वे सूरतें इलाही किस देश बसतियाँ हैं,
अब जिनके देखने को आँखें तरसतियाँ हैं**यह मीर तकी 'मीर' का वह मशहूर शैर है जो अक्सर शहीद भगतसिंह और उन के साथियों के होठों पर रहा करता था। इस शैर में अवाम का खास सवाल छुपा है....
उन अमर शहीदों भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव के 79वें बलिदान दिवस पर उन का स्मरण करते हुए उस सवाल के जवाब दे रहे हैं महेन्द्र नेह उसी जमीन पर लिखे गए शैरों की इस ग़ज़ल से.....
आप पढ़िए.....
वे सूरतें इलाही इस देश बसतियाँ हैं
- महेन्द्र नेह
वे सूरतें इलाही इस देश बसतियाँ हैं
लाखों दिलों के अरमाँ बनके धड़कतियाँ हैं
जो रात-रात जगतीं, बेचैनियों में जीतीं
तारों सी दमकतीं जों, गुल सी महकतियाँ हैं
घनघोर अँधेरों का आतंक तोड़ने को
हाथो में ले मशालें, घर से निकलतियाँ हैं
इंसानियत के हक़ में, आज़ादियों की ख़ातिर
फाँसी के तख़्त पर भी, खुल के विंहसतियाँ हैं
जिनके लहू से रौशन, कुर्बानियों की राहें
इतिहास के रुखों को, वे ही पलटतियाँ हैं
आओ कि आ भी जाओ, फिर से उठायें परचम
हमसे करोड़ों आँखें, उम्मीद रखतियाँ हैं
लाखों दिलों के अरमाँ बनके धड़कतियाँ हैं
जो रात-रात जगतीं, बेचैनियों में जीतीं
तारों सी दमकतीं जों, गुल सी महकतियाँ हैं
घनघोर अँधेरों का आतंक तोड़ने को
हाथो में ले मशालें, घर से निकलतियाँ हैं
इंसानियत के हक़ में, आज़ादियों की ख़ातिर
फाँसी के तख़्त पर भी, खुल के विंहसतियाँ हैं
जिनके लहू से रौशन, कुर्बानियों की राहें
इतिहास के रुखों को, वे ही पलटतियाँ हैं
आओ कि आ भी जाओ, फिर से उठायें परचम
हमसे करोड़ों आँखें, उम्मीद रखतियाँ हैं
12 टिप्पणियां:
nice
सामयिक आव्हान, दिशा बोधक रचना.
आओ कि आ भी जाओ, फिर से उठायें परचम
हमसे करोड़ों आँखें, उम्मीद रखतियाँ हैं
महेंद्र नेह जी को पढना अच्छा लगता है. सुन्दर प्रस्तुति पर आपको भी धन्यवाद.
-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
क्या जोश था इन वीरों का ?
जो सामने से ये लड़े,
न खौफ था मौत का ,
न डरे लड़ते रहे , अन्तिम सांस तक ,
वीरता के साथ ही, वीरगति को प्राप्ति की।।
उल्लास है, हर्ष है
खामोश सा हवाओं में दर्द तो है हमें ,
ये शहीद और गर्व है भारती को ,
कारनामा जो तुमने किया,
शत-शत नमन करता है भारत ,
जो ऐसे बेटों को जन्म दिया ।।
सामयिक आलेख पर बहुत-बहुत बधाई।
आओ कि आ भी जाओ, फिर से उठायें परचम
हमसे करोड़ों आँखें, उम्मीद रखतियाँ हैं
बहुत ही सुंदर महेंद्र नेह जी की यह रचना, आप का ओर महेंद्र नेह जी धन्यवाद
घनघोर अँधेरों का आतंक तोड़ने को
हाथो में ले मशालें, घर से निकलतियाँ हैं
इंसानियत के हक़ में, आज़ादियों की ख़ातिर
फाँसी के तख़्त पर भी, खुल के विंहसतियाँ हैं
bahut hi prernadayak panktiyan......bahut sundar prastuti
bahut hi sundar aur deshbhakti se bhari hui rachna.
भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव के 79वें बलिदान दिवस पर उन महान भारतीयों को मेरी श्रद्धांजली।
इस आलेख के लिये आप को आभार!
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
महेन्द्र जी की यह रचना अपने घर पर उन्हीं की जुबानी सुनने का सौभाग्य मिला है मुझे…आपने यहां प्रस्तुत कर याद ताज़ा कर दी … आभार
श्रद्धांजली
कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
http://qatraqatra.yatishjain.com/
'मीर' का शेर उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद।
नेहजी की गजल तो सदैव की तरह शानदार है ही।
जहाँ तक मेरी जानकारी है 'ये सूरते इलाही.." सौदा का शेर और गज़ल है - आबिदा परवीन के एलबम गज़ल का सफ़र में गाई इस ग़ज़ल के मक़ते में सौदा का नाम भी आता है।
पाकिस्तान में रहते हुए आबिदा मीर की ग़ज़ल को सौदा की कह के गा जायें क्या यह मुमकिन है? हमी लोग कुछ गड़बड़ कर रहे हैं।
एलबम के डीटेल्स इधर देखें: http://www.dukandar.com/abidaparveenset.html
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