@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: नहीं सुन पाए राकेश मूथा की कविता

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

नहीं सुन पाए राकेश मूथा की कविता

द्यान में मेरे पास ही बैठे संजय व्यास ने मुझे प्रभावित किया। एक दम सौम्य मूर्ति दिखाई पड़ रहे थे वे। वे पूरी बैठक में कम बोले लेकिन जितना बोले बहुत संजीदा। मैं ने उन्हें अब तक बिलकुल नहीं पढ़ा था। इस कारण उन के लिए बहुत असहज भी था। बाद में जब कोटा आ कर उन का ब्लाग 'संजय व्यास' खोल कर पढ़ा तो उन के गद्य से प्रभावित हुए बिना न रहा। उन की शैली अनुपम है और एक बार में ही पाठक को अपना बना लेती है। उन को बिलकुल वैसा ही पाया जैसे वे अपने ब्लाग पर रचनाओं से जाने जाते हैं। ब्लागीरी उन के लिए अभिव्यक्ति का बिलकुल स्वतंत्र माध्यम है जहाँ वे अपना श्रेष्ठतम व्यक्त कर सकते हैं, जो वे करते भी हैं। 
मेरी दूसरी ओर राकेश मूथा थे। वे राह से ही हमारे साथ थे। कुछ बातचीत भी उन से हुई थी। पेशे से इंजिनियर मूथा जी देखने से ही कलाप्रेमी दिखाई देते हैं। वे वर्षों से नाटकों से जुड़े हैं और अभी भी सक्रिय हैं। उन्हों ने अपने ब्लाग सीप का सपना पर अपनी कविताएँ ही प्रस्तुत की हैं। इसी नाम से उन का काव्य संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है। वे अपनी डायरी साथ ले कर आए थे और कुछ कविताएँ सुनाना चाहते थे। हम भी इस बैठक को कवितामय देखना चाहते थे। उन्हों ने अपनी डायरी पलटना आरंभ किया। उन की इच्छा थी कि वे चुनिंदा रचना सुनाएँ। मैं ने आग्रह किया कि वे कहीं से भी आरंभ कर दें। मुझे अनुमान था कि हरि शर्मा जी के उन की माता जी को अस्पताल ले जाने के लिए समय नजदीक आ रहा था। तभी भाभी का फोन आ गया। हरिशर्मा जी ने उत्तर दिया कि मैं अभी पहुँच ही रहा हूँ। अब रुकना संभव नहीं था। समय को देखते हुए मूथा जी ने अपनी डायरी बंद कर दी। हम उन के रचना पाठ से वंचित हो गए।
ब बाहर आ गए। मूथा जी को हरिशर्मा जी के साथ ही जाना था। हम सब ने उन दोनों को विदा किया। जाते-जाते मूथा जी को मैं ने अवश्य कहा कि मैं उन की रचनाओं से वंचित हो गया हूँ, लेकिन अगली जोधपुर यात्रा में अवश्य ही उन की रचनाएँ सुनूंगा, चाहे इस के लिए उन के घर ही क्यों न जाना पड़े। अब हम चार रह गए थे। मैं ने साथ बैठ कर कॉफी पीने का प्रस्ताव रखा, जो तुरंत ही स्वीकार कर लिया गया। हम चारों पास के ही एक रेस्टोरेंट में जा कर बैठे। कॉफी आती तब तक बतियाते रहे। शोभना का कहना था कि उन के ब्लाग पर टिप्पणियाँ बहुत मिलती हैं। इस तरह की भी कि वे एक लड़की हैं इस कारण से उन्हें अधिक टिप्पणियाँ मिलती हैं। यह बात सच भी है और इसे वे जानती भी हैं। कई बार तो अतिशय प्रशंसा भी मिलती है। जब कि वे जानती हैं कि पोस्ट उस के योग्य नहीं थी। इन्हीं बातों को लेकर उन का ब्लागीरी से मन उखड़ गया था। उन्हों ने उसे अलविदा भी कह दिया। उन्हें पता नहीं था कि इस घटना को हिन्दी ब्लागीरी में टंकी पर चढना कहते हैं। लेकिन अनेक ब्लागीरों ने उन का साहस बढ़ाया और वे टंकी से उतर पाने में सफल हो गई। आते-आते भी वे कह रही थीं - अंकल मैं टंकी से उतर आई हूँ, और अब दुबारा नहीं चढ़ने वाली। 
रेस्टोरेंट की कॉफी आई तो प्याला अच्छा खासा बड़ा था, कॉफी स्वादिष्ट भी और दर भी बिलकुल माकूल थी, सिर्फ दस रुपए। रेस्टोरेंट के बाहर आ कर हमने अपनी अपनी राह पकड़ी, इस आशा के साथ कि फिर दुबारा मिलेंगे और तब जोधपुर के और ब्लागीर भी साथ होंगे। काफिला बढ़ेगा ही घटेगा नहीं। संजय व्यास ने मुझे होटल के नजदीक छोड़ा। मुझे कुछ मित्रों से और मिलना था। उन से मिल कर मैं होटल पहुँचा। थकान जोर मार रही थी। होटल पहुँच कर मोबाइल पर अलार्म लगा कर आराम किया। अलार्म बजा तो उठने की इच्छा न थी, पर वापसी के लिए बस भी पकड़नी थी। शाम का भोजन होटल में ही कर बस पर पहुँचा तो बस के आने में समय था। मैं ने यह समय ब्लागरों से फोन पर बात करने में बिताया। हरिशर्मा जी की माताजी की आँख का ऑपरेशन हो चुका था। वे वापस घर पहुँच गई थीं। शोभना ब्लागर मिलन से अच्छा महसूस कर रही थीं। मूथा जी उलाहना दे रहे थे कि मैं ने होटल में भोजन क्यों किया, उन के घर क्यों नहीं गया? संजय व्यास से बात करता इतने बस लग गई। उन्हें फोन कर ही न सका। कोटा पहुँचने के बाद इतना व्यस्त रहा कि आज तक उन से बात न हो सकी।

