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शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

मुलाकात गोर्की के आधुनिक पात्र से ...


दिसंबर के आखिरी सप्ताह अवकाश का होता है, मन यह रहता है कि इस सप्ताह कम से कम पाँच दिन बाहर अपनी उत्तमार्ध शोभा के साथ यात्रा पर रहा जाए। इस बार भी ऐसा ही सोचा हुआ था। लेकिन संभव नहीं हुआ। केवल एक दिन के लिए अपने शहर से महज 100 किलोमीटर दूर रामगढ़ क्रेटर की यात्रा हुई। यात्रा के मुख्य आकर्षण रामगढ़ क्रेटर के बारे में बाद में फुरसत में बताता हूँ। फिलहाल यात्रा के अंत में हुई एक विचित्र व्यक्ति से मुलाकात के बारे में बताता हूँ। 

रामगढ़ पहुंचते पर जैसे हम कार से उतरे उस का एक टायर पंक्चर दिखा। वैसे इस की हवा कोई आधा किलोमीटर पहले ही निकली होगी। हमारे पास स्टेपनी थी इस कारण हम कार को वैसे ही खड़ा कर क्रेटर की सब से ऊँची पहाड़ी पर चढ़ने को चल दिए। वापसी में टायर बदला और चल दिए। घूमते हुए जब रात होने के आसार नजर आने लगे तो हम वापस रवाना हो गए। रात एक मित्र के फार्म हाउस पर गुजारी। सुबह वहाँ से रवाना हुए तो सोचा जहाँ भी साधन सब से पहले मिलेगा वहीं हम रुक कर टायर पंक्चर बनवा लेंगे। आखिर एक चौराहे पर हमें टायर पंक्चर का साधन मिल गया। 

हमने पंक्चर बनाने वाले से बात की तो उस ने स्टेपनी निकाल कर पंक्चर सुधारने का काम शुरू कर दिया। चौराहे पर लोगों का मजमा लगा था। लोग स्वागत द्वार बनाने में लगे थे। पता लगा प्रदेश में नयी सरकार में मंत्री बने स्थानीय विधायक मंत्री पद की शपथ लेने के बाद पहली बार आ रहे हैं। उसी मजमें में एक व्यक्ति साफा बांधे नए कपड़े जूतियाँ धारण किए सड़क पर चहल कदमी कर रहा था। किसी को भी कुछ कह कर लोगों को आकर्षित कर रहा था। उस ने हाथ में एक मूली व गाजर जो पत्तों सहित थीं पकड़ी हुई थीं। किसी ने उस से पूछा कि मिनिस्टर साहब कितने बजे तक आएंगे? उस ने कहा शाम तक तो आ ही जाएंगे। फिर तुरंत ही दाहिने हाथ में पकड़ी मूली और गाजर को अपने कान के इस तरह लगाया जैसे वह मोबाइल फोन हो, बात करने लगा। 

कान के लगाने के बाद, कुछ देर बाद बोला अच्छा मिनिस्टर साहब के पीए बोल रहे हो। उन से बोल देना मैं फँला बोल रहा हूँ। ये बताओ मिनिस्टर साहब कहाँ तक पहुँचे? और फलाँ चौराहे पर कितने बजे तक पहुँच जाएंगे? उस ने थोड़ी देर और फोन पर बात करने की एक्टिंग की और बताने लगा कि अभी तो वे कोटा तक ही नहीं पहुंचे हैं, यहाँ तक पहुँचने में उन्हें दो-तीन बज जाएंगे। 

कुछ देर बाद वह मेरे पास आ गया। कहने लगा बाबू साहेब कहाँ से आ रहे हो? गाड़ी पंक्चर हो गयी दिखती है। बच्चा अच्छा पंक्चर बनाएगा कई दिन तक हवा भी नहीं निकलेगी टायर की। इस के बाद वह एक बैंच पर बैठ गया। 

तब तक मेरे टायर का पंक्चर लगभग बन गया था। मैं पंक्चर बनाने वाले के पास गया। वह ट्यूब को टायर में डाल रहा था। मैं ने उससे गाजर मूली के टेलीफोन वाले बंदे के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि यह आदमी पास के गाँव में कुछ महीनों से आकर रहने लगा है। वहाँ के किसी किसान का रिश्तेदार है। इस का बाप अपने गाँव में काफी बड़ी जमीन छोड़ गया है। लेकिन भाइयों ने सारी जमीन पर कब्जा कर के इसे घर से निकाल दिया है। अब इसी तरह अर्ध पागल की तरह अजीब अजीब सी हरकतें करते हुए घूमता रहता है। इस चुनाव में मिनिस्टर बने नेताजी का अपने पागलपन से ही खूब प्रचार करता रहा और मिनिस्टर साहब से खूब अच्छी जानपहचान बढ़ा ली है। वे भी मजा लेने के लिए इस से खूब मजाक करते रहते हैं। 

