सूक्ष्मतम मानवीय संवेदनाओं को कलात्मक तरीके से अभिव्यक्त करने की क्षमता कविता में होती है। यही विशेषता कविता की शक्ति है। इन संवेदनाओं को पाठक और श्रोता तक पहुँचाना उस का काम है। शिवराम रंगकर्मी, कवि, आलोचक, संपादक, संस्कृतिकर्मी, भविष्य के समाज के निर्माण की चिंता में जुटे हुए एक राजनेता, एक अच्छे इंसान सभी कुछ थे। वे कविताई की वर्तमान स्थिति से संतुष्ट न थे। उन्हों ने अपनी इस असंतुष्टि को प्रकट करने के लिए उन्हों ने एक लंबा निबंध "कविता के बारे में" उन के देहावसान के कुछ समय पूर्व ही लिखा था, जो बाद में 'अलाव' पत्रिका में प्रकाशित हुआ। रविकुमार इस निबंध की चार कड़ियाँ अपने ब्लाग सृजन और सरोकार पर प्रस्तुत कर चुके हैं, संभवतः और दो कड़ियों में यह पूरा हो सकेगा। मैं ने इस निबंध को आद्योपान्त पढ़ा। उन की जो चिंताएँ कविता के बारे में हैं, वही सब चिंताएँ इन दिनों ब्लागरी के बारे में अनेक लोग उठा रहे हैं। मेरी राय में शिवाराम के इस निबंध को प्रत्येक ब्लागर को पढ़ना चाहिए। इस निबंध से ब्लागरों को भी वे सू्त्र मिलेंगे जो ब्लागरों को बेहतर लेखन के लिए मार्ग सुझा सकते हैं।
उदाहरण के रूप उस निबंध के पहले चरण को कुछ परिवर्तित रूप में यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। बस अंतर केवल इतना है कि इस में 'कविताई' को 'ब्लागरी' से विस्थापित कर दिया गया है ...
शिवराम |
"आजकल ब्लाग खूब लिखे जा रहे हैं। यह आत्माभिव्यक्ति की प्रवृत्ति का विस्तार है और यह अच्छी बात है। लेखनकर्म, जो अत्यन्त सीमित दायरे में आरक्षित था, वह अब नई स्थितियों में व्यापक दायरे में विस्तृत हो गया है। हमारे इस समय का लेखन एक महान लेखक नहीं रच रहा, हजारों लेखक रच रहे हैं। जीवन के विविध विषयों पर हजारों रंगों में, हजारों रूपों में लेखन प्रकट हो रहा है। हजारों फूल खिल रहे हैं और अपनी गंध बिखेर रहे हैं। यह और बात है कि मात्रात्मक विस्तार तो खूब हो रहा है, लेकिन गुणात्मक विकास अभी संतोषजनक नहीं है। ब्लाग खूब लिखे जा रहे हैं, लेकिन अभी पढ़े बहुत कम जा रहे हैं। यूं तो समग्र परिस्थितियां इसके लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन हमारे ब्लागरों के लेखन-कौशल और लेखन की गुणवत्ता में न्यूनता भी इसके लिए जिम्मेदार है। उसकी आकर्षण क्षमता और इसके असर में कमियां भी इसके लिए जिम्मेदार है। यही चिन्ता का विषय है। इस सचाई को नकारने से काम नहीं चलेगा। इसे स्वीकार करने और इस कमजोरी से उबरने का परिश्रम करना होगा। यूं तो और बेहतर की सदा गुंजाइश रहती है तथा सृजनशीलता सदैव ही इस हेतु प्रयत्नरत रहती है, लेकिन फिलहाल हिन्दी ब्लागरी जिस मुकाम पर खड़ी है, इस हेतु विशेष प्रयत्नों की जरूरत है।
अब यदि आप समझते हैं कि मूल आलेख को पढ़ना चाहिए तो "कविता के बारे में" को चटखाएँ और वहाँ पहुँच जाएँ।
14 टिप्पणियां:
निबंध पढ़ लिया।
लेकिन ब्लागिंग के लिये अच्छा होना, बेहतर अभिव्यक्ति की आशा रखना और जिस मुकाम पर खड़े हैं उससे और किसी खास मुकाम पर पहुंचने की अपेक्षा रखना मेरी समझ में गैरजरूरी है। अभिव्यक्ति का यह माध्यम बहुतायत में इसी तरह रहेगा। आम आदमी की अभिव्यक्ति का माध्यम होने के नाते अधिकांश अभिव्यक्तियां ऐसी ही रहेगी -हमेशा। कुछ खास और बहुत अच्छा लिखना वाले जब कभी ब्लागिंग से जुड़ेंगे तब उनके लेखन को उदाहरण के रूप में दिखाकर हम मानलेंगे कि ब्लागिंग का बहुत विकास हुआ लेकिन वह पूरा सच नहीं होगा। :)
मूल लेख में इस तरह का बदलाव मुझे रास नहीं आया :) यह तो संदूषण है :(
जब विस्तार बहुत बढ़ जायेगा, स्वमेव अच्छा साहित्य छिन्नित होकर सामने आने लगेगा।
आधार तो यही रहेगा हमेशा..बस, अच्छा और बुरा छांटने के विकल्प बढ़ते जायेंगे.
