आज से श्राद्धपक्ष आरंभ हो गया है। उस के साथ ही तमाम मीडिया चाहे वे अखबार हों या टीवी चैनल श्राद्ध को महिमामंडित करने में जुट गया है। इस काम को करते हुए हिन्दी मीडिया की भूमिका किस तरह की है? हमें उस की जाँच करनी चाहिए कि वह जनपक्षीय है या जनविरोधी? वह किस तरह के विचारों को जनता के बीच प्रचारित कर रही है? रविवार को दैनिक भास्कर के सभी संस्करणों ने श्रीयुत राजेश साहनी ज्योतिषविद् एवं ज्योतिष सलाहकार का आलेख 'बुजुर्गो
के प्रति श्रद्धा पितृ-दोष से मुक्ति' प्रकाशित किया है।
श्रीयुत साहनी अपने आलेख के प्रारंभ में रामायण, पुराणों और गीता का उल्लेख करते हुए यह स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं कि पूर्वजों द्वारा किए गए कर्मों का नतीजा उन के वंशजों को भुगतना पड़ता है, यही पितृदोष है। वे समाधान बताते हैं कि कर्मकांड पूर्वक श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न हो जाते हैं। पितरों के प्रसन्न होने से जीवन की समस्याओं का समाधान हो जाता है और पितृदोष से मुक्ति मिलती है। श्रीयुत राजेश का सारा ध्यान यह समझाने पर है कि आज व्यवस्था के दोषों के कारण जनता जिस तरह का कष्टमय जीवन जी रही है उस का मूल कारण यह व्यवस्था नहीं, अपितु तुम्हारे पितरों द्वारा किए गए दुष्कर्म हैं। इसलिए तुम्हें व्यवस्था को दोष देने के स्थान पर श्राद्ध करने चाहिए। श्रीयुत राजेश का यह कुतर्क कि पितरों को प्रसन्न करने से ग्रहों और देवताओं की कृपा होती है मेरे गले नहीं उतरा, शायद आप के गले उतर जाए। जो पितर स्वयं दुष्कर्म के दोषी थे उन के प्रसन्न हो जाने से ग्रहों और देवताओं को प्रसन्न करने की श्रीयुत राजेश की जुगत वैसी ही है जैसे किसी का पिता किसी अपराध के लिए जेल में बंद हो, तो जेल अधिकारियों को कुछ खिला-पिला कर पिता को सुविधाएँ पहुँचा कर प्रसन्न कर दिया जाए तो संतान उस अपराध के लांछन से मुक्त हो जाएगी?
श्रीयुत राजेश जी केवल शास्त्रों में ही दखल नहीं रखते, वे विज्ञान और खास तौर पर खगोल विज्ञान में भी महारत रखते हैं। उन्हें पितरलोक का पता भी मालूम है। वे कहते हैं ... चंद्रमा द्वारा पृथ्वी की एक परिक्रमा लगभग 27 दिन 7 घंटे 45 मिनट में पूर्ण होती है। उल्लेखनीय है कि चंद्रमा का एक भाग ही पृथ्वी की ओर रहता है, दूसरा भाग पृथ्वी की ओर कभी नहीं आता। चंद्रमा जितनी कालावधि में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूर्ण करता है, उतने ही कालखंड में वह अपने अक्ष पर एक बार घूम जाता है, इस कारण चंद्रमा का एक भाग सदैव पृथ्वी की ओर होता है, तो दूसरा भाग अदृश्य। चंद्रमा का अदृश्य अंधकारमय भाग, जो पृथ्वी की ओर नहीं आता, उसे पितृलोक माना जाता है।
