाहर की गर्मी में आते जाते सूत जी तापघात के शिकार हो लिए। सूत जी पत्तन से बाहर आए तो सहायक सूत जी को एक कागजी थैला दे कर बोला- इस में प्र. मुखिया जी के छाया चित्र हैं इन्हें साक्षात्कार के साथ जरूर छापिएगा। तीन दिनों से कोई पत्र उन के चित्र नहीं छाप रहा है और इस वाहन में बैठिएगा यह आप को आप के आवास पर छोड़ देगा। सूत जी पहले ही अपना आवास छोड़ चुके थे। वहीं वापस पहुंचे तो वहाँ कोई स्थान खाली न था। सूत जी ने पुराना ग्राहक होने की दुहाई दी तो उन्हें बताया गया कि अर्धरात्रि को एक स्थान रिक्त होगा तब वे वहाँ जा सकते हैं। तब तक वे प्रतीक्षागृह में प्रतीक्षा करें। वे प्रतीक्षागृह आए जहाँ और भी लोग थे। उन्हों ने कागजी थैला खोला तो उस में चित्रों के साथ एक विज्ञापन था और साथ में शुल्क का एक चैक भी। तापघात से पीड़ित सूत जी दो दिनों तक अपने कक्ष में ही रहे। साक्षात्कार तीसरे दिन छपा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
बुधवार, 22 अप्रैल 2009
सूत जी घोषित हीरो जी के निजि सचिव के साथ : जनतन्तर कथा (18)
हे, पाठक!
वायरस पार्टी के परबक्ता से मिल कर सूत जी महाराज को बड़ा हर्ष हुआ। नई कथा के लिए सूत्र मिल चुका था। परबक्ता को अपना परिचय दिया कि मैं नैमिषारण्य टाइम्स का विशेष सम्वाददाता हूँ और आप के घोषित हीरो से एक साक्षात्कार चाहता हूँ। परबक्ता बोला- अभी तो समय मिलना असंभव लगता है, हीरो भारतवर्ष के तूफानी दौरे पर हैं। एक पावं मंच पर, तो दूसरा एयरोप्लेन या हेलीकोप्टर पर रहता है, वहाँ से हटता है तो किसी द्रुतगामी वाहन पर चला जाता है। फिर यह काम मेरे क्षेत्राधिकार का नहीं है साक्षात्कार फिक्स करने का काम हीरो जी के निजि सचिव का है। उन का कॉन्टेक्ट नम्बर आप को दे सकता हूँ। सूत जी ने फटाफट अपनी डायरी निकाली, नंबर नोट किया और अपना लैपटॉप संभालते वहाँ से चलते भए। सोच रहे थे नंबर मिल गया यह कम नहीं, वरना जाल पर खोज करनी पड़ती। फिर क्या था बाहर आ कर सीधे निजि सचिव को मोबाइल थर्राया। बहुत देर तक व्यस्त रहने के बाद आखिर नंबर लग गया और वंदेमातरम् की धुन सुनाई दी। फिर आवाज आई- हू आर यू? स्पीक इमिडियटली। सूत जी कम खुदा थोड़े ही थे, उन्होंने देस देस के ऋषिमुनियों की क्लास ले रखी थी। उसे भी अपना परिचय बताया। या, या, आई लिसन्ड दिस वर्ड नेमिसारण, बट नेवर सी दिस पेपर, व्हाई नोट सेन्ड ए कॉपी डेली टू अस, वी मे प्रोवाइड यू सम हेण्डसम एडस्। सूत जी ने बताया कि उन का अखबार सारे ऋषि, मुनियों और धार्मिक हिन्दुओं में बहुत पोपुलर है। अगर हीरो जी का साक्षात्कार उस में छप गया तो चुनाव में बड़ा लाभ मिलेगा।
हे, पाठक!
ऋषि, मुनि और धार्मिक पब्लिक का नाम सुनते ही निजि सचिव सोच में पड़ गया- यह बीमारी कहाँ से टपक पड़ी। ऋषि, मुनि और धार्मिक हिन्दू तो पहले ही बुक्ड हैं। उन पर समय और धन व्यय करना ठीक नहीं, इस आदमी को टालना होगा। पर इस की इन में पैठ है, कुछ उलटा सीधा लिख बैठा तो बुक्ड माल में से कुछ तो हाथ से निकल ही जाएगा, सफाई देनी पड़ेगी सो अलग। सचिव ने तुरंत सूत जी को बोला- वैसे तो हीरो जी से साक्षात्कार होना कठिन है, फिर भी मैं कुछ प्रयत्न कर सकता हूँ। लेकिन आप को मेरे ऑफिस में एक-दो दिन डेरा डालना पड़ेगा। सूत जी फिर हर्षित हुए। काम बनता नजर आ रहा है। बन गया तो एक एक्सक्लूसिव कथा का प्रबंध तो हो ही जाएगा।
हे, पाठक!
