कुछ दिनों से कान में सुरसुराहट हो रही थी, लग रहा था पेट्रोल के दाम अब बढ़े, अब बढ़े। दिन भर अदालत में व्यस्त रहे वकील बाबू शाम को थक कर घर पहुँचे तो खबर इंतजार ही कर रही थी। कान की सुरसुराहट बंद हो चुकी थी। पेट्रोल के दाम में तीन रुपए का इज़ाफा होने की घोषणा हो चुकी थी। आधी रात के बाद नए भाव से मिलना शुरू हो जाना था। वकील बाबू की कार की टंकी फुल करवाने का अभी आधी रात तक तो मौका था। हिसाब लगाना शुरू किया। 28 लीटर की टंकी, जिस में कम से कम तीन लीटर तो अभी भी भरा होगा, खाली स्थान बचा 25 लीटर। अभी दाम है 67.40 रुपए प्रति लीटर। 25 लीटर के लिए चाहिए 1685/- । जेब टटोली तो वहाँ निकले पाँच सौ के पाँच नोट। पेट्रोल भरवा लिया तो एक ही बचेगा, तीन सौ-सौ के नोटों के साथ। यकायक जेब का इतनी हलकी हो जाना दिल को गवारा न था। वकील बाबू बचत का हिसाब लगाने लगे। कुल तीन-साढ़े तीन रुपए बढ़ने हैं। अधिक से अधिक 75-80 रुपए का फायदा होना था। बस! इतनी सी बचत होगी?
वकील बाबू ने कार लेकर पंप पर जाने का इरादा त्याग दिया। शाम को भोजन के समय टीवी समाचार पर नजर पड़ी तो 75-80 रुपए का लालच सताने लगा। मन कह रहा था, कार ले कर निकल पड़। दो-तीन किलोमीटर ही तो है आना-जाना। ज्यादा से ज्यादा से ज्यादा 10-12 रुपए का पेट्रोल जलेगा, फिर भी 65-70 तो बच ही लेंगे। फिर ख्याल आ गया। पिछली बार तीन पेट्रोल पंपों ने लौटा दिया था तब जा कर चौथे पर पर पेट्रोल मिला था। वह भी आधा घंटा लाइन में लगे रहने के बाद। कम से कम आठ बार इंजन को चालू बंद करना पड़ा था। 40 रुपए का पेट्रोल तो इसी में फुँक गया था। पर तब 5.32 रुपए प्रति लीटर का सवाल था। इस बार इतना ही पेट्रोल फूँकना पड़े और कम से कम एक घण्टा टाइमखोटी किया जाए तो भी टंकी फुल करा कर बचेगा क्या? सिर्फ 30 रुपल्ली। वकील बाबू ने फाइनली तय कर लिया कि कार को गैराज से बाहर निकालना फिज़ूल है, इस से अच्छा तो ये है कि वकालत का काम देखा जाए।
गणित, वकील बाबू की पुरानी प्रेयसी जब दिमाग में घुस जाती है तो आसानी से निकलती नहीं। गणना बराबर चल रही थी। कार महीने में 50-55 लीटर पेट्रोल पीती है। कुल मिला कर दो सौ रुपए का पेट्रोल खर्च बढ़ेगा। इतना और कूटना पड़ेगा मुवक्किलों से। वैसे मुफ्त सलाह लेने वाले लोगों में से एक से भी फीस वसूल ली तो घाटा पट जाएगा। इत्ती गणना हुई कि भोजन निपट लिया। वकीलाइन ने सब्जी के भाव बताना शुरू कर दिया। भाव बता चुकने पर पूछा -बाजार सामान लेने कब चलना है? रसोई के डिब्बे खाली हो चले हैं। गणना फिर शुरू हो गई। पेट्रोल खरचा तो सब्जी वाले का भी बढ़ा है। कल सब्जी में पाँच रूपया किलो बढ़ जाना है। दूध वाला कल से दाम तो नहीं बढ़ाएगा, पर पानी बढ़ा देगा। किराने वाला, और .......... ये सब भी तो कहीं न कहीं कसर निकालेंगे। नहीं निकालेंगे तो जिएंगे कैसे। वकील बाबू का महिने में एक मुवक्किल से सलाह की फीस लेने का फारमूला फेल हो गया। अब तो हर मुवक्किल ट्राई करना पड़ेगा।
वैसे ये बहुत बुरी बात है। ये सरकार ... सॉरी! तेल कंपनियाँ हर तीसरे महीने 3-5 रुपए बढ़ा देती हैं। कभी कच्चे के दाम बढ़ने के कारण, तो कभी रुपए का दाम घटने के कारण। सरकार कुछ सोचती ही नहीं। इस तरह दाम बढ़ाने पड़े तो तीन बरस में बारह बार बढ़ाने पड़ेंगे। फिर चुनाव आ जाएगा। लोगों को ताजा ताजा याद रहती है। एक साथ ही दाम 100 रुपए लीटर कर दिए होते तो ठीक था। वकील बाबू भी उस का तोड़ एक बार में ही निकाल लेते। 3 साल में जनता भूल जाती कि दाम 100 रुपए किया था। गुंजाइश निकलती तो ठीक चुनाव के पहले 5-10 रुपए कम किए जा सकते थे। वकील बाबू ने पिछली बार भी कहा था कि दाम सीधे ही 100 रुपया लीटर कर देना चाहिए। पर सरकार के नक्कार खाने में वकील बाबू की तूती कौन सुनता?
वकील बाबूने आज फैसला कर लिया है। कल अदालत में वकीलों, टाइपिस्टों, क्लर्कों, मुवक्किलों.... आदि आदि से बात करेंगे कि मोर्चा जमाया जाए। पेट्रोल का दाम सीधे 100 रुपए किया जाए। बार-बार दाम बढ़ाने से बहुत तकलीफ होती है। धीरे-धीरे गंजा होने से अच्छा है एक बार ही नाई से उस्तरा फिरवा लिया जाए। कम से कम लोग पूछेंगे तो वकील बाबू क्या हुआ?