मैं ने कुछ देर के लिए श्रीयुत राजेश की इस बात को मान लिया कि चंद्रमा का वह भाग जो कभी पृथ्वी की ओर नहीं आता वह पितरलोक है। पर उन की इस प्रस्थापना ने कि वह भाग अदृश्य है और अंधकारमय भी अपने भेजे में घुसने से मना कर दिया। एक तो अमावस के दिन वह भाग पूरी तरह प्रकाशित रहता है, इस तरह उसे अंधकारमय कहना गलत है। फिर वह अदृश्य भी नहीं है, अमावस के रोज उस पूरे भाग को चंद्रमा के पिछली ओर जा कर देखा जा सकता है। अचानक श्रीयुत राजेश का मस्तिष्क तुरंत रोशन हो उठता है, और चंद्रमा के पृष्ठ भाग जिसे वे पितर लोक बता रहे हैं के लिए कहते हैं कि जब हमारे यहाँ (पृथ्वी पर) अमावस्या होती है तो पितरलोक में मध्यान्ह होता है और यह पितरों के भोजन का समय होता है। इसी कारण अमावस्या के दिन हम श्राद्धकर्म करते हैं। लेकिन श्रीयुत राजेश जी का मस्तिष्क जिस बत्ती के जलने से रोशन हो उठा था वह तुरंत ही बुझ जाती है, (वे चाहें तो इस के लिए बिजली सप्लाई कंपनी को दोष दे सकते हैं) वे तुरंत चंद्रमा के पृष्ठ भाग पर सदैव के लिेए अंधकार कर देते हैं। वे कहते हैं ... वैज्ञानिक मतानुसार भी चंद्रमा की नमीयुक्त सतह पर दिशा सूचक यंत्र कार्य नहीं करते तथा एक भाग सदैव अंधकार से आच्छादित रहता है, जो चंद्रमा पर पितृ-लोक संबंधी अवधारणाओं की पुष्टि करता है।
बेचारे वैज्ञानिक बरसों से चंद्रमा पर नमी तलाश रहे हैं, फोटू खींच-खींच कर परेशान हैं कि किसी तरह बूंद भर पानी का पता लग जाए। वे पता नहीं लगा पाए। उन्हें तुरंत श्रीयुत राजेश जी से संपर्क कर के उन वैज्ञानिकों का पता प्राप्त कर लेना चाहिेए जिन्हें चंद्रमा के नमीयुक्त भाग का पता मालूम है और जहाँ जा कर उन के दिशासूचक यंत्र फेल हो गए थे। श्रीयुत राजेश जी विश्वास जल्दी ही डिग जाता है कि पाठक राजा दशरथ की कहानी पर विश्वास कर लेंगे। पाठकों का विश्वास कायम रखने के लिए वे तुरंत अपनी फलित ज्योतिष को सामने ला खड़ा करते हैं। वे सूर्य, शनि, राहु, के साथ-साथ शुक्र और बृहस्पति को दोष देने लगते हैं कि वे किसी के जन्म के समय किसी खास स्थान पर क्यों थे? जल्दी ही अपने धंधे पर आ कर राशियाँ और पितृदोष से मुक्ति के शुद्ध भौतिक उपाय बताने लगते हैं।
लगभग सभी अखबार इस तरह के आलेख प्रकाशित कर रहे हैं, टीवी चैनल्स पर तो यह काम चीख-चीख कर होता है। खास मेक-अप में खास लोग आ कर अदालत के हरकारे की तरह आवाज लगाते हैं ... मेष राशि वालों .............. ओं !!!!!!!!! मुझे हंसी चलती है, लेकिन पीड़ित लोग उसे ध्यान से सुनते हैं और उलझ जाते हैं। मुझे तुंरत यू. आर. अनंतमूर्ति की कृति और उस पर आधारित गिरीश कासरवल्ली की पहली फिल्म "घटश्राद्ध" स्मरण होने लगती है जो श्राद्ध के कर्मकांड के पाखंड और उस में फँस कर बिन जल मीन की तरह छटपटाते जन की कहानी उजागर करती है। इस तरह के आलेख जनता को उसी जाल में फँसाए रखना चाहते हैं जिस जाल में फँसे रहने के कारण इस देश की जनता को देशी-विदेशी सामंत और आक्रान्ता लूटते रहे। इस तरह वे आज के शोषक पूंजीवादी निजाम की रक्षा करते हैं।