17 टिप्‍पणियां:

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

यानि हर यात्रा सबब बन रही है...
नया कुछ पेश कर पाने की...

बेहतर...

Udan Tashtari ने कहा…

मूथा जी से साहनुभूति...किसी भी कवि को कविता पाठ बस होते होते रह जाना...कितना तकलीफदायक गुजरता है, मैं समझता हूँ. :)

बाकी वृतांत बढ़िया रहा..मजा आया पढ़कर.

Unknown ने कहा…

हमारी जिन्दगी भी एक अनवरत यात्रा ही है और हमेशा ही हम मिलते है विछड जाने को. मूथा जी की कविता सुनने का कर्जा मेरे ऊपर भी है लेकिन मै तो बैक प्रबन्धक हू कर्जा लेता देता रहता हू. हो सकता है कि अगली मुलाकात को हम एक काव्य गोषष्ठी का रूप दे सके.
समीर जी काव्य गोष्ठी का बिषय रखा जाये - विल्स कार्ड और कविता को उनका योगदान.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर लगा आप का आज का लेख, ओर शोभना का भी कहना ठीक है, लेकिन भागना अच्छा नही,

Sanjeet Tripathi ने कहा…

hmm, dar-asal kisi meet ko lekar kisi blogger ke mann me kya bhaav aate hain us meet ke hone ke bad ise padhna accha hi lagta hi.

shobhna ji ko kahiyega ki ye acchi baat hai ki ve ab tanki se utar aayin hai aur nahi chadhengi.
mahaj 2 bar unke blog par gaya, jab ve tanki par chadhi aur utar gai tab. accha likhti hai,
vyas jee ki kavitayein jab aap sunenge aur apna vishleshan denge iska intejar rahega

डा. अमर कुमार ने कहा…


एक बात मन में आ रही है, आख़िरकार कुछ हिन्दी ब्लॉगर्स को ऎसा क्यों लगता है कि वह कुछ अनोखा कर रहे हैं, और गाहे बगाहे मीट-उट होता रहे । मुझे स्मरण नहीं आता कि अब तक किसी मीट से कोई ऎज़ेण्डा सामने निकल कर आया हो !

तकनीकी कार्यशाला का सँयोजन एक अलग बात है, और इस प्रकार के अनौपचारिक मिलन दूसरी बात, फिर टिप्पणी बक्सा इतना औपचारिक क्यों..
कि मूल कथ्य पर लोग कुछ कहने से कतराने लगे हैं - यदि हमारा इन्टर-एक्शन इतना उथला हो तो ब्लॉग के मायने ? यह तो मत विमर्श का बेहतरीन जरिया है ।

शोभना से सहमत.. ब्लॉगर को अपने कार्यक्षेत्र के बाहर पसरे लालित्य और देश समाज को भी देखते रहना चाहिये ।

नहीं जानता कि यह सब आपके टिप्पणी बक्से में क्यों उलट रहा हूँ, पर पिछले पाँच घँटे से बैठा हुआ एक के बाद एक पोस्ट खँगाल रहा हूँ, मन जैसे घुटन से भर आया सो यहाँ बिना अनुमति उड़ेलने की घृष्टता कर बैठा ।

उम्मतें ने कहा…

कविता और शोभना जी पर केन्द्रित वृत्तान्त पर परिहास की इच्छा जोर मार रही थी पर होली में अभी समय शेष है :)

Khushdeep Sehgal ने कहा…

शोभना ने ब्लॉगिंग में बने रहने का फैसला किया...
इसका सारा श्रेय जोधपुर में हरि शर्मा जी के कराए इस अनौपचारिक मिलन को है...

मुझे पहले ही यकीन था कि एक बार द्विवेदी सर शोभना को समझाएंगे तो उन्हें अपना फैसला बदलना ही पड़ेगा...

जय हिंद...

Arvind Mishra ने कहा…

मन्त्र मुग्ध सा पढ़ सुन रहा हूँ -यी अपने दागदार इर्र्र डाग्डर साहब अपुन की तरह खिसियाये क्यूं हुए हैं आज कल

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत अच्छा लगा पढकर.

