मेरे शायर दोस्त पुरुषोत्तम 'यक़ीन' से आप सब परिचित हैं। आज रविवार की शाम अचानक वे आए, बहुत देर बैठे। खूब बातें हुईं। कहने लगे -तुम्हें दो जादू वाली ग़ज़लें देता हूँ। मैं ने पूछा -जादूवाली ग़ज़ल का क्या मानी? वो मैं बाद में बताऊंगा। पहले इन दोनों ग़ज़लों को 'अनवरत' पर छापो। मैं ने कहा -समझो छाप दी, तुम जादू बताओ। नहीं बताउंगा। जब तक छप नहीं जाएंगी और खुद कम्प्यूटर पर नहीं पढ़ लूंगा, नहीं बताउंगा।
मैं ने बहुत कहा, पर उन्हों ने जादू नहीं बताया। अड़ गए, सो अड़ गए। शायर जो ठहरे। खैर, मैं पहली ग़ज़ल छाप रहा हूँ। ध्यान से पढ़ें। दूसरी ग़ज़ल भी कल शाम तक जरूर छाप दी जाएगी। मुझे तो इन ग़ज़लों में कोई जादू नज़र नहीं आया। आप को आए तो जरूर बताइगा। वरना दोनों ग़ज़लें छप जाने के बाद 'यक़ीन' साहब से ही पूछेंगे जादू क्या है?
एक बात और वे अपना नया फोटो भी लाए थे। उसे भी देखिए, मूँछें मुड़ा कर कितने खूबसूरत लग रहे हैं?
खुल कर बात करें आपस में
<> पुरुषोत्तम 'यक़ीन' <>
तू इक राहत अफ़्ज़ा मौसम
तू बादल तू सबा तू शबनम
छल करते हैं अपना बन कर
मेरे साथी मेरे हमदम
तेरे मुख पर तेज है सच का
तेरे आगे सूरज मद्धम
दर्दे-जुदाई और तन्हाई
क्यूँ न निकल जाता है ये दम
कोई नहीं है तुझ बिन मेरा
कह तो दे इतना कम से कम
खुल कर बात करें आपस में
कुछ तो कम होंगे अपने ग़म
झूठी ख़ुशियों पर ख़ुश रहिए
व्यर्थ 'यक़ीन' यहाँ है मातम
1
11 टिप्पणियां:
उफ़्फ़ ये घाव, उफ़्फ़ ये मरहम,
जो न समझे, वो बेरहम,
यकीन को गर यकीन जादू का,
कह देना हां, वो चल गया सनम...
नया चेहरा ..भी जादू ही लगा..बहुत खूब हम तो दिवाने से हो गये हैं उनके...
इनकी तो हर गज़ल ही जादू वाली है. इसमें अलग से क्या ढूंढें?
कोई नहीं है तुझ बिन मेरा
कह तो दे इतना कम से कम
बहुत उम्दा शेर. और पूरी ग़ज़ल. शुक्रिया पढ़वाने का.
एक बेहतर ग़ज़ल की सनसनीखेज़ प्रस्तुति...
यही तो जादू है...
सुन्दर गजल कही "यकीन" साहब ने , जादू वाली बात का खुलासा करिए मुझे भी जानना है
वीनस केसरी
क्या बात है..पुरुषोत्तम जी को पढ़कर आनन्द आ जाता है!!
@ravikumarswarnkar
भाई, सनसनी से तो हमें डर लगता है,इसलिए वैसा सनसनीखेज तो ये है नहीं कि खोदा पहा़ड़ तो निकली चुहिया। जब 'यक़ीन',साहब ने बात कही है तो कुछ तो दम होगा ही। सच मानिए हमें तो पूरा यक़ीन है कि जादू है। अब कल दूसरी ग़ज़ल छाप कर उन्हीं से पूछते हैं, जादू क्या है?
@venus kesari
अब खुलासा तो खुद यक़ीन साहब ने हम से भी न किया। किया होता तो यूँ न छुपाते। एक ग़ज़ल में तो अधूरा ही जादू है। जादू तो दूसरी ग़ज़ल से पूरा होगा। मेरे पास दूसरी ग़ज़ल भी है, तकरीबन पिछले पाँच घंटों से। तब से दोनों ग़ज़लें कई बार पढ़ चुका हूँ। मैं खुद हैरान हूँ, जादू क्या है? खैर कल दूसरी ग़ज़ल छापने के पहले उन से हिंट जरूर पूछूंगा, और आप को भी बताउंगा। तब तक जरा आप भी इंतजार कीजिए।
कोई नहीं है तुझ बिन मेरा
कह तो दे इतना कम से कम
खुल कर बात करें आपस में
कुछ तो कम होंगे अपने ग़म
इतना हो जाए, यही तो जादू है।
जादू तो हो गया द्विवेदी जी .."यकीन" ने यकीन के साथ कहा और आप ने गज़ल छाप दी अब जो जादू आप पर चल गया हम पर तो चलना ही है क्योकि हम तो शब्दों के चाकर हैं । बाकी कल । -शरद कोकास ,दुर्ग छ.ग.
शब्द नहीं भाव भी जादुई है !
वाकई जादू सा प्रभाव पैदा करती रचना.
रामराम.
एक टिप्पणी भेजें