हे, पाठक!
यात्री-निवास पहुँच कर सूत जी ने स्नान-ध्यान किया। भोजनशाला पहुँचे तब वहाँ भोजन का अंतिम दौर चल रहा था। भोजन पा कर वापस अपने कक्ष पहुँचे तो अर्धरात्रि हो चुकी थी। तभी चल-दूरभाष से आरती का स्वर उभरा -जय जगदीश हरे.... दूसरी ओर सनत था।
-गुरुवर कहाँ हो? सूत जी ने बताया कि वे रात्रि विश्राम स्वामी पद्मनाभ की विश्राम स्थली तिरुवनंतपुरम में कर रहे हैं।
सनत-गुरुवर, समाचार देखे सुने?
सूत जी-नहीं आज तो समय नहीं मिला, कुछ विशेष है क्या?
सनत-चौथे दौर का प्रचार अभियान थमते ही महा पंचायत की चौसर शुरू हो चुकी है। चाचा वंश के राज कुमार ने बैक्टीरिया दल की और से पासा फैंक दिया है। लालटेन की प्रतिद्वंदी आपत्कालीन मसाला-बत्ती की प्रशंसा कर दी कि यह सीधे विद्युत से ऊर्जा प्राप्त करती है और उसे सहेज कर रखती है, जिसे आपत्काल में काम लिया जा सकता है। यह कोसी की बाढ़ के बाद लोगों के बहुत काम आई। यह भी कहा कि बैक्टीरिया दल लाल फ्रॉक का सहयोग प्राप्त कर सकता है। इस से लालटेन भभक उठी है, उस का कांच का गोला कभी भी तड़क सकता है। मैं राजधानी पहुँच गया हूँ। यहाँ का मतदान भी देख लेंगे और आगे का सारा खेल तो यहीं होना है। आप राजधानी कब पहुँच रहे हैं?
सूत जी- बस, कल प्रातः स्वामी के दर्शन कर आगे की योजना को अंतिम रूप देता हूँ फिर भी कोशिश रहेगी कि मतदान आरंभ होते होते राजधानी पहुँच लूँ।
सनत- ठीक है गुरूवर आप विश्राम कीजिए। मैं राजधानी में आप की प्रतीक्षा करूंगा।
हे, पाठक!
सूत जी बुरी तरह थके हुए थे, शैया पर जा लेटे। सोचने लगे, सत्तावन वर्ष पूर्व आरंभ हुई भारतवर्ष के गणतंत्र की यह यात्रा आज कहाँ पहुँच चुकी है? भारतीय गंणतंत्र यथार्थ में एक अनूठा प्रयोग स्थल हो गया है, जहाँ मानव समाज के विकास की कथा कुछ पृथक रीति से अंकित हो रही है। वे आज यहाँ केरल में आर्थिक विकास के स्तर और लोगों की सामाजिक-राजनैतिक चेतना के स्तर को देख कर बहुत प्रभावित हुए थे। वे सोच रहे थे कि शायद पूरे भारतवर्ष मे ऐसा हो सकता था। यदि गणराज्य और उस के दूसरे प्रान्तों की पंचायतों ने भी यहाँ की भांति भूमि सुधार और शिक्षा के मामलों में आजादी के आंदोलन के दौरान घोषित नीति को दृढ़ता से लागू करने के लिए वैसी प्रतिबद्धता दिखाई होती जैसी केरल की पहली प्रान्तीय सरकार ने दिखाई थी। यद्यपि उस प्रतिबद्धता के कारण ही उस पहली पंचायत का ही वर्ष में जबरन अवसान कर दिया गया। लेकिन पंचायत की प्रतिबद्धता ने जनता को उस स्तर तक शिक्षित कर दिया था कि आने वाली पंचायतें इन दोनों पक्षों की उपेक्षा नहीं कर पाई। तब शायद देश में भी यहाँ की तरह दो ही राजनैतिक दल या ध्रुव होते। .... विचारते विचारते ही सूत जी निद्रामग्न हो चुके थे।
हे, पाठक!
सूत जी दूसरे दिन साँयकाल राजधानी पहुँच गए। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। सन्यास धारण कर लेने के उपरांत भी उसे किसी का साथ तो चाहिए ही। सनत पहले ही राजधानी पहुँच चुका था। उन्हों ने उसे भी अपने पास ही बुला लिया। अब दोनों साथ हो लिए थे। अगले दिन राजधानी के सभी खेतों के प्रतिनिधियों के लिए मतदान होना था। यहाँ पिछले दिनों बहुत अनूठी घटनाएँ हुई थीं। चुनाव के आरंभ में ही बैक्टीरिया दल के एक नेता पर पादुका प्रहार हुआ था। जिस का असर ये हुआ कि राजधानी क्षेत्र में बैक्टीरिया दल ने अपने दो सशक्त उम्मीदवारों को बदल दिया था। एक तरह से बैक्टीरिया दल ने अपने पूर्व अपराध की स्वीकारोक्ति कर ली थी। सूत जी जानते थे कि मतदाता की स्मृति बहुत क्षीण होती है। वे अवश्य ही इस स्वीकारोक्ति के उपरांत बैक्टीरिया दल को माफ कर देंगे और बैक्टीरिया दल माफी का लाभ प्राप्त करने में सफल हो लेगा। इस पादुका प्रहार ने फैशन की जगह ले ली थी। अब तक के चुनाव प्रचार में उस के अनोखे उदाहरण सामने आए। यहाँ तक कि महापंचायत के वर्तमान मुखिया और वायरस दल के घोषित मुखिया भी इस के प्रहारों से न बच सके। पर पादुका प्रहार का यह फैशन अहिंसक ही बना रहा और उस ने किसी को भी भौतिक चोट नहीं पहुँचाई। यद्यपि बहुत से मीमांसकारों ने इस पर चिंताएँ प्रकट करते हुए पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठ रंग डाले। पर सूत जी जानते थे कि पादुका प्रहार एक फैशन की तरह आया है और फैशन की तरह चला जाएगा। एक फैशन और चला कि पहले पहल पादुका प्रहार के लक्ष्य बने नेताओं ने इसे अपनी अहिंसा की नीति के अंतर्गत प्रहारकों को क्षमा कर दिया। लेकिन इस महानता का कार्य करने में वायरस दल के नेता पिछड़ गए।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
8 टिप्पणियां:
पादुका प्रहार एक फैशन की तरह आया है और फैशन की तरह चला जाएगा--सूत जी बहुत ज्ञानी हैं, उनका नमन!!
समझने वाली कथा .
ये शृँखला वाकई बहुत कुछ समेटे हुए है - पादुका प्रहार,
ध्यानाकर्षण का औजार बन गई है .......
भारतीय जीवन बहता पानी है, जिसमें राजनीति पेड़ से गिरे पत्ते की मानिंद है....पानी गंदा दीखता तो है पर गन्दा होता नहीं...बहरहाल पत्ता ज़रूर सड़ जाता है..
काश यह फैशन की तरह चला न जाता!
सूतजी पादुका प्रहार के दृष्टांत से ज्यादा आहत हैं या 57 वर्ष पहले शुरु हुई जनतंत्र यात्रा के दिशाहीन होने से, कौन जाने। पर आपकी जनतंतर कथा सही दिशा में जा रही है....:)
पादुका प्रहारिणी वाकई एक अस्त्र से कम नही ध्यान खींचने के लिये.
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
रामराम.
पादुक प्रहार आ ही गया यहाँ भी :-) आज की डेट में बिना इसके कोई कथा सम्पूर्ण हो ही नहीं सकती.
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