सासंद जी,
आप हर बार इलाके में वोट मांगने आए। कुछ ने आप का विश्वास किया, कुछ को आपने जैसे-तैसे-ऐसे-वैसे पटाया। आप के पिटारे में लाखों वोट इकट्ठे होते रहे और आप संसद में जाते रहे। वहाँ गए तो आप ने संविधान की कसम ली कि आप देश की जनता की भलाई के लिए काम करेंगे। आप वहाँ गए थे, सरकार चुने जाने के लिए नफरी बढ़ाने, कानून बनाने पर अपनी मोहर लगाने, जनता की बात कहने और उस के लिए लड़ने के लिए, जनता को न्याय दिलाने के लिए। पर क्या आप का कर्तव्य यह भी नहीं बनता था क्या कि आप कानून के रखवाले भी बने रहें। आप के सामने कानून की धज्जियाँ उड़ गईं, आप उन धज्जियों को घोल कर पी गए और बीस बरस तक सांस भी नहीं ली। इस बीच आप न जाने क्या क्या कहते रहे, लेकिन यह बात कैसे इतने दिन पची रही। आप को कभी उलटी नहीं आई?
सांसद जी,
आप के लिहाज से शायद यह पुण्य का काम था कि दारू की दुकानें बंद न हों, गरीब लोग परेशान न हों, दारू के अभाव में जहरीली दारू पी कर न मरें। इसीलिए आप की जुबान पर अब तक ताला पड़ा रहा। अब आपने जुबान खोली भी है तो उस जज का नाम नहीं बता रहे हैं, जिसे वह 21 लाख रुपए दिए गए थे। आप ये भी कह रहे हैं कि आप के पास साबित करने को सबूत नहीं हैं। आप ने व्यर्थ ही इतने बरसों तक बात को छुपाए रखने की मशक्कत की, वरना उस अपराध के सब से पहले सबूत तो आप ही थे। आप! लाखों की जनता के चुने हुए प्रतिनिधि, संसद सदस्य। इस सबूत को तो आपने ही नष्ट कर दिया, इस तरह आप ने अपराध किया। फिर इतने बरसों तक आप ने इस बात को छुपा कर एक और अपराध किया। अपराधी तो आप भी हैं ही। पर यह सब करने की जरूरत आप को क्या थी?
सांसद जी,
कहीं ऐसी बात तो नहीं कि वे सभी दारूवाले आप के मिलने वाले हों, आप को चुनाव जीतने के लिए भारी-भरकम चंदा दिया हो, आप को सांसद बनाने में बड़ी भूमिका अदा की हो। आप को अपने इन हमदर्दों पर दया आ गई हो कि दुकानें बंद हो जाएंगी तो क्या खाएंगे? जिन्दा कैसे रहेंगे? अगला चुनाव कैसे लड़ेंगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि जज साहब और इन दारूवाले मित्रों के बीच की कड़ी आप ही हों, और इसीलिए यह बात इतने दिन इसी लिए छुपा रखी हो।
सांसद जी,
पर आप यह कैसे भूल गए कि आप उसी राज्य के सांसद हैं, जिस राज्य ने इन दुकानों को बंद करने का आदेश दिया था? आप यह कैसे भूल गए कि आप के प्रान्त से एक जज हुए थे सु्प्रीम कोर्ट में, वी.आर. कृष्णा अय्यर और वे अभी तक जीवित ही नहीं हैं सक्रिय भी हैं। फिर भी आप ने यह बात खोल दी। अब मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि इस बात को खोलने के पीछे आप की मंशा क्या है? या फिर आप की मजबूरी क्या है? लेकिन अब आपने बात खोल ही दी है तो भुगतना तो पड़ेगा ही। थाने में आप के खिलाफ अपराध दर्ज हो गया है। ये सवाल मैं नहीं पूछ रहा हूँ, बल्कि बता रहा हूँ कि ऐसे ही सवाल पुलिस आप से पूछने वाली है। जरा तैयार हो जाइए!
14 टिप्पणियां:
यह गणतंत्र है डॊक्टर सा’ब... यथा प्रजा, तथा राजा :)
जवाब कहाँ है ?
दमदार प्रश्न, अब उत्तर ढुलमुल न हो।
वाह वा...वाह वा
नए अंदाज़ के लिए शुभकामनायें भाई जी !
कुछ नहीं होता अब...
पुलिस वाले भी इन के रिश्ते दार ही होंगे, जब एक पुलिसिया जुते साफ़ कर सकता हे तो बाकी क्यो नही, इन से तो जनता ही पुछे पकड के, इन का घेराब कर के, ओर इन्हे भागने भी ना दे... क्या ऎसा हो सकता हे ?
achchaa opreshn he sansd ji ka bhrstaachar ka . akhtar khan akela kota rajsthan
सवाल नये तो नहीं हैं किन्तु अन्दाज अवश्य नया है। काश! प्रत्येक मतदाता इस तरह सवाल पूछने लगे। मतदाताओं की चुप्पी इनकी सबसे बडी ताकत बनती है।
आपने अच्छी शुरुआत की है। उम्मीद करें कि लोग आपसे प्रेरणा भी इलें और आपका अनुसरण भी करें।
puchna kaise.....jawaw apke khud ka..
sahi hai......
pranam
आज की ओंछी राजनीती का हे हिस्सा है यह, मैं समझता हूँ कि यह आप कर्णाटक और केरला में दिए गए एक कौंग्रेस सांसद के बयान की चर्चा कर रहे है जिस पर केरल में आलरेडी केस दर्ज हो चुका है !
बहुत सशक्त अंदाज, पर क्या किया जा स्काता है?
रामराम.
भला यह प्रश्न पूछे भी तो जाएँ.
जवाब मतदाताओं से आएगा और वह अप्रत्याशित भी हो सकता है.
police ke swaal unke jawab ki bahut achchhe se taiyari rahti hai sansdo hi nahi, sansad jaise logo ke paas.
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