@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: हर कोई अपनी सुरक्षा तलाशता है, ... साहित्य भी

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

हर कोई अपनी सुरक्षा तलाशता है, ... साहित्य भी

नुष्य ही है जो आज अपने लिए खाद्य का संग्रह करता है। लेकिन यह निश्चित है कि आरंभ में वह ऐसा नहीं रहा होगा। उस के पास न तो जानकारी थी कि खाद्य को संग्रह किया जा सकता है और न ही साधन थे। वह आरंभ में भोजन संग्राहक और शिकारी रहा। लेकिन कभी भोजन या शिकार न मिला तो? अनुभव ने उसे सिखाया कि भोजन संग्रह कर के रखना चाहिए। आरंभिक पशुपालन शायद भोजन संग्रह का ही परिणाम था। तब किसी विचार, सम्वाद या सूचना को संग्रह करने का कोई साधन भी नहीं था। भाषा, लिपि और लिखने के साधनों के विकास ने इन्हें संग्रह करने और उस के संचार का मार्ग प्रशस्त किया। अंततः कागज इस संग्रह के बड़े माध्यम के रूप मे सामने आया। लेकिन विचार, सम्वाद और सूचना के संग्रह और संचार के लिए बेहतर साधनों की मनुष्य की तलाश यहीं समाप्त नहीं हो गई। उस ने आगे चल कर कम्प्यूटर और इंटरनेट का आविष्कार किया।
ब लिखने के लिए कोई माध्यम नहीं था तो लोग विचार, सम्वाद और सूचना को रट कर कंठस्थ कर लेते थे। शिक्षा भी मौखिक ही थी और परीक्षा भी। बाद में कागज का आविष्कार हो जाने पर भी कंठस्थ करना जारी रहा। तमाम वैदिक साहित्य को श्रुति कहा ही इसलिए जाता है कि वे कंठस्थ किए जाते रहे और आगे सुनाए जाते रहे। सुनाए जाने की यह परंपरा आज भी नानी की कहानियों और कवि-सम्मेलनों के रूप में मौजूद है। समूचे लोक साहित्य का दो-तिहाई आज भी  कागज पर नहीं आया है, वह आज भी उसी सुनने और सुनाने की परंपरा से जीवित है। बोलियों के लाखों शब्द आज तक भी कागज और शब्दकोषों से बाहर हैं। मेरी अपनी बोली 'हाड़ौती' के अनेक शब्द, कहावतें, मुहावरे, पहेलियाँ, गीत अभी तक कागज पर नहीं हैं। अनेक शब्द, कहावतें, मुहावरे, पहेलियाँ ऐसे हैं कि खड़ी बोली हिन्दी या अन्य किसी भाषा में उन के समानार्थक नहीं हैं। अनेक भावाभिव्यक्तियाँ ऐसी हैं जो अन्य शब्दों के माध्यम से संभव नहीं हैं। 
हिन्दी की खड़ी बोली के प्रभाव ने इन बोलियों को सीमित कर दिया है। मेरी चिंता है कि यदि किसी तरह ये शब्द, कहावतें, मुहावरे, पहेलियाँ, गीत यदि संरक्षित न हो सके तो शायद हमेशा के लिए नष्ट हो जाएंगे, और उन के साथ वे भावाभिव्यक्तियाँ भी जिन्हें ये रूप प्रदान करते हैं। उन्हें कागज तक पहुँचाने में विपुल धन की आवश्यकता है। लेकिन यह काम कम्प्यूटर से सीडी, या डीवीडी में संग्रहीत करने तथा उन्हें इंटरनेट पर उपलब्ध करा देने से भी संभव है, और कम खर्चीला भी। यदि ऐसा हो सका तो बहुत सारा साहित्य कागज पर कभी नहीं पहुँचेगा और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम पर पहुँच जाएगा। छापे के साथ आज क्या हो रहा है। छापे की तकनीक उस स्तर पर पहुँच गई है कि कागज पर कोई चीज छापने के पहले उस का इलेक्ट्रोनिक संकेतों में तब्दील होना आवश्यक हो गया है। किताब, पर्चे और अखबार छपने के पहले किसी न किसी डिस्क पर संग्रहीत होते हैं। उस के बाद ही छापे पर जा रहे हैं। किसी भी साहित्य के किसी डिस्क पर संग्रहीत होने के बाद छपने और इंटरनेट पर प्रकाशित होने में फर्क इतना रह जाता है कि यह काम इंटरनेट पर तुरंत हो जा रहा है ,जब कि छप कर पढ़ने लायक रूप में पहुँचने में कुछ घंटों से ले कर कुछ दिनों तक का समय लग रहा है। 
दि कागज और डिस्क के बीच कभी कोई जंग छिड़ जाए तो डिस्क की ही जीत होनी है, कागज तो उस में अवश्य ही पिछड़ जाएगा क्यों कि वह भी डिस्क का मोहताज हो चुका है, इसे हम ब्लागर तो भली तरह जानते हैं। ऐसे में सभी कलाओं के लिए भी मौजूदा परिस्थितियों में सब से अधिक सुरक्षित स्थान डिस्क और इंटरनेट ही है। साहित्य भी एक कलारूप ही है। उस के लिए भी सुरक्षित स्थान यही हैं। हर कोई अपने लिए सुरक्षित स्थान तलाशता है, साहित्य को स्वयं की सुरक्षा के लिए डिस्क और इंटरनेट की ही शरण में आना होगा। 
....... और अंत में एक शुभ सूचना कि भाई अजित वडनेरकर की शब्दों का सफ़र भाग -२ की पांडुलिपि को एक लाख रुपये का विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार घोषित हुआ है। राजकमल प्रकाशन अजित वडनेरकर को यह सम्मान 28 फ़रवरी को नई दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में शाम पांच बजे आयोजित कार्यक्रम में प्रदान करेगा। पुरस्कार के चयनकर्ता मंडल में प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी और अरविंद कुमार शामिल थे। इस सूचना ने आज के दिन को मेरे लिए बहुत बड़ी प्रसन्नता का दिन बना दिया है, मैं बहुत दिनों से इस दिन की प्रतीक्षा में था। अजित भाई को व्यक्तिगत रूप से बधाई दे चुका हूँ। आज सारे ब्लाग जगत को इस पर प्रसन्न होना चाहिए। इस महत्वपूर्ण पुस्तक का जन्म पहले इंटरनेट पर ब्लाग के रूप में हुआ। अजित भाई के साथ सारा हिन्दी ब्लाग जगत इस बधाई का हकदार है।