सूत जी निजि सचिव के दफ्तर पहुँचे। निजि सचिव ने जो उन की वेषभूषा देखी तो चकरा गया। सोचा यह साक्षात व्यास मुनि का भूत कहाँ से चला आ रहा है। निजि सचिव ने एक व्यक्ति को भेज कर प्रेस के लिए आरक्षित गेस्ट हाउस का एक कमरा उन के लिए खुलवा दिया। हिदायत दी मैं काम में भूल सकता हूँ इस लिए सुबह शाम याद दिलाते रहना। एक दो दिन में साक्षात्कार अरेंज करवा दूंगा। पर एक शर्त पर कि हीरो जी मिलें तो उन से मेरी तारीफ जरूर कर दीजिएगा। कमरे पर पहुँचाने वाले आदमी ने स्विच बोर्ड पर लगा औरेंज कलर का बटन दिखाया। किसी चीज की जरूरत हो तो इसे दबाइएगा। जो चाहेंगे वही हाजिर कर दिया जाएगा। सूत जी समझ गए कि यह सब चुनाव काल की कृपा है, जिस दिन चुनाव अंतिम हुए और गेस्ट हाउस खाली करा लिया जाएगा। खैर अपने को करना भी क्या है? साक्षात्कार हुआ और अपन सटके। दूसरे एण्टी हीरो भी तो तलाशने हैं।
हे, पाठक!
सूत जी महाराज ने दो दिन तक मुफ्त आतिथ्य का सुख भोगा। वहाँ सब कुछ था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इंद्र लोक के किसी अतिथिगृह में ठहरे हों। तीसरे दिन निजि सचिव ने बताया कि आप के साक्षात्कार की व्यवस्था हो गई है। हीरो जी कल सुबह दक्षिण भारत के दौरे पर जा रहे हैं। आप उन के साथ प्लेन पर होंगे और हवाई यात्रा के बीच ही उन का साक्षात्कार ले सकेंगे। इस के अलावा कोई और समय साक्षात्कार के लिए हीरो जी के पास नहीं है। आप अपने इंस्ट्रूमेंट्स संभाल कर ले जाना। शाम को प्लेन आप को वापस यहीं छोड़ देगा। आप चाहेंगे तो आप को नेमिषारण पहुँचाने की व्यवस्था कर दी जाएगी। सूत जी बोले अभी इलेक्शन तक इधर ही रुकने और दो चार राज्यों में जाने का कार्यक्रम है। इस लिए दिल्ली में ही छोड़ दें तो ठीक रहेगा।
आज की कथा यहीं विराम लेती है, कल हीरो जी के हवाई साक्षात्कार की कथा होगी, पढ़ना विस्मृत मत करिएगा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
वायरस पार्टी के परबक्ता से मिल कर सूत जी महाराज को बड़ा हर्ष हुआ। नई कथा के लिए सूत्र मिल चुका था। परबक्ता को अपना परिचय दिया कि मैं नैमिषारण्य टाइम्स का विशेष सम्वाददाता हूँ और आप के घोषित हीरो से एक साक्षात्कार चाहता हूँ। परबक्ता बोला- अभी तो समय मिलना असंभव लगता है, हीरो भारतवर्ष के तूफानी दौरे पर हैं। एक पावं मंच पर, तो दूसरा एयरोप्लेन या हेलीकोप्टर पर रहता है, वहाँ से हटता है तो किसी द्रुतगामी वाहन पर चला जाता है। फिर यह काम मेरे क्षेत्राधिकार का नहीं है साक्षात्कार फिक्स करने का काम हीरो जी के निजि सचिव का है। उन का कॉन्टेक्ट नम्बर आप को दे सकता हूँ। सूत जी ने फटाफट अपनी डायरी निकाली, नंबर नोट किया और अपना लैपटॉप संभालते वहाँ से चलते भए। सोच रहे थे नंबर मिल गया यह कम नहीं, वरना जाल पर खोज करनी पड़ती। फिर क्या था बाहर आ कर सीधे निजि सचिव को मोबाइल थर्राया। बहुत देर तक व्यस्त रहने के बाद आखिर नंबर लग गया और वंदेमातरम् की धुन सुनाई दी। फिर आवाज आई- हू आर यू? स्पीक इमिडियटली। सूत जी कम खुदा थोड़े ही थे, उन्होंने देस देस के ऋषिमुनियों की क्लास ले रखी थी। उसे भी अपना परिचय बताया। या, या, आई लिसन्ड दिस वर्ड नेमिसारण, बट नेवर सी दिस पेपर, व्हाई नोट सेन्ड ए कॉपी डेली टू अस, वी मे प्रोवाइड यू सम हेण्डसम एडस्। सूत जी ने बताया कि उन का अखबार सारे ऋषि, मुनियों और धार्मिक हिन्दुओं में बहुत पोपुलर है। अगर हीरो जी का साक्षात्कार उस में छप गया तो चुनाव में बड़ा लाभ मिलेगा।
हे, पाठक!
