@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: हम वस्तु नहीं हैं

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

हम वस्तु नहीं हैं

मशेर बहादुर सिंह के शताब्दी वर्ष पर राजस्थान साहित्य अकादमी और विकल्प जन सांस्कृतिक मंच कोटा द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ। विकल्प का एक सदस्य होने के नाते मुझे इस आयोजन में शिरकत करने के साथ कुछ जिम्मेदारियों को भी निभाना पड़ा। बीच-बीच में अपने काम भी देखता रहा।  यह संगोष्ठी इस आयोजन में शिरकत करने वाले रचनाकारों के लिए शमशेर के साहित्य, उन के काल, अपने समय और दायित्वों को समझने के लिए अत्यन्त लाभदायक रही है। यूँ तो मुझे इस आयोजन की रिपोर्ट यहाँ प्रस्तुत करनी चाहिए। पर थकान ने उसे विलंबित कर दिया है। इस स्थिति में आज महेन्द्र नेह की यह कविता पढ़िए जो इस दौर में जब अफ्रीका महाद्वीप के देशों में चल रही विप्लव की लहर में उस के कारणों को पहचानने में मदद करती है। 
हम वस्तु नहीं हैं
  • महेन्द्र 'नेह'
ऊपर से खुशनुमा दिखने वाली
एक मक्कार साजिश के तहत
उन्हों ने पकड़ा दी हमारे हाथों में कलम
औऱ हमें कुर्सियों से बांध कर 
वह सब कुछ लिखते रहने को कहा 
जिस का अर्थ जानना 
हमारे लिए जुर्म है

उन्हों ने हमें 
मशीन के अनगिनत चक्कों के साथ
जोड़ दिया
और चाहा कि हम 
चक्कों से माल उतारते रहें
बिना यह पूछे कि 
माल आता कहाँ से है

उन्हों ने हमें फौजी लिबास 
पहना दिया
और हमारे हाथों में 
चमचमाती हुई राइफलें थमा दीं
बिना यह बताए 
कि हमारा असली दुश्मन कौन है
और हमें 
किस के विरुद्ध लड़ना है

उन्हों ने हमें सरे आम 
बाजार की मंडी में ला खड़ा किया
और ऐसा 
जैसा रंडियों का भी नहीं होता 
मोल-भाव करने लगे

और तभी 
सामूहिक अपमान के 
उस सब से जहरीले क्षण में
वे सभी कपड़े 
जो शराफत ढंकने के नाम पर
उन्हों ने हमें दिए थे
उतारकर
हमें अपने असली लिबास में 
आ जाना पड़ा
और उन की आँखों में
उंगलियाँ घोंपकर
बताना पड़ा 
कि हम वस्तु नहीं हैं।

9 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन कविता पढ़वाने का आभार...फिर रिपोर्ट का इन्तजार रहेगा. आराम कर लिजिये पहले. :)

राज भाटिय़ा ने कहा…

उन्हों ने हमें फौजी लिबास
पहना दिया
और हमारे हाथों में
चमचमाती हुई राइफलें थमा दीं
बिना यह बताए
कि हमारा असली दुश्मन कौन है
और हमें
किस के विरुद्ध लड़ना है
वाह जी महेन्द्र नेह की यह कविता सच मे सच उगलती हे, बहुत से सवाल छोड देती हे हम सब के लिये, आप का ओर नेह साहब का धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

संवेदना से पूर्ण कविता, बहुधा वस्तु ही समझते हैं शासकगण।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

कविता बेहद अच्छी है... लेकिन हम इस के मर्म को जानें तब न.

deepti sharma ने कहा…

bahut sunder
or prabhavshali kavita

Deepak Saini ने कहा…

आम आदमी को तो वस्तु ही समझा जाता है
बहुत अच्छी कविता पढवाने के लिए धन्यवाद

निर्मला कपिला ने कहा…

नेह जी की कवितायें हमेशा प्रभावित करती हैं जन मानस के हृद्य से निकले उदगार। आभार इन्हें पढवाने के लिये।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

बेहतरीन कविता.

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

क्या लाजवाब कविता है...
सीधे आंखों में उंगलियां घोंपती हुई...