इस और उस धर्म के बारे में पिछले दो दिनों में बहुत कुछ कहा गया है। महेन्द्र 'नेह' ने इन धर्मों के बारे में अपनी कविता में कुछ इस तरह कहा है .......
अलविदा
महेन्द्र 'नेह'
धर्म जो आतंक की बिजली गिराता हो
आदमी की लाश पर उत्सव मनाता हो
औरतों-बच्चों को जो जिन्दा जलाता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस वतन से अलविदा
इस आशियाँ से अलविदा
धर्म जो भ्रम की आंधी उड़ाता हो
सिर्फ अंधी आस्थाओं को जगाता हो
जो प्रगति की राह में काँटे बिछाता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस सफर से अलविदा
इस कारवाँ से अलविदा
धर्म जो राजा के दरबारों में पलता हो
धर्म जो सेठों की टकसालों में ढलता हो
धर्म जो हथियार की ताकत पे चलता हो
मिल कर कहें अब अलविदा
इस धरा से अलविदा
इस आसमाँ से अलविदा
धर्म जो नफ़रत की दीवारें उठाता हो
आदमी से आदमी को जो लड़ाता हो
जो विषमता को सदा जायज़ बताता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस चमन से अलविदा
इस गुलसिताँ से अलविदा
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17 टिप्पणियां:
सच है ऐसे धर्म को बाय बाय करना ही होगा !
पिछले सप्ताह से अस्वस्थता के कारण ब्लाग पोस्ट पढ नही पाया हूं. पिछले दो दिनों में जो कुछ कहा गया है वह पिछली पोस्ट पढकर फ़िर कमेंट करुंगा.
रामराम.
जो धर्म इंसानियत का जज्बा न जगाए...जो धर्म इंसान को इंसान से लड़ाए...वो धर्म नहीं अधर्म है...उसे मानने से तो नास्तिक होना ही भला...
जय हिंद...
रचना बहुत अच्छी है ....
बहुत सुंदर कविता कही, अति सुंदर भाव, धर्म तो हमे इंसान बनाने के लिये बनाया गया था, ओर हम ने धर्म को ही रोंद डाला, जिन मासुंमओ कि इज्जत लुट जाती है उन से पुछो धर्म , जिन बच्चो के मां बाप बिछड जाते है, उन से पुछो धर्म.... नही ऎसे धर्म से अच्छा तो हम आम इंसान ही बने रहे.
धन्यवाद
धर्म जो गुजरात बनाता हो, धर्म जो अयोध्या बनाता हो, धर्म जो प्रज्ञा हो आओ धर्म को तिलांजलि दें.
आमीन !
हम तो बाय बाय कर लेंगे लेकिन वह जो गले पड़ रहा है?
ये लीजिए...
अभी-अभी तो महेन्द्र नेह जी से अपने ब्लॉग पर निबट कर आया...यहां भी वे वही विराज रहे हैं..
एक उम्दा गीत...
अच्छी बात की आपने .. ऐसे धर्म का क्या फायदा .. जो मन को ही कसैला कर दे !!
हम तो अलविदा कह दें वकील साब मगर बाकियों का क्या किजियेगा?इंसान पैदा हुयें है,इंसान तो ढंग से बन नही पाये और………………।
क्या गज़ब की प्रस्तुती है। आपसे एक प्रार्थना है कि नेह जी की ये कविता हर ब्लाग पर छपनी चाहिये। अगर नेह जी इजाजत दें और मुझे ये कविता भेज सकें तो मैं इसे अपने ब्लाग पर जरूर लगना चाहूँगी तकि इसे अधिक से अधिक पाठक पढ सकें आउर ब्लाग पर चल रहे झगडे के बारे मे सोचें । ये हीरा तराश कर लाये हैं आप नेह जी को बहुत बहुत बधाई और आपका धन्यवाद आपके जवाब का इन्तज़ार रहेगा।
क्या गज़ब की प्रस्तुती है। आपसे एक प्रार्थना है कि नेह जी की ये कविता हर ब्लाग पर छपनी चाहिये। अगर नेह जी इजाजत दें और मुझे ये कविता भेज सकें तो मैं इसे अपने ब्लाग पर जरूर लगना चाहूँगी तकि इसे अधिक से अधिक पाठक पढ सकें आउर ब्लाग पर चल रहे झगडे के बारे मे सोचें । ये हीरा तराश कर लाये हैं आप नेह जी को बहुत बहुत बधाई और आपका धन्यवाद आपके जवाब का इन्तज़ार रहेगा।
क्या गज़ब की प्रस्तुती है। आपसे एक प्रार्थना है कि नेह जी की ये कविता हर ब्लाग पर छपनी चाहिये। अगर नेह जी इजाजत दें और मुझे ये कविता भेज सकें तो मैं इसे अपने ब्लाग पर जरूर लगना चाहूँगी तकि इसे अधिक से अधिक पाठक पढ सकें आउर ब्लाग पर चल रहे झगडे के बारे मे सोचें । ये हीरा तराश कर लाये हैं आप नेह जी को बहुत बहुत बधाई और आपका धन्यवाद आपके जवाब का इन्तज़ार रहेगा।
सही है, अंततः तो एक मानव धर्म का उदय होगा ही!
आह...नेह साब की ये अप्रतिम कविता की तारीफ़ में कुछ कहना हैसियत से ऊपर की बात होगी...
बिल्कुल सही समय पर लगाया है आपने इस अद्भुत कविता को, द्विवेदी जी !
आ. नेह जी की रचना उत्कृष्ट है
काश -
के अमन कायम हो पाए
- लावण्या
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