मगर मुझे यह बदलाव रुचिकर लगा हालांकि डॉ अरविन्द मिश्र की बात से सहमत हूँ ! लेखन एक दस्तावेज तो है ही इस नाते वे ठीक कह रहे हैं !शुभकामनायें आपको !!
samjhne ki koshish kar rahe hain...
pranam.
यहाँ श्री अनूप शुक्लजी के विचारों से सहमत.
बहुत बहुत आभार आपका पढवाने के लिए...पूरा आलेख पढने को मन उत्कंठित हो उठा है...
बिलकुल इसी रूप में ये बातें मन को लम्बे समय से मथ रहीं थीं ...
कविता ही क्या, किसी भी विधा में लिखने वालों को यह आलेख ध्यान पूर्वक पढना और ध्यान में रखना चाहिए....
लगा ही नहीं कि बदलाव किया गया है...
वही बातें और भी अधिक वाज़िब सी होकर ब्लॉग की अभिव्यक्तियों के संदर्भ में उभरी हैं....
यथास्थिति का जटिल अवगुंथन कई बार ऐसे भ्रम पैदा करता है कि इसमें कोई भी बदलाव संभव नहीं है..ऐसे ही होता रहा है...सनातन...और ऐसा ही चलता रहेगा...
पर यह सच नहीं है...विकास होता है...और बदलावों के जरिए ही होता है...
सारी शुरुआती अभिव्यक्तियां...अपने विकास के क्रम में निरंतर बेहतर होती रहती हैं...यदि सिर्फ़ ब्लॉग्स के संदर्भ में ही इसे महसूस करना हो...तो किसी भी ब्लॉग और ब्लॉगर के शुरुआती स्तर और वर्तमान स्तर को जांच कर ( कुछ अपवादों को हमेशा छोड़ा जा सकता है ) यह किया जा सकता है...
विकास की एक प्रक्रिया को वहां आसानी से देखा जा सकता है...और यही बेहतर अभिव्यक्ति और खास मुकाम की आकांक्षा...भविष्य के उदाहरण बनेंगी...
लेखन की बेहतरी को बीच-बहस में लाने के आपके प्रयास निश्चित ही कई लोगों में आंतरिक आलोड़न-विलोड़न करेंगे....
ब्लॉग के लेखक और पाठकों का अनुपात सचमुच विचारणीय है.
ब्लॉगरों को ही नहीं , हर एक को कविता के बारे में जानने के लिये शिवराम जी का यह लेख ज़रूरी है ।
मुझे लगता है हर लेखक अपना बेस्ट दे रहा है और समय के साथ परिष्कृत भी हो रहा है । और पाठक भी सेलेक्टिवे पठन करते हैं । अपने मन पसंद विषय को चुनकर ही पढ़ रहे हैं। ब्लोगिंग एक ऐसा प्लेटफार्म है , जहाँ लेखक और पाठक दोनों ही खुश हैं , और अपनी-अपनी आजादी के साथ लेखन और पठन कर्म कर रहे हैं।
ब्लोगिंग को जबरदस्ती साहित्य की चड्डी क्यूँ पहनाते हो , जब दुनिया में फोटोग्राफी, कला , संगीत, अध्ययन , गणित, विज्ञान , सामान्य ज्ञान, कल्पनाशक्ति आदि आदि के भिन्न भिन्न नाप के खूबसूरत पैंट उपलब्ध है तो |
@नीरज बसलियाल
ब्लागरी तो एक प्रकाशन माध्यम भर है। यहाँ वह सब कुछ है जो कागज और किताबों में हो सकता है उसे के अतिरिक्त दृश्य और श्रव्य रचनाएँ भी हैं। उन में साहित्य भी रहेगा ही, साथ में अन्य विधाएँ भी रहेंगी।
किसी भी विधा में लोग रचना करें। रचना लगातार की जाए तो रचनाकार का विकास होगा ही। लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जिन पर ध्यान दिया जाए तो इस विकास को गति प्रदान की जा सकती है। अब कोई ध्यान न दे तो क्या जबरदस्ती थोड़े ही है। यह कहने की मुहिम भी चलाई जा सकती है कि ध्यान दे कर की गई चीज ब्लागरी नहीं है। यह तो भविष्य बतायेगा कि क्या टिकेगा?
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