@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: कहीं आप बीमार तो नहीं ?

शनिवार, 19 जून 2010

कहीं आप बीमार तो नहीं ?

शाम तीन बजकर उन्नीस मिनट के बाद, पता नहीं क्या हुआ?
जैसे घड़ी की सुइयाँ अटक गई हों,
समय आगे ही नहीं खिसक रहा हो,

राम ने बंदूक तान रखी है
मणिरत्नम् की सीता दुविधा में है
बीच में आ कर खड़ी हो गई है
अब राम दुविधा में है
वह घोड़ा दबाए या न दबाए
रावण को कायदे से यहाँ अट्टहास करना चाहिए था
लेकिन उस के दसों चेहरे क्रोध से लाल हो रहा है
दसों चेहरों से पसीना टपक रहा है
और मक्खियाँ हैं कि चेहरों के
इर्द-गिर्द मंडरा रही हैं

इधर तरुणा अस्पताल में बिस्तर पर लेटी दुविधा में है
माँ-बाप लड़ कर गए हैं, उसे विनीत अच्छा लगता है
ये बात सारे वार्ड को बता गए हैं
वह सोच रही है जाऊँ तो जाऊँ कहाँ?
ससुराल? वहाँ सब उसे निचोड़ने को तैयार हैं
और देवर की क्षुधित आँखें?
नहीं वहाँ नहीं जाएगी
तो फिर, माँ-बाप के पास?
उन्हें छत के बदले एक नौकरानी चाहिए
सब लेने को तैयार हैं, देने को कोई नहीं
तभी विनीत आ जाता है,
वह भी उस से कुछ न कुछ लेने को बैठा है
पर वह है जो उसे कुछ दे सकता है

नीरज कुमार झा ने बीच में आ कर बोला
ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की हो गई है
मैं सोचता हूँ ये भी कितना बड़ा भ्रम है,
यूनियन कार्बाइड भी तो भारतीय होने को तैयार थी
पहले ही टैंक फट गया
गिनती नहीं, कितने मरे और
कितने ही पीढ़ियों तक भुगतेंगे


जूनियर ब्लागर ऐसोसिएशन का गठन हो चुका है
आखिर
कब तक खून चूसेंगे परदेसी और परजीवी
हम नहीं चूसने देंगे
चूसना ही होगा तो आपस में चूसेंगे

पर गड़बड़ क्या हुई
अब तक रुकी पड़ी है सुई
कुछ भी हो सकती है

कुछ सोचते नहीं
कुछ समझते नहीं
बस करते रहते हैं
एक साथ कई काम
कहीं आप बीमार तो नहीं ?

8 टिप्‍पणियां:

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

ये क्या द्विवेदी साहब।
कवि रूप में चिट्ठा चर्चा कर रहे हो?

उम्मतें ने कहा…

द्विवेदी जी ,अभी मैंने आपका टिप्पणी बाक्स खोला , टिप्पणी लिखना शुरू भी नहीं कर पाया कि वो कहने लगा ... आप की टिप्पणी सहेज दी गई है :) कुछ अजीब से हालात हैं...
"वे" अटक गए हैं "ये " सटक गया है :) सोचता हूँ शेर पूरा कर ही लूं ...
" वे" लटक गए हैं "ये "भटक गया है :)
ओह ये दिमाग़ भी इन्टरनेट / ब्लाग / एग्रीगेटर्स जैसा हो चला है ! नाइस पोस्ट !

निर्मला कपिला ने कहा…

नया अन्दाज चिठाआ चर्चा का ? बहुत खूब।

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे वाह मजा आ गया मै तो पहले पढता ही गया सोचा घडी की बेटरी खत्म हो गई इस लिये रुक गई होगी, लेकिन बाद मै पता चला कि यह चिठ्ठा चर्चा का एक नया रुप है, ओर मन को खुब भाया.
धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

काव्यात्मक उद्गार ।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बहुत बढिया,
कुछ लिंक मिले पढने के लिए

PD ने कहा…

कल से हम भी एक ही पृष्ठ देख रहे हैं.. शायद कुछ तकनिकी समस्या आ गई होगी.. बंद होने वाली बात पर तो कुछ भी नहीं आता..

एक बात जरूर सोच रहा हूँ.. वह ये कि कल से अभी तक जो पोस्ट वाहन दिख रहे हैं उनपर कितना हिट्स हो चूका होगा अब तक.. :)

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

बढ़िया अंदाज़,वाह.