रामराम.

अनूप शुक्ल ने कहा…

इति श्री जोधपुर ब्लॉगर कथा समाप्त:?

बेनामी ने कहा…

अंकलजी आप सभी से मिलकर बहुत ही अच्छा लगा। शायद ये ब्लॉगर मिलन नहीं होता तो मैं ब्लॉग जगत से चली जाती। आपने मुझे अपने क्षेत्र से लिखने के लिए कहा था। मैं थोड़े समय के बाद फिर से लिखना शुरू करुँगी। और आज कल के Education system के बारे लिखूंगी. अलीजी आप मुझ पर केन्द्रित वृत्तान्त पर परिहास करना चाह रहे हैं। इंतज़ार रहेगा मुझे भी....शायद टंकी पर चढ़ने वाली बात पर ही होगा.....जब लिख ले तो सूचित अवश्य कर दे....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

राकेश मूथा जी और संजय व्यास जी को पढ़ा । बहुत अच्छा लगा । आप दोनों से मिलाने के लिये सहर्ष धन्यवाद ।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

वृतांत बढ़िया लगा,आभार.

विष्णु बैरागी ने कहा…

टिप्‍पणियों की अपेक्षा, प्रतीक्षा, आकर्षण, मोह एक समय तक ही रहता है। उसके बाद सब सामान्‍य हो चलता है-लगभग तटस्‍थ, निस्‍पृह भाव से। फिर तो केवल लिखने के लिए लिखते रहना होता है। जल्‍दी ही समझ में आ जाता है कि अपने बिना भी ब्‍लॉग जगत का काम आसानी से चलता है।

Unknown ने कहा…

फिर से आया हू तो इसलिये नही कि टीप बढेगी लेकिन तीन कारण से लिखने से अपने को नही रोका.

डा. अमर कुमार जी, मुझे आप हमेशा ही बहुत ही गम्भीर और सन्तुलित ब्लोगर लगे इसीलिये आपकी महती चिन्ता और चिन्तन से खुद को जोड रहा हू.
डा. अमर कुमार said...
एक बात मन में आ रही है, आख़िरकार कुछ हिन्दी ब्लॉगर्स को ऎसा क्यों लगता है कि वह कुछ अनोखा कर रहे हैं, और गाहे बगाहे मीट-उट होता रहे । मुझे स्मरण नहीं आता कि अब तक किसी मीट से कोई ऎज़ेण्डा सामने निकल कर आया हो.

सभी के लिखने की बजह एक नही होती और मेरा मानना है कि इससे अधिक लोकतान्त्रिक तरीका कोई और नही है. तो जो लोग मेल मिलाप के बरे मे लिख रहे है वो अपनी मर्जी का काम कर रहे है. जो मुझे और आपको पढना होता है पढ ही लेते है. मैने तो ब्लोगवानी पर रढना १ माह से शुरू किया है नही तो अपने पसन्द के ब्लोग पर जाता था अगर भाता था तो फिर फिर जाता था नही हो फ़ैसला अपना है.

मैने तो पहली पोस्ट पर ही लिखा था कि इस ब्लोगर मिलन का कोई एजेन्डा नही है. कुश ने कब पोछा तब भी यही बताया था और इससे भी बढकर मेरे ब्लोग की पहली लाइन पढिये -

( जीवन की तमाम तल्खियो़ के बीच ये ब्लोग खुद से खुद की बातचीत की एक खुली कोशिश है. इसमे़ आपको कुछ भी महत्वपूर्ण सामग्री भले ना मिले लेकिन जैसा कुछ मै़ सोचता हू़ वैसा ही लिखने के मेरे प्रयास से आप जुडे़गे तो मुझे खुशी होगी. )

एक बात इस बेबजह के मिलन पर -

मिलो तो वेबजह मिलो
कभी किसी जगह मिलो
तलाश मेरी जिन्दगी
जुनून मेरा नाम है
दिलो मे ज्योति प्यार की
जगाना मेरा काम है

दूसरा कारण फिर से आने का भाई खुशदीप का अभार प्रकट करना कि उन्होने इस अनौपचरिक मिलन से ब्लोग जगत को हुए निश्चित फ़ायदे शोभना जी की ब्लोग जगत मे वापसी का जिक्र किया.

तीसरा कारण शोभना जी का परिहास बोध जो उन्होने अली जी के उत्तर मे दिखाया है. बैसे अली जी बहिन बेटियो से परिहास करने के लिये होली तक इन्तजार नही करना पडता. स्नेहिल परिहास पर उनका हमेशा हक है

उम्मतें ने कहा…

@प्रिय श्री हरि शर्मा
मेरी टिप्पणी दोबारा ध्यान से पढ़ लीजिये ! मैंने लिखा "कविता और शोभना जी पर केन्द्रित वृत्तान्त पर परिहास" ! लेकिन आप क्या कह रहे हैं एक बार फिर से सोचने की कृपा कीजियेगा !