ऋषि, मुनि और धार्मिक पब्लिक का नाम सुनते ही निजि सचिव सोच में पड़ गया- यह बीमारी कहाँ से टपक पड़ी। ऋषि, मुनि और धार्मिक हिन्दू तो पहले ही बुक्ड हैं। उन पर समय और धन व्यय करना ठीक नहीं, इस आदमी को टालना होगा। पर इस की इन में पैठ है, कुछ उलटा सीधा लिख बैठा तो बुक्ड माल में से कुछ तो हाथ से निकल ही जाएगा, सफाई देनी पड़ेगी सो अलग। सचिव ने तुरंत सूत जी को बोला- वैसे तो हीरो जी से साक्षात्कार होना कठिन है, फिर भी मैं कुछ प्रयत्न कर सकता हूँ। लेकिन आप को मेरे ऑफिस में एक-दो दिन डेरा डालना पड़ेगा। सूत जी फिर हर्षित हुए। काम बनता नजर आ रहा है। बन गया तो एक एक्सक्लूसिव कथा का प्रबंध तो हो ही जाएगा।
हे, पाठक!
सूत जी निजि सचिव के दफ्तर पहुँचे। निजि सचिव ने जो उन की वेषभूषा देखी तो चकरा गया। सोचा यह साक्षात व्यास मुनि का भूत कहाँ से चला आ रहा है। निजि सचिव ने एक व्यक्ति को भेज कर प्रेस के लिए आरक्षित गेस्ट हाउस का एक कमरा उन के लिए खुलवा दिया। हिदायत दी मैं काम में भूल सकता हूँ इस लिए सुबह शाम याद दिलाते रहना। एक दो दिन में साक्षात्कार अरेंज करवा दूंगा। पर एक शर्त पर कि हीरो जी मिलें तो उन से मेरी तारीफ जरूर कर दीजिएगा। कमरे पर पहुँचाने वाले आदमी ने स्विच बोर्ड पर लगा औरेंज कलर का बटन दिखाया। किसी चीज की जरूरत हो तो इसे दबाइएगा। जो चाहेंगे वही हाजिर कर दिया जाएगा। सूत जी समझ गए कि यह सब चुनाव काल की कृपा है, जिस दिन चुनाव अंतिम हुए और गेस्ट हाउस खाली करा लिया जाएगा। खैर अपने को करना भी क्या है? साक्षात्कार हुआ और अपन सटके। दूसरे एण्टी हीरो भी तो तलाशने हैं।
हे, पाठक!
सूत जी महाराज ने दो दिन तक मुफ्त आतिथ्य का सुख भोगा। वहाँ सब कुछ था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इंद्र लोक के किसी अतिथिगृह में ठहरे हों। तीसरे दिन निजि सचिव ने बताया कि आप के साक्षात्कार की व्यवस्था हो गई है। हीरो जी कल सुबह दक्षिण भारत के दौरे पर जा रहे हैं। आप उन के साथ प्लेन पर होंगे और हवाई यात्रा के बीच ही उन का साक्षात्कार ले सकेंगे। इस के अलावा कोई और समय साक्षात्कार के लिए हीरो जी के पास नहीं है। आप अपने इंस्ट्रूमेंट्स संभाल कर ले जाना। शाम को प्लेन आप को वापस यहीं छोड़ देगा। आप चाहेंगे तो आप को नेमिषारण पहुँचाने की व्यवस्था कर दी जाएगी। सूत जी बोले अभी इलेक्शन तक इधर ही रुकने और दो चार राज्यों में जाने का कार्यक्रम है। इस लिए दिल्ली में ही छोड़ दें तो ठीक रहेगा।
आज की कथा यहीं विराम लेती है, कल हीरो जी के हवाई साक्षात्कार की कथा होगी, पढ़ना विस्मृत मत करिएगा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
मंगलवार, 21 अप्रैल 2009
नयी फिलम का हीरो केवल हमरे पास ; जनतन्तर कथा (17)
हे, पाठक!
पन्द्रहवीं महापंचायत के लिए महारथी मैदान में डट गए। लोगों ने तलाशना शुरू किया, है कोई नया चेहरा हो मैदान में? सब जगह पुराने ही चेहरे नजर आए, कोई नया नहीं। पार्टियाँ वैसी की वैसी हैं, जैसी वे पहले थीं। बस सब के चेहरे पर कुछ झुर्रियाँ बढ़ गई हैं। जिस चेहरे पर जितनी ज्यादा झुर्रियाँ चढ़ी हैं, उस पर उतना ही पाउडर और फेस क्रीम भी चुपड़ दिया गया है। इस बीच कोई नयी पार्टी नहीं जनमी। कहीं से खबर, इशारा भी नहीं, कि कोई गर्भ में पल रही हो। या तो रानी माँ बाँझ हो गई है, या राजा निरबंसिया हो चुका है। ऐसे में आ गया, चुनाव। लोग जान गए, कि किसी को वोट डाल दो परिणाम वही होगा जो होना है। नया कुछ भी पैदा नहीं होने वाला। मैया जितने बच्चे ले कर जच्चा खाने गई है, उन्हें ही ले कर वापस लौटेगी। कुछ फरक पड़ भी गया तो इतना कि घर में बच्चों के सोने बैठने की जगह बदल जाएगी। जब भी रात को सोने जाएंगे पहले की तरह लड़ेंगे। बेडरूम से फिर से वैसी ही आवाजें आएंगी। सुबह खाने पर वैसे ही लड़ेंगे। चिल्लाएंगे, वो वाला ज्यादा खा गया। मैं भूखा रह गया।
हे, पाठक!
