@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: उन्हें अकेला खाने की आदत नहीं है

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

उन्हें अकेला खाने की आदत नहीं है

पिछले छह दिन यात्रा पर रहा। कोई दिन ऐसा नहीं रहा जिस दिन सफर नहीं किया हो। इस बीच जोधपुर में हरिशर्मा जी से मुलाकात हुई। जिस का उल्लेख पिछली संक्षिप्त पोस्ट में मैं ने किया था। रविवार सुबह कोटा पहुँचा था। दिन भर काम निपटाने में व्यस्त रहा। रात्रि को फरीदाबाद के लिए रवाना हुआ, शोभा साथ थी। सुबह उसे बेटी के यहाँ छोड़ कर स्नानादि निवृत्त हो कर अल्पाहार लिया और दिल्ली के लिए निकल लिया वहाँ। राज भाटिया जी से मिलना था। इस के लिए मुझे पीरागढ़ी चौक पहुँचना था। मैं आईएसबीटी पंहुचा और वहाँ से बहादुर गढ़ की बस पकड़ी। बस क्या थी सौ मीटर भी मुश्किल से बिना ब्रेक लगाए नहीं चल पा रही थी। यह तो हाल तब था जब कि वह रिंग रोड़ पर थी। गंतव्य तक पहुँचने में दो बज गए। भाटिया जी अपने मित्र के साथ वहाँ मेरी प्रतीक्षा में थे। मैं उन्हें देख पाता उस से पहले उन्हों ने मुझे पहचान लिया और नजदीक आ कर मुझे बाहों में भर लिया। 
म बिना कोई देरी के रोहतक के लिए रवाना हो गए। करीब चार बजे हम रोहतक पहुँचे। वहाँ आशियाना (रात्रि विश्राम के लिए होटल) तलाशने में दो घंटे लग गए। होटल मिला तब तक शाम ढल चुकी थी। हम दोनों ही थके हुए थे। दोनों ने कुछ देर विश्राम किया। कुछ काम की बातें की जिस के लिए हमारा रोहतक में मिलना तय हुआ था। विश्राम के दौरान भी दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे। भाटिया जी अपने जर्मनी के जीवन के बारे में बताते रहे। फिर भोजन की तलाश आरंभ हुई। आखिर एक रेस्तराँ में दोनों ने भोजन किया और फिर रात को वे ले गए उस मोहल्ले में जहाँ उन का बचपन बीता था। वे अपने बचपन के बारे में बताते रहे। हम वापस आशियाने पर पहुँचे तो थके हुए थे। फिर भी बहुत देर तक बातें करते रहे। बीच-बीच में दिल्ली और आसपास के बहुत ब्लागरों के फोन भाटिया जी के पास आते रहे। कुछ से मैं ने भी बात की। फिर सो लिए। दूसरे दिन हम सुबह ही काम में जुट लिए। पैदल और रिक्शे से इधर उधऱ दौड़ते रहे। दोपहर बाद कुछ समय निकाल कर भाटिया जी ने भोजन किया। मैं उस दिन एकाहारी होने से उन का साथ नहीं दे सका तो उन्हों ने अपने साथ भोजन करने के लिए। किसी को फोन कर के बुलाया। 
मुझे उसी दिन लौटना था। जितना काम हो सका किया। भाटिया जी के कुछ संबंधियों से भी भेंट हुई। मुझे उसी रात वापस लौटना था। फिर भी जितना काम हो सकता था हमने निपटाया और शेष काम भाटिया जी को समझा दिया। रात को दस बजे भाटिया जी मुझे बस स्टॉप पर छोड़ने आए। आईएसबीटी जाने वाली एक बस में मैं चढ़ लिया। कंडक्टर का कहना था कि रात बारह बजे तक हम आईएसबीटी पहुँच लेंगे। लेकिन पीरागढ़ी के नजदीक ही चालक ने बस को दिल्ली के अंदर के शॉर्टकट पर मोड़ लिया। रास्ते में अनेक स्थानों पर लगा कि जाम में फँस जाएंगे। लेकिन बस निर्धारित समय से आधे घंटे पहले ही आईएसबीटी पहुँच गई। मेरे फरीदाबाद के लिए साधन पूछने पर चार लोगों ने बताया कि मैं सड़क पार कर के खड़ा हो जाऊँ कोई न कोई बस मिल जाएगी। वहाँ आधे घंटे तक सड़क पर तेज गति से दौड़ते वाहनों को निहारते रहने के बाद एक बस मिली जिस का पिछला दो तिहाई भाग गुडस् के लिए बंद था। उस के आगे के हिस्से में कोई बीस आदमी चढ़ लिए। बस पलवल तक जाने वाली थी। मैं ने शुक्र किया कि मुझे यह बस बेटी के घर से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर उतार सकती थी। एक घंटे बस में खड़े-खड़े सफर करने और एक किलोमीटर तेज चाल से पैदल चलने के बाद में सवा बजे बेटी के घऱ था। बावजूद इस के कि सर्दी भी थी और ठंड़ी हवा भी तेज चलने के कारण मैं पसीने में नहा गया था। 
दूसरे दिन दोपहर मैं पत्नी के साथ कोटा के लिए रवाना हुआ और रात नौ बजे के पहले घर पहुँच गया। आज अपनी वकालत को संभाला। दोपहर बाद भाटिया जी से फोन पर बात हुई। बता रहे थे कि कल वे दिन भर भोजन भी नहीं कर सके। पूछने पर बताया कि कोई खाने पर उन का साथ देने वाला नहीं था और उन्हें अकेला खाने की आदत नहीं है।

18 टिप्‍पणियां:

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

रोचक लगा वृतांत ,आभार.

