यहाँ नीचे आप एक बिंदु से एक वृत्त को उत्पन्न होता और विस्तार पाता देख रहे हैं। फिर वही वृत्त सिकुड़ने लगता है और बिंदु में परिवर्तित हो जाता है। फिर बिंदु से पुनः एक वृत्त उत्पन्न होता है और यह प्रक्रिया सतत चलती रहती है। बिंदु या वृत्त? वृत्त या बिंदु? कुछ है जो हमेशा विद्यमान रहता है, जिस का अस्तित्व भी सदैव बना रहता है। वह वृत्त हो या बिंदु मात्र हो।
अब आप इस वृत्त की परिधि को देखिए और बताइए इस का आरंभ बिंदु कहाँ है? आप लाख या करोड़ बार सिर पटक कर थक जाएंगे लेकिन वह आरंभ या अंत बिंदु नहीं खोज पाएंगे। वास्तव में वृत्त की परिधि का न तो कोई आरंभ बिंदु होता है और न ही अंतिम बिंदु वह तो स्वयं बिंदुओं की एक कतार है। जिस में असंख्य बिंदु हैं जिन का गिना जाना भी असंभव है चाहे वृत्त कितना ही छोटा या विस्तृत क्यों न हो।
पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। संपूर्ण विश्व (यूनिवर्स) के सापेक्ष। पृथ्वी से परे इस की घूमने की धुरी की एक दम सीध में स्थित बिंदुओं के अतिरिक्त सभी बिंदु चौबीस घंटों में एक बार उदय और अस्त होते रहते हैं। दिन का आरंभ कहाँ है। मान लिया है कि अर्थ रात्रि को, या यह मान लें कि जब सूर्योदय होता है तब। लेकिन इस मानने से क्या होता है? हम यह भी मान सकते हैं कि यह दिन सूर्यास्त से आरंभ होता है या फिर मध्यान्ह से। चौबीस घंटे में एक दिन शेष हो जाता है। फिर एक नया दिन आ जाता है। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा कर रही है। हर दिन अपने परिक्रमा पथ पर आगे बढ़ जाती है। यह पथ भी एक वृत्त ही है। वर्ष पूरा होते ही पृथ्वी वापस अपने प्रस्थान बिंदु पर पहुँच जाती है। हम कहते हैं वर्ष पूरा हुआ, एक वर्ष शेष हुआ, नया आरंभ हुआ। वर्ष कहाँ से आरंभ होता है कहाँ उस का अंत होता है। वर्ष के वृत्त पर तलाशिए, एक ऐसा बिंदु। उन असंख्य बिंदुओं में से कोई एक जो एक कतार में खड़े हैं और इस बात की कोई पहचान नहीं कि कौन सा बिंदु प्रस्थान बिंदु है।
आखिर हम फिर मान लेते हैं कि वह बिंदु वहाँ है जहाँ शरद के बाद के उन दिनों जब दिन और रात बराबर होने लगते हैं और सूर्य और पृथ्वी के बीच की रेखा को चंद्रमा पार करता है। कुछ लोग इसे तब मानते हैं जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। कुछ लोग हर बारहवें नवचंद्र के उदय से अगले सूर्योदय के दिन मानते हैं। हम आपस में झगड़ने लगते हैं, मेरा प्रस्थान बिंदु सही है, दूसरा कहता है मेरा प्रस्थान बिंदु सही है। उस के लिए तर्क गढ़े जाते हैं, यही नहीं कुतर्क भी गढ़े जाने लगते हैं। हम फिर उसी वृत्त पर आ जाते हैं। अब की बार हम मान लेते हैं कि इस की परिधि का प्रत्येक बिंदु एक प्रस्थान बिंदु है। हम वृत्त के हर एक बिंदु पर हो कर गुजरते हैं और अपने प्रस्थान बिंदु पर आ जाते हैं। फिर वर्षारंभ के बारे में सोचते हैं। हम पाते हैं कि वह तो हर पल हो रहा है। हर पल एक नया वर्ष आरंभ हो रहा है और हर पल एक वर्षांत भी। हमारे यहाँ कहावत भी है 'जहाँ से भूलो एक गिनो'। मेरे लिए तो हर पल दिन का आरंभ है और हर दिन वर्ष का आरंभ।
तो शुभकामनाएँ लीजिए, नव-वर्ष मुबारक हो!
याद रखिए हर पल एक नया वर्ष है।
और याद रखिए पुरुषोत्तम 'यक़ीन' साहब की ये ग़ज़ल.....