सब को पता है, कि इस बार भी न बैक्टीरिया पार्टी और न ही वायरस पार्टी दोनों ही महापंचायत में कमजोर रहेंगी, कोई भी ऐसा न होगा जो अपने दम पर पंचायत कर ले। खुद बैक्टीरिया और वायरस पार्टियों को यकीन है कि ऐसा ही होगा। फिर भी वे मैदान में आ डटी हैं। वायरस पार्टी ने घोषणा कर दी है, उन का नेता ही महापंचायत का हीरो होगा। पार्टी के परवक्ता जी से सूत जी महाराज टकरा गए तो उन से पूछा कि कास्ट पूरी न मिली तो कैसे होगा? तो बोले वह बाद की बात है, बाद की बात बाद में देखी जाएगी। हम में हिम्मत है, हम सब कर सकते हैं। हम महापंचायत का हीरो घोषित कर सकते हैं, हम ने कर दिया। किसी और में दम हो तो कर के देखे। सूत जी बोले- बहुत डायरेक्टरों ने हीरो घोषित कर दिये और हीरोइन ढूंढते रह गए। फिलम का मुहुर्त शॉट डिब्बे में बन्द हो कर रह गया। सूत जी को जवाब भी तगड़ा मिला- उन डायरेक्टरों को फाइनेन्सर न मिला था। रोकड़ा ही नहीं था तो हिरोइन कहाँ से लाते? फिलम तो डिब्बे में बंद होनी ही थी। हमारे पास फाइनेंसर बहुत हैं देखते नहीं जाल पर कितने दिन से हीरो का चेहरा चमक रहा है। यह सब फाइनेंस का ही कमाल है। फाइनेंस से सब कुछ हो सकता है।
हे, पाठक!
जब फाइनेंस की बात चली तो सूत जी ने स्मरण कराया। इत्ता ही फाइनेंस पर बिस्वास था तो छह महिने पहले जब न्यू क्लियर डील का मसला आया, तभी लाइन क्लीयर क्यूँ नहीं कर दी। परवक्ता जी बोले-तब की बात और थी। हम चाहते तो यही थे। पर तब फाइनेंसर पीछे हट गए। बोले अभी फाइनेंस रिस्की है। छह महीने बाद करेंगे। अभी करेंगे तो छह माह बाद फिर करना पड़ेगा। फिर अभी तुम आ बैठे तो जनता विपदग्राही हो लेगी। लेने के देने पड़ जाएँगे। फिर न्यू क्लीयर डील तो हम भी चाहते हैं। तुम करो चाहे वे करें, हम फाइनेंसरों को क्या फरक पड़ेगा? तुम बैठ गए तो शरम के मारे कर नहीं पाओगे, यह लटकती रहेगी। उधर परदेस में हमारे धंधों की पटरी बैठ जाएगी।
आज का समय यहीं समाप्त, कथा जारी रहेगी......
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
पन्द्रहवीं महापंचायत के लिए महारथी मैदान में डट गए। लोगों ने तलाशना शुरू किया, है कोई नया चेहरा हो मैदान में? सब जगह पुराने ही चेहरे नजर आए, कोई नया नहीं। पार्टियाँ वैसी की वैसी हैं, जैसी वे पहले थीं। बस सब के चेहरे पर कुछ झुर्रियाँ बढ़ गई हैं। जिस चेहरे पर जितनी ज्यादा झुर्रियाँ चढ़ी हैं, उस पर उतना ही पाउडर और फेस क्रीम भी चुपड़ दिया गया है। इस बीच कोई नयी पार्टी नहीं जनमी। कहीं से खबर, इशारा भी नहीं, कि कोई गर्भ में पल रही हो। या तो रानी माँ बाँझ हो गई है, या राजा निरबंसिया हो चुका है। ऐसे में आ गया, चुनाव। लोग जान गए, कि किसी को वोट डाल दो परिणाम वही होगा जो होना है। नया कुछ भी पैदा नहीं होने वाला। मैया जितने बच्चे ले कर जच्चा खाने गई है, उन्हें ही ले कर वापस लौटेगी। कुछ फरक पड़ भी गया तो इतना कि घर में बच्चों के सोने बैठने की जगह बदल जाएगी। जब भी रात को सोने जाएंगे पहले की तरह लड़ेंगे। बेडरूम से फिर से वैसी ही आवाजें आएंगी। सुबह खाने पर वैसे ही लड़ेंगे। चिल्लाएंगे, वो वाला ज्यादा खा गया। मैं भूखा रह गया।
हे, पाठक!
