26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई पर आतंकवाद के हमले के बाद 27 नवम्बर, 2008 को अनवरत और तीसरा खंबा पर मैं ने अपनी एक कविता के माध्यम से कहा था कि यह शोक का दिन नहीं, हम युद्ध की ड्यूटी पर हैं।
आज इसी तथ्य और भावना के तहत आज तक, टीवी टुडे, इन्डिया टुडे ग्रुप के सभी कर्मचारियों ने एक शपथ लेते हुए आतंकवाद पर विजय तक युद्ध रत रहने की शपथ ली है। आप भी लें यह शपथ!शपथ इस तरह है .....
निवेदक : दिनेशराय द्विवेदी
27 टिप्पणियां:
हम आपके साथ है महाराज् और हम शपथ लेते हैं।
जीतेंगे और जरूर जीतेंगे..
हम आपके साथ है
अगर ये जज्बा कायम रहा तो अवश्य जीत जायेंगे और अगर कोरी सपथ ही है तो कुछ समय बाद भूल भी जायेंगे सपथ को ! वैसे आज जिस तरह से ताज के सामने लोगो ने स्वेछा से जो आक्रोश व्यक्त किया है ! उसे देख कर लगता है की अबकी बार बात कुछ सीरियसली ली जारही है ! आपको इसे यहाँ दोहराने के लिए धन्यवाद !
रामराम !
चार दिन की चाँदनी न सिद्ध हो,ऐसी कामना है।
हम भी शपथ लेते है आप सब के साथ, हम जरुर जीतेगे.
धन्यवाद
मैं उपरोक्त शपथ लेता हूँ..
विजय हमारी ही होगी.
आमीन...
और आपकी कविता बहुत
ताकतवर थी....
हम आपके साथ है!!!! और हम शपथ लेते हैं!!!!
प्राइमरी का मास्टर
विजय हमारी ही होगी!!!!!
प्राइमरी का मास्टर
वंदे मातरम!
एक आम आदमी किसी न किसी मोर्चे पर पहले से ही युद्ध लड़ रहा होता है, क्या वाकई वह इस युद्ध में अपनी सहभागिता जाहिर (सिर्फ जाहिर नहीं, सक्रियता भी) कर सकता है?
जब पदासिन लोग देश का भला छोड़कर अपना घर भरने में लगे हुए हैं, हम आम आदमी शपथ लेकर भी क्या कर सकते हैं।
फिर भी इस जज्बे को सलाम। और इस कतार में मैं भी शामिल होना चाहूँगा।
सत्यमेव जयते !वंदे मातरम!
आमीन...
और आपकी कविता बहुत
ताकतवर थी....
किसी भी जंग को जीतने के लिये पुरानी पीढी को तैयार होना होगा की वो नयी पीढी के साथ बैठ कर बात करे . हर विचार को सुनना होगा और तैयार करना होगा नयी पीढी को की वो सैनिक बने डरपोक नागरिक ना बने .
ताकत और अकल दोनों की जरुँत होती हैं जंग मे . ताकत नवयुवक और नवयुवती मे हैं अगर आप चाहते हैं जंग जीतना तो उस ताकत को जागने वाले बने .
जिस दिन हम मे से कोई भी नयी पीढी को अपने साथ लेकर आगे बढेगा जंग ही ख़तम हो जायेगी .
अभी तो हर समय हमारा समाज पीढियों और लिंग विभाजन और धर्मं की लड़ाईयां ही लड़ रहा हैं .
बच्चो को बड़ा बनाईये उनके हाथ मे "आक्रोश " दीजिये और आप उस आक्रोश को सही दिशा दीजिये . जिन्दगी की हर जंग आप और हम जीतेगे
जो आक्रोश आज सब तरफ़ दिख रहा है उसको सही दिशा में ले जाना हम सब के साथ साथ चलने ही सफल होगा
सही है - जीत के प्रति साहस/विश्वास आना जरूरी है।
हममें से प्रत्येक को व्यक्तिगत ईमानदारी बरतते हुए यह शपथ लेनी है और इसे नींद में भी याद रखे रहना है । हम इसे याद रखें रहें, यही आवश्यक है ।
मैं यह शपथ ले चुका हूं ।
साथ हूँ...
लेकिन क्या सिर्फ शपथ पर्याप्त है....जंग के हर सेनानी को मालूम होना चाहिये उसे यह शपथ निभानी कैसे है...
छोटी छोटी बातें जो हर किसी के बस में है....साफ बुलट पॉइन्ट्स में....इसपर विचार आमंत्रित किये जाने चाहिये....एक ऐसी जगह हो ब्लॉगजगत में जो चौकन्ना कर सकती हो, सलाह दे सकती हो, साँत्वना दे सकती हो....हर इंसान जिसकी साफ पहचान हो रेजिस्टर किया जा सकता है...बाकियों को टिप्पणी और ई मेल की सुविधा हो
हम सब साथ हैं...
पूरा देश आपके साथ है द्रिवेदी जी.....इसके लिए हमें बेहतर इंसान ,अनुशासित होने के अलावा आत्मकेंद्रित न होकर इस समाज ओर देश के प्रति प्रतिबधता पहले रखनी होगी .....
आमीन...जरूर जीतेंगे..
हमें भी अब लग रहा है कि इस बार बात को थोड़ा सिरियसली लिया जा रहा है, लेकिन डर भी है कि कहीं ये जज्बा अपने अंजाम तक पहुंचने से पहले खत्म न हो जाये।
बेजी जी की बात भी एक्दम सही है कि हर सेनानी को पता होना चाहिए कि करना क्या है। ब्लोगजगत इसमें मदद कर सकता है।
तो लिजिए पहला नियम हम दे रहे है :
'जवाबदेही हर स्तर पर, हर किसी के लिए'
शपथ ! साथ साथ हैं !
जी हाँ, द्विवेदी जी. सभी विचारवान भारतीय आप के साथ हैं इस मुहिम में.
जहाँ तक बात जिम्मेदारी तय करने की है, आइये हम प्रण करें कि अपनी जिम्मेदारियां निभाने के साथ दूसरों की जवाबदेही भी हर मुमकिन स्तर पर तय करेंगे.
आमीन, इंशाल्लाह ज़रूर जीतेंगे ! और अल्लाह से दुआ है की यह जो जज्बा लोगो के दिल में उठा है वो हमेशा बरक़रार रहे और यह आग हमेशा जलती रहे....दोबारा बेगुनाहों का खून न बहे....आमीन
कविता जी की बातों से सहमत होते...दो कदम और बढ़ कर ये दावे के साथ कह सकता हूं कि होन वही ढ़ाक के तीन पात.....चार दिनों की ये चांदनी शायद चार दिन और खिंच जाये-बस.
विगत दस वर्षों से इस लड़ाई से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े होने का अनुभव-क्या करूं-यही कहने को विवश करता है..
मैंने शपथ ली है और उस पर हस्ताक्षर भी किए हैं. अगर आप में से कोई इस शपथ पर हस्ताक्षर करना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाएँ:
http://specials.indiatoday.com/specials/petition_new/pledge.html
यह लिंक आप मेरे ब्लाग्स पर दिए गए सी-बाक्स में भी क्लिक कर सकते हैं.
एक नया संविधान। कविता में शोक मनाने से ज्यादा युद्ध अनिवार्य है, यह देखकर सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता 'वीरों का कैसा हो वसंत!' याद आई।
एक टिप्पणी भेजें