@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: किसानों के लिए खुश-खबर : बिना सिंचाई प्रति हेक्टेयर 35-40 क्विंटल गेहूँ उपजाया

रविवार, 14 मार्च 2010

किसानों के लिए खुश-खबर : बिना सिंचाई प्रति हेक्टेयर 35-40 क्विंटल गेहूँ उपजाया

राजस्थान के टोंक जिले में पाँच वर्ष पहले जब किसान सिंचाई के लिए पानी की मांग के लिए आंदोलन कर रहे थे, तब राजमार्ग से अवरोध हटाने के लिए सरकार को गोलियाँ चलानी पड़ी थीं।  इस गोलीकांड में एक महिला सहित पाँच व्यक्तियों को अपनी जान देनी पड़ी थी। ये किसान अपने ही जिले में स्थित राजस्थान के दूसरे सब से बड़े बांध बीसलपुर के पानी को स्थानीय किसानों को सिंचाई के लिए उपलब्ध कराने की मांग कर रहे थे। राज्य सरकार सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने के स्थान पर उसे राज्य की राजधानी जयपुर को पेयजल उपलब्ध कराने का निर्णय कर चुकी थी। यह निर्णय क्षेत्र के किसानों को नागवार गुजरा था।
से में जब राज्य में पानी के लिए बाकायदा जंग लड़ी जा चुकी हों, तब यह खबर आप को और किसानों को राहत पहुँचाने वाली है कि बिना सिंचाई के खेतों में गेहूँ उगाया जा सकता है और 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर फसल प्राप्त की जा सकती है।  कोटा के उम्मेदगंज कृषि अनुसंधान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिकों ने यह कर दिखाया है।
स अनुसंधान केन्द्र ने इस वर्षएचआई-1531, एचआई-1500, एचडब्ल्यू-2004, डब्ल्यूएच-1098, एचडी-3071, आरडब्ल्यू-3688, एचडी 4672, एकेडीडब्ल्यू-4635, एमपी-1240, एचडी-3070 जैसी लगभग छत्तीस किस्म की गेहूँ की फसलें बोयीं और अपेक्षित परिणाम प्राप्त किए। बोयी गई फसलों की कटाई के उपरांत थ्रेशिंग हो चुकी है और छह सात बोरी प्रति बीघा उपज प्राप्त की है।
स अनुसंधान केन्द्र ने अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में पलेवा के बाद खेत की अच्छी तरह जुताई की। इसके बाद खेत में 40-40 किलो नत्रजन व फास्फोरस डाला और उस के बाद 15 से 20 अक्टूबर के बीच बुआई की।  इसके  उपरांत  इन फसलों की एक बार भी सिंचाई नहीं की गई। इन फसलों ने पकने में 125-130 दिन  लिए। जब कि गेहूँ की फसल को तीन बार सिंचाई करने के उपरांत केवल 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज ही प्राप्त की जा सकती है। इस तरह यह प्रयोग उन किसानों के लिए रामबाण सिद्ध हुआ है जिन की भूमि को सिंचाई की सुविधा प्राप्त नहीं है या प्राप्त है तो कम बरसात के कारण सिंचाई स्रोत अनुपलब्ध हो जाने से वे गेहूँ की फसल बोने में संकोच करते हैं।

10 टिप्‍पणियां:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

धरती माँ के आँचल में अभी बहुत दूध है। आप ने बड़ी अच्छी खबर दी। शुष्क क्षेत्रों की कृषि में ऐसे अनुसन्धानों की बहुत आवश्यकता है। बुन्देलखण्ड भी लाभांवित होगा।

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

आदरणीय द्विवेदी जी
नमस्कार
आपकी सकारात्मक पोस्ट पढ़ कर आनंद आ गया,
मुझे लगता है कि इस तरह की पोस्टें निश्चित रूप से संबंधितों के लिए उत्प्रेरक का काम करेंगी .
इस अनुसंधान केन्द्र ने अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में पलेवा के बाद खेत की अच्छी तरह जुताई की। इसके बाद खेत में 40-40 किलो नत्रजन व फास्फोरस डाला और उस के बाद 15 से 20 अक्टूबर के बीच बुआई की। इसके उपरांत इन फसलों की एक बार भी सिंचाई नहीं की गई। इन फसलों ने पकने में 125-130 दिन लिए। जब कि गेहूँ की फसल को तीन बार सिंचाई करने के उपरांत केवल 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज ही प्राप्त की जा सकती है। इस तरह यह प्रयोग उन किसानों के लिए रामबाण सिद्ध हुआ है जिन की भूमि को सिंचाई की सुविधा प्राप्त नहीं है या प्राप्त है तो कम बरसात के कारण सिंचाई स्रोत अनुपलब्ध हो जाने से वे गेहूँ की फसल बोने में संकोच करते हैं।
आभार .

- डॉ. विजय तिवारी "किसलय"

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह बहुत सुंदर खबर, पढ कर ऎसा लगा जेसे मेरे ही खेत हो सब. आप का धन्यवाद

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुखद खबर है..प्रसन्नता हुई जानकर. किसलय जी ने जानकारी जोड़ कर और अच्छा किया.

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत आशाभरी रिपोर्ट

अजित वडनेरकर ने कहा…

बढ़िया खबर है। कोटा के अनुसंधान केंद्र को बड़ी कामयाबी मिली है। इसे अन्य क्षेत्रों में भी परखा जाना चाहिए।

Abhishek Ojha ने कहा…

वाह ! ये तो बड़ी सुखदायक खबर है.

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

इसका विस्तृत विवरण भेजिए यह किसानों के लिए वरदान है....इसका बीज कैसे मिलेगा?

शरद कोकास ने कहा…

यह सचमुच अच्छी खबर है ..बस उम्मीद करें कि ऐसा हो ।

विष्णु बैरागी ने कहा…

सचमुच में बहुत ही अच्‍छा समाचार है। देश को इसकी सर्वाधिक आवश्‍यकता है। आपको साधुवाद, इस समाचार के लिए।