19 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर बात लिखी आप ने, हमे अपने अपने क्षेत्र की भाषा की कहानियां, कहावते, ओर अन्य ऎसी बाते नेट पर जरुर रखनी चाहिये, ताकि आने वाली पीढी भी उन्हे पढ सके.
अजित वडनेरकर को मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई

Baljit Basi ने कहा…

अजित वडनेरकर को लखपति होने का वधाई!

Raravi ने कहा…

ajit ji ko badhaiyan.
mauka mila to shabdon ka safar hum bhi padhenge.
kshetrya boliyon ke shabd aur bhavavyktiyon ka sanrakhan zaroori hai.

Udan Tashtari ने कहा…

अजित वडनेरकर जी को हार्दिक बधाई

Udan Tashtari ने कहा…

साहित्य को स्वयं की सुरक्षा के लिए डिस्क और इंटरनेट की ही शरण में आना होगा- सत्य वचन!!

Arvind Mishra ने कहा…

महत्वपूर्ण विचार -अजित जी बधाई के पात्र है ... पुरस्कार उनकी सृजनात्मकता को निश्चय ही प्रोत्साहित करेगा!

Satish Saxena ने कहा…


@ एक शुभ सूचना कि भाईअजित वडनेरकर की शब्दों का सफ़र भाग -२ की पांडुलिपि को एक लाख रुपये का विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार घोषित हुआ है।।"

यह खबर हिंदी ब्लॉग जगत के लिए बेहद सुखद है ! मेरी कामना है कि अजित वडनेरकर दिन प्रति दिन यह सीढियाँ चढ़ते हुए हिंदी ब्लॉग जगत के सिरमौर बने रहें ! अजित वडनेरकर को बधाई !

निर्मला कपिला ने कहा…

अजित वडनेरकर को जी को हार्दिक शुभकामनायें व बधाई। हमारे लिये गौरव की बात है कि इस पुस्तक की शुरूआत ब्लाग जगत से हुयी।समीर जी ने सही कहा। साहित्य को इन्टर्नेट की सहायता लेनी ही पडेगी। आने वाली पीढी पुस्तकों की बजाये नेट को प्राथमिकता देगी।ाभार।

OM KASHYAP ने कहा…

badhai swekar kare ji

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अजित जी को हार्दिक शुभकामनायें। साहित्य भी सत्य की प्राचीर में स्वयं की रक्षा करता है।

सञ्जय झा ने कहा…

bahut hi sam-prekshaniya ...... ye to hona hi hai ..........

ajit bhaijee ke samman se ..... nishaya hi aur bhai logon me prerna
jagegi ...... anandam...anandam...

pranam.

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

सही कहा आपने। विचारणीय है।

अजित वडनेरकर जी को हार्दिक बधाई

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

ब्लागर्स के लिये सम्मान की बात..बधाई.

Sushil Bakliwal ने कहा…

अजित वडनेरकरजी को हार्दिक बधाईयां...

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

अजित वडनेरकर को मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई. बिलकुल सही कहा आपने और श्री राज भाटिया जी ने कि- हमे अपने अपने क्षेत्र की भाषा की कहानियां, कहावते, ओर अन्य ऎसी बाते नेट पर जरुर रखनी चाहिये, ताकि आने वाली पीढी भी उन्हे पढ सके.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

`यदि कागज और डिस्क के बीच कभी कोई जंग छिड़ जाए तो डिस्क की ही जीत होनी है'

पर याद रहे कि डिस्क फेल हो सकता है कागज़ नहीं :)

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अजित वडनेरकर जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.

रामराम.

बेनामी ने कहा…

बेहतर...
शब्दों का सफ़र...तो महत्त्वपूर्ण है ही...

Rahul Singh ने कहा…

अजित जी का काम ब्‍लॉग पर उपलब्‍ध सामग्री का बेहतरीन नमूना है, बधाई.