अंधे आत्महत्या नहीं करते
- दिनेशराय द्विवेदी
जिधर देखते हैं,
अंधकार दिखाई पड़ता है,
नहीं सूझता रास्ता,
टटोलते हैं आस-पास
वहाँ कुछ भी नहीं है, जो संकेत भी दे सके मार्ग का
तब क्या करेगा कोई?
खड़ा रहेगा, वहीं का वहीं,
या चल पड़ेगा किधर भी।
चाहे गिरे खाई में या टकरा जाए किसी दीवार से
या बैठ जाए वहीं और इंतजार करे
किसी रोशनी कि किरन का,
या लमलेट हो वहीं सो ले।
लेकिन एक आदमी है
जो ऐसे में भी रोशनी की किरन तलाश रहा है।
उस की दो आँखें
अंधेरे में देखने का अभ्यास करने में मशगूल हैं
वह जानता है कि सारे अंधे आत्महत्या नहीं करते
जीवन जीते हैं, वे
आप जानते हैं? इस आदमी को
नहीं न?
मैं भी नहीं जानता, कौन है यह आदमी?
पर जानता हूँ
यही वह शख्स है
जो काफिले को ले जाएगा, उस पार
जहाँ, रोशनी है।
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20 टिप्पणियां:
पता नहीं कब मिलेगी रोशनी इस देश के आम आदमी को..
सुंदर कविता
सर धन्यवाद एक मुहिम शुरु करने की बहुत पहले ठानी थी। कुछ कदम चला भी। मगर फिर रुक गया औऱ जंगलों के जंगल में भटक गया था। याद दिलाने का शुक्रिया.....
शीर्षक पढ़ कर लगा कि निभ नहीं पाएगी कविता, लेकिन प्रवाहमय और अंतिम पंक्तियां गुरुतर लेकिन संतुलित, वाह.
shi khaa mere bhaai kyonki aek to ande dekhte nhin isliyen unhe kevl ehsaas hotaa he lekin hmare desh me to aaankhen jinke hen voh bhi andhe hen dimag jinke he voh bhi mnd buddhi hen zuban jinke he voh gunge hen yani hmaare desh men so kold andhe gunge behre lule lngde hen jo desh men musibt bne hue hen yeh aankhon ke un andhon se bhut khtrnaak hen jo desh men roshni tlash rhe hen . akhtar khan akela kota rajsthan
जिनको दिखता है, उन्ही को सालता है।
सभी को रहनुमा की तलाश है। शेष कुछ दिखाई नहीं देता।
...बेहतरीन कविता।
अंधे आत्महत्या नहीं करते...
क्या खूब...
सुंदर भाव हैं। बाँटने का शुक्रिया।
गहन अभिव्यक्ति ...अंधे व्यक्ति को रौशनी के बिना भी आगे बढ़ने की हिम्मत होती है
सुंदर मनोभावों की सशक्त अभिव्यक्ति.
श्रीमान जी, आपका कवि मन जानता है और मेरा भी मन उस व्यक्ति को जानता है. इसलिए आपने इशारों ही इशारों में कविता के माध्यम से बहुत अच्छी अभिव्यक्ति की है. सुंदर अभिव्यक्ति हेतु सशक्त शब्दों का चयन के लिए बधाई स्वीकार कीजिये.
पर जानता हूँ
यही वह शख्स है
जो काफिले को ले जाएगा, उस पार
जहाँ, रोशनी है।
गजब बात कह दी आपने सर जी, प्रेरणा स्त्रोत रचन के लिए बधाई ।
सुंदर कविता.
इसी आदमी के दम और भरोसे से डर कर ही भाई लोग खुल कर खेलने की हिम्मत नहीं कर पाते।
उन्हें प्रकाश ने कभी ललचाया ही नहीं -बढियां भावाभिव्यक्ति !
वैसे मैं आया आलेख पढने के लिए था
बहुत सुन्दर कविता...बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
'सारे' नहीं करते. कुछ तो कर ही लेते हैं !
इंतज़ार कर रहे हैं ! शुभकामनायें आपको !
ये जीना भी कोई जीना है बच्चू । पर करें क्या राह दिखाने वाला भी तो कोई हो । कोई आये भी तो देख सकते नही सुन तो सकते है । और लाउड स्पीकर मे फ़िल्हाल सरकार का कब्जा है ।
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