शमशेर बहादुर सिंह के शताब्दी वर्ष पर राजस्थान साहित्य अकादमी और विकल्प जन सांस्कृतिक मंच कोटा द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ। विकल्प का एक सदस्य होने के नाते मुझे इस आयोजन में शिरकत करने के साथ कुछ जिम्मेदारियों को भी निभाना पड़ा। बीच-बीच में अपने काम भी देखता रहा। यह संगोष्ठी इस आयोजन में शिरकत करने वाले रचनाकारों के लिए शमशेर के साहित्य, उन के काल, अपने समय और दायित्वों को समझने के लिए अत्यन्त लाभदायक रही है। यूँ तो मुझे इस आयोजन की रिपोर्ट यहाँ प्रस्तुत करनी चाहिए। पर थकान ने उसे विलंबित कर दिया है। इस स्थिति में आज महेन्द्र नेह की यह कविता पढ़िए जो इस दौर में जब अफ्रीका महाद्वीप के देशों में चल रही विप्लव की लहर में उस के कारणों को पहचानने में मदद करती है।
हम वस्तु नहीं हैं
- महेन्द्र 'नेह'
एक मक्कार साजिश के तहत
उन्हों ने पकड़ा दी हमारे हाथों में कलम
औऱ हमें कुर्सियों से बांध कर
वह सब कुछ लिखते रहने को कहा
जिस का अर्थ जानना
हमारे लिए जुर्म है
उन्हों ने हमें
मशीन के अनगिनत चक्कों के साथ
जोड़ दिया
और चाहा कि हम
चक्कों से माल उतारते रहें
बिना यह पूछे कि
माल आता कहाँ से है
उन्हों ने हमें फौजी लिबास
पहना दिया
और हमारे हाथों में
चमचमाती हुई राइफलें थमा दीं
बिना यह बताए
कि हमारा असली दुश्मन कौन है
और हमें
किस के विरुद्ध लड़ना है
उन्हों ने हमें सरे आम
बाजार की मंडी में ला खड़ा किया
और ऐसा
जैसा रंडियों का भी नहीं होता
मोल-भाव करने लगे
और तभी
सामूहिक अपमान के
उस सब से जहरीले क्षण में
वे सभी कपड़े
जो शराफत ढंकने के नाम पर
उन्हों ने हमें दिए थे
उतारकर
हमें अपने असली लिबास में
आ जाना पड़ा
और उन की आँखों में
उंगलियाँ घोंपकर
बताना पड़ा
कि हम वस्तु नहीं हैं।
9 टिप्पणियां:
बेहतरीन कविता पढ़वाने का आभार...फिर रिपोर्ट का इन्तजार रहेगा. आराम कर लिजिये पहले. :)
उन्हों ने हमें फौजी लिबास
पहना दिया
और हमारे हाथों में
चमचमाती हुई राइफलें थमा दीं
बिना यह बताए
कि हमारा असली दुश्मन कौन है
और हमें
किस के विरुद्ध लड़ना है
वाह जी महेन्द्र नेह की यह कविता सच मे सच उगलती हे, बहुत से सवाल छोड देती हे हम सब के लिये, आप का ओर नेह साहब का धन्यवाद
संवेदना से पूर्ण कविता, बहुधा वस्तु ही समझते हैं शासकगण।
कविता बेहद अच्छी है... लेकिन हम इस के मर्म को जानें तब न.
bahut sunder
or prabhavshali kavita
आम आदमी को तो वस्तु ही समझा जाता है
बहुत अच्छी कविता पढवाने के लिए धन्यवाद
नेह जी की कवितायें हमेशा प्रभावित करती हैं जन मानस के हृद्य से निकले उदगार। आभार इन्हें पढवाने के लिये।
बेहतरीन कविता.
क्या लाजवाब कविता है...
सीधे आंखों में उंगलियां घोंपती हुई...
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