मनुष्य के जन्म से ले कर आज तक मानव जाति की जितनी पीढ़ियाँ गुजरी हैं, सभी पीढ़ियों के मनुष्य ने जीवन जीते हुए अनुभव अर्जित किए, संपत्ति अर्जित की जिसे वे आने वाली पीढ़ियों के लिेए छो़ड़ गए हैं। हमें उन के अनुभव शिक्षा के रूप में प्राप्त होते हैं। जिन के आधार पर हम पूर्वजों के आगे का विकसित जीवन जीते हैं। हम पर हमारे पूर्वजों का कर्ज है। लेकिन यह कर्ज ब्राह्मणों को भोजन करवा कर नहीं उतारा जा सकता। उसका तो सब से सही तरीका यही है कि हम अपना जीवन जीते हुए नए अनुभव अर्जित करें और पूर्वजों से प्राप्त शिक्षा में उनका योग करते हुए आगे आने वाली पीढ़ी के लिए शिक्षा रुप में छोड़ जाएँ। श्राद्ध-पक्ष में हम परिवार और मित्रों सहित एकत्र हो कर अपने पूर्वजों का स्मरण करें, उस में कोई बुराई नहीं। लेकिन इस स्मरण को कर्मकांड, पितृदोष आदि से जोड़ कर देखना गलत है और दिखाना मनुष्यता के प्रति अपराध। हमारा सारा मीडिया इस अपराध का दोषी है।
19 टिप्पणियां:
ऐसे महान लोगों की कमी कहाँ है? अखबार से चैनल तक और ब्लॉगों पर भी मौजूद हैं ये महान लोग।
बेचारे वैज्ञानिक बरसों से चंद्रमा पर नमी तलाश रहे हैं, फोटू खींच-खींच कर परेशान हैं कि किसी तरह बूंद भर पानी का पता लग जाए। वे पता नहीं लगा पाए। उन्हें तुरंत श्रीयुत राजेश जी से संपर्क कर के उन वैज्ञानिकों का पता प्राप्त कर लेना चाहिेए जिन्हें चंद्रमा के नमीयुक्त भाग का पता मालूम है और जहाँ जा कर उन के दिशासूचक यंत्र फेल हो गए थे।
जय हो जय हो!
इतना ही क्यों सारी विज्ञान प्रयोगशालाओं को बंद कर वैज्ञानिको को धर्मग्रंथो के अध्ययन मे लगा देना चाहीये, क्योंकि वे ईश्वर वाणी है और सारा ज्ञान उन्ही मे पहले से ही लिखा हुआ है।
आपसे सहमत वैसे हर मंदिर के पास एक ज्योतिष आपको मिल जायेगा जो भविष्य बता देगा मगर कोई शिक्षक नहीं मिलेगा जो भविष्य बना दे |
यही लोग तो अर्थ का अनर्थ कर देते हैं. जबरदस्ती किसी वैज्ञानिक तथ्य को इस प्रकार से अपनी व्याख्या देकर पता नहीं क्या सिद्ध करना चाहते हैं.
यही पंडावाद है श्रीयुत राजेश जैसे पंडों ने ही हमारे धर्म व ज्योतिष शास्त्र का बेड़ा गर्क किया है|
@हमारा सारा मीडिया इस अपराध का दोषी है।
सही कह रहे हैं ,इन्ही बकवासों की बदौलत हम दुनिया में आगे रहने का भ्रम पाल रहे हैं.
आपके इसी आलेख से प्रेरित होकर मैं भी कुछ अपनें ब्लॉग पर लिख रहा हूँ.
पुरानी गलतियों को सुधारने का, दुहराने का और नई गलतियां सीखने-करने का अनवरत सिलसिला.
वैज्ञानिक व धार्मिक तत्वों पर चैनेल वाले पका डालते हैं, सम्मति मिले इन्हे।
ये बात हमें और आप को समझ आ जाती है किन्तु जो बेचारे किसी कारण जीवन में परेशान होते है उन्हें ये एक अच्छा उपाय लगने लगता है उन्हें लगता है शायद इन्ही कारणों से वो परेशान है और इन लोगों के बताये उपाय कर ले तो शायद जीवन में परेशानियों से मुक्ति मिले | इन महान पंडितो को ऐसे ही बेचारो की तलाश होती है और ये सारे लेख आदि उन्ही को फ़साने के लिए होते है |
श्रद्धा और अंधविश्वास के बीच एक महीन रेखा है जो इन दोनों में भेद करती है !
