आज मिलादुन्नबी का त्यौहार था। बहुतों के साथ ही मेरे लिए भी होली के पहले एक दिन और अवकाश का। इस्लाम के अनुयायियों के लिए उतना ही बड़ा दिन जितना शायद कृष्ण जन्माष्टमी या क्रिसमस है। बिटिया दीपावली के बाद अब घर आई है तो घर ही रहा। कुछ साल पहले तक मुहल्ले में होली मुहल्ले की सोसायटी मनाती थी। तो हफ्ते भर पहले से मेरा दफ्तर सोसायटी का दफ्तर हो जाता था। पहले होली मनाने के तरीके पर मीटिंग होती। फिर चंदा इकट्ठा किया जाता। फिर होली की तैयारी शुरू हो जाती। कुछ सालों से सोसायटी ने यह काम बंद कर दिया। यह जिम्मा नौजवानों ने संभाल लिया। मैं ने कल ही विकास को पूछा था -भाई होली की तैयारी नहीं है क्या। वह अपने कामों में उलझा था। वह बोला था -अंकल कल का दिन बहुत है, सब कर लेंगे। मैं ने उसे बताया था कि मेरे पास विजया का अच्छा स्टॉक पड़ा है उसे टेस्ट कर लो। होली के दिन काम में लेने लायक है या नहीं। उस ने शाम को आने को बोला। लेकिन शाम को गच्चा मार गया। मैं भी पूर्वा को स्टेशन से लाने में व्यस्त हो गया।
आज सुबह से ही जी-मेल के बज़ पर दिल्ली से अजय झा विज्ञापन लगाए बैठे थे....
- होलिका दहन के लिए लकडी के दरवाजे खिडकियां खटिया के दाता लोग नाम लिखाएं ..जल्दी ...पावती रसीद के साथ भांग का पाऊच फ़्री मिलेगा :) :) :) :) :) :)
- इस तरह मांगने से काम न चलेगा, चोरी करनी पड़ेगी।
- कुछ टूटे स्टूल टेबल का कबाड़ छत पर पड़ा है। आप खुशी से मंगा सकते हैं। मेरे ऑफिस (जो घर पर ही है) की टेबुल की दराज में दो सौ चालीस ग्राम भांग रखी है (दस ग्राम प्रयोग में ली जा चुकी है) कबाड़ उठाने आप खुद आ जाएँ तो छत पर ही सिल-बट्टा बजा लिया जाएगा। आप का इंतजार है।
महेन्द्र नेह के साथ कार्यक्रम में पहुँचे तो वहाँ गायन चल रहा था। भावना काले और भूपेन्द्र शर्मा होरियाँ गा रहे थे। हम भी सुनने बैठ गए। होरी गायन विशुद्ध रूप से प्रेम में पगा होता है। चाहे वह प्रेम भौतिक हो या आध्यात्मिक। प्रेम का गायन बहुत ऊर्जा चाहता है। वह गायन बिलकुल मन से हो तो उस के आनंद का जवाब नहीं। भावना काले बहुत अच्छा गाती हैं। लेकिन आज ऐसा लगा जैसे उन का मन कहीं और भटका हुआ है, व्यथित है, उन के गायन में मन का रंग नहीं था। गायन में कहीं कोई कमी नजर आ रही थी। मैं उन से पूछना भी चाहता था कि ऐसा क्यों है? लेकिन कार्यक्रम के बाद उन से भेंट ही नहीं हो सके। लेकिन जब भूपेन्द्र शर्मा गाने लगे तो मन का वह रंग खिलने लगा। वह गायन कला के नियमों से ऊपर था। जैसे प्रेम अठखेलियाँ कर रहा हो।
गायन समाप्त हुआ तो सूर्यकुमार जी पांडेय जी का सम्मान हुआ। कोटा की साहित्यिक बिरादरी के सभी मंजे हुए हस्ताक्षर वहाँ उपस्थित थे। उन में व्यंगकार औंकारनाथ चतुर्वेदी, नाटक कार शिवराम, ब्लागरों में नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी और शरद तैलंग वहाँ थे। समारोह के अंत में पाण्डेय जी ने एक संक्षिप्त भाषण दिया और बहुत सी व्यंग्य रचनाएं सुनाई। आलोचक उषा झा ने उन का परिचय दिया तो पता लगा उन्हें 1970 से सम्मान मिलने आरंभ हो गए थे। हर साल दो-चार सम्मान उन्हों ने प्राप्त किए और अब तक प्राप्त किए जा रहे हैं। मैं उन का सम्मान प्राप्त करने का माद्दा देख कर दंग रह गया। वह उन की काबिलियत को प्रदर्शित कर रहा था। वैसे भी पाण्डेय जी ने 1970 से आज तक सब तरह का साहित्य लिखा है। जब जब जिस की मांग रही वही उन्हों ने लिखा और मांग को पूरा किया और पूरी शुचिता के साथ। वे वास्तविक मसिजीवी रहे हैं। अंत में उन्हों ने अपना एक गद्य व्यंग्य सुनाया। उन के व्यंगकार का महत्व यह रहा कि उन्हों ने आम मध्यवर्ग के मन को ठीक से अपने साहित्य में उड़ेला। उन्हों ने व्यवस्था की कुरूपता को उजागर किया और उस के छद्म को जग जाहिर कर लोगों को हंसाया भी।
विगत आठ सालों से कोटा की संस्था काव्य-मधुबन होली के अवसर पर निरंतर इस सम्मान समारोह को आयोजित करती रही है, यह बड़ी बात है। इस निरंतर आयोजन के पीछे संस्था के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी का श्रम और लगन रही है। आज के आयोजन का सफल संचालन भी उन्हों ने ही किया। वे स्वयं एक समर्थ कवि और व्यंगकार हैं। उन का अपना हिन्दी ब्लाग भी है। बस उसे वे अपना अधिक समय नहीं दे पाते। लेकिन उन से हिन्दी ब्लाग जगत में सक्रिय होने की अपेक्षा तो की ही जा सकती है जिस से उन के रचना कौशल का जलवा वे यहाँ भी बिखेर सकें।
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1. कैप्शन की जरूरत नहीं, 2. गायक भूपेन्द्र शर्मा, 3.सम्मान के बाद अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करते सूर्यकुमार पाण्डेय, 4. समारोह के बाद पांडेय जी और व्यंगकार शरद तैलंग।