सब को पता है, कि इस बार भी न बैक्टीरिया पार्टी और न ही वायरस पार्टी दोनों ही महापंचायत में कमजोर रहेंगी, कोई भी ऐसा न होगा जो अपने दम पर पंचायत कर ले। खुद बैक्टीरिया और वायरस पार्टियों को यकीन है कि ऐसा ही होगा। फिर भी वे मैदान में आ डटी हैं। वायरस पार्टी ने घोषणा कर दी है, उन का नेता ही महापंचायत का हीरो होगा। पार्टी के परवक्ता जी से सूत जी महाराज टकरा गए तो उन से पूछा कि कास्ट पूरी न मिली तो कैसे होगा? तो बोले वह बाद की बात है, बाद की बात बाद में देखी जाएगी। हम में हिम्मत है, हम सब कर सकते हैं। हम महापंचायत का हीरो घोषित कर सकते हैं, हम ने कर दिया। किसी और में दम हो तो कर के देखे। सूत जी बोले- बहुत डायरेक्टरों ने हीरो घोषित कर दिये और हीरोइन ढूंढते रह गए। फिलम का मुहुर्त शॉट डिब्बे में बन्द हो कर रह गया। सूत जी को जवाब भी तगड़ा मिला- उन डायरेक्टरों को फाइनेन्सर न मिला था। रोकड़ा ही नहीं था तो हिरोइन कहाँ से लाते? फिलम तो डिब्बे में बंद होनी ही थी। हमारे पास फाइनेंसर बहुत हैं देखते नहीं जाल पर कितने दिन से हीरो का चेहरा चमक रहा है। यह सब फाइनेंस का ही कमाल है। फाइनेंस से सब कुछ हो सकता है।
हे, पाठक!
जब फाइनेंस की बात चली तो सूत जी ने स्मरण कराया। इत्ता ही फाइनेंस पर बिस्वास था तो छह महिने पहले जब न्यू क्लियर डील का मसला आया, तभी लाइन क्लीयर क्यूँ नहीं कर दी। परवक्ता जी बोले-तब की बात और थी। हम चाहते तो यही थे। पर तब फाइनेंसर पीछे हट गए। बोले अभी फाइनेंस रिस्की है। छह महीने बाद करेंगे। अभी करेंगे तो छह माह बाद फिर करना पड़ेगा। फिर अभी तुम आ बैठे तो जनता विपदग्राही हो लेगी। लेने के देने पड़ जाएँगे। फिर न्यू क्लीयर डील तो हम भी चाहते हैं। तुम करो चाहे वे करें, हम फाइनेंसरों को क्या फरक पड़ेगा? तुम बैठ गए तो शरम के मारे कर नहीं पाओगे, यह लटकती रहेगी। उधर परदेस में हमारे धंधों की पटरी बैठ जाएगी।
आज का समय यहीं समाप्त, कथा जारी रहेगी......
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
रविवार, 19 अप्रैल 2009
पब्लिक सीखे डिरेवरी ; जनतन्तर कथा (16)
हे, पाठक!
आप सुधिजन हैं, आप जान चुके हैं कि पुरानी कार मियादी मरम्मत और रंग रोगन के लिए बरक्शॉ में है। टाटा जी की नई कार के लिए लाइन भले ही लगी हो, लेकिन पब्लिक इस कार को फिलहाल बदलने को तैयार नहीं है। ताऊ की रामप्यारी भी कथा पढ़ने लगी, कथा पढ़ के बाली परमजीत पाती लिक्खे, कि पब्लिक को नई कारों में कोई पसंद ही नहीं आ रही, पुरानी से इत्ता मोह भया है कि छोड़ना ही नहीं चाहती। कैसे टूटे मोह ? कोई उपाय सोचें। भंग चितेरे अंजन पुत्र लिक्खे कि उन के जीते जी तो नई कार नहीं आने वाली। उधर झाड़ फूँक की तान-पाँच छोड़ के नकदउआ की निनानवे में उलझे ओझा बाबू संदेसा दिए हैं कि कारुआ पै रंग-रोगन की गुजाइस नहीं निकल रही है। पता चला है रंग-मसीन का कम्प्रेसरवा खुद मरम्मत मांग रहा है। मैं तो दंग रह गया, चहुँ ओर इत्ती निरासा काहे बिखरी पड़ी है। लगता है हमरे सुबरण सुत की ये बाउल नहीं सुनी। तो आज की कथा सुरू होवे के पहले ये बाउल सुनें, साथ साथ गाएँ तो अउर भी आनंद होयगा, अउर निरासा भी क्षीण होगी .........
आप ने सुना भी, और गाया भी। तो क्या समझै? अरे! कैसी भी हो हालत, सब कुछ लुट जाए, पर आस न छोड़ें।
हे, पाठक!
पुरानी कार तो लौटेगी, इतनी आस तो सब में है। कंप्रेसर ठीक हुआ, तो रंग-रोगन हो के लौटेगी। कार की आवाज कम होगी या बढ़ जाएगी अभी पता नहीं है। पब्लिक को हो न हो पर डिरेवर की अरजी लगाए लोगों को यकीन है कि ऐ सी जरूर ठीक रहेगा। डिरेवर सीट की गद्दी भी कायम रहेगी। तभी तो इत्ते लोग अर्जी लगाए हैं जनता के दरबार में। हर कोई या तो खुद बहरूपिये सा सांग बना के घूमता है या बहरूपियों की मंडली ही जमा ली है। तो पब्लिक क्यूँ आस छोड़े? फिर बरक्शॉ में गई तो कुछ तो बदल के लौटेगी। अच्छी या बुरी। पहले भी ये कार चौदह बार बरक्शॉ में जा चुकी है अउर कुछ न कुछ बदला ही है।
हे, पाठक!