Khushdeep Sehgal ने कहा…

द्विवेदी सर,
आपको ब्लॉग पर पिछले पांच दिन से न देखकर काफी मिस कर रहा था...राज जी के साथ आपका शेड्यूल बड़ा हेक्टिक रहा...लेकिन काम के साथ अनुभव बांटना वाकई दिलचस्प होगा...समझ सकता हूं, इस बार अति व्यस्त
रहने की वजह से आपको फोन करने का भी टाइम नहीं मिला होगा...७ तारीख को झा जी के कार्यक्रम में सभी को आप की कमी खलेगी...

जय हिंद...

Arvind Mishra ने कहा…

उधर आप अपनी हेक्टिक दिनचर्या पर थे और इधर आपकी सुधि होती रही बार बार -आपका फोन नंबर भी मेरे पास नहीं है .
चलिए दो दिग्गजों की मीटिंग हो ली !

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया रहा व्यस्त यात्रा का वृतांत!!

विवेक रस्तोगी ने कहा…

अकेले खाने की आदत होनी ही चाहिये, अब राज जी तो खाना ही नहीं खा पाये, बहुत ही व्यस्त यात्रा वृत्तांत रहा।

हमारे पास भी फ़ोन नंबर नहीं है नहीं तो आप दोनों से बात करने की बहुत इच्छा थी।

उम्मतें ने कहा…

ब्लागिंग नें आपको बहुत कुछ दिया है !
कुछ यात्रायें / बसों के धक्के और फिर अच्छे दोस्त भी !

निर्मला कपिला ने कहा…

आपके भाटिया जी से मिलने की खबर भाटिया जी से फोन पर मिल गयी थी। मेरा भी बहुत मन था लेकिन सेहत की वजह से मुझे देल्ही का प्रोग्राम कैंसल करना पडा। मुझे 7 के प्रोग्राम मे जाने की भी उत्सुकता थी। खैर फिर कभी सही। आपकी पोस्ट पढ कर आपकी व्यस्तता समझ सकते हैं । हाँ आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने इतने व्यस्त रहते हुये भी मेरा काम किया जिसके लिये बहुत देर से प्रयत्न कर रही थी मगर हो न सका था । आपके सहयोग के लिये धन्यवादी हूँ। शुभकामनाये

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

वकील साहब जी,
हमने भाटिया जी को कल अकेले खाना तो दूर, रहने ही नही दिया.
हमारे साथ तो वे पूरे दिन भर खाते ही रहे,
लेकिन बार बार ये भी कहते भी रहे कि यार कल अकेला था, भूखा रह गया.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अब ब्‍लागरर्स भी साहित्‍यकारों की तरह मिलने लगे हैं, अच्‍छी बात है। धीरे-धीरे परिवार बन जाएगा।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत बधिया यात्रा वृतांत रहा, शुभकामनाएं.

रामराम.

ghughutibasuti ने कहा…

यह तो नए ही तरह का ब्लॉगर मिलन था.पढ़कर अच्छा लगा.
घुघूती बासूती

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बढ़िया, तो भाटिया साहब आजकल भारत भ्रमण पर है !

Abhishek Ojha ने कहा…

भाटियाजी से एक बार मेरी भी वेबकैम पर छोटी मुलाकात हुई है...

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत सुन्दर। मैने भी कई देखे हैं जो अकेले भोजन नहीं करते। उनके व्यक्तित्व में सब को आकर्षित करने की क्षमता होती है।

मेरे श्वसुर जी ऐसे थे। मेरे समधी जी भी ऐसे हैं।

हां, मैं ऐसा नही। :-)

Ashok Kumar pandey ने कहा…

देख रहा हूं वर्चुअल दुनिया को रियल में बदलते…

rashmi ravija ने कहा…

राज जी से आपके मुलाकात का विवरण बहुत ही रोचक लगा...इतनी व्यस्तता होते हुए भी आपलोगों ने काफी कुछ शेयर कर लिया...अकेले खाना तो सचमुच एक सजा की तरह है...और भाटिया जी,इस सजा से इनकार करते हैं,अच्छा लगा,जानकर..

राजकुमार ग्वालानी ने कहा…

दो सितारों का जमीं पर हो गया मिलन
अच्छा है यह अपने ब्लाग जगत का चलन

Satish Saxena ने कहा…

मुझे लगता है मानव मस्तिष्क कभी थकता नहीं , अनवरत चलने की शक्ति दी है ईश्वर ने यहाँ , हाँ हमारे स्वत सुझाव अवश्य अक्सर थका हुआ महसूस कराते हैं !
शुभकामनायें भाई जी !