पंक्चर सुधारने वाले ने स्टेपनी तैयार कर के कार में रख दी थी। मैं उसे मजदूरी देकर वहाँ से रवाना हुआ। लेकिन सारे रास्ते उस गाजर-मूसी के मोबाइल फोन वाले के बारे में सोचता रहा। मुझे गोर्की के उन विक्षिप्त पात्रों की याद आई, जो अच्छी खासी धन दौलत और संपत्ति के स्वामी होते हुए भी इस कारण जानबूझ कर विक्षिप्त बने घूमते थे जिस से अपनी संपत्ति को बचा सकें या वापस प्राप्त कर सकें।

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

बलात्कार की रपट थाने में नहीं उच्च न्यायालय में दर्ज कराएँ

क महिला के साथ छेड़छाड़ हो जाए, यह केवल सारे समाज के लिए शर्म की बात ही नहीं है, अपितु भारतीय दंड संहिता में अपराध है, जिस के लिए अपराधी को दंडित कराने की जिम्मेदारी सरकार की है। सरकार ने यह जिम्मेदारी अपनी पुलिस को सौंपी हुई है। पुलिस इस तरह के मामलों में किस तरह का बर्ताव करती है, यह सर्वविदित है। पुलिस को इस तरह के छोटे-मोटे मामलों पर शर्म नहीं आती। आए भी क्यों जब पुलिस महानिदेशक ऐसा करे तो साधारण पुलिस वाले तो उस का अनुकरण कर ही सकते हैं।
लो छेड़छाड़ की बात छोड़ दी जाए। किसी महिला के साथ बलात्कार हो, वह भी एक के साथ नहीं, एकाधिक महिलाओं के साथ और एक बार नहीं, पूरे सप्ताह भर तक; फिर यह सब करें पुलिस वाले, वह भी पुलिस थाने में और पुलिस थाने से महिला की आँखों पर पट्टी बांध कर कहीं और ले जा कर।   पुलिस को इस पर भी शर्म आने से रही। शायद वे ऐसा न करें तो उन की मर्दानगी पर लोग सन्देह जो करने लगेंगे। फिर जब वे महिलाएँ पुलिस के उच्चाधिकारियों के पास जा कर अपनी रिपोर्ट दर्ज करने की कहें और उच्चाधिकारी सुन लें यह कदापि नहीं हो सकता। वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? पुलिस महकमे की इज्जत जो दाँव पर लगी होती है। आखिर पुलिस महकमे की इज्जत किसी महिला की इज्जत थोड़े ही है जिस से जब चाहे खेल लिया जाए। 
ब महिलाएँ क्या करें? कहाँ जाएँ? महिलाओं ने हिम्मत की और उच्चन्यायालय को शिकायत लिखी। उच्च न्यायालय ने पुलिस से जब जवाब तलबी की तब  जा कर पुलिस ने महिलाओं के बयान दर्ज किए। पुलिस को अब भी विश्वास नहीं है कि उन के सिपाही ऐसा कर सकते हैं, यह करतब कर दिखाने वाली अंबाला पुलिस  का कहना है कि यह राजस्थान के बावरिया गिरोह की सदस्य महिलाएँ हैं और खुद पर लगे आरोपों से बचने के लिए उलटे पुलिस पर ऐसे आरोप लगा रही हैं। महिलाओं के आरोप हैं कि पुलिस वालों ने न केवल बलात्कार किया, उन्हें बिजली का करंट भी लगाया जिस से एक महिला का गर्भ गिर गया और यह भी कि एक महिला इस बलात्कार के परिणाम स्वरूप गर्भवती हो गयी। 
खैर, पुलिस आखिर अपने सिपाहियों और अफसरों का बचाव न करेगी तो जनता उस के चरित्र पर संदेह करने लगेगी। लेकिन अब जनता क्या समझे? ये कि अब किसी महिला के साथ बलात्कार हो तो उसे पुलिस में रिपोर्ट करने नहीं जाना चाहिए, बल्कि सीधे उच्च न्यायालय में रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए। यानी अब पुलिस थाने का काम उच्च न्यायालय किया करेंगे?  
पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज न करने का किस्सा आम है। एक आम आदमी, जब भी उसे पुलिस में किसी अपराध की रिपोर्ट दर्ज करानी हो तो किसी रसूख वाले को क्यों ढूंढता है? यह किसी एक राज्य का किस्सा नहीं है, कुछ अपवादों को छोड़ दें तो पूरे भारत में पुलिस का यह चरित्र आम है। तो फिर क्यों नहीं पुलिस के चरित्र को बदलने के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा जाता। लगता है सरकारों, राजनेताओं और उन के आका थैलीशाहों को ऐसी ही पुलिस की जरूरत है।