ग़ज़ल
मुबारक हो तुम को नया साल यारो
- पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
मुबारक हो तुम को नया साल यारो
यहाँ तो बड़ा है बुरा हाल यारो
मुहब्बत पे बरसे मुसीबत के शोले
ज़मीने-जिगर पर है भूचाल यारो
अमीरी में खेले है हर बदमुआशी
है महनतकशी हर सू पामाल यारो
बुरे लोग सारे नज़र शाद आऐं
भले आदमी का है बदहाल यारो
बहुत साल गुज़रे यही कहते-कहते
मुबारक-मुबारक नया साल यारो
फ़रेबों का हड़कम्प है इस जहाँ में
‘यक़ीन’ इस लिए बस हैं पामाल यारो
* * * * * * * * * * * * * * * * * * * *
19 टिप्पणियां:
Happy New Year कहूँ या नव संवत्सर की शुभकामनाएं .... बात तो एक ही है ... १ जनवरी को कहूँ या चैत्र नवरात्रे के प्रारंभ होने पर ...बात तो शुभकामनाओं की है ...
बिंदु कोई भी ले लो
नव संवत्सर की मंगल कामनाएं
आ. दीनेश भाई जी
ये तो बड़ी उपयोगी जानकारी है --
बिन्दु और वृत्त का समीकरण
बहुत बढ़िया लगा !
आप सब को नवसंवत्सर की शुभकामनायें!!बिंदू ओर वृत्त बहुत सुंदर समी करण लगा, एक अन बुझ पहेली
यकीन साहब की गज़ल उम्दा है.
बिन्दु और वृत वाला चित्र सेव कर लिया है..एक मेडीटेशनल इफेक्ट है उसे निहारने में.
आप को नव विक्रम सम्वत्सर-२०६७ और चैत्र नवरात्रि के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ..
बहुत बढ़िया लिखा है। इसी लिए तो शास्त्रों में नित्य चतुर्थी की बात कही है। हर दिन नया दिन है। शुरुआत कभी भी हो सकती है। दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों में बारह महिनों के किसी न किसी महिने के साथ वर्षारम्भ का अतीत रहा है। भारत में ही सर्दी, गर्मी और बरसात से वर्षारम्भ होता था। वर्ष शब्द ही वर्षा का सूचक है। अर्थात वर्षामास से कालगणना शुरू होती थी। शरद ऋतु से वर्ष की शुरुआत का संकेत मिलता है इसके ही फारसी संस्करण साल से। साल शब्द शरद से ही बना है।
यकीन साहब की गज़ल उम्दा है.
इस विषय पर आपकी समझ पर दाद देता हूँ -नव वर्ष की मरती भी हार्दिक शुभकामनायें !
वकील साहब,
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं।
नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
नव वर्ष पर ये जानकारी उत्तम रही.. आपको भी नव संवत्सर की शुभकामनाये..
ब्रेख़्त को याद करते हैं नई शुरुआत कभी भी हो सकती है/ज़िन्दगी की आख़िरी सांस से भी!
'यकीन' की ग़ज़ल यक़ीनन अच्छी है, और साल के बारे में तो हम भी आप की ही सोच वाले हैं, और 'फ़िराक़' गोरखपुरी ने भी ताईद की है अपने अशआर में इसी बात की के हर पल एक नई शुरूआत होती है, यही 'बच्चन' ने भी कहा है -'जो बीत गई सो बात गई' में। बस नज़रिये का फ़र्क़ है। चाहे नए साल पे ख़ुश हो लो या एक और बीत गया इस बात पे रो लो।
बड़ी तार्किक और सही बात लिखी आपने इस पोस्ट में. जहाँ से मान लें वहीँ से शुरुआत.
मंगलकामनाएं !
बुरे लोग सारे नज़र शाद आऐं
भले आदमी का है बदहाल यारो
vaah..
maine aapakee posT bookmark kar lee hao aaj kal jaane kee taiyari me vyast hoon 23 ko USA ja eahee hoon kuch din door rahoongee net se kal post daal kar chhutti| vahan ja kar jab samay milegaa to milatee hoon. dhanyavaad
maine aapakee posT bookmark kar lee hao aaj kal jaane kee taiyari me vyast hoon 23 ko USA ja eahee hoon kuch din door rahoongee net se kal post daal kar chhutti| vahan ja kar jab samay milegaa to milatee hoon. dhanyavaad
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भिन्न भिन्न नये वर्ष सुविधार्थ हैं, प्रकृति भेद नहीं करती । हर सुबह नया वर्ष ।
वाह। आनन्द आ गया। अच्छी जानकारी देनेवाली पोस्ट और उतनी ही शानदार गजल।
यह तो मणी-कांचन संयोग जैसा है।
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