@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: सरकारों की प्रतिबद्धता जनता के साथ भी है या नहीं? या केवल धनकुबेर ही उन के सब कुछ हैं?

रविवार, 20 जून 2010

सरकारों की प्रतिबद्धता जनता के साथ भी है या नहीं? या केवल धनकुबेर ही उन के सब कुछ हैं?

भोपाल गैस त्रासदी के मामले में गृहमंत्री पी. चिदंबरम की अध्यक्षता वाले पुनर्गठित मंत्री समूह की बैठकें जारी हैं। खबरें आ रही हैं कि सोमवार को दोपहर बाद समूह अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप देगा। जो खबरें छन कर आ रही हैं उन से पता लगा है कि अब केंद्र सरकार अमरीका पर एंडरसन के प्रत्यर्पण के लिए दबाव बना सकता है। यह भी कि भोपाल में मौजूद जहरीले कचरे की सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। यह भी कि सुप्रीमकोर्ट के समक्ष पुनर्विचार याचिका दाखिल कर 1996 के उस निर्णय को बदलने के लिए निवेदन किया जाएगा जिस से आरोपियों पर आरोपों को हलका कर दिया गया था। यह भी कि भोपाल के हाल के निर्णय की रोशनी में ऐसी याचिका दायर की जाएगी।
सारी खबरें आ रही हैं। लेकिन यह खबर नदारद है कि एंडरसन की गिरफ्तारी के बाद धारा 304 भाग 2 का आरोप होते हुए भी पुलिस ने उसे जमानत पर क्यों छो़ड़ दिया, अदालत के समक्ष प्रस्तुत क्यों न कर दिया? एंडरसन को भारत से निकल जाने का रास्ता दिया गया तो क्यों दिया गया? हालांकि अब सब बात सामने आ चुकी है कि एंडरसन ने आने के पहले ही भारत सरकार से यह शर्त मंजूर करा ली थी कि उसे वापस आने दिया जाएगा। यदि ऐसा है तो फिर उसे कागजों पर गिरफ्तार दिखाना अपने आप में बड़ा काम था, जिस ने भी किया उसे ईनाम जरूर मिलना चाहिए। लेकिन यह प्रश्न तो फिर भी बना रहेगा कि भारत सरकार ने ऐसा क्यों किया कि अमरीका की यह शर्त मान ली कि अपराधी को भारत तो आने दिया जाए लेकिन उस की वापसी सुनिश्चित की जाए। यानी भारत का कानून कानून नहीं है। भारत में लोकतंत्र और कानून का शासन नहीं है और उसे अमरीका जैसे साम्राज्यवादी देश बात माननी पड़ती है। यह प्रश्न देश की संप्रभुता से समझौता करने तक जाता है। निश्चित ही भारत सरकार और कांग्रेस पार्टी इस आरोप का उत्तर देने की स्थिति में नहीं है।
वास्तव में भोपाल त्रासदी के मामले में जिस तरह भारत सरकार ने अमरीका के सामने घुटने टेके हैं उसे इतिहास और भारत की जनता कभी माफ नहीं कर सकेगी। उस ने केवल एंडरसन को ही नहीं जाने दिया। एक बहुत ही अपर्याप्त मुआवजा राशि के बदले यह भी स्वीकार कर लिया कि भोपाल दुर्घटना के सभी अपराधियों के विरुद्ध दांडिक मुकदमे वापस ले लिए जाएंगे। उस समझौते के आधार पर एक बार तो सभी दांडिक मुकदमे निरस्त कर ही दिए गए थे। सुप्रीमकोर्ट इन मुकदमों को पुनर्स्थापित करने का निर्णय नहीं करता तो शायद एक भी अपराधी को नाम मात्र की सजा भी नहीं मिलती और यह बखेड़ा फिर से खड़ा भी न होता। 
पुनर्गठित मंत्री समूह से आने वाले समाचारों में सब तरह की सूचनाएँ आ रही हैं। लेकिन इस बात पर कितना सोचा जा रहा है कि देश में इस तरह की औद्योगिक दुर्घटनाएँ नहीं घटें इस के लिए क्या किया जाए। ऐसा नहीं है कि देश में इन दुर्घटनाओं से सुरक्षा के लिए पर्याप्त कानून नहीं हैं। यदि नहीं भी हैं तो और बनाए जा सकते हैं। लेकिन देश की सरकारी मशीनरी जिस तरह से इन कानूनों की अनदेखी करती है उस का कोई इलाज क्या सरकार तलाश कर पाएगी? इस अनदेखी में केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों की भूमिका भी कम नहीं होती। आखिर सरकारी मशीनरी उन्हीं के नियंत्रण में तो काम करती है। भविष्य में आम जनता को सुरक्षित रखने के उपायों पर भी कोई बात केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रीमंडलों, संसद और विधायिका में होगी या नहीं यह तो समय ही बताएगा। समय यह भी सुनिश्चित करेगा कि हमारी इन सरकारों की प्रतिबद्धता जनता के साथ भी है या नहीं? या केवल धनकुबेर ही उन के सब कुछ हैं?

