@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: माटी के बेटों की खामोशी टूटी

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

माटी के बेटों की खामोशी टूटी

पिछले साल पानी की मांग पर राजस्थान के टोंक जिले में पानी की मांग कर रहे किसानों पर गोली चली। देश में ऐसी घटनाएँ हर साल बहुत घटती हैं। प्रस्तुत है इन्हीं घटनाओं से प्रेरित महेन्द्र नेह का एक गीत ...


'गीत'
"माटी के बेटों की खामोशी टूटी"

  • महेन्द्र नेह

फिर माटी के बेटो की
खामोशी टूटी
सूखे खेतों ने थोड़ा सा
पानी माँगा
नये आधुनिक राजाओं का
माथा ठनका
लोकतंत्र ने
बारूदी भाषा अपनाई !
खेत नहीं बेचेंगे अपने
हलधर बोले
जड़ें नही छोड़ेंगे अपनी
तरूवर बोले
राजनीति के अंधे विषधर
फिर फुंकारे
धन-सत्ता ने
अमरीकी बन्दूक उठाई !
खलिहानों में पगडंडी पर
लाश बिछी हैं
कंधों पर किसान की बेटी
उठा रही हैं
चारों ओर लाठियाँ, गोली
हिंसा नत्र्तन
घायल बचपन
घायल गाँवो की तरूणाई ! 
गोलबंद हैं वृक्ष जमीं पर
तने हुए हैं
सत्ता के हिंसक ताँडव
से डरे नहीं है
जीवित सदा रहेंगे सपने
नही मरेंगे
पूरब में उगती
अरूणाई !
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9 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

तेजस्वी कविता !

Kapil ने कहा…

आह्वानकारी कविता,
आपका धन्‍यवाद नेहजी की इस रचना को पोस्‍ट करने के लिए।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

जी हां पूरब का नम्बर या है अब। मौका बरबाद नहीं करना है। नेह जी के ओज की जरूरत है इस देश को।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ओजपुर्ण और सामयिक रचना.

रामराम.

डॉ .अनुराग ने कहा…

शब्द अपनी महिमा बताते है.

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

बहुत ही शानदार एवम ओजपूर्ण कविता। आभार इसे पढ़वाने के लिये।

mamta ने कहा…

शुक्रिया इस ओजस्वी कविता को पढ़वाने के लिए ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

धन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये.

Shastri JC Philip ने कहा…

"नये आधुनिक राजाओं का
माथा ठनका
लोकतंत्र ने
बारूदी भाषा अपनाई !"

महेंद्र जी के कलम के कायल हो गये!!

सस्नेह -- शास्त्री