श्रद्धा पर सवाल नहीं उठा सकते, श्रद्धा हज़ारों दिलों में रौशनी जलाए रखने में समर्थ है !
हाँ अंध विश्वास पर उंगली अवश्य उठनी चाहिए !
शुभकामनायें भाई जी !
अन्धविश्वास के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि सत्य क्या है जिसपे विश्वास किया जाए और अंधविश्वास क्या है?
क्या किसी धर्म मैं विश्वास रखना भी अंधविश्वास है?
भविष्य जानने की इच्छा और भयादोहन...जब तक इनसान में रहेंगे, ये दुकानें ऐसे ही चलती रहेंगी...कहीं सड़क किनारे बैठे तोते वाले ज्योतिष महाराज...या टीवी के ज़रिए फाइव स्टार होटलों के कमरों में बैठे फ्यूचर्स टैलर्स...
रही चांद पर पानी-बर्फ की बात तो मक्खन का फंडा सही है...अब बस ऊपर दारू और नमकीन ही ले जाने की ज़रूरत पड़ेगी...
जय हिंद...
सबको सम्मति दे भगवान.
जब ऋषि की बात को बिसरा दिया तो आपकी कौन सुनेगा , हरेक को धंधे में लाभ चाहिए आपको भी मुझे भी पंडे को भी और मीडिया को भी , ऐसे कार्यक्रम देखकर टीआरपी बढ़ाने वाले दर्शक भी अपराधी हैं ।
क्या खूब...
शहद है...इसलिए मक्खियां हैं...
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट। अंधविश्वास के विरूद्ध ऐसे हजारों लेख लिखे जाने की आवश्यकता है। जो हम नहीं जानते उस विषय में कोई हमे मूर्ख बनाता है तो बात समझ में आती है कि ठीक है हम नहीं जानते तो जो सभी कह रहे हैं वही सही होगा। लेकिन जो हम जानते हैं, खुली आँखों से देख सकते हैं उस पर भी कोई हमें मूर्ख बनाता चला आ रहा है और हम हैं कि आँख खोलना ही नहीं चाहते, आश्चर्य होता है।
सतीश सक्सेना जी से सहमत…
सिर्फ़ इतना जोड़ना चाहूँगा कि विश्वास और अंधविश्वास में भी महीन सा फ़र्क है…।
जो मेरे लिए अंधविश्वास है, हो सकता है कि वह सामने वाले के लिए "विश्वास" हो…। वह किसी मानसिक संत्रास से गुज़र रहा हो और उसे "विश्वास" है कि "ऐसा" करने से "वैसा" हो जाएगा तो हम उसके विश्वास को अंधविश्वास कैसे ठहरा सकते हैं…?
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जो मेरे लिए अंधविश्वास है, हो सकता है कि वह सामने वाले के लिए "विश्वास" हो…। वह किसी मानसिक संत्रास से गुज़र रहा हो और उसे "विश्वास" है कि "ऐसा" करने से "वैसा" हो जाएगा तो हम उसके विश्वास को अंधविश्वास कैसे ठहरा सकते हैं…?
आपके लेख की मूल भावना से सहमत होते हुऐ भी सुरेश जी के इस लिखे को अवश्य रेखांकित करना चाहूंगा यहाँ पर... हम सभी किसी न किसी अंधविश्वास में जकड़े हैं और कई बार तो सब कुछ जान कर उससे निकलना नहीं चाहते हैं तथा तमाम स्थापत तथ्यों को झुठला उसे सही साबित करने का प्रयास भी करते हैं...
मिसाल के तौर पर होम्योपैथी में आपका व आदरणीय सतीश सक्सेना जी का विश्वास मुझ समेत कइयों को अंधविश्वास सा ही लगता है!
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दोस्त अपने मुल्क की किस्मत पे रंजीदा न हो / उनके हाथों में है पिंजरा उनके पिंजरे में सुआ ( दुष्यंत ) .... हाँलाकि किस्मत पर अन्धविशवास यहाँ भी है ।
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