पहली तीन महापंचायतों को छोड़ दें तो बाकी सब में कुछ न कुछ बदला है। पहले लोग कार में एक डिरेवर रखते थे। उस को अहंकार हो जाता था, मेरा जैसा कोई नहीं। फिर पब्लिक ने डिरेवर बदलना सुरू कर दिया। तो डिरेवरी के बहुत से दावेदार खड़े हो गए। अब बहुत विकल्प हैं पर जिस को भी रखते हैं उस में कोई न कोई ऐब निकल आता है। बिना ऐब का डिरेवर नहीं मिलता। इस का इलाज भी है कार बदल दी जाए। पर किस से बदली जाए? सारे मॉडल तो ऐसे हैं कि डिरेवर मांगते हैं। कोई फैक्टरी ऐसी कार ही नहीं बना रही जिस में डिरेवर की जरूरत ही न हो, अपने आप चलने लगे। ऐसी कार तो ईजाद करनी पड़ेगी। उस में तो वक्त लगेगा, न जाने कितने दिन, महीने, बरस लगेंगे? पब्लिक ऐसा क्यों नहीं करती कि जब तक नई कार ईजाद हो तब तक खुद डिरेवरी सीख ले।
फिर मिलते हैं आगे की कथा में-
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
आप सुधिजन हैं, आप जान चुके हैं कि पुरानी कार मियादी मरम्मत और रंग रोगन के लिए बरक्शॉ में है। टाटा जी की नई कार के लिए लाइन भले ही लगी हो, लेकिन पब्लिक इस कार को फिलहाल बदलने को तैयार नहीं है। ताऊ की रामप्यारी भी कथा पढ़ने लगी, कथा पढ़ के बाली परमजीत पाती लिक्खे, कि पब्लिक को नई कारों में कोई पसंद ही नहीं आ रही, पुरानी से इत्ता मोह भया है कि छोड़ना ही नहीं चाहती। कैसे टूटे मोह ? कोई उपाय सोचें। भंग चितेरे अंजन पुत्र लिक्खे कि उन के जीते जी तो नई कार नहीं आने वाली। उधर झाड़ फूँक की तान-पाँच छोड़ के नकदउआ की निनानवे में उलझे ओझा बाबू संदेसा दिए हैं कि कारुआ पै रंग-रोगन की गुजाइस नहीं निकल रही है। पता चला है रंग-मसीन का कम्प्रेसरवा खुद मरम्मत मांग रहा है। मैं तो दंग रह गया, चहुँ ओर इत्ती निरासा काहे बिखरी पड़ी है। लगता है हमरे सुबरण सुत की ये बाउल नहीं सुनी। तो आज की कथा सुरू होवे के पहले ये बाउल सुनें, साथ साथ गाएँ तो अउर भी आनंद होयगा, अउर निरासा भी क्षीण होगी .........
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आप ने सुना भी, और गाया भी। तो क्या समझै? अरे! कैसी भी हो हालत, सब कुछ लुट जाए, पर आस न छोड़ें।
हे, पाठक!
पुरानी कार तो लौटेगी, इतनी आस तो सब में है। कंप्रेसर ठीक हुआ, तो रंग-रोगन हो के लौटेगी। कार की आवाज कम होगी या बढ़ जाएगी अभी पता नहीं है। पब्लिक को हो न हो पर डिरेवर की अरजी लगाए लोगों को यकीन है कि ऐ सी जरूर ठीक रहेगा। डिरेवर सीट की गद्दी भी कायम रहेगी। तभी तो इत्ते लोग अर्जी लगाए हैं जनता के दरबार में। हर कोई या तो खुद बहरूपिये सा सांग बना के घूमता है या बहरूपियों की मंडली ही जमा ली है। तो पब्लिक क्यूँ आस छोड़े? फिर बरक्शॉ में गई तो कुछ तो बदल के लौटेगी। अच्छी या बुरी। पहले भी ये कार चौदह बार बरक्शॉ में जा चुकी है अउर कुछ न कुछ बदला ही है।
हे, पाठक!
पहली तीन महापंचायतों को छोड़ दें तो बाकी सब में कुछ न कुछ बदला है। पहले लोग कार में एक डिरेवर रखते थे। उस को अहंकार हो जाता था, मेरा जैसा कोई नहीं। फिर पब्लिक ने डिरेवर बदलना सुरू कर दिया। तो डिरेवरी के बहुत से दावेदार खड़े हो गए। अब बहुत विकल्प हैं पर जिस को भी रखते हैं उस में कोई न कोई ऐब निकल आता है। बिना ऐब का डिरेवर नहीं मिलता। इस का इलाज भी है कार बदल दी जाए। पर किस से बदली जाए? सारे मॉडल तो ऐसे हैं कि डिरेवर मांगते हैं। कोई फैक्टरी ऐसी कार ही नहीं बना रही जिस में डिरेवर की जरूरत ही न हो, अपने आप चलने लगे। ऐसी कार तो ईजाद करनी पड़ेगी। उस में तो वक्त लगेगा, न जाने कितने दिन, महीने, बरस लगेंगे? पब्लिक ऐसा क्यों नहीं करती कि जब तक नई कार ईजाद हो तब तक खुद डिरेवरी सीख ले।
फिर मिलते हैं आगे की कथा में-
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
शनिवार, 18 अप्रैल 2009
पुरानी कार पाँच साला सर्विस के लिए बरक्शॉ में : जनतन्तर कथा (15)
हे, पाठक!