9 टिप्‍पणियां:

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

jnaaab dvivedi bhaai jaan aapne srkaaron ki dukhti rg pr haaath rkh diyaa he yeh sch he ke aaj kevl or kevl srkren punjiptiyon ki hi gulaam bn kr rh gyi hen. akhtar khan akela kota rajsthan

विष्णु बैरागी ने कहा…

आप तो एक कुशल, सफल और स्‍थापित वकील हैं। हम जैसे सामान्‍य लोगों की अपेक्षा आप बेहतर जानते हैं कि हमारे लोकतन्‍त्र पर धन आसानी से कब्‍जा कर लेता है। ऐसा नहीं होता तो न्‍यायालयीन प्रकरणों का निर्णय समान रूप से होता और विचाराधीन कैदियों की भीड जेलों में नहीं होती।

उम्मतें ने कहा…

राजनीतिक दल चाहे कोई भी हो , जनता के सामने जाने से लेकर सरकार बनाने तक की कवायद में धनकुबेरों की भूमिका स्पष्ट है इसलिए इस नुक्ते पर कुछ भी कहना व्यर्थ है ! आगे निवेदन ये कि- अगर दुर्घटना के समय जबकि घाव गहरे थे तब एंडरसन एंड कंपनी के नाम पर , भारत सरकार अमेरिका के सामने घुटने टेक कर दांडिक प्रकरण वापस लेने का कारनामा कर ही चुकी है , तो अब प्रत्यर्पण की मांग करने का संकेत ? क्या औचित्य है इसका ? क्या इससे पहले का किया धरा 'डायलूट' हो जायेगा ?
सर्वोच्च न्यायपालिका पहले मुकदमों को पुनर्स्थापित करती है फिर आरोपों को हल्का भी कर देती है तो क्या निचली अदालतें इस दायरे से बाहर जाकर कोई और निर्णय भी सुना सकती थीं ? यकीनन नहीं ! आशय ये कि जब वर्षों पहले ही मुकदमों के निर्णय की बुनियाद रख दी गयी थी तो अब हो हल्ला क्यों ? उस समय क्यों नहीं ?
पुलिस ने अपनी अधिकारिता के बाहर जमानत क्यों दी ? भारत सरकार ने देश की संप्रभुता से समझौता क्यों किया ? इन सारे प्रश्नों का उत्तर आज क्यों खोजा जा रहा है ये तो घटना क्रम की शुरुवात से ही मौजूद हैं ? मेरे ख्याल से कांग्रेस गवर्नमेंट जबाब देने की हालत में नहीं है पर समय पर सवाल ना पूछने वाले वाले भी तो गैर जिम्मेदार साबित हुए ? हुए ना ? तो अब नये मुकदमों से क्या होने वाला है ?
आपको नहीं लगता कि अर्जुन सिंह , स्व. राजीव गांधी , एंडरसन वगैरह वगैरह नये सिरे से चालू किये जाने वाले (संभावित ) मुकदमों की सांकेतिकता मात्र रह गये हैं ? एक सांकेतिक इशारा जिससे भारतीय कानून और भारतीय संप्रभुता का इकबाल बुलंद है , कहा जा सकेगा !

निर्मला कपिला ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने ये प्रश्न सभी के मन मे आता है मगर फिर वही बेबसी क्या किया जाये?
धन्यवाद।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रिपोर्ट की प्रतीक्षा सभी को है । आपके द्वारा उठाये प्रश्नों के उत्तर आते हैं या नहीं ? संभावना है रिपोर्ट निराश न करेगी ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

अब क्या कहे जब नेता ही गंदे निकले, लेकिन अगर जनता चाहती तो उस समय इस सरकार को सबक सीखा सकती थी, दुनिया मै जितनी भी क्रांतिया हुयी वो जनता के दम से ही हुयी है, बडे बडे ताज पेरो तले कुचले गये है इस जनता के

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@राज भाटिया जी,
यहाँ भी कुचले जाएँगे।
जनता के दरबार में देर है अँधेर नहीं।

अजय कुमार झा ने कहा…

सर देर सवेर यहां भी एक जनक्रांति आएगी जरूर इसका विश्वास तो हमें भी है और यकीन मानिए उसी दिन की प्रतीक्षा भी है मगर अब सच में ही नाकाबिले बर्दाश्त होता जा रहा है ये सब । सबसे बडी बात तो ये भी है कि जो अमरीका पूरी दुनिया को नसीहत देता फ़िरता है , नागरिक अधिकारों का वैश्विक रखवाला बना फ़िरता है ...वो इस पूरे कांड पर तब से अब तक चुप्पी लगाए बैठा है

Smart Indian ने कहा…

एक बहुत ही अपर्याप्त मुआवजा राशि के बदले यह भी स्वीकार कर लिया कि भोपाल दुर्घटना के सभी अपराधियों के विरुद्ध दांडिक मुकदमे वापस ले लिए जाएंगे।

यह गैर-जिम्मेदाराना और हृदयहीन हरकत एक निंदनीय कृत्य था. एक प्रश्न है - क्या इस तरह के कृत्य भारतीय कानूनों में कभी टाइम-बार होते हैं? यदि नहीं तो फिर इन सभी ज़िम्मेदारों पर मुकदमे क्यों नहीं चलाये जा रहे हैं?