जैसे हरि अनंता, हरि कथा अनंता! वैसे ही जनतन्तर अनंता और जनतन्तर कथा अनंता! सकल परथी के भिन्न-भिन्न खंडों पर भाँत-भाँत के रूप,आकार और रंगों के कीट दृष्टिगोचर होते हैं, उन की जीवन शैली भी भाँत-भाँत की है। वैसे ही जनतन्तर भी देस-देस में भाँत-भाँत का होता है। जब भरतखंड के एक खंड को भारतवर्ष कहा गया तो उसे गणतन्तर भी घोषित कर दिया। सब कहते हैं कि गणतन्तर भरतखंड की प्राचीन परंपरा है। पर जानते कितने हैं? एक पाठक ने प्रश्न किया गणतन्तर और जनतन्तर में क्या भेद है?
हे, पाठक!
अब हम गणतन्तर और जनतन्तर भेद लिखते हैं। पहले के जमाने में देस में एक राजा हुआ करता था जो देस पर राज करता था। राज करना एक कला भी थी और सामर्थ्य भी, कला से ज्यादा सामर्थ्य थी। राजा को अपने देस पर और परजा पर नियंत्रण बना कर रखना पड़ता था। यह सब काम वह किसम किसम के लोगों के जरीए करता था। जिनमें मतरी, जागीरदार वगैरा हुआ करते थे। देस बड़ा हुआ तो सूबे भी होते थे और सूबेदार भी। राजा को हटाने का तरीका यही था कि देस में बगावत हो जाए, या दूसरा कोई राजा लड़ाई कर देस पर कब्जा कर ले। आम तौर पर राजा का बेटा ही अगला राजा हुआ करता था। इसी को राजतन्तर कहते थे। पुराने जमाने में भरतखंड के बहुत से देसों में गणतन्तर होते थे। यानी परिवारों के मुखियाओं की पंचायत, पंचायत के मुखियाओं से कबीलों की पंचायत, कबीलों के मुखिया सरदार और सरदारों की पंचायत देस की पंचायत, देस की पंचायत का मुखिया राजा। विद्वानों ने गणतन्तर को इस तरह कहा, कि जो राजतन्तर न हो और जिस में बंस परंपरा से बनने वाले राजा शासन न हो। बल्कि किसी भी और तरीके से जनता या जनता का कोई हिस्सा राज करने वालों की पंचायत को चुनता हो।
हे, पाठक!
भारतवर्ष गणतन्तर बना तो साथ ही यह भी घोषणा हो गई कि यह जनतन्तर होगा और देस के हर एक बालिग को वोट देने का अधिकार होगा। देस का राज महापंचायत करेगी, जिस के लिए हर खेत के बालिग अपना एक गण चुनेंगे। इन गणों के बहुमत का नेता महापंचायत का परधान होगा। हमने भारतवर्ष को गणतन्तर भी बना लिया और जनतंतर भी बना लिया। पर इस में भी भीतर ही भीतर वो सबी तन्तर पलते रह गए जिन को परदेसी के साथ ही सिधार जाना था। परदेसी चले गए, । देस में उन का राज चलाने वाले सब यहीं रह गए। परदेसी के जाने की हवा बनते ही उन ने कहना शुरू कर दिया था कि राज तो वे ही चलाएँगे, जो चलाना जानते हैं। उन को चुना न गया तो सुराज फेल हो जाना है। लोग झाँसे में आ गए, लोगों ने उन को ही चुनना शुरू कर दिया।
हे, पाठक!
इस तरह गणतन्तर में पुराने सब तन्तर जिन्दा रहे । वैसे ही, जैसे कंपनी ने पुरानी कार को चमका-चमकू के शो-रूम में खड़ी कर दी हो, और खरीद के नया रजिस्ट्रेशन नंबर ले कर इतरा रहे हों कि नए कार के मालिक हैं। बरस भर बाद जब अंदर के घिसे पुरजे जवाब देना शुरू करें तो पता लगे कि नयी कार नयी होती है और पुरानी पुरानी। पर करें तो क्या करें? जब तक नयी कार न लेंगे पुरानी से ही काम चलाना होगा। भारतवासी तीन-बीसी से पुरानी कार घसीट रहे हैं। नयी कार कब आएगी? यह भविष्य के गर्भ में है। कार की हर पाँच साल में सर्विस जरूरी है। पुरानी है तो बीच में जब भी झटके खाने लगती है तभी बरक्शॉ में खड़ी हो जाती है। इस बार कुछ ऐहतियात से चलाई गई तो झटके कम लगे, एक जोर का आया तो था पर वो साइकिल वाले की मदद से झेल लिया गया। फिलहाल पुरानी कार पाँच साला सर्विस के लिए बरक्शॉ में है।
आगे की कथा में पढि़ए क्या हो रहा है वहाँ पुरानी कार के संग।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
जैसे हरि अनंता, हरि कथा अनंता! वैसे ही जनतन्तर अनंता और जनतन्तर कथा अनंता! सकल परथी के भिन्न-भिन्न खंडों पर भाँत-भाँत के रूप,आकार और रंगों के कीट दृष्टिगोचर होते हैं, उन की जीवन शैली भी भाँत-भाँत की है। वैसे ही जनतन्तर भी देस-देस में भाँत-भाँत का होता है। जब भरतखंड के एक खंड को भारतवर्ष कहा गया तो उसे गणतन्तर भी घोषित कर दिया। सब कहते हैं कि गणतन्तर भरतखंड की प्राचीन परंपरा है। पर जानते कितने हैं? एक पाठक ने प्रश्न किया गणतन्तर और जनतन्तर में क्या भेद है?
हे, पाठक!
अब हम गणतन्तर और जनतन्तर भेद लिखते हैं। पहले के जमाने में देस में एक राजा हुआ करता था जो देस पर राज करता था। राज करना एक कला भी थी और सामर्थ्य भी, कला से ज्यादा सामर्थ्य थी। राजा को अपने देस पर और परजा पर नियंत्रण बना कर रखना पड़ता था। यह सब काम वह किसम किसम के लोगों के जरीए करता था। जिनमें मतरी, जागीरदार वगैरा हुआ करते थे। देस बड़ा हुआ तो सूबे भी होते थे और सूबेदार भी। राजा को हटाने का तरीका यही था कि देस में बगावत हो जाए, या दूसरा कोई राजा लड़ाई कर देस पर कब्जा कर ले। आम तौर पर राजा का बेटा ही अगला राजा हुआ करता था। इसी को राजतन्तर कहते थे। पुराने जमाने में भरतखंड के बहुत से देसों में गणतन्तर होते थे। यानी परिवारों के मुखियाओं की पंचायत, पंचायत के मुखियाओं से कबीलों की पंचायत, कबीलों के मुखिया सरदार और सरदारों की पंचायत देस की पंचायत, देस की पंचायत का मुखिया राजा। विद्वानों ने गणतन्तर को इस तरह कहा, कि जो राजतन्तर न हो और जिस में बंस परंपरा से बनने वाले राजा शासन न हो। बल्कि किसी भी और तरीके से जनता या जनता का कोई हिस्सा राज करने वालों की पंचायत को चुनता हो।
हे, पाठक!
भारतवर्ष गणतन्तर बना तो साथ ही यह भी घोषणा हो गई कि यह जनतन्तर होगा और देस के हर एक बालिग को वोट देने का अधिकार होगा। देस का राज महापंचायत करेगी, जिस के लिए हर खेत के बालिग अपना एक गण चुनेंगे। इन गणों के बहुमत का नेता महापंचायत का परधान होगा। हमने भारतवर्ष को गणतन्तर भी बना लिया और जनतंतर भी बना लिया। पर इस में भी भीतर ही भीतर वो सबी तन्तर पलते रह गए जिन को परदेसी के साथ ही सिधार जाना था। परदेसी चले गए, । देस में उन का राज चलाने वाले सब यहीं रह गए। परदेसी के जाने की हवा बनते ही उन ने कहना शुरू कर दिया था कि राज तो वे ही चलाएँगे, जो चलाना जानते हैं। उन को चुना न गया तो सुराज फेल हो जाना है। लोग झाँसे में आ गए, लोगों ने उन को ही चुनना शुरू कर दिया।
हे, पाठक!
इस तरह गणतन्तर में पुराने सब तन्तर जिन्दा रहे । वैसे ही, जैसे कंपनी ने पुरानी कार को चमका-चमकू के शो-रूम में खड़ी कर दी हो, और खरीद के नया रजिस्ट्रेशन नंबर ले कर इतरा रहे हों कि नए कार के मालिक हैं। बरस भर बाद जब अंदर के घिसे पुरजे जवाब देना शुरू करें तो पता लगे कि नयी कार नयी होती है और पुरानी पुरानी। पर करें तो क्या करें? जब तक नयी कार न लेंगे पुरानी से ही काम चलाना होगा। भारतवासी तीन-बीसी से पुरानी कार घसीट रहे हैं। नयी कार कब आएगी? यह भविष्य के गर्भ में है। कार की हर पाँच साल में सर्विस जरूरी है। पुरानी है तो बीच में जब भी झटके खाने लगती है तभी बरक्शॉ में खड़ी हो जाती है। इस बार कुछ ऐहतियात से चलाई गई तो झटके कम लगे, एक जोर का आया तो था पर वो साइकिल वाले की मदद से झेल लिया गया। फिलहाल पुरानी कार पाँच साला सर्विस के लिए बरक्शॉ में है।
आगे की कथा में पढि़ए क्या हो रहा है वहाँ पुरानी कार के संग।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
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